Small Bite- 27 / "मोनलिसा की मुस्कान" का मंचन 15.6.2019 को विले पारले (मुम्बई ) में सम्पन

 स्त्री मानस में पुरुष आकर्षण की गत्यात्मकता

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(यह समीक्षा मूल अंग्रेजी आलेख के हिन्दी अनुवाद पर आधारित है)

इस ब्रह्मांड का सबसे कठिन सवाल यही है कि वास्तव में एक महिला क्या चाहती है। जो महिला दूसरों के लिए पहेली है वह सवयं इस बात में उलझी है कि आखिर क्यों वह किसी की फजूल बातों में उलझे रहना पसंद कर रही है। और यह नाटक इस प्रश्न के सबसे सुंदर तरीके से हल करने की चुनौती को पूरी तरह स्वीकार कर रहा है कि यह  जानते हुए भी कि  इस खेल में हार तय है।

रूही के वैवाहिक जीवन में गतिरोध है। अरमान के साथ उसकी पटरी नहीं बैठ पा रही है। जब वह दूर है तो एक अज्ञात व्यक्ति इकबाल द्वारा दरवाजा खटखटाया जाता है जिसने खुद को उसके पुराने दोस्त के रूप में पेश करता है। बाकी कहानी इस गूढ़ व्यक्ति के इर्द-गिर्द मंडराती है जो एक झूठा, भद्दे सलीकोंवाला, अविनय, लगभग क्रूर और फिर भी आंतरिक रूप से प्रत्येक और हर महिला द्वारा बिना किसी प्रशंसनीय कारण के पसंद किया जाता है। शुरू से अंत तक रूही हतप्रभ है। यहां तक ​​कि इस अनजान आदमी के प्रति उसका प्रतिरोध भी पूरी तरह से क्षीण है।

इकबाल की घुमावदार भाषा और मर्दानगीपूर्ण व्यवहार के कारण सुंदर महिला रूही लगभग सम्मोहित है। उसकी घुमावदार आवाज का विस्तार  चापलूसी करने से लेकर जीवन को खतरे में डालने वाले अपराधी जैसे आदमी के समान तक होता है। वह औरतों से रिश्ते में विविधता का शौकीन लगता है और हर महिला के साथ फ्लर्ट करता है। चाहे वह गृहस्वामी रूही, गृहिणी हीरा, गृहणी महिला उपरवाली या सुरुचिपूर्ण आधुनिक क्लब सदस्य लड़की सकीना हो। सभी इस पूरी तरह से अनजान प्राणी इकबाल को प्रतिरोध देने का दिखावा करते हैं और मौखिक रूप से घोषणा करते हैं कि वह वहां जाने के लिए योग्य है। फिर भी, अधिक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कोई भी महिला वास्तव में उसे घर से बाहर करने का प्रयास नहीं करती है और भीतर से वे सभी मर्दाना जादू के दर्शक हैं और उत्सुकता से इसका हिस्सा बनना चाहते हैं।

हालांकि रूही, इकबाल के सामने बार बार पूरा आत्मसमर्पण करने की कगार पर आ जाती है और यह पूरी तरह से स्वैच्छिक है। उसका यह प्रयास हीरा द्वारा बाधित होता है। एक अन्य उदाहरण पर जब रुही इकबाल के साथ बिस्तर साझा करने वाली होती है, जब उसकी सहेली सकीना अचानक एक सुरक्षित अवसर पर उसके पास आती है।

इकबाल का तरीका बेहद आसान है - सुंदरता की प्रशंसा करें और कामुक आनंद का संभव सीमा तक प्राप्ति करे। और सभी प्रकार की महिलाएं उसके इस  गलत उद्देश्य के अनुरूप भी खुद को ढालने की पुरजोर कोशिश में लगी है। वे अपना विरोध दर्ज कराती हैं लेकिन अवचेतन रूप से उससे मिलने की कोशिश भी करती हैं और जितना संभव हो उतना उसके करीब होना चाहती हैं। सकीना सबसे समझदार महिला के रूप में उभरती है जो उस सीमा की बात करती है जिसे एक महिला को पार नहीं करना चाहिए। हालाँकि वह इकबाल के खिलाफ एक पूर्ण युद्ध भी नहीं छेड़ती है, फिर भी वह मुखर रूप से विरोध करती रहती है।

अंत में श्रीमान अरमान अपने समय से पहले अचानक घर लौटते हुए दिखाई देते हैं और यह पता चलता है कि इकबाल अरमान का पुराना दोस्त नहीं था। आगे जो होता है उसे नाटक में नहीं दिखाया गया है क्योंकि इसका उद्देश्य सिर्फ एक महिला के मानस को दिखाना था और पारंपरिक तरह की पूरी कहानी नहीं बताना था।

कृष्ण बलदेव वैद की कहानी 1970 के दशक में लिखी गई थी और आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। उन्होंने एक महिला के मानस और उसके पार करने के बारे में उसके फैसले को प्रभावित करने वाले कारकों का अच्छी तरह से विश्लेषण किया है।

सुष्मिता सेठी द्वारा निर्मित और हरप्रीत सेठी द्वारा निर्मित इस शो में सुष्मिता विश्वास, प्रदीप निगम, रीतिका शाह, गरिमा श्रीवास्तव, राजवीर गुंजल और ममता सिंह ने अभिनय किया था।

डॉ.बोस की छोटी किंतु असरदार भूमिका को निभानेवाले व्यक्ति ने विशुद्ध बंगाली लहजे में अपने गोल मुँह से संवाद अदायगी के साथ लोगों पर अपनी शानदार छाप छोड़ी।

नाटक में महिला मानस का विश्लेषण किया गया है और सभी महिला पात्रों ने शानदार अभिनय किया है। 'इकबाल' दोषरहित लग रहा था और फिर भी अपनी कम-स्वर प्रस्तुति दे रहा था। शायद यही उसकी बारीकियाँ थीं। यह जानबूझकर महिला पात्रों को प्रभावकारी होने देने के लिए उनकी ओर से एक परिकलित निर्णय था अन्यथा उन्हें नाटक के नायक या नाटककार के रूप में गलत समझा जाता था जो नाटक के उद्देश्य को पराजित करता था। 'रूही' एक खूबसूरत महिला की आंतरिक दुविधा को दिखाने में सक्षम थी जो अपने जीवन-साथी के साथ मोहभंग करती है और किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षित होती है। उसकी चेहरे की अभिव्यक्ति और आंगिक अभिनय उसी का सही प्रतिनिधित्व था।

अपनी शर्माहट वाली मुस्कान के साथ 'हीरा' ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। 'सकीना' ने एक बहादुर समझदार महिला की भूमिका निभाई और एक महिला की 'उपरवाली' जो चाहती है कि उसके अपार्टमेंट की सभी महिलाएं पूरी तरह से नैतिक जीवन जीए बस स्वयँ उसके अलावे

निर्देशक सुष्मिता विश्वास ने अभिनेताओं की प्रतिभा का अधिकांश बाहर निकाल पाईं हैं। फिर भी अधिक पूर्वाभ्यास इसे और अधिक प्रभावशाली बना सकता है।

दर्शकों की जोरदार तालियाँ हॉल को गुंजायमान करती रहीं। कलाकार के रूप में उनके नाटकीय कर्तव्य के उल्लेखनीय निर्वहन के लिए पूरी टीम की प्रशंसा की जानी चाहिए।
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समीक्षक - हेमंत दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - bejodindia@yahoo.com 

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