Saturday 31 October 2020

महेन्दर मिसिर की पुण्यतिथि पर अचीवर्स जंक्शन द्वारा 26.10.2020 को कार्यक्रम संपन्न

महेंदर  मिसिर के गीतों में जिंदगी का फलसफा 

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6 अक्टूबर की शाम 5 बजे वर्चुअल मीडिया के लोकप्रिय चैनल अचीवर्स जंक्शन पर पूरबी के सम्राट कहे जाने वाले महेंदर मिसिर की पुण्यतिथि मनाई गई जिसमें देश के जाने माने साहित्यकारों, पत्रकारों और गायकों ने अपनी बात रखी. 

"महेन्दर मिसिर को इस दुनिया से गए 74 साल हो गए लेकिन उनकी प्रासंगिकता बढ़ती हीं जा रही है। उनके गीतों के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ता हीं जा रहा है। उनके जीवन की कहानी में लोगों की दिलचस्पी बढ़ती हीं जा रही है। आखिर क्यों ? क्योंकि उसमें जिंदगी का फलसफा है।''  उक्त बाते हिंदी-भोजपुरी के सुप्रसिद्ध रचनाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अचीवर्स जंक्शन के कार्यक्रम ''महेन्दर मिसिर के लोकरंग'' में उन्हें श्रद्धाञजलि देते हुए कहीं। उन्होंने आगे कहा कि भोजपुरी की अकादमियो को महेन्दर मिसिर पर गंभीरता से काम करने की जरुरत है। 

भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ब्रजभूषण मिश्रा ने मिसिर जी के जेल और कोठे से जुडी अनेक अनकही कहानियां कही और बताया कि वह जीवन के प्रति कितने सकारात्मक थे। साथ हीं उन्होंने अचीवर्स जंक्शन के इस प्रयास और ऐसे प्रयासों की सराहना की। 

युवा साहित्यकार जलज कुमार अनुपम ने खुलकर कहा कि साहित्य के कुछ गोपीचंदो ने भी महेन्दर मिसिर का नुकसान किया है। उन्हें उपेक्षित रखा है। 

ऐसे अवसर पर सुप्रसिद्ध लोक गायिका विजया भारती और खाँटी माटी के गायक रामेश्वर गोप ने महेन्दर मिसिर के कालजयी गीतों को गाकर समा बाँध दिया। जहाँ विजया भारती ने अंगुरी में डंसले बिया नगिनिया रे '', से शुरू कर '' सासु मोरा मारे रामा'' और '' पातर-पातर गोरिया के पतरी सांवरिया '' सरीखे प्रेम और श्रृंगार के कई  गीत गाये, वहीँ रामेश्वर गोप ने  '' कान्हा ई का कइलs ''और '' सखी हो प्रेम नगरिया हमरो छूटल जात बा '' जैसे  जीवन दर्शन और अध्यात्म को ऊंचाई देने वाले गीत गाये।  इसी बीच सारेगामापा लिटिल चैंप्स फेम गुरु मनोहर सिंह भी जुड़े और मिसिर जी के हिंदी-भोजपुरी गीतों को अपने अंदाज में सुनाया। 

कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए अचीवर्स जंक्शन के निदेशक और सुप्रसिद्ध कवि मनोज भावुक  ने कहा कि हम अचीवर्स की कहानियां कहते हैं चाहे वह दिवंगत हों या लिविंग लीजेंड. चाहे वह पॉपुलर हों या अनसंग हीरो।  महेन्दर मिसिर भोजपुरी क्षेत्र के ऐसे नायक हैं जिनकी कहानी को ठीक से कहने की जरुरत है और आज का कार्यक्रम उसी दिशा में एक कोशिश है। अचीवर्स जंक्शन ऐसा कार्यक्रम करता रहा है। वह भिखारी ठाकुर, मोती बीए और आचार्य पांडेय कपिल की कहानी कह चुका है और अपने पटल पर संचालित 14 कार्यक्रमों में अलग-अलग फॉर्मेट में विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों की कहानियां कहता हीं जा रहा है।      

आभासी दुनिया के इस कार्यक्रम को दुनिया के अनेक देशों के दर्शकों ने देखा और सराहा।

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प्रस्तुति - मनोज कुमार भावुक 
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Thursday 22 October 2020

पीछे नहीं हटना / कवि - डॉ. मनोहर अभय

नवगीत

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(डॉ. मनोहर अभय मुम्बई में रहनेवले दोहा विधा में सिद्धस्त देश के वरिष्ठ कवि हैं जो 'अग्रीमान' नामक राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक भी हैं. नवगीत आंदोलन से इनका गहरा नाता रहा है और डॉ. राघवेंद्र तिवारी के अभिनव गीत आंदोलन के भी ये अनुमोदक रहे हैं. इनकी रचनाओं में राष्ट्रवाद का स्वर समय-समय पर उभरता है किन्तु इनका कहना है कि इनका राष्ट्रवाद किसी प्रकार के कट्टरतावाद या संकीर्णतावाद का पर्याय नहीं है बल्कि राष्ट्र के हित में स्वयं को समर्पित करना है. देश की समस्याओं और उनकी जटिल स्वरूप से ये पूरी तरह वाक़िफ हैं और उनके बारे में खुल कर चर्चा करने में कोई हिचक नहीं दिखाते हैं. इनके दोहे अत्यधिक लोकप्रिय हैं और उनमें कोई उपदेशात्मकता नहीं होती बल्कि समय की संवीक्षा विद्यमान रहती है. उसी तरह से इनके नवगीत भी सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों से जूझते दिखाई देते हैं. शब्दों के धनी इनके शिल्प में लयात्मकता तो है पर कटु यथार्थ का पैनापन भी है. भाषा कभी-कभी जटिल हो जाती है और ध्यान देकर समझना पड़ता है जो कि इनके संदेशों की गहराई का परिचायक भी है. आइये देखते हैं इनके हाल में रचित कुछ नवगीतों को - सम्पादक)

1.  लौट आओ 


अंधी गली है साँकरी
कहाँ  जाओगी 
लुटेरे जागे हुए हैं 
       लौट आओ | 
एक पल में फेंक दीं 
आँगने  में चाबियाँ 
याद आई नहीं  तुमको 
खैय्याम की रूबाइयाँ 
सर्पिणी सी रात है 
सपेरे जागे हुए हैं 
        लौट आओ | 

तर्क औ' वितर्क में 
भावनाएँ  सो गईं 
श्रद्धा -इड़ा के दवंद्व  में
संवेदनाएँ  खो गईं 
बहला  रही 
मधुमास की मीठी छुअन 
सपने घनेरे 
 जागे हुए हैं
       लौट आओ |

देर कुछ लगती नहीं        
तोड़ने में खिड़कियाँ 
भूल पाओगी भला 
वो वसंती थपकियाँ
सात स्वर के सात फेरे
              जागे हुए हैं
              लौट आओ |

रुख बदलतीं  हैं सदा 
 नाजुक हवाएँ संदली 
धूप की कलियाँ चटखतीं 
या   छाँव की हो  बादली 
दर्प की दामिनी टूट जाएगी 
अँधेरे में सवेरे जागे हुए हैं
                    लौट आओ | 

ढूँढती रह जाओगी 
टहनियाँ फूलों लदी 
रेत  में खो जाएगी 
जब प्यास की पागल नदी
करवट बदलतीं मछलियाँ
मछेरे जागे हुए हैं 
        लौट आओ | 

रतनारे नयन से पौंछ लो 
बहता हुआ ये  नीर 
लो सम्हालो पुरुषत्व का 
तीरों भरा तूणीर 
नव्यता  के कमेरे 
          जागे हुए हैं 
         लौट आओ |
.......


2. बिरवे


बिरवे 
गुनगुनी धूप को
             तरसे |
सीलन ने गला दिए 
हथेली हाथ पाँव 
पनपने देती नहीं
बरगद की छाँव 
बिरवे 
खुली धूप को 
            तरसे |

उपवास जारी है 
विचारे चातक का 
उपदेश चल रहा 
अघाए वाचक का 
जाने कब
स्वाति घन बरसे|

ज्योति कलश
झपट लिए गिद्धों ने  
किरणों के बिछौने 
दबा लिए सिद्धों ने 
उचकि- उचकि 
तिमिरा  हुलसे |

नोची-खरोंची सी
चाँदनी आई 
लज्जा की ओढ़नी 
मावस  ने चुराई
लज्जाशीला 
कूद पडी पुल से | 
.......


3. पीछे नहीं हटना

धर दिए पग
अँगारों पर 
फफोलों से नहीं डरना |

दहकती रेत पर चलते
गई लम्बी उमर
चटखती  धूप ने 
छोड़ी नहीं कोई कसर
पाँव धोएगा तुम्हारे 
     दूधिया झरना  |

गगन की वाटिका में 
संजीवनी उगने लगी 
सोन चिड़िया सुहानी
अँधेरा चुगने लगी 
सूर्य के अमृत कलश 
ला रही सुहागिनें  
सहेज कर रखना |

घना कितना अँधेरा हो
 टिक नहीं सकता
उजाला किसी  हाट में 
बिक नहीं सकता 
लड़ाई है
अँधेरे औ' उजीते  की 
सम्हल कर लड़ना |

शक्ति के रनिवास से 
मुक्त होंगीं बांदियाँ 
होंगी हमारे हाथ में 
कुबेर की सब चाबियाँ 
हिरासत में पड़ी होगी 
 बूढ़े यक्ष की  वर्जना |

समेंटो नहीं आयुध 
अभी संग्राम बाक़ी है 
कड़कती आवाज का 
अभी परिणाम बाकी है 
चल पड़ीं हैं
टोलियाँ मृत्युंजयी 
पीछे नहीं हटना |
......
कवि - डॉ. मनोहर अभय 
कवि का ईमेल आईडी - manohar.abhay03@gmail.com
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Wednesday 21 October 2020

प्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ सतीशराज पुषकरणा का अभिनंदन समारोह - साहित्य कला संसद एवं थावे विद्यापीठ के द्वारा 17.10.2020 को पटना में सम्पन्न

लघुकथा के विकास में पुष्करणा का विशिष्ट योगदान 

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*हिंदी लघुकथा के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखनेवाले को डॉ. सतीशराज पुष्करणा का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है. वे  हिंदी लघुकथा के विकास पथ पर एक ज्योति स्तम्भ का काम करनेवाले मीनार की तरह हैं जो तीन-चार दशकों के लम्बे अंतराल में लघुकथा को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने के संघर्ष में काफी महत्वपूर्ण योगदान देते आ रहे हैं. मुझे भी पटना में रहने के दौरान इनकी गरिमामयी उपस्थिति में अनेक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिल चूका है. अब वे अपने 75 वर्ष पूरा करके अपने गृह नगर में लौटने का मन बना चुके हैं. उनके जन्मदिन के अवसर पर पटना में रहनेवाले कई राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों ने उनका अभिनन्दन समारोह मनाया जिसमें कोविड के हालात के वावजूद नियंत्रित संख्या में अनेक लोग उपस्थित हुए ताकि सोशल डिस्टेंशिंग का पालन सही तरीके से हो पाए. डॉ. पुष्करणा को बेजोड़ इंडिया ब्लॉग की ओर से भी हार्दिक शुभकामनाएँ! आइये इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की रपट देखते हैं जिसे तैयार किया है जाने-माने साहित्यकार सिद्धेश्वर ने जो राष्ट्रीय स्तर के विलक्षण रेखाचित्रकार भी हैं. - हेमन्त दास 'हिम')

आधुनिक हिंदी लघुकथा के विकास में डॉ सतीशराज  पुष्करणा का विशिष्ट योगदान रहा है ! सृजन, आलोचना, आंदोलन, इन क्षेत्रों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही हैl इन तीनों क्षेत्रों में उन्होंने अविश्मरणीय कार्य किया हैl"

75वें वर्ष पूरे होने पर एवं पटना से स्थाई रूप से अपने घर की ओर प्रस्थान करने के पूर्व, उनके अभिनंदन में अमृत महोत्सव का आयोजन "साहित्य कला संसद, बिहार "और "थावे विद्यापीठ" की ओर से आयोजित एक समारोह में मुख्य अतिथि भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया.l

समारोह की अध्यक्षता करते हुए "नई धारा" नामक एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक डॉक्टर शिवनारायण ने कहा कि पटना से जाने के बाद भी वह हमलोगों के बहुत करीब रहेंगे! उन्होंने कई लघुकथाकारों को आगे बढ़ने में सहयोग किया है. उनके आवास पर साहित्यकारों का जमघट लगा रहता थाl"

आरंभ में संस्था के सचिव और संचालक डॉ पंकज प्रियम ने पुष्पगुच्छ देते हुए डॉ पुष्करणा का अभिनंदन भी किया. अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के महासचिव डॉ ध्रुव कुमार ने उनके जीवन और साहित्य पर एक आलेख का पाठ भी किया जिसमें उन्होंने कहा कि  -" डॉ पुष्करणा ने सोलह सौ लघुकथाओं की रचना की है, जिनका केंद्रीय भाव मानवउत्थान रही हैl.

डॉक्टर पुष्करणा के नेतृत्व में लघुकथा आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले लघुकथाकार सिद्धेश्वर ने कहा कि -" अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के माध्यम से, पूरे देश भर के लघुकथाकारों का ध्यान,  लघुकथा के विकास की ओर आकर्षित करने में, डॉ सतीशराज पुष्करणा के योगदान को नकारा नहीं जा सकताl उनके परामर्श पर मैंने लगातार लघुकथा सम्मेलन में अपनी  लघुकथा पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन के रूप  में सहयोग देता रहा l

सिद्धेश्वर ने उनके व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि -" साहित्यकार से बड़ा व्यक्तित्व होता है और डॉ  पुष्करणा, एक साहित्यकार के साथ-साथ व्यक्तित्व के भी  धनी रहे हैं l " 

वरिष्ठ लघुकथाकार रामयतन यादव ने कहा कि - " उन्होंने देश भर में सैकड़ों लोगों को लघुकथा से जोड़ने का महत्वपूर्ण काम किया है !उन के सानिध्य में मैंने लघुकथा पर कई महत्वपूर्ण आयोजन भी किए हैं l"

 इस भव्य समारोह में डॉक्टर गोपाल शर्मा,, डॉक्टर नीलू अग्रवाल, राजमणि मिश्र,  सिंधु कुमारी,  डॉक्टर रुपेश सिंह और  सुनील कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए!अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया, डॉक्टर गौरी गुप्ता ने l

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प्रस्तुति - सिद्धेश्वर 
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रस्तोता का मोबाइल - :9234760365
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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की गोष्ठी आभासी पटल पर 18.10.2020 को सम्पन्न

हुआ सघन तम का संताप / अस्मत पर असुरों का साया

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(पूरे छ: माह तक अ,भा.अग्निशिखा मंच अपनी साहित्यिक गतिविधियों को कायम रखने में लगी रही है। अब हालाकि देश  के कुछ क्षेत्रों में लॉक डाउन के हट जाने के कारण या  बहुत  छूट मिल जाने के कारण सशरीर उपस्थिति वाली गोष्ठियाँ आयोजित कर पा रहे है वहाँ महाराष्ट्र में कोरोना की स्थिति को देखते हुए अभी आभासी पटल पर ही कार्यक्रम हो रहे हैं।  परन्तु जहां सरकारें जनता के सहयोग से कोरोना को परास्त करने में लगीं हैं वहीं कविगण जनता का मनोबल बनाए रखने के लिए अपनी साहित्यिक गतिविधियों को पूरे उत्साह से जिन्दा रखे हुए हैं जो की एक कठिन कार्य है और जिस हेतु ये सब बधाई के पात्र हैं । आइये दुर्गापूजा के उत्सव के माहौल में  संपन्न हुई एक गोष्ठी की रपट देखते हैं संस्था की अध्यक्ष के द्वारा प्रस्तुत। - संपादक)   

अखिल भारतीय अग्निशिखा काव्य मंच एक समाजिक साहित्यिक संस्था है जो पिछले अनेक दशकों से समाजिक व साहित्यिक कार्य कर रही है। लाकडाऊन में इससे उभरने के लिये ऑनलाइन कवि सम्मेलन शुरु किया जो हर विशेष मौक़े पर दिये गये विषय पर कवि कविता पाठ करते है इसी कड़ी में आज नवदुर्गा मां के गीतों का स्वरचित भक्ति गीतों का आयोजन था।  इस आयोज के मुख्य अतिथि शायर किशन तिवारी थे समारोह अध्यक्ष श्री हरिवाणी थे विशिष्ट अतिथि में कुंवर वीर सिंह मातर्ण्य , आशा जाकड , अभिलाष अवस्थी , अरुण कुमार मिश्र ने निभाई

सरस्वती वंदना ., अलका पाण्डेय ने की करीब 95 कवियों ने भक्ति गीत गाये कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ पहले सत्र का संचालन - डॉ अलका पाण्डेय ने किया दूसरे सत्र का संचालन शोभा रानी तिवारी , बिजैन्द्र मेव , सुरेन्द्र हरड़ें  ने किया पाँच घंटे सभी माता रानी की भक्ती में डूबे रहे ।

कुछ भक्त कवियों की झलकी नीचे प्रस्तुत है - 

माँ शैल पुत्री आओं स्वागत है
सबके लिये रोज़गार लेकर आना
आशिर्वाद अपना बरसाते आना
विपदा  की  घड़ी ये दूर भगाना
किसानों का उजाला बन कर आना ।
रोगियों को अमृत का प्याला पिलाना ।
सिंह पर सवार हो कर आना दुष्टो का संहार करते आना माता
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई

तू ही है माँ स्कंदमाता।
जगत शरण सारा आता।।
तू ही है माँ कात्यायनी।
सब चिंता पल में हरनी।।
चंदेल साहेब- हिमाचल

माता रानी के दर्शन कर आऊ।
फुल श्रद्धा भक्ती के जलाऊ।।
गोवर्धन लाल बघेल
 छत्तीसगढ़

हो शेरों वाली माँ
नौ दिन ये सजेगी,
तुम्हारी जोत जलेगी
बेटियों को बचालो मैया
पार लगादो नैया
चन्दा डांगी चित्तौड़गढ़ राजस्थान

माता के दिन है
जयकारे लगाते रहो
हो कोई भी मुश्किल
भक्ति से बढ़ते रहो।
मिलेगी तुमको मंजिल
माता के दरवार मैं
बस विश्बास खुद पर हो
भीड़ या मझधार मैं।
      प्रेरणा सेन्द्रे

मां जगदंबे वीर जवानों को ऐसा
भवतारिणी दुखहारिणी सुखकारिणी। 
शेरोंवाली जग जननी जग कल्याणी।।
     द्रोपती साहू "सरसिज"महासमुन्द, छत्तीसगढ़।

इन्होंने भी एक रचना प्रस्तुत की -
सुषमा शुक्ला इंदौर

देवि दयाल भई मोरे अंगना।
।माता के अंगे चुनरी सोभे,ओ पियरी छोड़ गई,
 गई मोरे अंगना।देवि दयाल भई..।
-बृजकिशोरी त्रिपाठी गोरखपुर,यू,पी।

सज गया मां का दरबार पधारो अम्बे मां
दर्शन के अभिलाषी हैं दर्शन दे दो मां
-शोभा रानी तिवारी

हुआ सघन तम का संताप,
अस्मत पर असुरों का साया।
   मधु वैष्णव "मान्या"

" मैं नमन  करु माँ अंम्बे
 जय  माता बोलु,
दरपे जो आया,
माँ तू ही  दुखहारिणी हो
मैं नमन करु माँ अम्बे
सुरेन्द्र हरड़ें

सुमिरिन में तेरे बहुत है शक्ति,
तु भी आजमा ले आके भक्ति।
मन मन्दिर में है तेरा बसेरा।
तेरे सिवा अब कौन है मेरा
तु जगतारिणी, तु भयहारिणी.....
सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश

अर्चनम् वंदनम मात अभिनंदनं
करते हैं  तुम्हारा हम स्वागतम्
आशा जाकड

नवरूपा हो  मां तुम
  हमारी
दुर्गा अंबे हो काली,
शक्तिरूपा हो हमारी
कोई चमत्कार कर दो
   मैया
ममता तिवारी इंदौर

हे मातु भवानी आज, डोले तेरे अंगना।
रहें सदा खनकते हाथन में, तोरे कंगना।।
*कवि आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश

देवी भजन
मैया तेरे आँचल की
अम्बे तेरे आँचल की,छैयाँ जो मिल जाए,
सच कहती हूं मैया, जीवन ही बदल जाए।
जानती हूँ तेरी दया दिन रात बरसती है
इक बूंद जो मिल जाए,नैया ही पार लग जाए,अम्बे तेरे - -
डा अँजुल कंसल"कनुप्रिया"

नौ दिन नवरात्रे आए धूम मची है जग में मैया
तेरे नौ रूप सुहाने दर्शन हमको देदे मैया
शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छत्तीसगढ़

स्वरचित रचना पाठ करने वाले कवियों में शामिल थे - 
मधु वैष्णव "मान्या"रजनी अग्रवाल जोधपुर , ओजेंद्र तिवारी दमोह पदमा ओजेंद्र तिवारी दमोह ,मंजुला वर्मा हिमाचल प्रदेश,सीमा दुबे, रेखा पाडेंय पुणे,जनार्दन शर्मा शेखर राम कृष्ण तिवारीज्ञानेश कुमार मिश्रा ,वीना अडवाणी नागपुर, विजय बाली, प्रेरणा सेन्द्रे , रानी नारंग , दिनेश शर्मा, शोभा रानी तिवारी,ममता तिवारी , वैष्णो खत्री वेदिका,लीला कृपलानी जोधपुरसुनीता चौहान हिमाचल,स्मिता धिरासरिया बरपेटा रोड,द्रोपती साहू "सरसिज",शकुन्तला पावनी,मुन्नी गर्ग,)अंकिता सिन्हा,अनिता झा ,ओमप्रकाश पाण्डेय खारघर नवीं मुम्बई, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, मुंबई, सुनीता अग्रवाल इंदौर इन्द्राणी साहू"साँची" ,राजेश कुमार बंजारे भाटापारा मोहभट्ठा, चंदेल साहिब ,सुरेंद्र हरड़े नागपुर  विजेन्द्र मेव राजस्थान, प्रतिभा कुमारी पराशर,संजय कुमार मालवी इंदौर,चन्दा डांगी आदित्य सीमेंट, कवि आनन्द जैन अकेला कटनी , रानी अग्रवाल,दविंदर कौर होरा,डॉ नेहा इलाहाबादी ,सुषमा शुक्ला इंदौर। पद्माक्षी शुक्ल, प्रो शरद नारायण खरे,डॉ नीलम खरे नीलम पाण्डेय गोरखपुर उत्तरप्रदेश बृजकिशोरी त्रिपाठी गोरखपुर।,हीरा सिंह कौशल सुंदरनगर मंडी हिमाचल प्रदेश, गोवर्धन लाल बघेल जिला महासमुंद छत्तीसगढ़, शुभा शुक्ला निशा, रायपुर छत्तीसगढ़, कुवंर वीर सिंह मार्तण्ड , आशा जाकड ,मीरा भार्गव, चंद्रिका व्यास डा. साधना तोमर, बागपत, यू.पी., डा.महताब अहमद आज़ाद उत्तर प्रदेश,डॉ मीना कुमारी'परिहार', प्रा , रविशंकर कोलते  । डाॅ0 उषा पाण्डेय, कोलकाता,, गीता पांडेय  "बेबी "जबलपुर सुषमा मोहन पांडेय , सीतापुर उत्तर प्रद, वंदना शर्मा , डॉ अंजूल कंस, कांता अग्रवाल .डॉ ब्रजैन्द्र नारायण द्विवेदी ,गरिमा लखनऊ डॉ महेश तिवारी चन्देरी  जिला अशोक नगर,डाॅ पुष्पा गुप्ता मुजफ्फरपुर बिहार, बरनवाल मनोज अंजान, धनबाद, झारखंड, मीना गोपाल त्रिपाठी, अनुपपु, गुरिंदर गिल मलेशिया उपेंद्र अजनबी गाजीपुर उत्तर प्रदेश।माधवी अग्रवाल "मुग्धा " आगरा , अलका पाण्डेय मुंबई, डॉ रश्मि शुक्ला प्रयागराज अरुण कुमार मिश्र, डॉ संगीता श्रीवास्तव - सागर म. प्रे.डॉ ज्योत्सना सिंह साहित्य ज्योति हेमा जैन इंदौर , रागिनी मित्तल कटनी मध्यप्रदे, मालविका “मेधा “सावित्री तिवारी दमोह रंजन शर्मा इंदौर श्रीमती निहारिका झा, खैरागढ़ राज.(छ. ग.)कवि देवी प्रसाद पाण्डेय प्रयागराजट रंजना शर्मा "सुमन"  इंदौर उमा पाडेंय जमशेदपुर झारखं सुरेंद्र कुमार जोशी देवास मध्यप्रदेश, रेखा चतुर्वेदी मसूरी , कल्पना भदौरिया "स्वप्निल आदि

इन कवियों ने स्वरचित भक्ति गीत सुनाकर माँ को प्रसन्न कर कोरोना महामारी से विश्व की रक्षा करने की प्रथना की

धन्यवाद ज्ञापन अलका पाण्डेय ने किया राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ
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रपट का आलेख - डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
परिचय - रा. अध्यक्ष, अ. भा. अग्निशिखा मंच
रपट की लेखिका का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
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गोरखनाथ मस्ताना रचित "धूप की लकीरें " कथा पुस्तक का लोकार्पण 18.10.2020 को पटना में सम्पन्न

फूल बचाना हो तो / पंखुड़ियों को मत मसलो !

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(विभिन्न सरकारी विभागों, बैंकों, सरकारी निगमों आदि के द्वारा लगभग 4-5 वर्ष पूर्व स्थापित किंतु नियमित रूप से सक्रिय साहित्यिक संस्था है "वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच पटना". इसके संस्थापक सदस्यों में भगवती प्रसाद द्विवेदी, मधुरेश शरण, हरेन्द्र सिन्हा, सिद्धेश्वर आदि शामिल हैं. मुझे 2018 तक पटना में रहने के दौरान वहाँ जाकर कई बार उनके कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग करने का अवसर प्राप्त हुआ. अक्सर इस संस्था की गोष्ठियाँ चाँदमारी रोड, पटना में स्थित मधुरेश शरण के आवास पर संचालित होती हैं. ध्यातव्य है कि मधुरेश जी स्वयं एक वरिष्ठ रंगकर्मी और सक्रिय कवि हैं. - हेमन्त दास 'हिम')

"बेतिया जिले के अप्रतिम हस्ताक्षर श्री गोरखनाथ मस्ताना बहूयामी व्यक्तित्व के धनी है l मंचो पर अपने गीतों के माध्यम से पहचान बनाए मस्ताना जी,  एक सफल कथाकार भी  हैं l"

वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच के बिहार इकाई के तत्वावधान में, वरिष्ठ गीतकार मधुरेश नारायण के चांदमारी रोड पटना स्थित आवास पर, आयोजित, "धूप की लकीरें " कथा पुस्तक  का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l

उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना काल  में, सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुए, साहित्यिक आयोजनों को सक्रिय रखना है खासकर ऐसी छोटी -छोटी गोष्ठियों में रचनाएं बहुत अच्छी तरह से पढ़ी और सुनी जाती हैl"

पूरी संगोष्ठी का संचालन करते  हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि -"गीतकार गोरखनाथ मस्ताना का "धूप की लकीरें"  लोकार्पित कथा संग्रह, उनके भीतर की सृजनात्मक क्षमता के विस्तार का परिचय देता है l "

पूरे समारोह के संयोजक मधुरेश नारायण  ने आगत अतिथियों साहित्यकारों के प्रति आभार प्रकट किया और धन्यवाद दिया 

आइये इस संगोष्ठी में पढ़ी गई कुछ कविताओं की बानगी देखते है -

भगवती प्रसाद द्विवेदी- 
         "फूल बचाना हो तो 
          पंखुड़ियों को मत मसलो !
          मत नीलाम करो खुशबू को
          जहर न तुम घोलो !
          जहर घोलकर मासूमों पर 
          कहर न ढाना जी !
          बचपन अगर बचाना हो
           फूल बचाना जी 

 घनश्याम -
          सिर पर रखकर पांव कहां तक  भागोगे? 
          जान  हथेली  पर  लेकर  चलना    होगा !
          जुल्मों की ज्वाला घर आंगन तक पहुंची, 
          उसे   बुझा   डालो  वरना  जलना  होगा !

 मधुरेश नारायण -
          बहते अश्कों के वेग ने हर बाँध को  तोड़ दिया,
          पत्थर दिल को भी संवेदना की ओर मोड़ दिया।
          नियति  के प्रादुर्भाव जब देखने  को मिले यहाँ,
          अपने इष्ट के आगे लोगो  ने माथा टेक दिया।

सिद्धेश्वर -
        "चील को आदमी नहीं 
         आदमी को चील नहीं, 
          उसका पेट खाता है !
          यह है अभाव /जिसने  बना दिया है 
          भूखे पेट को चांडाल !"

मो. नसीम अख्तर -
         हम नशेमन नया फिर बनाने चले हैं।
         लोग आँधी और तुफाँ उठाने चले हैं।

मनोज कुमार अम्बष्ठ -
         अवसर मिले तो मेरी बात मानिए,
          कभी-कभी अपनों का हाल जानिए!
          किस तरह बाट जोह रही निगाहें उनके 
          मिलने की तड़प देखने तो आईए।

गोरखनाथ मस्ताना -
         देश एक मंदिर है, तो सम्मान होना चाहिए 
         देवी इसकी भारती,  गुणगान होना चाहिए !
         गांव इसके देवालय, कृषक है इस के पुजारी 
         मिलेगा भारत यहां,  दो रात जिसने गुजारी.. !
         कब तलक पढ़ते रहेंगे राजपथ की कहानी !
         गांव की पगडंडियों का,  मान होना चाहिए!" 
........

प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
मोबाइल -92347 60365 
ईमेल- Sidheshwarpoet.art @gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com













दुर्गा पूजा' 2020 पर विशेष रचनाएँ / कवि - विजय भटनागर, चंद्रिका व्यास, हरिदत्त गौतम, नेहा वैद्य

 आप सब को दुर्गा पूजा की शुभकामनाएँ!

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(नोट- इसमें जोड़ने के लिए अपनी रचनाएँ शीघ्र ईमेल से भेजिए अपने फोटो के साथ- editorbejodindia@gmail.com)




(दुर्गा पूजा का सम्पूर्ण भारत में विशेष महत्व है. यह पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, दिल्ली आदि में माँ दुर्गा के भव्य पांडाल सजाकर तो गुजरात, महाराष्टृ आदि में नवरात्र महोत्सव के अवसर पर भव्य सामूहिक गरबा नृत्य आयोजित करके मनाया जाता है. इतना ही नहीं विजयादशमी के अवसर पर रावण की प्रतिमा का विशाल समारोह में पुतला दहन होता है और बिहार, बंगाल आदि में दुर्गा प्रतिमा के विर्सर्जन के अवसर पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. ये सब के सब अत्यधिक धूमधाम से,उल्लासपूर्वक और भावावेश के साथ सम्पन्न होते हैं. 
देवी दुर्गा वस्तुत: शक्ति का ही दूसरा रूप है और इसे नारी रूप इसलिए दिया गया है ताकि हम नारी के असली महत्व को समझ सकें. आइये इस अवसर पर हम पूजा को मात्र कर्म कांड में सीमित न समझ कर सम्पूर्ण नारी जगत के प्रति सम्मान विकसित करें और यह मानें कि उनकी शक्ति के बिना संसार जीने लायक नहीं रह जाएगा. संसार में चहुँओर पनप रहे महिसासुरों के मर्दन के लिए देवी दुर्गा को बार बार अवतरित होना पड़ेगा और वह होती रहेगी कभी विधि-व्यवस्था के रूप में तो कभी जनचेतना के रूप में. विभिन्न क्षेत्रों में पनप रहे भ्रष्टाचार और वैचारिक संकीर्णता रूपी महिषासुर के मर्दन के लिए हमें देवी दुर्गा के दो प्रजातांत्रिक रूप का वंदन करना है अर्थात  विधि-व्यवस्था का आदर करना है और अपनी चेतना को जाग्रत रखना है. - सम्पादक)


1. दुर्गा वंदना / विजय भटनागर 


कदम कदम पर मां दुर्गा तूने मुझे समझाया 
मां मैं ही नादान था, तेरा इशारा  समझ न पाया।
मैं करता रहा मनमानी, बढती रहीं परेशानी 
मां तू दयालू है पग पग पर रस्ता दिखाया।
जब भी मिली कामयाबी मैं हुआ इतना पागल
भूले   जबां पर मां तेरा नाम न आया।
गम ने जब जब सताया, दोष दिया तकदीर को
कर्मों का दोष नहीं, तकदीर को दोषी ठहराया।
दुख में तेरा नाम ले,किया तुझे बहुत परेशान 
मां दुख में हर पल तेरा ही ध्यान काम आया।
विजय को अंतरयामी दुर्गे का हरदम रहता है ध्यान 
जब भी कदम लड़खड़ाये, मां तुझे सामने पाया।



 2. मां दुर्गा प्यारी / विजय भटनागर  

 
अंतरध्यान में खुद को खो कर
पहुंच गया मैं नभ के उस छोर पर।
सामने बैठी थी मां दुर्गा न्यारी
पूर्ण कर रही थी,सबकी मन्नतें सारी
मां ने पूछा तुम यहां कैसे आ गये
जैसे ही मां तेरे ध्यान में खो गये।
मां बोली नित ध्यान में खोया करो
ये दिव्य ज्ञान औरों को भी दिया करो



कवि - विजय भटनागर 
कवि का ईमेल आईडी - bijatkbhatnagar@gmail.com
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दुर्गा के रूप / चन्द्रिका व्यास 


(1)    समस्त ब्रम्हाण्ड की कल्याणी मां
          दुख भंजनी संकट हरणी मां
          दिव्य ज्योत की ज्वाला से
          प्रकाश-पुंज तू भरती मां!

(2)     तू ही आद्यशक्ति भगवती मां
          तू ही विंध्येश्वरी मां
          चैत्र नवरात्र की बेला में
          नौ रूप धारण करती मां!

(3)      कभी चण्डी कभी काली बन
            दुष्टों का करती संहार
            शक्ति-रूप में नारीत्व को
            निरूपित करती है तू मां!

(4)        अन्तर्मुख शक्ति का शिव है
             तो बहिर्मुख शिव की शक्ति है
             शिव-शक्ति की अर्चना, उपासना
             एक दूजे की पूरक है!

(5)        त्रिदेवी  को अपने में समा
             मां शक्ति-स्वरूपिणी कहलाती है
             कर दुर्ग दैत्य का तू नाश
             मां दुर्गा देवी कहलाती है!

(6)        विंध्याचल पर्वत पर मां
             विन्ध्यवासिनी कहलाती है
             महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती
             का संगधर,
             स्त्री शक्ति कहलाती है!

(7)       आनंद-स्वरूपिणी प्रेरक शक्ति, महाशक्ति
             प्राण-जीवन दात्री मां
             दे एैसा वरदान मुझे
             करूं अर्चन दिन रात्रि मां!
                ......
              


कवयित्री  - चन्द्रिका व्यास 
कवि का ईमेल आईडी - cb.vyas12@gmail.com
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दुर्गा के रूप / डॉ. हरिदत्त गौतम 'अमर


 शैलपुत्री बन किया तप का महत्तम आचरण।
हरड़ सम हर रोग तापों दोष सब करतीं हरण।।
शुद्ध भजन उपवास व्रत वातावरण विचार।
हर नारी दुर्गा लखें हो सबका उद्धार।।
 शैलपुत्री बन किया संसार में गंगा सृजन।
अमृत वितरण में निरत पूज्या शिवाम्बा को नमन।।

द्वितीया ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचर्य ही सब लक्ष्यों का है सर्वोत्तम साधन।
ब्रह्मचर्य से ही हो पाता पूर्ण सफल विद्यार्जन।
ब्रह्मचर्य से वृद्धावस्था में भी झलके यौवन।
ब्रह्मचर्य ही परब्रह्म का सर्वश्रेष्ठ आराधन।
ब्रह्मचारिणी माता श्वेताम्बरधृत अक्ष कमण्डल।
स्वाधिष्ठान चक्र जागृति का दिवस दिव्य परमोज्ज्वल।
शैलसुता ही ब्रह्मचारिणी बनकर हमें बताती।
दृढ़ निश्चय संयम कर्मठता से विजयश्री आती।।

तृतीया "चन्द्रघण्टा" या
अस्त्रशस्त्रमण्डित तेजस्वी, प्रबला दसों भुजाएं।
लाल कमलमुख सुखदात्री, आलोकित दसों दिशाएं।
मंगल ही मंगल करतीं मंगलदा मंगलरूपा,
पूर्ण "चन्द्र घंटा" सा सिर पर मन्द मन्द मुस्काएं।
शुभ "मणिपुर"चक्र संचालित साधक का झट होता,
नाभिकुंड में अमृतसरोवर डुबकी भक्त लगाएं।।

 चतुर्थ दिवस "कूष्माण्डा देवी"
समुचित ऊष्मा ब्रह्माण्ड स्वस्थ  सप्राण त्राण किया करती।
सिंहस्था अष्टभुजा कूष्माण्डा मति, तन शक्ति दिया करती।
पा उच्च मनोबल सुदृढ़ भक्त कर हृदयस्थान ध्यान अविचल,
सुनता है दिव्य "अनाहत" ओम् ध्वनि आनन्द मग्न अविरल।।


पंचम दिवस स्कन्दमाता
परमेश्वर त्र्यम्बक मृत्युंजय शिवपरमशक्ति मम प्रिय माता।
दो विजय सदा शुभ क्षेत्रों में जय जयअतिदिव्य"स्कन्दमाता"
सुरसेनापति कुमार षण्मुख श्री कार्तिकेय विश्रुत जननी।
विजयिनी चतुर्दश भुवनों की अरिजेत्री षड्विकारहननी।।
हो सिद्ध "विशुद्धि चक्र"झट से
वाणी में अद्भुत शक्ति"अमर"।
सम्मोहन भाषण में अमेय रण सर्वजयी हुंकार प्रखर।।

षष्ठ सिवस कात्यायिनी
वैज्ञानिक ऋषियों की रक्षाहित कात्यायन की कुटिया आईं।
शुभ स्वर्णवर्ण करुणार्द्रहृदय शोधार्थी को अति वरदाईंं।।
देतीं पुरुषार्थ चतुष्टय भी अक्षय यश साथ साथ देतीं
भक्तों के"आज्ञा चक्र"सजग जगमग जग मग कर मुस्काईं।
ब्रजमण्डल की भी अधीश्वरी देतीं वर रूप कृष्ण तक को
कालिन्दी स्नानव्रता कन्याओं के अतिशय मन को भायीं।
महिषासुर वधहित सिंह बैठ प्रलयंकर अस्त्रशस्त्र बरसा
कर मेंं तलवार त्रिशूल लिये षष्ठी पूज्या वरदा माईं।
अतिशय भास्वर हैं चतुर्भुजा शुभ अभय वरद मुद्रा दोनों
माॅं"कात्यायनी"अनी लेकर अवनी  पर कमनीया छायीं।।
अनी=सेना, अवनी=भूमि

 सप्तम दिवस माता कालरात्रि
रूप भयंकर, बन प्रलयंकर भूत-प्रेत कुग्रहनाशक। 
रासभवाहन पर आरूढ़ा राक्षस दैत्य दनुजनाशक।।
शुभंकरी कहलातीं अपने भक्तों का शुभ शुभ करतीं।
पल न लगातीं महाकाल सी काली बन ताण्डव करतीं।।
बाल बिखेरे, लाल लाल अंगारों सी आँखें फाड़े।
"कालरात्रि"माता दयालु ने सदा विजय झण्डे गाड़े।।
वज्र, खड्ग, थप्पड़, त्रिनेत्रधर श्यामवर्ण धर बाघाम्बर।
घोर नाद कर बिजली सी टूटा करतीं हैं दुश्मन पर।।
"कालरात्रि"सब सुख विधातृ श्री मातृप्रमुख की जय जय जय।
हरती हैं जो त्रास, ह्रास, भय अभयंकर कर नि:संशय।। 
चक्र, भुशुण्डी, खड्ग, परिघ, कोदण्ड चण्ड चण्डी धारे। 
चण्ड-मुण्ड के मुण्ड काटतीं चामुण्डा के जयकारे।।
शुम्भ निशुम्भ कुम्भ से फोड़े फाड़े झट से मधु कैटभ।
रक्तबीज के रक्तपान में अविरत रत गुंजित भू नभ।।
रक्त दन्त मुख अग्नि उगलतीं माॅं त्रिनेत्र धर वेग प्रखर।
सिंह दहाड़ों से कम्पित कर क्षण में जीतें सदा समर।

अष्टमी में महागौरी
"महागौरी" महादेवी महेश्वर की महामाया।
महातप कर हिमालयजा हुईं शिव-शंभु की जाया।।
अपर्णा बन उमा तन था हुआ तप से परम श्यामल।
शिवा गंगा नहायीं तो महागौरी हुई काया।।
सुनयनाजा परमदक्षा सदा  रक्षा किया करतीं,
गणेशाम्बा जगज्जननी सदय कल्याण ही करतीं।।
दिलाये जानकी को पति परम आदर्श ( राम) पुरुषोत्तम
कराया रुक्मिणी से प्राणप्रिय श्री कृष्ण का संगम।।
करेंगे यदि महत्तम तप परमदृढ़ पूततम बन कर,
 रहेंगे धर्मवृष आरूढ़ पायेंगे परमशंकर।।
सभी की वरप्रदात्री हैं, सदा ही असुरतानाशक,
उठातीं शस्त्र निज कर में मिटातीं दैत्य जगत्रासक।।"
"अमर" की पूज्य आराध्या सजीं वृष सिंह प्रिय वाहन,
जुटातीं वीर पुरुषों को अमरपुर के सभी साधन।।
पूर्णिमा चन्द्र सी स्मितमयी,गुणमयी,तपमयी,
यशमयी मम हृदयस्वामिनी।
चाॅंदनी हारश्रृंगार बेला कमल कुंद शंखेन्दु सम गौर शिवभामिनी।
शूल डमरूधरा श्वेतपट्टाम्बरा,वरप्रदा,भास्वराशुभ्र ज्यों दामिनी।
जानकीपूजिता रुक्मिणी कूजिता श्री गणेशाम्बिका श्वेतवृषवाहिनी।।

नवमी में सिद्धिदात्री रूपा माॅं
सज रहीं "सिद्धिदात्री" सहस्रार पर
नव नवल सिद्धि सन्नद्ध नव द्वार पर।
शंख, अरविन्द,कौमोदकी प्रिय गदा
हैं सुदर्शन महाचक्र कर धार कर।
पूर्ण विकसित सहस्रार सिर चक्र से
सिन्धु आनन्द उमगा अमित ज्वार भर।
हों स्फुरित ज्ञान विज्ञानमय भक्ति सब
राम अनुरक्त हों चित्त अधिकार कर।
पूर्ण संतुष्ट जीवन नियम यम सधें
नाचता चित्त-प्रह्लाद अंगार पर।
व्यास कोकिल स्वरित,शुक पढ़ें भागवत
हरि अजामिल मिलें नाम उच्चार कर।
एक पल में करें विश्वभर का भ्रमण
शंकराचार्य सब सिद्धियाॅं धार कर।
अन्नपूर्णा तुम्हीं शारदा मंगला
मधु महिष चंड से सब असुर मार कर।
नारियों में करें मातृदर्शन सदा
हो सुखी विश्व नारीत्व सत्कार कर।
झूमते राम का नाम लेकर "अमर"
धन्य मानव हो निस्वार्थ उपकार कर।।
रचयिता कवि- डॉ० हरिदत्त गौतम "अमर"



कवि - डॉ. हरिदत्त गौतम 'अमर' 
कवि का ईमेल आईडी - hariduttgautam53@gmail.com
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हर रूप करामाती / कवयित्री - नेहा वैद्य


देखे रूप अनेक मैया के, हर रूप करामाती। 
रहस्य-भरी इसकी महिमा का दुनिया यश है गाती।। 

जब आकाल पड़ा धरती पर प्राणों पर बन आई 
शाक  उगाकर तन पर मैया शाकम्भरी कहलाई 
एकदन्तिका, भीमा, विंध्या  ये ही कहलाती।
देखे रूप अनेक मैया के, हर रूप करामाती।। 

शेर-सवारी कर जगदम्बे, दुर्गति दूर करे 
रूप धरे लक्ष्मी का, घर सुख से भरपूर करे 
भरे झोलियाँ सबकी, सब कहते इसको दात्री। 
देखे रूप अनेक मैया के, हर रूप करामाती।। 



कवयित्री - नेहा वैद्य
कवयित्री का ईमेल आईडी - poetessnehavaid@gmail.com
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