अपने गुमशुदा होने की खबर की तलाश में आम आदमी
लघुकथा पर बिन्दुवार महत्वपूर्ण चर्चा / ग़ज़लों और दोहों का भी पाठ
सुप्रसिद्ध कथाकार और लघुकथा लेखक सूर्यकांत नागर के सम्मान में दिनांक 13.2.2019 को खारघर, नवी मुंबई के पीआईएमएस, सेक्टर-12 में एक लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें नवी मुंबई के अनेक लघुकथा लेखक और अन्य साहित्यकार उपस्थित हुए. श्री नागर की अध्यक्षता में चली इस गोष्ठी का संचालन किया सेवा सदन प्रसाद ने.
कार्यक्रम के आरम्भ में सूर्यकान्त नागर को शॉल ओढ़ाकर किया गया. फिर वंदना श्रीवास्तव ने अपने मधुर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. फिर शुरू हुआ स्वरचित लघुकथा पाठ का सत्र.
चन्द्रिका व्यास ने 'गुमशुदा' शीर्षक लघुकथा में एक बाप द्वारा अपने ही गुमशुदा होने की खबर को अखबार में ढूंढते पाया गया.
ओम प्रकाश पाण्डेय ने 'विश्वास' शीर्षक लघुकथा का पाठ किया. उसमें जब एक महिला को मुंबई लोकल रेल के महिला डब्बे की बजाय सामान्य डब्बे में सफ़र करते हुए एक पुरुष यात्री ने पूछा कि आप महिला डब्बे में क्यों नहीं सफ़र करती हैं तो जवाब मिला, "विश्वास नहीं है."
वंदना श्रीवास्तव ने अपनी लघुकथा 'माँ' में एक संतानहीन महिला द्वारा एक परित्यक्त नवजात शिशु को ख़ुशी ख़ुशी अपनाए जाने का सुखद चित्र प्रस्तुत किया.
अश्विनी उम्मीद ने "पिताजी वर्सेस मिकी" शीर्षक लघुकथा में एक व्यक्ति द्वारा अपने पालतू कुत्ते को अपने बीमार पिताजी से ज्यादा तरजीह देने का दुर्भाग्यजनक परिदृश्य सशक्त तरीके से प्रस्तुत किया.
हेमन्त दास 'हिम' ने अपनी लघुकथा "लम्बी लड़ाई" में ग़रीबों की बस्ती के उजाड़ने का विरोध के मुद्दे पर जीते एक नेता को इस मुद्दे पर अपनी लम्बी लड़ाई जारी रखने हेतु इसी अपराध में सक्रिय एक बिल्डर से समझौता करने की लाचारी दिखाई.
अशोक प्रितमानी ने "रोल मॉडल पर प्रेरणा स्रोत" शीर्षक लघुकथा में समय के साथ बदलते आदर्श चरित्र और इस बहाने जीवन-मूल्यों के ह्रास के यथार्थ को सामने रखा.
डॉ. सतीश शुक्ल ने 'अंगदान" शीर्षक लघुकथा में एक वृद्ध व्यक्ति द्वारा अपनी मोटरसाइकिल के पार्ट को दान करके अंगदान सा संतोष पाने का प्रभावकारी वर्णन किया.
विजय भटनागर ने 'शुकराना' शीर्षक लघुकथा में घूसखोरी की प्रथा का पुर्जा पुर्जा उखाड़कर रख दिया.
राघवेन्द्र तिवारी ने एक एक पंक्तियों वाली अनेक हास्य लघुकथाओं का पाठ कर सभी श्रोताओं को हंसने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर दिया.
सेवा सदन प्रसाद ने अपनी लघुकथा में "कल्लू और देसी शराब" में आज की सच्चाई राखी.
फिर माहौल गद्यात्मक से अचानक पद्यात्मक हो उठा और एक से एक शेरो-शायरी एवं छंदात्मक कविताओं ने मंच को अपने सुरों के आगोश में ले लिया.
वंदना श्रीवास्तव ने वसंत का स्वागत कुछ यूं किया-
पल्लव विहीना शाख पर ज्यों फूल टेसू के खिले
बुझ गई सी राख में जैसे अगन की लौ जले
विध्वंश के तल में सृजन हर बार होता देखिये
इस प्रणय के पर्व का सत्कार होता देखिये.
सिराज गौरी ने तीरे-सितम सह सह कर भी वतन को सभालते रहे -
हमीं पर है बरसात तीरे-सितम की
हमीं इस वतन को संभाले हुए हैं
जो मैख़ाना खुद ही संभाले हुए हैं
वो खुद नफरतों के पियाले हुए हैं.
पैकर बस्तवी ने दुनिया के लिए दुनिया के आगे सर झुकाने से इनकार कर दिया-
हमारा मुस्कुराना ठीक है क्या
दुखों का दिल जलाना ठीक है क्या
कि दुनिया के लिए दुनिया के आगे
बताओ सर झुकाना ठीक है क्या
अश्वनी उम्मीद के घर जलाने की हर साजिश को किसी ने बारिश करके नाकाम कर दिया-
घर जलाने की वो जब जब साजिशें करता रहा
मेरा मालिक तब तब मुझ पर बारिशें करता रहा
राघवेन्द्र तिवारी ने किसी के प्यार में स्वयं को मात्र एक क्षेपक कथा के तौर पर पाया -
जिक्र मेरा इस कथन में अन्यथा था
मैं तुम्हारे प्यार की क्षेपक कथा था
ज़िन्दगी की कथित जद्दोजहद में
मैं नाटक की कोई अंतर्कथा था
अशोक प्रितमानी ने आज के रचनाकर्मियों के सन्दर्भ में बड़ी ही प्रासंगिक कविता पढ़ी -
आफ़ताब को वजीफ़ा अंधा क्या देगा
रोशनी छीन लेगा और अँधेरा देगा
है मुक़र्रर नीलामी भारी चौपाल में
वो भला मेरी कीमत क्या देगा.
डॉ. सतीश शुक्ला ने इस माहौल में आस और मधुमास का रंग घोला -
कुछ सपने बेमन के
कुछ सपने आस के
कुछ सपने न्यास के
कुछ सपने मधुमास के.
विजय भटनागर ने सभी लेखकों का ध्यान देश के आसन्न संकट की ओर खींचा-
सभी लेखकों को सन्देश है
संकट में हमारा देश है.
डॉ. मनोहर अभय ने बताया की पहले लघु कथा नाम से कोई इसे नहीं जानता था बल्कि कुछ लोग इसे बोधकथा कहते थे. उसी दौर से वे लिख रहे हैं. बाद में वे कविता की ओर मुड़े और आज उन्हें उनके दोहों के कारण लोग जानते हैं. उन्होंने अपने कुछ दोहे सुनाये-
हरियाई फिर टहनियां दहके खूब पलाश
आसपास बैठा कहीं मधुपूरित मधुमास
द्वार खड़े दस संतरी आगे पीछे बीस
बीच निहत्थे हम फंसे सौ करोड़ पैंतीस.
अंत में अध्यक्ष सूर्यकान्त नागर ने पढ़ी गई लघुकथाओं पर टिप्पणी की और कहा कि अधिकांश पढ़ी गई लघुकथाएं उच्च स्तर की थीं. फिर उन्होंने लघुकथाओं की मूलभूत विशेषताओं से सबको परिचित कराया. लघुकथाएं लिखना कहानी और उपन्यास लिखने से भी ज्यादा कठिन है क्योंकि इसमें कुछेक पंक्तियों में सारी कहानी कह देनी पड़ती है. यह भी एक प्रकार की कथा ही है इसलिए इसमें कथानक होना ही चाहिए. अति-कलावाद से बचने की जरूरत है. कला और यथार्थ में समावेशी भाव होना चाहिए. अनुभव को व्यक्तिगत स्तर से समष्टि के स्तर तक ले जाना आवश्यक है. लघुकथा एक विधा है या नहीं इस विवाद में पड़ने की बजाय अच्छी लघुकथाओं के सृजन पर ध्यान दिया जाना चाहिए. 'वाद' अगर आपके मानस के अन्दर रचा बसा है तो ठीक अन्यथा इसे जबरदस्ती न ओढें. लघुकथा रचते समय शीघ्रता बिलकुल न दिखाएं. अनुभव को सीझने दीजिये फिर जब पूरी तरह से रचना हेतु तैयार हो जाए तभी कागज पर उतारिये. शब्दों में कंजूसी बरतें. एक सटीक शब्द पूरे वाक्य का काम करता है. सबकुछ समझाने में शब्दों का अपव्यय न करें. कुछ पाठकों की क्षमता पर भी विश्वास कीजिए.
इस तरह से लघुकथों के अति महतवपूर्ण विन्दुओं का प्रबोध कराते हुए श्री नागर ने स्वयं के प्रति सम्मान व्यक्त किये जाने पर साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया
और अंत में धन्यवाद ज्ञापन के बाद अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की गई.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
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वाहः.. बहुत बढ़ियाँ
ReplyDeleteआदरणीय सेवा सदन जी की लघुकथा पढ़ती हूँ
जी बहुत अच्छी बात है. मधुर टिपण्णी हेतु आभार.
DeleteNice that see your pic, Hemant Ji.
ReplyDeleteMany thanks to you. This is great to know that even an insurance buff like you is also interested in our literary blog!
DeleteNamaskar sir.pehke to apko bahut bahut badhayi. Can I get your phone number please. My father-in-law is a poet. I want to talk to you regarding him.
Deleteलघुकथा पर कार्य बहुत सुन्दर है इस तरह के कार्य बार बार होने चाहिए ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteजी अवश्य। आपके अनुमोदन हेतु आभार।
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक बधाईयां
Bahut hi achcha sir
ReplyDeleteलघु कथा को लेकर इतना अच्छा आयोजन आपने किया बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको
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