Sunday, 27 October 2019

यह जलता दीप मनोरम है / कवि - हेमन्त दास 'हिम'

दीपावली का गीत 




जिस पावन दृष्टि में निशदिन
हर कोई हर पल सम है
एक नाद है मधुर स्वरों का
आह्लादित जीवन-क्रम है
यह जलता दीप मनोरम है

हर कोना है मन का पुलकित
हर्षित तन का कण-कण है
ध्रुव-सत्यों की ज्वाला में ही
दूर हुआ मेरा भ्रम है
यह जलता दीप मनोरम है

श्यामवर्ण ही नहीं अंधेरा
वा जो चमकता, नहीं सवेरा
स्व-विवेक से परखो, जानो
ज्योतिपुंज है या तम है
यह जलता दीप मनोरम है

समय ज्यों बढ़ता जाता है
हर पदार्थ घटता जाता है
देखो 'हिम' अंतर्प्रकाश को
हुआ नहीं कभी कम है
यह जलता दीप मनोरम है।
....

कवि - हेमन्त दास 'हिम'
कवि का ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com



11 comments:

  1. Replies
    1. धन्यवाद प्रशान जी!

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    2. धन्यवाद प्रशान्त जी।

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  2. Replies
    1. Thank you Sir, If you comment here after logging in to blogger.com with google password then your profile pic and name as given in blogger.com will appear here.

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  3. बहुत सुंदर गीत। दीपोत्सव की अशेष शुभकामनाएं।

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    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय.

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  4. बहुत सुंदर सरस कविता। साधुवाद।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका।

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