Sunday 28 July 2019

खारघर चौपाल द्वारा मासिक साहित्यिक गोष्ठी 27.7.2019 को नवी मुम्बई में सम्पन्न

हम कठपुतलियाँ हैं, हमें उंगलियाँ नहीं होती / हमारे हाथ में कभी हमारी डोरियाँ नहीं होती

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जब दिल में जज़्बा होता है तो घनघोर बारिश के बीच भी निर्धारित स्थान के परिवर्तित होने पर भी बिना व्यक्तिगत आमंत्रण के सात समंदर के पार से एक साहित्यकार गोष्ठी में उपस्थित होकर सम्मिलित हो ही जाता है. ऐसा ही कुछ देखने को मिला दिनांक 27.7.2019 को खारघर चौपाल की साहित्यिक गोष्ठी में.

इस बार साहित्यिक गोष्ठी अपने पूर्व-निर्धारित स्थान पर न होकर खारघर, नवी मुम्बई के सेक्टर-6 स्थित साई साक्षात अपार्टमेंट स्थित सुपरिचित साहित्यकार विजय भटनागर के आवास पर आयोजित हुई। इस गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. गौतम और संचालन सेवा सदन प्रसाद ने किया. भाग लेनेवालों में चंद्रिका व्यास, अशोक प्रीतमानी, डॉ. सतीश शुक्ल, सत्य प्रकाश श्रीवास्तव,  विश्वम्भर दयाल तिवारी, हेमन्त दास 'हिम', राम प्रकाश विश्वकर्मा के साथ-साथ विदेश में कार्यरत डॉ. प्रशान्त दास भी उपस्थित थे.

सबसे पहले डॉ. सतीश शुक्ल ने अपनी दो लघुकथाएँ पढीं. "खिसियानी हँसी" में उन्होंने अनिवासी संतानों के संदर्भ में आजकल सचमुच चल पड़ी प्रथा को दिखाया जिसमें बेटे या बेटियाँ अपने माँ-बाप और सास-ससुर को बारी-बारी से विदेश में स्थित अपने निवास पर छ:-छ: माह के लिए बुलाते हैं ताकि उनके बच्चों की देखभाल वो कर सकें और खुद दोनो प्राणी नौकरी करने बाहर जाते हैं. दूसरी लघुकथा में एक विधुर बाप को अपनी सम्पन्न आर्थिक स्थित के बावजूद अपनी पुरानी कार का इस्तेमाल करते दिखाया गया है क्योंकि वह अपनी पत्नी की वह मुस्कान नहीं भूल पाता है जो इस कार के खरीदने पर उसे दिखी थी.

विजय भटनागर ने अपनी दो लघुकथाएँ पढी. एक में मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति दादा और पोते के सम्बंध के रूप में उजागर हुई तो दूसरी में अध्यात्म और यथार्थ का अनोखा संगम दिखा.

विश्वम्भर दयाल तिवारी ने 'उलझन' शीर्षक की एक लघुकथा सुनाई जिसमें घर के लेनदेन में भी गिनती करके करने का महत्वपूर्ण संदेश दिया गया. उनकी दूसरी लघुकथा का शीर्षक 'अहसास' था.


चंद्रिका व्यास ने "प्रेम की परख" लघुकथा में एक प्रौढ़ व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति से सच्चे प्रेम के भ्रम में बलात्कार की शिकार बन चुकी एक युवती को सहर्ष अपनी बहू के रूप में स्वीकार करते हुए दिखाया गया.

राम प्रकाश विश्वकर्मा ने एक युवा युगल के प्रेम सम्बंध के विशेष स्वरूप को दिखाती एक लघुकथा पढ़ी जिसमें नायक कहता है," हमने अपने जीवन का सबसे सुंदर सत्य कभी नहीं कहा". इस मार्मिक और सधे शिल्प से निर्मित लघुकथा में उन्होंने अंत में एक अति मधुर फिल्मी गाने की पंक्ति लिखी थी जिसके लघुकथा में शामिल किये जाने के बिंदु पर कुछ वाद-विवाद-सा चला.

प्रशान्त दास ने अपनी एक लथुकथा "बाबा का ढाबा" पढ़ी. इसमें एक बूढ़े व्यक्ति द्वारा भीड़ भाड़ वाली रेलगाड़ी का दरवाजा मुश्किल से खुलवाकर प्रवेश पानेवाले का खुद दूसरों के लिए दरवाजा बंद करते दिखाया गया है. यह कथा बड़ी ही सहजता के साथ आज के समाज की सुविधाभोगी और स्वार्थपूर्ण मानसिकता की संरचना को उजागर करती है.

फिर "शब्द बनेंगे इतिहास" नामक चर्चित लघुकथा-संग्रह के सम्पादक और दशकों से इस विधा में अपनी पहचान रखनेवाले सेवा सदन प्रसाद ने "रिश्ते तार-तार" शीर्षक लघुकथा पढ़ी जिसमें एक ऊंचे ओहदे पर विराजमान व्यक्ति को एक वृद्धाश्रम के कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के तौर पर उस वृद्धाश्रम में रहनेवाले सबसे वृद्ध के रूप में अपने ही बाप के हाथों माला पहनते दिखाया गया. इस दृश्य की कल्पना कर अनेक की आँखें नम हो गईं.  

उनकी दूसरी लघुकथा में एक बिधायक शराब की बोतलों के साथ जश्न मना रहा होता है. तभी शबाब के रूप में खिड़की के शीशे से एक सुंदर नवयुवती दिखाई देती है जो उससे अकेले में मिलना चाहती है. बिधायक की बाँछें खिल जाती हैं. किंतु तभी उनका अनुचर या स्पष्ट करता है कि वह अकेले में रंगरेली मनाने नहीं बल्कि इस बात की शिकायत करने बुला रही है कि उसके बेटे ने उसका बलात्कार किया है.

फिर कविता-पाठ का दौर आरम्भ हुआ हेमन्त दास 'हिम' के काव्य पाठ से. वे अपनी ही रूह की निगहवान बने नजर आये-
अपनी ही रूह का निगहवान हूँ मैं
यारों, सच कहता हूँ, परेशान हूँ मैं
ठीक निशाने पर भी छूटने के बाद 
जो लक्ष्य बदल जाये वही वाण हूँ मैं.

सत्य प्रकाश श्रीवास्तव ने बड़ी नजाकत से बताया कि मृत्यु क्यों सामने से वार नहीं करती -
ज़िंदगी मौत से 
हारी नहीं है आज तक
मृत्यु कभी वार करती नहीं / सामने से
क्योंकि सामने आप हैं.

अशोक प्रीतमानी एक राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध गीतकार हैं. बड़ी पैनी नजर से उन्होंने खुद को देखा तो बस एक कठपुतली पाया - 
हम कठपुतलियाँ हैं, हमें उंगलियाँ नहीं होती
हमारे हाथ में कभी हमारी डोरियाँ नहीं होती (1)
जब तुम न रहे तो रौनक न रही
फिर हमें जरूरते-ऐनक न रही (2) 
हमारे पास है विकल्प नहीं 
देखते वही जो दिखाया जाता है.(3)

विजय भटनागर ने बेखौफ जीने का तरीका अपनाया -
ज़िंदगी का लालच नहीं तो मौत से डरे क्यों
मौत आने से पहले, बेमौत मरे क्यों?
औरों की 'विजय' की खातिर, हम सबसे लड़े क्यों?

अंत में सभा के अध्यक्ष डॉ. गौतम ने कारगिल युद्ध पर विजय पानेवाले और उस दौरान शहीद होनेवाले पाँच सौ से अधिक वीर सैनिकों को नमन करते हुए कहा -
देश पर बलि हुए सभी नरों को नमन
जानकी हित कटे जटायू परों को नमन.
फिर अध्यक्ष महोदय ने पाकिस्तान की दुर्दशा का वर्णन करते हुए एक कविता पढ़ी.

अंत में डॉ सतीश शुक्ल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस साहित्यिक गोष्ठी का समापन हुआ और नवी मुम्बई की रिमझिम बारिश के बीच आयोजित यह कार्यक्रम सार्थक हुआ.
......

आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - eitorbejodindia@yahoo.com







 




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