Monday, 30 March 2020

आभासी कवि गोष्ठी 27.3.2020 को सम्पन्न -अवसर सा. पत्रिका", भा. युवा साहित्यकार परिषद और बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के द्वारा समप्न्न

जिसे मिलने तुम आयी हो कोरोना / वो कब का तुम्हें भगा चुका  है

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वैसे तो फिल्मी गानों में अक्सर हम पाते हैं कि हीरो मिलने को उतावला नजर आता है लेकिन हिरोइन कहती है कि - "दूरी बहुत जरूरी है" लेकिन आज के हालात में हम जो दूरी कायम रखने को कह रहे हैं उसकी जरूरत सचमुच में बहुत अधिक है. आज देश के हर आदमी को हर दूसरे से दूरी कायम रखने की जरूरत है तभी हम कोरोना रूपी भँवर से बाहर निकल पाएंगे वर्ना इसमें लाखों लोगों को निगलने की क्षमता है. 35  हजार तो मर चुके हैं इससे बस दो-ढाई महीनों के अंतराल में. इतना भयावह है यह!

विश्व भर में आतंक मचाए हुए कोरोना वायरस ने, हमारे देश में भी अपना पांव फैलाने लगा  तब लोगों को घर के भीतर ही कैद होने को विवश होना पड़ा । पूरे भारत में सरकार द्वारा जनता कर्फ्यू से भी कड़े प्रावधान के तहत, 21 दिनों के  कठोर गृह कारावास को झेल रहा मजबूर आमजन तरह तरह के कामों में खुद को व्यस्त रखने लगे हैं। तब दूसरी तरफ हमारी साहित्यिक बिरादरी के लोग भी अपनी क्रियाशीलता रोक नहीं पाए हैं। और सोशल मीडिया के माध्यम से ही सही अपनी गतिविधियों बनाए हुए हैं।
        ,
संवादहीनता की स्थिति न बनी  रहें इसी उद्देश्य कवि सिद्धेश्वर ने "हैलो फेसबुक आभासी कवि-गोष्ठी" का संयोजन करना उचित समझा जिस पर बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के हेमन्त दास 'हिम' ने भी समर्थन दिया. ऐसा निर्णय लिया गया कि फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से ही सही, रचनाकारों की सृजनशीलता बरकरार रहे और उनकी आवाज घर में बंद रहते हुए भी, दूर - दूर तक पहुंचे!

"अवसर  साहित्यधर्मी पत्रिका", भारतीय युवा साहित्यकार परिषद" और बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के तत्वाधान में आयोजित, इस कवि सम्मेलन में दूरदराज बैठे कवियों ने अपनी-अपनी  कविताओं से अपनी   संवादहीनता को तोड़ने की कोशिश और पहल की।"

कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि "कवि सम्मेलनों में कविताएं खूब पढ़ी जाती है, किंतु अपने अपने घर में बैठे दूरदराज के कवियों की कविताएं, उनकी ही आवाज में मीडिया के माध्यम से आम पाठकों तक पहुंचाना कई महीने से महत्वपूर्ण और सार्थक भी है। इस तरह उनकी रचनाओं से सिर्फ कवि - साहित्यकार या कलाकार ही नहीं बल्कि मीडिया से जुड़े हुए ढेर सारे लोग और आम जनता भी जुड़ जाते हैं। और ऐसे में आमजन और साहित्यकारों के बीच  संवाद की स्थिति बनी रहती है। इस क्रम में, पूरी कवि गोष्ठी की कविताएं तीन भागों में वीडियो रिकॉर्डिंग करने के पश्चात फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया गया। इस कवि सम्मेलन में शामिल कुछ कवियों की कविताओं की झलक आपको दिखाते हैं-

आधुनिक दौर में वैसे भी एक इंसान दूसरे से दूरियाँ बना कर ही रखता है लेकिन प्राय: वह इसका पता नहीं चलने देता. लेकिन इस इंसानी चाल को प्रकृति भाँप गई और कवयित्री ऋचा वर्मा की सुनिये - 
"इंसान हुआ इस कदर बेवफा
देखो कुदरत हो गई कितनी खफ़ा!
इंसान की इंसान से दूरियां
बन गई धरा की मजबूरियां
दिलों में बसी थी पहले से ही तन्हाईयां
अब तो बाजार में भी छा गई है वीरानियां।"

प्रजातंत्र में जनता हमेशा पक्ष-विपक्ष के बीच झूलती नजर आती है. लेकिन देश बचेगा और हम जीवित बचेंगे तभी तो पक्ष-विपक्ष की राजनीति में अपनी सहभागिता दिखाएंगे. इसके लिए जरूरी है कि इस महामारी की आपदा में हम सबकुछ भूलकर पूरी तरह से सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में उसका साथ दें. महादेव कुमार मंडल ने अच्छी तरह से इसे दर्शाया है -
मच रहा है सगरो  हाहाकर
'कोरोना' का यूँ हुआ पसार
इतनी तेजी से फैले  विकार
की पूरी दुनिया बनी लाचार
साफ-सफाई एकांतवास से
इस 'कोरोना' को दूर भगाएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
'लॉकडॉन' ही  वह हथियार
जिससे इसका' रुके प्रसार
आह्वान कर रही है सरकार
सब मिलकर के करें साकार।

मधुरेश नारायण एक जानेमाने रंगकर्मी तो हैं ही, एक अच्छे कवि भी हैं. कहते हैं -
"एक तो कोरोना का है क़हर
लाँक डाउन हुआ सारा शहर
तिहाड़ी मज़दूर, ग़रीब-गुरबा
के जीवन में घुल गया  जहर ।"

कवयित्री पूनम सिन्हा 'श्रेयसी' पूरी तरह से विफर पड़ी हैं और यूँ कहती हैं -
"पत्तों -सा तू झड़ कोरोना
जा कोने में मर कोरोना।
हम तो हैं भारत के वासी
पावनता से डर कोरोना।।"

दोस्तों, एक बात आपको कहूँ कि कोरोना महामारी चाहे जितनी भी भयावह हो एक दिन इसका अंत होना तो तय है. वह महामारी जिसका कभी अंत नहीं होता वह है आपसी वैमनस्य जिसके तहत हम ऐसी विपदा की घड़ी में भी एक-दूसरे पर दोषारोपण से बाज नहीं आते.  राज प्रिया रानी लिखती हैं - 
कैसी विपद आन पड़ी?
बिछ रही लाशों की झड़ी।
दर्द बयां कौन किससे करें
हाथ दुआओं की बेबस पड़ी।
   भिड़ंत हो रहा दोनों का
   अमरीका संग चीन
    खोज निकालो कोरोना का
    ओ! विश्व गुरु कोई वैक्सीन।
आस लगाए जूझ रहे 
संक्रमित अपनी तकलीफ 
सुनने वाला कोई नहीं
सब छींटाकशी में लीन ।

अक्सर वह शत्रु ज्यादा खतरनाक निकलता है जिसे आपने पहले कभी देखा ही नहीं, जिसके बारे में आप कुछ जानते ही नहीं. अभिलाषा कुमारी कहती हैं -
जिसे देख नहीं सकते, उस वायरस का कहर देखो
जी रहे सभी डरे-सहमें, जीवन में घुला जहर देखो।
चीन से आयातित है, है घातक बीमारी यह
जान पर बन आयी है,सहमा- सहमा शहर देखो।
कबसे बता रहे सबसे, यह दूरी बहुत जरूरी है।
घर में कैद रहना है, देखो कैसी मजबूरी है।

एक आदमी अगर गम्भीर रूप से बीमार हो जाता है तो उसका परिवार तबाह हो जाता है पर जब पूरा देश ही बीमार हो जाए तो क्या होगा समझ लीजिए. सारा कारोबार, सारे रोजगार चौपट हो जाते हैं. मीना कुमारी परिहार लिखती हैं -
"चले आए कहां इस मुल्क में सरकार -कोरोना 
व्यवस्था है तुम्हारे सामने लाचार कोरोना!
इमरजेंसी, कहीं कर्फ्यू, कहीं लॉक डाउन!
है धराशाई हुआ है विश्व का बाजार कोरोना!"

कवि रवि कुमार गुप्ता को बात सीधे-सीधे कहना अच्छा लगता है. जब बीमारी आन ही पड़ी है तो क्यों न सीधे मुद्दे की बात करें  -
 फैलल बा कईसन देखी चारों ओर जी
हाथ ना मिलाई रही, देहियो से दूर जी।
अपन घर बैठें, ना केहूं के संग जी
 तबहीं होई बीमारी   हमसे दूर जी।

जब महामारी जैसी आपदा आती है तो आपके सारे पूर्व इंतजामों को चकनाचूर कर के रख देती है और तब एक मजबूत निर्णय और इरादे की जरूरत होती है उससे मुकाबला कनए हेतु इस कवि होष्ठी के संयोजक और संचालक कवि सिद्धेश्वर कहते हैं -
ज्ञान विज्ञान धर्म ग्रंथ कुछ ना काम आवत है
क्रोध में जब प्रकृति अपन विनाशकारी रूप दिखावत है
हैवान बन गईल  ई  मानव से खतरा हमें जरूर है
 ई तो कह भगवान जी, ई में हमरा का कुसूर है? "

बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के सम्पादक हेमन्त दास 'हिम' ने भी अपने अनोखे लहजे में इसे यूँ बयाँ किया - 

कोरोना देखते-देखते बढ़ गया है
अब इस से न कोई देश बचा है
बेड के सब मरीज लेटे पड़े हैं
डॉक्टर को मास्क भी नहीं मिला है
वो मेरे सामने बैठा है लेकिन
दिलों में एक मीटर का फासला है
जिसे मिलने तुम आयी हो कोरोना
वो कब का तुम्हें भगा चुका  है.
      
इस कवि गोष्ठी में गाग लेनेवालों तो इसका आनंद लिया ही. वे अन्य लोग जो इस रपट को पढ़ रहे हैं वे भी कवि गोष्ठी में बैठे रहने जैसा अहसास कर सकते हैं. कुल मिलाकर इस गोष्ठी में अपने मन के अंदर छुपे भय को बाहर निकालकर लोगों ने एक-दूसरे के मनोबल को मजबूत किया और कोरोना महामारी को रोकने के सम्बंध में प्रभावकारी ढंग से जागरूकता फैलाने में सराहनीय रूप से सफल रहै.

इस आभासी कवि गोष्ठी" में शामिल कुछ कवियों की पूरी कविता :-
 राज प्रिया रानी :
0"कैसी विपद आन पड़ी,
बिछ रही लाशों की झड़ी।
दर्द बयां कौन किससे करें,
हाथ दुआओं की बेबस पड़ी।
   भीड़तं हो रहा दोनों का,
   अमरीका संग चीन,
    खोज निकालो कोरोना का
    ओ! विश्व गुरु कोई वैक्सीन।
आस लगाए जूझ रहे ,
संक्रमित अपनी तकलीफ ,
सुनने वाला कोई नहीं
सब छींटाकशी में  लीन ।
      जो था एक बचाओ अपना
       सोचा, बच जाएगी जान ,
       सेनिटाइजर और मास्क "सिर्फ"
       प्राथमिकी सुरक्षा की सीख ।
लहसुन, कपूर, तुलसी, अदरख
आजमा रहे सब देशी औषध ,
कोरोना का नहीं ये इलाज ।
भ्रम तोड़ो ना बढ़ाओ दहशत ।
       हाथ जोड़ कर करो प्रणाम,
       योग साधना से करो रोग विराम ।
       संक्रमण को यूं न बढ़ने दो ,
      ‌ शाकाहारी बन कर करो निदान ।
  समृद्ध हिंद का चिर इतिहास,
  टिकने न देते विदेशी प्रयास।
कोरोना का फिर क्या मजाल
उल्टी पड़ेगी षडयंत्र की चाल।।00

      पूनम सिंहा श्रेयसी
पत्तों -सा तू झड़ कोरोना
जा कोने में मर कोरोना।
हम तो हैं भारत के वासी
पावनता से डर कोरोना।
गरिमामय जीवन है अपना
भारी हम तुमपर कोरोना।
हमने तो दूरी रख ली है
धरती में अब गड़ कोरोना।
कहती है पूनम भी तुमसे
बिन जरिया के सड़ कोरोना।00

         ऋचा वर्मा 
 इंसान हुआ इस कदर बेवफा,
देखो कुदरत हो गई कितनी खफ़ा!
इंसान की इंसान से दूरियां,
बन गई धरा की मजबूरियां।
दिलों में पहले से ही थीं तन्हाईयां,
अब तो बाजारों में भी फैलीं हैं वीरानियां।
कैसी - कैसी आईं हैं ये बीमारियां,
अपनों की नहीं मिलती तीमारदारियां।
पहले ही कम था लोगों का मिलना -मिलाना,
अब दूर रहने का मिल गया वाजिब बहाना।
अलगावों का आया है कैसा यह दौर,
है मनाही मिल बैठने का एक ठौर।
शरीरों में ताप और मौसम सर्द - सर्द सा,
दिलों में भय और पोरों में दर्द - दर्द सा।
इंसानों ने ही इंसानों के लिए खोदा ये कब्र है,
देखकर इसकी हिमाकतें टूटा कुदरत का सब्र है।
कहतें हैं बड़ा आतातायी है यह कोरोना,
देखकर इसकी छवि सारे विश्व को पड़ा है रोना।
पर, जो आया है वह जायेगा यह अटल नियम है,
इस आपदा की घड़ी में हमें रखना संयम है।
खाली हाथ आना है, खाली हाथ जाना है,
फिर क्यूँकर इस दुनिया पर अपना आधिपत्य जमाना है।

             महादेव कुमार मंडल. 
मच रहा है सगरो  हाहाकर
'कोरोना' का यूँ हुआ पसार
इतनी तेजी से फैले  विकार
की पूरी दुनिया बनी लाचार
साफ-सफाई एकांतवास से
इस 'कोरोना' को दूर भगाएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
**'लॉकडॉन' ही  वह हथियार
जिससे 'इसका'  रुके प्रसार
आह्वान कर रही है सरकार
सब मिलकर के करें साकार
22 मार्च आज दिन रविवार
एकांतवास में समय बिताएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
**अपना घर-परिवार त्यागकर
रातों  को भी  जाग-जागकर
निज खतरों को भी जानकर
सेवा ईलाज में लगे हैं आकर
5 बजे कोरोना सेनानियों का
ताली बजाकर हौसला बढ़ाएं
'जनता कर्फ्यू'  सफल  बनाएं
**जात-पात  से  उपड़  उठकर
धर्म  और राजनीति  छोड़कर
द्वेष-बिरोध के  भाव  तोड़कर
मानवता की ही ओर मोड़कर
मूल मंत्र है  "देव" का  यह  तो
खुद भी बचें  औरों को बचाएं
'जनता कर्फ्यू'   को सफल बनाएं। 00

अभिलाषा कुमारी
**जिसे देख नहीं सकते,उस वायरस का कहर देखो
जी रहे सभी डरे-सहमें,जीवन में घुला जहर देखो
चीन से आयातित है, है घातक बीमारी यह
जान पर बन आयी है,सहमा- सहमा शहर देखो।
**कबसे बता रहे सबसे,यह दूरी बहुत जरूरी है
घर में कैद रहना है,देखो कैसी मजबूरी है
जिंदा रहने के लिए,सहना होगा यह संकट भी
जिंदगी है तभी तो यह मेहनत है मजदूरी है।
**नाक मुहँ ढँककर रखें,करें सँभल-सँभल कर बात
रगड़- रगड़ कर साबुन से 20 सेकेंड तक धोएँ हाथ
फैलता ही जा रहा है संक्रमण यह तेजी से
सभा,यात्राएँ त्यागें,चलें नहीं भीड़ के साथ।
**खतरनाक है वायरस,हँसी- मज़ाक नहीं कोरोना
असावधानी हुई अगर तो पड़ेगा फिर कितना रोना
जीतना है,युद्ध है,यह महामारी की शक्ल में
रहना है सतर्क नहीं तो पड़ेगा जीवन भी खोना।
कैसी विपद आन पड़ी,
बिछ रही लाशों की झड़ी।
दर्द बयां कौन किससे करें,
हाथ दुआओं की बेबस पड़ी।
   भीडत हो रहा दोनों का,
   अमरीका संग चीन,
    खोज निकालो कोरोना का
    ओ! विश्व गुरु कोई वैक्सीन।
आस लगाए जूझ रहे ,
संक्रमित अपनी तकलीफ ,
सुनने वाला कोई नहीं
सब छींटाकशी में  लीन ।
      जो था एक बचाओ अपना
       सोचा, बच जाएगी जान ,
       सेनिटाइजर और मास्क "सिर्फ"
       प्राथमिकी सुरक्षा की सीख ।
लहसुन, कपूर, तुलसी, अदरख
आजमा रहे सब देशी औषध ,
कोरोना का नहीं ये इलाज ।
भ्रम तोड़ो ना बढ़ाओ दहशत ।
       हांथ जोड़ कर करो प्रणाम,
       योग साधना से करो रोग विराम ।
       संक्रमण को यूं न बढ़ने दो ,
      ‌ शाकाहारी बन कर करो निदान ।
  समृद्ध हिंद का चिर इतिहास,
  टिकने न देते विदेशी प्रयास।
कोरोना का फिर क्या मजाल
उल्टी पड़ेगी षडयंत्र की चाल।। 00
     🙏एक तो कोरोना का है क़हर
लाँक डाउन हुआ सारा शहर
तिहाड़ी मज़दूर,ग़रीब-गुरवा
के जीवन में घुल गया  ज़हर

काम हो गया बंद,शहर है बंद
यातायात के साधन सब बंद
खाने-रहने को पड़ गये लाले
जीवन हो गया यहाँ खंड-खंड।

साधन नहीं तो पैदल चल रहे
कोई दिया तो खाना खा रहे,
बुढ़े-बच्चे नौजवान नर-नारी
कई मीलो का सफ़र कर रहे।

सब के सब प्रार्थना कर रहे।
इष्ट के आगे हाथ जोड़ रहे।
प्रलय का ये सूचक तो नहीं।
पूरे ब्रह्मांड के लोग डर रहे।

  रवि कुमार गुप्ता 
फैलल बा कईसन?
  देखी चारों ओर जी!
हाथ ना मिलाई रही !
देहियों से दूर जी।
   खाई किरीया करम.
कटीस में जंग जी।
अपन-अपन घर बैठीं
ना केहूं के संग जी 
तबहीं  बीमारी होई
  हमनी से तंग जी।
चीन के कोरोनवा।
 हमर देश से तंग जी!!"
.......
 मूल आलेख एवं छायाचित्र :- सिद्धेश्वर
 प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
श्री सिद्धेश्वर का ईमेल - sideshwarpoet.arat@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल -editorbejodindia@gmail.com










Tuesday, 24 March 2020

प्रेम और वसंत (Love and The Spring) / संजय शांडिल्य की दो कविताएँ (Two poems by Sanjay Shandilya)

प्रेम (Love)


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1.
प्रेम पहाड़ी रास्ते की तरह होता है
जो दीखता बेहद खूबसूरत है
पर चलना जिस पर
उतना ही खतरनाक होता है
हालाँकि जो चलते हैं
उन्हें अच्छा लगता है चलना
इतना अच्छा कि चलते हुए
वे जान तक दे देते हैं...

Love is like a mountain road
Which looks so beautiful!
But to negotiate it
Is equally dangerous
However those who walk over it
They like to walk
And that too to an extend 
Where they die in the course....


2.
प्रेम में बस चलना होता है
रुकना कभी नहीं होता
पहुँचना कहीं नहीं होता...

You have only to proceed in love
Never to stop 
Nowhererl to reach.


3.
प्रेम शरद का चाँद
हेमंत का चित्त होता है
शिशिर की आग
वसंत का पलाश होता है
ग्रीष्म का गुलमोहर
अमलतास होता है
प्रेम पहली बारिश का
सोंधापन होता है...

Love is the moon of the Autumn
The mood of the pre-Winter
The fire of the Winter
It's the Palash of the Spring
The Gulmohar of the Summer
And the Amalataas
Love is the sweet aroma
Of the first shower of the Rain.


4.
प्रेम प्रतिकार है सबसे बड़ा
सबसे बड़ा समर्थन है
देवत्व के बंधन से
पलायन है प्रेम
मनुष्यता के समक्ष
सबसे बड़ा समर्पण है
सबसे बड़ी युक्ति है प्रेम
सबसे बड़ी उक्ति है
प्रेम सबसे बड़ी मुक्ति है...

Love is biggest revenge
And the biggest favour
It is an escape
From the bond of Gods
And the biggest surrender 
Before the humanity.
Love is the biggest device,
Love is the biggest quote,
Love is the biggest liberation.



वसंत रुकता नहीं / The Spring do not stop

आगे बढ़ता है
सभी ऋतुओं में
स्वयं को प्रकट करता है

इस तरह
पलाश के बाद
आता है गुलमोहर
छाता है अमलतास

शेष ऋतुएँ भी वसंत हो सकें
सो उनमें भी खिलते हैं फूल
जगता है प्रेम...जगती है आस
गाती है नाच-नाच वातास...

It moves ahead
It manifests itself
 In all the seasons

The way
Comes Gulmohar
After Palash
Amalatas spreads.

May the remaining seasons also  be the Spring
So, flowers bloom in them too
Love awakens ... awakens a hope
The wind sings while dancing.

.....
कवि (Poet) - संजय शांडिल्य  (Sanjay Shandilya)
English translation by - Hemant Das 'Him'
कवि का ईमेल (Email of the poet) - sanjayshandilya15@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल  (Email of the blog for feedback) - editorbejodindia@gmail.com
कवि का परिचय‌‌‌-
जन्म : 15 अगस्त, 1970 |
स्थान : जढ़ुआ बाजार, हाजीपुर |
शिक्षा : स्नातकोत्तर (प्राणिशास्त्र) |
वृत्ति : अध्यापन | रंगकर्म से गहरा जुड़ाव | बचपन और किशोरावस्था में कई नाटकों में अभिनय |
प्रकाशन : कविताएँ हिंदी की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं ‘अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले‘ (सारांश प्रकाशन, दिल्ली) तथा ‘जनपद : विशिष्ट कवि’ (प्रकाशन संस्थान, दिल्ली) में संकलित | कविता-संकलन ‘उदय-वेला’ के सह-कवि | दो कविता-संग्रह 'समय का पुल' और 'नदी मुस्कुराई ' शीघ्र प्रकाश्य |
संपादन : ‘संधि-वेला’ (वाणी प्रकाशन, दिल्ली), ‘पदचिह्न’ (दानिश बुक्स, दिल्ली), ‘जनपद : विशिष्ट कवि’ (प्रकाशन संस्थान, दिल्ली), ‘प्रस्तुत प्रश्न’ (दानिश बुक्स, दिल्ली), ‘कसौटी’(विशेष संपादन सहयोगी के रूप में ), ‘जनपद’ (हिंदी कविता का अर्धवार्षिक बुलेटिन), ‘रंग-वर्ष’ एवं ‘रंग-पर्व’ (रंगकर्म पर आधारित स्मारिकाएँ) |
संपर्क : साकेतपुरी, आर. एन. कॉलेज फील्ड से पूरब, हाजीपुर (वैशाली), पिन : 844101 (बिहार) |

Sunday, 22 March 2020

घाघ - कहावतों के लिए प्रसिद्ध ऐतिहासिक कवि (मनु कहिन -21)

आवै काल विनासै बुद्धि
घाघ को मालूम था कि उनकी मृत्यु तालाब मे नहाते समय होगी

(हर 12 घंटे पर देखिए - FB+ Bejod / ब्लॉग में शामिल हों- यहाँ क्लिक कीजिए  / यहाँ कमेंट कीजिए )

'घाघ ' शब्द सुनते ही पता नही कानों को क्या हो जाता है। बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव डालता है यह शब्द। यह एक ऐसा शब्द है जिसे कोई भी अपने नाम के साथ सुनना पसंद नही करेगा। बस यही हमारी कमजोरी है। कान के बड़े कच्चे हैं हम। सुनी सुनाई बातों पर ज्यादा यकीन है हमें। कभी कुछ सुन लिया तो यकीन कर बैठे । तह में जाना उचित नही समझा।  हम अधकचरे ज्ञान के साथ आगे बढ़ रहें हैं। उसी ज्ञान का ढोल पीट रहे हैं। इधर उधर शेयर भी कर रहे हैं। खुद गुमराह तो हैं ही साथ ही साथ दूसरों को भी सच्चाई से अवगत नही कराना चाह रहे हैं।

वस्तुत: मुगलकाल मे 'घाघ' नाम का एक व्यक्ति हुआ करता था। उस व्यक्ति की खासियत थी। वह व्यक्ति समस्याओं का हल यूं चुटकी बजाते हुए कहावतों के माध्यम से कर दिया करता था। वह व्यक्ति इतना अनुभवी था, अपने अंदर इतना ज्ञान समेटे हुए था कि हमारे लिए उसे शब्दों मे समेटना बड़ा ही मुश्किल है।

हिंदी के लोक कवियों मे 'घाघ' का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है। वे लोक जीवन मे अपनी कहावतों के लिए प्रसिद्ध थे। जिस प्रकार ग्रामीण समाज मे ' इसुरी ' अपनी ' फाग ' के लिए,  ' विसयक ' अपने ' विरहों : के लिए प्रसिद्ध है, उसी प्रकार , 'घाघ' अपनी कहावतों के लिए विख्यात हैं। खेती- बारी , ऋतु - काल तथा लग्न मुहूर्त के संदर्भ मे इनकी विलक्षण उक्तियां जन मानस खासकर किसानों के बीच बड़ा ही प्रचलित है।

घाघ का जन्मकाल विवादों से ग्रस्त है। घाघ उनका मूल नाम था या उपनाम इसका भी पता नही चलता है। इनकी जाति भी विवादों से परे नही है। कुछ विद्वानों ने इन्हें ग्वाला समुदाय का माना है। परंतु कुछ जगहों पर इन्हें ब्राह्मण ( देवकली दूबे ) भी माना गया है। कहा जाता है कि ये कन्नौज के चौधरी सराय के निवासी थे। कहीं कहीं पर यह भी उल्लेख मिलता है कि इनका संबंध मुग़ल बादशाह हुमायूं और बाद मे अकबर से भी रहा। इनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें प्रचुर धनराशि और कन्नौज के पास की भूमि दान मे दी जिसपर उन्होंने एक गांव बसाया था जिसका नाम रखा ' अकबराबाद सराय घाघ ' । सरकारी दस्तावेजों मे आज भी उस गांव का नाम ' सराय घाघ ' है। अकबर ने घाघ को चौधरी की भी उपाधि से नवाजा था। अतएव , इनके कुटुंबी अपने को चौधरी कहते हैं।

 प्राचीन काल के महापुरुषों की तरह घाघ के संबंध मे भी अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं। कहा गया है कि घाघ बचपन से ही ' कृषि विषयक ' समस्याओं के समाधान मे दक्ष थे। वे मूलत:  आशुकवि थे, शायद इसीलिए उनकी कहावतों की कोई पुरानी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध नही है। स्थान भेद से उनकी कहावतों के विभिन्न प्रचलित रूप देखने को मिलते हैं। उनकी कहावतों को पढ़ने से पता चलता है कि घाघ ने अपने कहावतों के माध्यम से जनमानस को जो संदेश दिया एवं भविष्यवाणियां की थी वो आज भी प्रासंगिक है।

आद्रा बरसै पुनर्वास जाय 
दीन अन्न कोऊ नहिं खाय ।
इसका तात्पर्य यह है कि यदि आद्रा नक्षत्र में बरसता पानी पुनर्वास तक बरसता रहे तो ऐसे अनाज को यदि कोई मुफ्त मे भी दे तो नही खाना चाहिए क्योंकि वह अनाज विषैला हो जाता है।

अगहन मे सखा भर, फिर करवा भर ।
अगहन माह मे यदि फसल को कुल्हड़ भर भी पानी मिल जाए तो वह अन्य समय के एक घड़े पानी के बराबर लाभदायक होता है

आगे मघा पीछे भान।
बरषा होवै ओस समान।
यदि मघा नक्षत्र हो और पीछे सूर्य हो तो वर्षा नगण्य होगी।
मैदे गेहूं ढेले चना।
गेहूं के खेत की मिट्टी मैदे की तरह बारीक होनी चाहिए एवं चने के खेत मे ढेले हों तभी पैदावार अच्छी होगी।

इस प्रकार हम देखते हैं कि 'घाघ ' ने कितनी सरल भाषा मे बड़ी ही आसानी से जिंदगी के गुढ प्रश्नों को कितना सरल बना दिया है। हो सकता है, और यह शायद संभव भी हो कि आज के इस वैज्ञानिक युग मे हम और आप इसकी महत्ता को नजरंदाज कर दें परन्तु, क्या इसे सिरे से नकारा जा सकता है। बिल्कुल नही। भारत जैसे देश मे जहां कृषि की प्रधानता है हमे ' घाघ ' को पढ़ने समझने और इसे लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है।

'घाघ ' को अपने ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मालूम था कि उनकी मृत्यु तालाब मे नहाते समय होगी। इसलिए वे कभी भी नदी या सरोवर मे स्नान करने नही जाते थे। वाकई उनकी मृत्यु तालाब मे ही नहाने के दौरान हुई थी। मरते समय उन्होंने कहा था -- 
जानत रहा घाघ निर्बुद्धी।
आवै काल विनासै बुद्धि।।
.......
लेखक - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
अपनी प्रतिक्रिया यहाँ भी दे सकते हैं-  ‌ यहाँ कमेंट कीजिए )



     

Friday, 20 March 2020

कुमारी स्मृति कुमकुम के कविता संग्रह "मेरा चांद किधर है" का लोकार्पण पटना में 15.3.2020 को सम्पन्न

सबके चेहरे पर लग गयी मास्क रूपी एक खोली / कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली

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सांस्कृतिक संस्था "मेरा सफर" के तत्वावधान में कुमारी स्मृति कुमकुम की नवीनतम काव्य कृति "मेरा चांद किधर है" का लोकार्पण संस्कारशाला सह पुस्तकालय के सभाकक्ष में संपन्न हुआ।लोकार्पण करने वाले अतिथि साहित्यकारों में प्रमुख थे - शायर प्रेमकिरण, सिद्धेश्वर, डॉ. विजय प्रकाश, वीणाश्री हेंब्रम, सीमा रानी. संजीव कुमार, महादेव कुमार मंडल और संजय कुमार संज! 

इस भव्य समारोह में लोकार्पण के पश्चात "मेरा चांद किधर है" पुस्तक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रेम किरण ने कहा कि-" प्रेम में रची- बसी कविताओं के सृजन में कुमारी स्मृति बहुत खूब दिखी है। उनकी कविताओं में कुछ ऐसी ही बात उभर कर आई है-
"कौन सुने दुःख दर्द किसी  का, किसको फुर्सत जो बैठे पास 
सबकी अपनी अपनी दुनिया / सब का अपना-अपना चांद" (हलाकि लोकार्पित पुस्तक और उसमें प्रकाशित कविताओं पर चर्चा की जाती, तो बात कुछ और होती।) 

लोकार्पित पुस्तक की रचनाओं पर दो-तीन रचनाकार ही सार्थक व्याख्यान दे सके और वही चर्चा का विषय भी रहा और समारोह का केंद्र बिंदु भी। कुमारी स्मृति की कविताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कवि मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा कि-" सामाजिक विसंगतियों के प्रति कवयित्री गंभीर दिख पड़ती हैं।.    
  
प्रियतम के प्रति नोंक- झोंक को भी उनकी कविताओं में देखी जा सकती है। एक तरफा प्यार के बावजूद वह आशावादी दिख पड़ती  हैं, अपनी कविताओं में  शोषण और अत्याचार से देश का दम घुट रहा है। सच्चाई मिमिया रही है। इन संदर्भों को भी उन्होंने अपनी कविताओं का विषय बनाया है। कुमारी स्मृति की कविताओं के संदर्भ में  मुकेश ने आगे कहा कि-"कविता में जहां दर्द है, वहीं देश प्रेम, त्याग, प्यार और कटाक्ष भी है। ये सारी बातें स्मृति की कविताओं में देखने को मिलता है।" 

डॉ सीमा रानी  ने कहा कि - "कल तक जहां चांद शायरों व कवियों के लिए प्रेम का प्रतीक था उसे इस संग्रह के माध्यम से और विस्तार दिया गया है। कविताओं में सहजता और सरसता है जो स्मृति की कविताओं को पठनीय बनाती है।"

मुख्य वक्ता कवि सिद्धेश्वर ने लोकार्पित पुस्तक" मेरा चांद किधर है" पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कुमारी स्मृति की कविताओं पर लंबा व्याख्यान दे डाला। उन्होंने कहा कि - "नारी विमर्श को एक नए अंदाज में प्रस्तुत करता है। इस संग्रह की कविताएं नारी जीवन के अस्तित्व को एक नई पहचान दिलाता है यह संग्रह। 

कवयित्री स्मृति की कुछ कविताएं समाज को एक नई दिशा देती है, तो कुछ सामाजिक - आर्थिक, राजनीतिक व शोषण के खिलाफ आवाज उठाती दिखाई पड़ती है। मनुष्यता को बचाए रखने और उम्मीदों को जीवंत रखने का जीवंत प्रमाण है स्मृति की कविताएं। सिद्धेश्वर ने स्मृति के इस संग्रह की कई कविताओं का उदाहरण देते हुए कहा कि - "समाज के संकीर्ण नजरियों के प्रति भी कवयित्री सचेत और गंभीर दिख पड़ती हैं। अपने दम-खम पर अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी अलग पहचान बनाने को बेचैन दिख रही है युवा कवयित्री कुमारी स्मृति -
"लिखावटों-सी सिमट गई हूं मैं /अधूरी ख्वाहिश बनकर

और उनकी ये पंक्तियाँ भी सराहनीय है कि-
 क्या पता था आज  तुम्हें / कि यही मेरा अकेलापन / मेरा अभिशाप  नजर आएगा 
और तुम मेरी मुहब्बत को/ किसी कोने में/ सजी वस्तु की तरह सजा कर/ 
अपने दोस्तों की दुनिया सजाना चाहोगे!" 

यहां पर सवाल यह है कि आखिर इस जमाने से शिकायत क्यों है कवयित्री को? मुहब्बत खुद की तलाश ही तो है। सच्चाई से जब हमारा सामना होता है और उससे खुद को हम  अलग-थलग पाते हैं, तब हमारे भीतर की अंतस वेदना से टीस का उठना ही कविता है जो स्मृति की कविताओं में परिलक्षित होता है! 

कविताओं पर समीक्षात्मक दृष्टि डालते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि - "मेरा चांद किधर है" काव्य कृति में स्मृति की अधिकांश कविताएं शाश्वत प्रेम की कविताएं हैं। और यह एक नारी हृदय की उपज है। और इस अंकुरित जीवन मूल्य, जोश-ए-जुनून, अंतर्दृष्टि, श्रृंगारिक लयात्मकता, भाव प्रवीणता के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों पर तीखे प्रहार, उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति को एक नया आयाम देती प्रतीत होती है।"

इस समारोह में, काव्य संग्रह के प्रकाशक नए पल्लव के राजीव मणि और शशि शेखर ने कवयित्री कुमारी स्मृति कुमकुम को हिंदी भाषा एवं साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने के लिए महादेवी वर्मा सम्मान से सम्मानित किया। सभी उपस्थित साहित्यकारों को भी प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया, जिसका आधार और औचित्य मेरे समझ में नहीं आया। शायद उनकी उपस्थिति मानक रहा हो, जिसके अभाव में कोई भी समारोह सफल नहीं होता। 

पहले सत्र के अंत में कुमारी स्मृति कुमकुम ने अपनी दर्जनों कविताओं का पाठ किया-"
मुझे ढूंढोगे  एक दिन /किताबों में/ आज जिंदा हूं! 
ढूंढ लो  हमदम  मुझे /तुम आज अपने दिल की राहों में /
उम्र भर मेरी निगाहों में /तुम्हारा इंतजार होगा! उम्र भर मेरी राहों में /

  -" तेरे मेरे बीच एक नदी है /सीने की विश्वास की 
जो बाकी है /कभी शांत सी/ कभी तूफान से  
तुम्हारी याद के कुछ पन्ने/ /उम्र भर लोग जाने क्या क्या कहते हैं ?" 
  "जज्बातों का सिलसिला /देश परदेश आसमां से जमीं तक/ घर से बाहर तक /. -" -
 "वो खुशबू में /लिपटी हुई चांदनी वो आसमानों की 
/दुआओं सी/वो समंदर की सतह पर/मचलती हुई कश्तियां। "
" चांद तुम फिर आना /मेरे छत पर /चांदनी लेकर /  
तेरे रश्मि राज की ओज से मैं पूछूंगी एक सवाल/ मेरा चांद किधर है? " 
-जैसी उन्होंने ढेर सारी कविताओं का पाठ कर, श्रोताओंका मन मोह लिया।

अल्पाहार के उपरांत कवि गोष्ठी में, एक दर्जन से अधिक कवियों ने अपनी काव्य प्रस्तुति दी। कुछ कवियों की काव्य पंक्तियाँ इस प्रकार है - 

डॉ. विजय प्रकाश -
 मृगशावक है आरण्य, कुलांचे भरता है;
 प्रिय, प्रेमपत्र लिखने को फिर मन करता है।
*सूनी-सूनी-सी आँखों में फिर अनायास,
  सुन्दर-सुन्दर स्वप्निल सरोज मुसकाते हैं,
  जाने कैसी इक अबुझ प्रेरणा-सी पाकर
  कुछ मंत्र सरीखा प्राण पुनः दुहराते हैं;
पावक-सरिता को पार डूबकर करने के
अनुभव से गुजरने को फिर-फिर मन करता है।

संजय कुमार संज -
"दुनिया कुछ भी नहीं है चाहत के सिवा/ 
यह इश्क कुछ भी नहीं है चाहत के सिवा!!
 - मुझे फर्क नहीं पड़ता /कि कौन क्या कहता है? "

 प्रभात कुमार धवन -"आकाश तुम छाए हो सारे जहां पर  /एक छत की तरह"

* नूतन सिंहा -
"इतनी खासियत है /चांद तुम्हारी चांदनी में 
चांदनी बिखरती जाती हो पर चांद तुम किधर हो?" 

*चौधरी संजय-
"क्या बताऊं चांद किधर है/ उनके अरमानों को /समझ नहीं पाती चांदनी! "
-" होती है उसके मुस्कानों में नशा /बना जीवन का जुनून! /क्या दिल्ली क्या देहरादून! 
नशा किसी को गाने में /नशा किसी को दिल लगाने में/ कोई पीकर चूर/ कोई मांगे कोहिनूर /

संजीव कुमार -"चिड़िया जब मिलना उनसे/ मर कर भी जिंदा है /
*अभिमन्यु-" लिखो तो ऐसा/ जैसे सुबह की सूर्य किरण /संध्या का सूर्यास देखकर लिखता है! "
*अविनाश -"सुनो समय का पदचाप चुपचाप/ तुमको देखे युग बीते/ मन के सारे कागज रीते! और -"यह वक्त बड़ा बेवफा है/ कभी मेरा हुआ करता था /आज ये साजिशें रचा करता है /
यह रात यह चांद सितारे /ये सब मेरे थे/नहीं अब एक टुकड़ा जमीं 
/आज कल देर रात तक भी घर नहीं जाता हूं/ ना ममता का आंचल पाता हूं....!" 

महादेव कुमार मंडल-"
दिखते हैं मुझको यहाँ सारे/काव्य जगत के तारे-सितारे/संस्कारशाला प्रांगण में,
जिसको ढूँढे मेरी नजर है !/बोलो "मेरा चाँद किधर है" !!
स्मृति में जो बसा है मेरे,  /ढूँढू उसको ही शाम-सवेरे,/जिसके ना होने से मुझको,
मुश्किल लगता 'मेरा सफर' है/बोलो "मेरा चाँद किधर है"। 

और - 
"कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
कहीँ नजर ना आई मुझको दिवानों की टोली
सब पर दिये दिखाई 'कोरोना' का ही साया
पागल होकर पीछे पड़ गया घातक चीनी छाया
सबके चेहरे पर लग गयी मास्क रूपी एक खोली
कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
कहीँ नजर ना आई मुझको दिवानों की टोली
हाथ मिलाने से भी डर रहे लोग यहाँ
घर से भी नही निकलते जाएं कोई कहाँ
चाहे ना कोई लगा दे रंग-गुलाल या रोली
कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
कहीँ नजर ना आई मुझको दिवानों की टोली।। "

इसके अतिरिक्त इंदु उपाध्याय, अविनाश सूर्या, राणा वीरेंद्र सिंह, नूतन, पूनम, सीमा जी,मनीष अख्तर और नसीम अख्तर ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया है। इस पुस्तक के प्रकाशक शशि शेखर ने कहा कि हिंदी भाषा साहित्य को लोग भूलते जा रहे हैं। नुक्कड़ पर पहले पत्रिकाएं मिल जाया करती थी। आज लोग हिंदी पत्रिकाओं और पुस्तकों से लोग दूर भाग रहे हैं। ऐसे में संस्कारशाला सह पुस्तकालय की स्थापना पटना का गौरव बढ़ाया है।  

यह कार्यक्रम "मेरा सफर"संस्था द्वारा संस्कारशील पुस्तकालय, गर्दनीबग, पटना में हुआ. संतोष चंद्रा( लक्ष्मी स्टूडियो द्वारा मंच की अभूतपूर्व सजावट की गई था। इस पूरे समारोह का सफल  संचालन किया  युवा शायर नवनीत कृष्णा ने और धन्यवाद ज्ञापन किया संजीव कुमार। 
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आलेख और छायाचित्र - सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल -siddheshwarpoet.art@gmail.com
रपट के लेखक का मोबाइल नं :9234760365)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com





 








Monday, 16 March 2020

करोना विशेषांक - बेजोड़ इंडिया दिनांक 16.3.2020

अब किसको कौन समझाए? 
जिसको थोड़ी भी समझ है वह तो खुद खौफजदा है

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वो मेरे सामने बैठा है लेकिन
दिलों के बीच कितना फासला है!
बचपन में गुलाम अली की ग़ज़ल सुनता था जिसका एक शेर था यह. तीन दशकों के बाद अब जाकर कोरोना युग में  समझ में आया कि सामने बैठे व्यक्ति से एक मीटर का फासला होता है.

टीवी के हर चैनल पर बताया जा रहा है कि मास्क से मुँह ढँकने की जरूरत मरीज, स्वास्थकर्मी और मरीज की देखभाल करनेवालों के अलावा किसी को नहीं है. लेकिन देश की अतिसतर्क और जरूरत से ज्यादा आज्ञाकारी जनता भला कहाँ मानने वाली हैं? लगातार सरकार की अपील हो रही है कि "हर कोई कुछ अंतराल पर बार-बार साबुन से हाथ धोते रहें या सैनिटाइअजर को हथेलियों पर मलते रहें, अपनी उंगलियों से मुँह, आँख या नाक को न छूएँ"- वह तो कोई मान नहीं रहा लेकिन मास्क हर कोई पहने नजर आ रहा है. कुछ लोगों को ये हाथ धोने से ज्यादा आरामदायक और फैशनेबल लगता है तो कुछ छुपे रुस्तम टीनएजर्स भी हैं जो मास्क लगाकर अपने पसंद के लड़के या लड़की के साथ घूमने का अच्छा मौका मिल गया है. इन लोगों को कोरोना का कहर भी वरदान के समान लगता है. अब किसको कौन समझाए? जिसको थोड़ी भी समझ है वह तो खुद खौफजदा है.

एक सच्चा वाक़या पढ़ने को मिला प्रसिद्ध चिकित्सक-कवि विनय कुमार का जिसमें उन्होंने हवाई यात्रा के अपने सहयात्री को कोरोना के चलते नहीं बल्कि इसलिए मास्क लगाते देखा कि बगल वाले के सामने हर समय शराब पिये रहने की उसकी आदत दिखाड़ न हो जाए.

दोस्तों, जीने के लिए रोना भी ऐसे होता है कि आप हँस रहे हों. तो आइये कोरोना वायरस के बारे में कुछ चुनिन्दा रचनाकारों की बातें सुनते हैं कुछ हलके अंदाज में लेकिन विषय पर कायम रहते हुए.

बिहार के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक में काम करनेवाले और विगत कुछ वर्षों पहले तक अत्यंत गंभीर मुद्रा रखनेवाले किन्तु अब रूमानी ग़ज़लों का पर्याय बन चुके अधिकारी सुनील कुमार (पटना) कहते हैं सार छंद में -
ऐसा लगे चीन ने जमकर, किया है जादू टोना।
तभी तो सारी दुनिया बोले, कोरोना कोरोना।।
नॉन वेज चौ'मीन बना औ’र चमगादड़ का सूप।
कोरोना बीमारी निकली, धरे ये घातक रूप।।
चा'ऊ चा'ऊ ताऊ जी ने, जब ना काबू पाया।
जानबूझ कर बीमारी को, दुनिया में फैलाया।।
फ़्रांस, रूस, जर्मनी, इटली में,  इसका रूप भयंकर।
लांछन देते चीन अमरिका, एक दूजे के ऊपर।।
सब देशों से होता अब यह, भारत भू पर आया।
हर शहर, हर शख़्स के मन में, कैसा खौफ़ है छाया।।
भीड़ भाड़ से बचना होगा, दूर दूर है रहना।
घड़ी घड़ी अब साबुन लेकर, हाथ पड़ेगा मलना।।
शेक हैंड परिपाटी त्यागो, हँस कर कहो नमस्ते।
हाथ जोड़ अभिवादन करते, ट्रंम्प भी हँसते हँसते।।

अंकलेश्वर (गुजरात)  को समय-समय पर अपना अस्थायी ठिकाना बनाकर अपने शहर जौनापुर (मोहनपुर, बिहार) लौटनेवाले छंदविद्या के सिद्धस्त और समय की गम्भीरता को सचमुच समझनेवाले जमीन से जुड़े कवि हरिनारायण सिंह 'हरि' की छंदभाषा समय समय पर बदलती रहती है. इस बार वे कुंडलिया में बात कर रहे हैं-
 1.             
कोरोना आतंक है, डटकर करिए जंग।
जो सचेत हो जाओगे, नहीं करेगा तंग ।
नहीं करेगा तंग, सफाई से है रहना ।
रोग-ग्रसित से दूर, सदा अपने को रखना ।
करें सभी सहयोग, नहीं ज्यादा है रोना ।
है सरकार सतर्क, कि भागेगा कोरोना ।
                 
2.
कोरोना का डर बड़ा, गतिविधियाँ सब मंद ।
विद्यालय-कालेज औ पार्क हुए सब बंद ।
पार्क हुए सब बंद, कि घर में बंद हुए सब ।
दहशत में सब लोग, घेर ले पता नहीं कब ।
धरा भयंकर रूप, कि बिगड़ा रूप सलोना।
डगमग है संसार, अधिक फैला कोरोना।

कुछ लोग युगपुरुष होते हैं जो हमेशा अपने युग की चाभी अपने पास रखते हैं- जब चाहें जिधर मोड़ दें. ऐसे ही प्रभावशाली साहित्यकारों में से और प्रतिष्ठित पत्रिका 'कौशिकी' के सम्पादक कैलाश झा किंकर (सहरसा, बिहार)  भी छंद के परमज्ञानी और हरफनमौला कवि हैैं. पेशे से शिक्षक श्री झा बाल-कविता में भी सब को मात करने का दम रखते हैं -
*कोरोना ने छुट्टी कर दी
  विद्यालय सब बंद हुए।
  छुट्टी की खुशियों से बच्चे
  फूल-फूल गुलकंद हुए।
*लेकिन पापा दुख है हमको
  रुकी परीक्षाएँ सारी।
  अगली कक्षा में जाने की
  धरी रही सब तैयारी।
  *कोरोना क्या है पापाजी
  जरा हमें भी बतलाओ।
  पापा बोले-छोड़ो ये सब
  घर में ही खेलो खाओ

नवी मुंबई (महाराष्ट्र)  में अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु प्रतिबद्ध कंचन कंठ कहती हैं -
कोरोना का रोना
           मचा चहुं ओर
जाएं हम किधर
          कहीं सूझे नहीं ठौर
असमय फैला हाय
          रे          वायरस
सबका  कर  गया
           हाल    बेहाल
सरकारें    लगीं   हुईं
           जनता परेशान
नेता   अभिनेता  भी
          दे     रहे      ज्ञान
सर्दी ज़ुकाम को
            दूर        भगाएं
हैंडरब ना मिले तो
          ना         घबराएं
आफ्टर शेव और
       पानी मिलाकर
आसानी से हैंडरब बनाएं
      अपनी   संस्कृति     पर
नाज करें और प्रणाम
        नमस्ते की   रीत  अपनाएं
रखें  साफ  सफाई
              चहुं           और
व्यर्थ ना मचाएं
            करोना का शोर।

स्वीट्जरलैंड में काम करके अ‍ब पुन: कर्नाटक के बंगलूरू में सॉफ्टवेयर की धूम मचानेवाले विजय बाबू लिखते हैं -
*सुना देखा अग्नि वायू आकाश
   विद्य सदा तो जीवंत है संसार,
   भगौलिक परिधि अलग अलग
   दुनियाँ पूर्व से पश्चिम एक द्वार ।
*आया अब करोना करने विनाश
   माने अपनी बुद्धि अपना उपचार
   मलिये हाथ या जान से हाथ
   धोना न पड़े, करोना - इस बार ।
*रहा न कोई अनुमान व कयास
   वाइरस करोना का अबकी बार,
   दूरी रखें हर से, स्वच्छ रहे सबसे
   दुनियाँ पूर्व से पश्चिम एक सार ।
*अपनाया संस्कृति देश पचास
   देखा जब भारतीय का संस्कार,
   पहचाना सबने उत्कृष्ट सभ्यता
  पूर्व पश्चिम सबों का नमस्कार ।
                 
 पेशे से शिक्षिका और सोशल मीडिया में कुछेक सेलेब्रीटीज को छोड़कर सबसे ज्यादा फैन-फॉलोविंग रखनेवाली साहित्यकार लता प्रासर (पटना) कोरोना के भय को दूर करने का प्रयास कुछ यूँ कर रहीं हैं -
नन्हकी बोली अपनी मां काम धाम अब छोड़ो ना
छुट्टी हो गई हर तरफ बौरा गया है कोरोना
मम्मी बोली धत्त पगली बातें फिजूल की मत करना
भूख प्यासे मर जाएंगे भय इतना दिखलाओ ना!

कवि मनोज कुमार अम्बष्ट भी कहते हैं -
बन्द हो गई हर गतिविधि,
प्रभावित हो रहा हर शहर,
भ्रमित होकर रह रहे सब,
कोरोना का है इतना असर

पूनम आनंद (पटना) एक सक्रिय महिला साहित्यकार हैं जो महिला बिषयक विषयों पर अक्सर लिखा करती हैं। पटना के तमाम अखबारों में और अनेक पत्रिकासों में खूब छपती हैं और आकाशवाणी-दूरदर्शन को भी ये  बहुुुत प्रिय हैं।इन्होंने कोरोना विषय पर एक सटीक लघुकथा भेजी है -

वायरस--- चारो तरफ कोरोना के डर से बंद की खबरे आने लगी।जहा तक हो सकता था सभी क्रार्यक्रम को स्थगित करने की घोषणा हो चुकी थी।कुछ स्कुल के लिए नियमानुसार शिक्षक को आने के आदेश दिए गए थे ।शिप्रा को भी स्कूल मैनेजमेंट ने आने के आदेश दिए थे ।अपने शिक्षण शौक को पूरा करने के लिए शिप्रा ने स्कुल को ज्वॉइन किया था।लेकिन, मैनेजमेंट को इस सब से क्या वो तो बस आदेश कर दिया ।शिप्रा बुझे मन से स्कूल गई और अपनी छुट्टी के आवेदन पर स्वीकृति लेने।तभी मैनेजमेंट ने उसे अपने पास बुला कर कुछ समझाने की कोशिश की और साथ ही कुछ मजाक उड़ाया ।शिप्रा ने झट से रूमाल निकाल कर छिकना शुरू कर दिया ।मैनेजमेंट दौड़ कर बाथरूम के अंदर चला गया और शिप्रा मुँह ताकती रहे गई ।बाहर से चपरासी ने आकर कहा की आप घर जा सकती है ।आपके छुट्टी मंजूरी की खबर मेल पर दे दी जाएगी "।शिप्रा मुँह ढककर वहाँ से तेजी से निकल गई

विभा रानी श्रीवास्तव एक व्यक्ति न होकर अपनेआप में एक संस्था हैं. इनकी खासियत यह है कि समाज के उस तबके में भी ये साहित्यि का अलख जगा रहीं हैं जिन्हें लोग चुल्हा-चौका, सेवा-सुश्रूसा और अब बाहर नौकरी भी करने के सिवा किसी और योग्य नहीं समझते. इस मिथक को अपनी प्रचण्ड सक्रियता और अद्भुत संयोजन क्षमता से दूर करती  हुईं  ये गृहिणियों को लेख्य मंजूषा नामक मंच पर पुरुषों की बराबरी में रखती हुई एक बड़ा काम कर रही हैं. घर में भी ये कम नहीं हैं और एक अलग प्रकार की धुन के कारण पहले तो मजाक का पात्र भी बना दी जाती थीं लेकिन अब नहीं. क्यों- देखिए इनकी लघुकथा-
..........
"हाथ ठीक से धो लो माया..., जब खाने की चीज उठाओ..," लैपटॉप-मोबाइल खाने के मेज पर रखकर work at home करती माया जब नाश्ते के लिए फल उठा रही तो मैंने उसे टोका.. केला खाकर उसी हाथ से स्प्रिंग रोल का डिब्बा खोलने लगी तो फिर टोक दिया।

"माँ! आप साफ-सफाई कैसे करें, स्वच्छता कितना जरूरी है ? जो आप वर्षों से करती रहीं.. सबको कहती रहीं। आज सभी मान रहे हैं। इसका वीडियो बनाकर डालिये न... वायरल होगा.. । सालों से सब आपको साइको कहते थे...। आज पूरा विश्व साइको है क्या...!"

महबूब कहते थे,- "माँ सबको कितना हड़का के रखती है.. जब देखो सबपर चिल्लाते रहते रहती है.. सब डरे-सहमे रहते हैं..,"

आप कहती थीं कि –"तुम तो कभी नहीं डरते सबसे ज्यादा तो तुम्हें ही मेरा सामना करना होता है?"

फिर वो कहते थे, –"वो क्या है न शेरनी के बच्चों को शेरनी से डरते नहीं पाया जाता!" और
"हँसते-हँसते हम सब मज़ाक में बात हवा में उड़ा देते थे..!"
"कोई बात नहीं आओ तुम्हें एक बिहारी कहावत सुनाती हूँ , कूड़े के दिन भी बहुरते हैं...!"
"सच कहा, कभी नाव पे गाड़ी कभी गाड़ी पे नाव।"
......................

संकलन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com