Monday 31 August 2020

विन्यास साहित्य मंच" के द्वारा समकालीन कविताओं पर केन्द्रित ऑनलाइन काव्य संध्या 30.8.2020 को सम्पन्न

  क्या ईश्वर / इतनी भाषाएँ जानता है ?

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पटना। “कविताएँ अब सिर्फ प्रेम की अभिव्यक्ति तक ही सीमित नहीं रह गई हैं, बल्कि अब यह समाज और राजनीतिक ताने-बाने की विद्रूपताओं को उद्घाटित करने का जरिया भी बन गई हैं. आज के कवि प्रेम से आगे बढ़कर अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं को अपनी कविताओं में समाहित कर रहे हैं और उसमें सफल भी हो रहे हैं. आज की युवा पीढ़ी के मन में जो भावनाएं उमड़-घुमड़ रही हैं, वे कविता के रूप में सामने आ रही हैं”. यह बातें जाने-माने पत्रकार और साहित्यकार प्रसून लतांत ने विन्यास साहित्य मंच द्वारा आयोजित समकालीन कविताओं पर केन्द्रित काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुए कही. विन्यास साहित्य मंच के इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि नई दिल्ली से राधेश्याम तिवारी और विशिष्ट अतिथि राकेश रेणु उपस्थित रहे. काव्य संध्या में नै दिल्ली से अपर्णा दीक्षित, कोलकाता से राज्यवर्धन, डॉ. अभिज्ञात, एकलव्य केसरी, पटना से शहंशाह आलम, राजकिशोर राजन, नताशा, पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’, रश्मि अभय, मुजफ्फरपुर से पंखुरी सिन्हा और हवेली खड़गपुर से ब्रह्मदेव बंधु ने समकालीन कविताओं का पाठ किया.लगभग दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में श्रोता के रूप में भी अनेक सुप्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार जुड़े रहे.. करीब ढाई घंटे तक चले इस काव्य संध्या का संचालन दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चंदन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष पटना के वरिष्ठ शायर घनश्याम ने किया। गूगल मीट ऐप्प के माध्यम से सम्पन्न इस कार्यक्रम में अंत तक कई श्रोता जुड़े रहे।

काव्य संध्या में सुनाई गई कविताओ की झलक नीचे प्रस्तुत है:

डॉ.अभिज्ञात ने भारतीय राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा - 
बारिश करीब हो 
और 
चारों ओर यदि पसरा पड़ा हो सन्नाटा
समझ लेना
यह सांप के केंचुर बदलने का 
समय है
कुछ ही अरसे में तमाम सांप अपने नये कलेवर में 
निकल पड़ेंगे बिल से।

नताशा ने अपनी कविता के माध्यम से सन्नाटे के कोलाहल को समझाने की कोशिश की -
आवाज थक कर बुझने के बाद 
शुरू होता है सन्नाटे का कोलाहल 
रात की उर्वर ज़मीन पर 
उग आतें असंख्य प्रश्न 
जो दिन भर रौंदे जाते हैं सड़कों पर

पंखुरी सिन्हा ने औरतों की वेदना को अपनी कविता के माध्यम से स्वर देने की कोशिश की:--
'धो रही हूँ तुम्हारे खुरों के निशान,
अपने कंधों पर से
दुर्घटना सड़क पर नहीं, मेरे अन्दर घटी है,
पर मैं बताऊंगी नहीं तुम्हें
अब तुम मेरे राजदार नहीं रहे......'

शहंशाह आलम ने संकट की घडी में भी हौसला बनाए रखने की मुखालफत की:--
अभी मुसाफ़िर आने बन्द नहीं हुए
अभी समुंदर में मछलियाँ कम नहीं हुईं
अभी अख़बारों में अच्छी ख़बरें आनी बन्द नहीं हुईं
अभी लोगों ने एक-दूसरे से मिलना नहीं छोड़ा

राजकिशोर राजन ने जलवायु परिवर्तन की समस्या को अपनी कविता के माध्यम से उभारा:  
वसंत को भी अब तक
कोई नहीं मिली पगडंडी
कि मुंह दिखाने भर को
किसी एक दिन वह पहुंचे मेरे गाँव।

ब्रह्मदेव बन्धु ने बाढ़ की विभीषिका को अपनी कविता में ढालते हुए कहा -
सैलाब की मुट्ठी में कैद है मेरा गाँव
पानी ने लील लिया है
अनाज, जलावन, चूल्हे
अम्मा भूखी है दो दिनों से
घुटनों पानी में खड़ी गाय भी
पत्नी कभी भी प्रसव-पीड़ा से कराह उठ सकती है
आखिरी महीना चल रहा है

रश्मि अभय ने प्रेम की पीड़ा को कुछ इस तरह दर्शाय
मुश्किल हुआ था मुझे 
तुम्हें दिल से निकालना
ठीक उसी तरह 
जैसे मुश्किल है तुम्हारे लिए 
किसी से प्यार निभाना...

राधेश्याम तिवारी ने भाषाई विभेद पर सवाल उठाते हुए पूछा -
दुनिया में 6809 भाषाएं हैं 
और सभी भाषाओं के लोग 
अपनी-अपनी भाषा में 
ईश्वर को पुकारते ही होंगे 
क्या ईश्वर 
इतनी भाषाएँ जानता है ?

पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’ ने तेजी से बढ़ते कंक्रीट के जंगलों पर चिंता जताई -
शहर से गुजरते हुए
पढा जा सकता है-
वर्त्तमान के शिलालेखों पर 
अतीत के दस्तावेज़ !
देखा जा सकता है-
बढ़ती आबादी...
पसरता शहर...
कंक्रीट का जंगल!

चैतन्य चन्दन ने बाढ़ की विभीषिका को राजनीतिक अवसर मानने वालों पर सवाल उठाया -
जबसे सूखने लगा है
उनकी आँखों का पानी
आसमान से 
बरसने लगी है आफत
डूबने लगी हैं
उम्मीदें, जीवन की
सपने, नौनिहालों के
वजूद, मानवता का

एकलव्य केसरी ने लॉकडाउन की वजह से सूने पड़े झूले की वेदना को अपनी कविता से दर्शाया -
पेड़ की टहनी से 
लटकता झूला
सूर्योदय से लेकर 
शाम ढलने तक   
राह तकता है
नन्हें-मुन्नों की
युगल जोड़ों की
और सखियों की 
ताकि दूर हो
उसकी तन्हाई

अपर्णा दीक्षित ने तिलचट्टे को माध्यम बनाकर सामाजिक विद्रूपताओं पर प्रहार करने की कोशिश की -
किताबों की अलमारी से तेजी से रसोई घर की तरफ भाग गया
तिलचट्टा है सरकार! 
किसी मैदान में, चौराहे पर, दुकान में, या फिर कॉलर पकड़कर घर से खींच लाए जाते है, 
जुर्म सिर्फ इतना, साला तिलचट्टा है, /जूठे खाने पर नज़र रखता है।

राज्यवर्धन ने चाँद को अर्बन नक्सल बताते हुए कहा -
कैसे नींद आए चाँद को
फुटपाथ पर आज भी
भूखे पेट सो गए हैं कई 
पांच सितारा जश्न में 
डूबे हुए लोगों के साथ
मित्रों!
चाँद भी अर्बन नक्सल बन गया है
जो फुटपाथ पर रहनेवाले लोग के साथ है

राकेश रेणु ने मखाने के गुणों को ज़िन्दगी के पहलुओं से जोड़ते हुए सुनाया -
एक-एक दाने में अनेक साँसें बसी 
लावा नहीं, उम्मीद है फूली हुई, गर्भवती के पेट सी
उसकी चमक में कई-कई आँखों की चमक है
कुरमुरेपन में कई-कई हाथों की उष्मा
जानकार जिन विटामिनों और खनिजों का लाभ बताते हैं इससे
वास्तव में उन हाथों के पसीने और लहू से निकलता है।

अंत में विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष घनश्याम द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ समकालीन कविताओं के पाठ के इस सार्थक कार्यक्रम का समापन हुआ.
.....

रपट का आलेख - चैतन्य चन्दन
रपट के लेखक का ईमेल आईडी -
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी -editorbejodindia@gmail.

Saturday 29 August 2020

अ. भा. सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के पटल पर वाहिद अली वाहिद का काव्यपाठ 26.8.2020 को संपन्न

 जब पूजा अज़ान में भेद न हो..

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अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के हाथ लगता है आजकल जैकपाॅट लग गया है ! जिस कवि या शायर को बुलाओ..वही नायाब निकल कर आता है..एक नया अंदाज़ लेकर आता है..एक नयी ख़ुशबू की तरह हमारे ज़ेहन में छा जाता है..पटल को नयी ताज़गी से नवाज़ जाता है !

इसी कड़ी में 26.8.2020 को लखनऊ से पटल पर उपस्थित हुए मंचों के सिद्ध कवि-शायर वाहिद अली वाहिद। छंदों-बहरों पर समान अधिकार रखने वाले..तहत-तरन्नुम दोनों में समान असर पैदा करने वाले.. वाहिद साहब ने शुरू में ही अपना परिचय देते हुए कहा........
"संस्कारों से सजी शब्दावली हूं !"

फिर अपनी कविताओं का परिचय देते हुए कहते हैं........
" दास दासी में हूं, राजा रानी में हूं
मूढ़ मति में हूं, ग्यानी ध्यानी में हूं !"
" मैं कविता हूं जो है समय से परे
मैं अभी तक समय की कहानी में हूं !"

इनकी कविताओं और ग़ज़लों से गुज़रते हुए वाकई ऐसा लगा कि ये संस्कारों से सजी शब्दावली हैं -
" बुद्धिहीन लोग हैं ज़हीन पर चढ़े हुए
लेखनी में दम नहीं मशीन पर चढ़े हुए !"

" चुनावों में जो भी खड़े आदमी हैं
सुना है वो ही बड़े आदमी हैं !"

" कहां गये दिन ख़्वाबों वाले
तितली फूल किताबों वाले,
बंदूकों से अब कह दो जा कर
हम हैं क़लम किताबों वाले..!"

" दिन मेरे ख़राब हो गये, दोस्त मेरे ख़्वाब हो गये,
खादी का लिबास क्या मिला, चोर तक जनाब हो गये !"

" छंद गीत ग़ज़ल सुनाता रहूं.....!"
" वैसे तो हम चांद सितारे लिखते हैं....!"
" शूल लेकर तुम खड़े हो, पांखुड़ी के सामने....!"
" तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहां तक भाला जाये..!

बीच बीच में कभी युवाओं को प्रेरित करते हुए कहते हैं..कि उनको ऐसा बनना चाहिए.......
" सुबह बनारस ललाम की तरह
जगमग अवध की शाम की तरह !"

तो कभी बांसुरी को प्रतीक बनाकर.." नंद के लाला गोपाल सुनो"..कहते हुए यथार्थ से अध्यात्म तक पूरी दुनिया समेट लेते हैं कविता में !

 वहीं ईश्वर अल्लाह को एक मानते हुए कहते हैैं...
"जब पूजा अज़ान में भेद न हो.....!"

जनाब वाहिद अली वाहिद साहब की कविताओं, मुक्तकों, छंदों, ग़ज़लों से गुज़रते ऐसा लगा कि इन्हें पारंपरिक छंद और सामने बैठे श्रोताओं से भरा-पूरा मंच अधिक भाता है। तभी कहते हैं.. कि "मैं आंख में आंख डालकर पढ़ने वाला कवि हूं!"

ख़ैर, वाहिद साहब ने आज यथार्थ की व्याख्या से लेकर आदर्श और उपदेश तक की यात्रा करवा दी ! 

इस  तरह  से  प्रेम, सौहार्द से सराबोर इस आभासी कार्यक्रम का समापन हुआ. 
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रपट का आलेख - पुरुषोत्तम नारायण सिंह 
रपट के लेखक का ईमेल आईडी - hellopnsingh@gmail.com
रपट के लेखक का परिचय - (सेवानिवृत) केंद्र निदेशक, दूरदर्शन, पटना
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


रपट के लेखक - पुरुषोत्तम नारायण सिंह 

Friday 28 August 2020

अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक / कुमार पंकजेश की गज़लें संपादकीय टिप्पणी के साथ ( Poems by Kumar Pankajesh with Editor's comments)

 तीन गज़लें 

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Editor's comment - 

Kumar Pankajesh is basically a romantic poet though the tinge of his romance traverse the realms of the all sorts of harsh realities in the world. The realities prevailing in family, society and in the all spheres of life. His language is lucid and connotations are comprehensible yet they are neither simplistic nor light-hearted. He would never flinch back from touching thorns in an attempt to looking at the magical beauty of the flowers. The beauty of stark contrast makes the imagery more sedate - 1.मुदावा का बहुत था वादा जिनका /कुरेदें ज़ख़्म वो चारागरी में. 2.बहुत ही संगदिल है हुस्न तेरा / मगर होती है उल्फ़त बेरह्मी में 

The romance is soft, shy and in undertone - 1. छुपा के अपने घाव भी रखेंगे इस तरह  '/ कि देखने में घाव भी हरा नहीं लगे  2. ख़ता तेरी जहाँ नज़र में सब के है चुभे / हमें तेरी ख़ता बुरी ज़रा नहीं लगे

And no true poet can shirk from the social discourse. He provokes a person to show his maximum potential and that too at a time when it is badly needed - 1. अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक /वो सच नहीं समय पे जो खरा नहीं लगे. If you don't act when it is required then you are bound to live in your misery - हज़ारों बार मरता है ये इंसां / फ़क़त एक ही अदद इस ज़िंदगी में.

With an aim to arouse the inner determination for the betterment of the society the poet almost challenges a person that he has no capacity to do good - दूर कर दे फ़रेबे तारीकी / दीप ऐसा जला नहीं कोई

And then there is a final grumble at the  nonchalant garrulous souls - लतीफ़ा था कि ताना ये न समझा / बहुत पोशीदा था संजीदगी में. 

....
सम्पादकीय टिपण्णी का हिंदी अनुवाद  - 
कुमार पंकजेश मूल रूप से एक रोमांटिक कवि हैं, हालांकि उनके रोमांस का तड़का दुनिया में सभी प्रकार की कठोर वास्तविकताओं का अहसास कराता है। परिवार, समाज और जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रचलित यथार्थ। उनकी भाषा स्पष्ट है और धारणाएं बोधगम्य, फिर भी वे न तो सरल हैं और न ही हल्के-फुल्के। फूलों के जादुई सौंदर्य को देखने की कोशिश में कांटों को छूने से वह कभी पीछे नहीं हटती। विरोधाभास की सुंदरता कल्पना को और अधिक लुभावना बना देती है -  1.मुदावा का बहुत था वादा जिनका /कुरेदें ज़ख़्म वो चारागरी में. 2.बहुत ही संगदिल है हुस्न तेरा / मगर होती है उल्फ़त बेरह्मी में 
 रोमांस नरम, शर्मीला और दबा-दबा सा  है - 1. छुपा के अपने घाव भी रखेंगे इस तरह  / कि देखने में घाव भी हरा नहीं लगे  2. ख़ता तेरी जहाँ नज़र में सब के है चुभे / हमें तेरी ख़ता बुरी ज़रा नहीं लगे
और कोई भी सच्चा कवि सामाजिक सरोकार से बच नहीं सकता। यह शायर भी एक व्यक्ति को अपनी अधिकतम क्षमता दिखाने के लिए उकसाता है  और वह भी ऐसे समय में जब उसकी बहुत ज्यादा जरूरत हो  - 1. अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक /वो सच नहीं समय पे जो खरा नहीं लगे.  यदि आप आवश्यक होने पर कार्रवाई नहीं करते हैं तो आप अपने दुख में जीने के लिए बाध्य हैं -  हज़ारों बार मरता है ये इंसां / फ़क़त एक ही अदद इस ज़िंदगी में.
समाज की भलाई के लिए आंतरिक दृढ़ संकल्प जगाने के उद्देश्य से यह शायर एक व्यक्ति को  लगभग चुनौती देते हुए कहता है कि वह अच्छा करने की जैसे क्षमता ही नहीं रखता है-  दूर कर दे फ़रेबे तारीकी / दीप ऐसा जला नहीं कोई
और अंत में वह बेपरवाह वाचाल लोगों के आचरण पर शिकायती लहज़े में कहता है - लतीफ़ा था कि ताना ये न समझा / बहुत पोशीदा था संजीदगी में.


 ग़ज़ल 1

हुज़ूर अपनी दोस्ती सज़ा नहीं लगे
मज़ाक़ ऐसा कीजिए बुरा नहीं लगे

छुपा के अपने घाव भी रखेंगे इस तरह 
कि देखने में घाव भी हरा नहीं लगे 

अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक
वो सच नहीं समय पे जो खरा नहीं लगे

किया है तुमने प्यार इस तरह कभी हमें 
भरा हो जाम भी मगर भरा नहीं लगे

कहो कहाँ असर तेरी दुआओं में रहा
हसद से की गयी दुआ, दुआ नहीं लगे

ख़ता तेरी जहाँ नज़र में सब के है चुभे
हमें तेरी ख़ता बुरी ज़रा नहीं लगे

सितम किया हक़ीर जानकर हमें तो क्या
मुख़ालफ़त है की मरा हुआ नहीं लगे
(गुहर /सही शब्दरूप 'गौहर'- मोती, हसद - ईर्ष्या, हकीर- घृणित, मुख़ालफ़त - विरोध
मुख़ालफ़त है 'की' /सही शब्दरूप -'कि')
..

ग़ज़ल 2

नहीं है इतनी शिद्दत तिश्नगी में 
तो रक्खा क्या तुम्हारी बंदगी में 

हज़ारों बार मरता है ये इंसां
फ़क़त एक ही अदद इस ज़िंदगी में 

बदल जाती है पल में जैसे ये रुत
यही फ़ितरत है हर एक आदमी में

मुदावा का बहुत था वादा जिनका 
कुरेदें ज़ख़्म वो चारागरी में

बहुत ही संगदिल है हुस्न तेरा
मगर होती है उल्फ़त बेरह्मी में 

लतीफ़ा था कि ताना ये न समझा
बहुत पोशीदा था संजीदगी में
(शिद्दत-तीव्रता , तिश्नगी-प्यास , बंदगी-पूजा, अदद-संख्या, मुदावा-इलाज , चारागरी-उपचार. संगदिल-पत्थरदिल तंज़-व्यंग्य पोशीदा-छुपा हुआ , लतीफ़ा-चुटकुला , संजीदगी- गंभीरता।ग़ज़ल)
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ग़ज़ल 3

दोस्त अब तक मिला नहीं कोई
दुश्मनों से गिला नहीं कोई

मार दे मेरी पीठ पर ख़ंजर
इतना प्यारा दिखा नहीं कोई

मानता हूँ कि ऐब हैं मुझमें
दूध का पर धुला नहीं कोई

बाँट लेता किसी से दुख अपना
मुझसे इतना खुला नहीं कोई

जो बुराई से रोक ले मुझको
दोस्त इतना भला नहीं कोई

दूर कर दे फ़रेबे तारीकी
दीप ऐसा जला नहीं कोई
(फ़रेबे तारीकी = अन्धकार का धोखा)
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शायर (Poet) - कुमार पंकजेश (Kumar Pankajesh)
शायर का ईमेल आईडी (Email ID of the poet) - kumarpankajesh19@gmail.com
टिप्पणीकार (Commentator) - हेमन्त दास 'हिम' (Hemant Das 'Him')
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी (Email ID of this blog for feedback)- editorbejodindia@gmail.com


Thursday 27 August 2020

"लघुकथा के रंग" द्वारा आयोजित अ.भा. ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन 21.6.2020 से 23.8.2020 तक चलकर सम्पन्न

लघुकथाकारों का अनोखा ऑनलाइन जमघट 

महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ के  लघुकथाकारों ने लिया भाग 

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"लघुकथा के रंग" के द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन -2020 लगातार दो माह तक चलने के बाद 23.8.2020 को समाप्त हुआ. ज्ञात हो कि कोरोना और लॉकडाउन के संकट के चलते 21 जून 2020 को अखिल भारतीय ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन का आयोजन किया गया जो कि इतने दिनों तक चला. पूरे भारत के 60 लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाएं प्रत्येक रात 8:00 से 9:00 के बीच ऑनलाइन प्रस्तुत की. भारत और भारत के बाहर भी अन्य देशों में इस सम्मेलन को खूब प्रशंसा मिली. 21 जून को कार्यक्रम के संयोजक वह लघु कथा की रंग के संस्थापक अंदाज़ अमरोही उत्तर प्रदेश से और कार्यक्रम के अध्यक्ष सेवा सदन प्रसाद मुंबई महाराष्ट्र दीप प्रज्वलित करके इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया. लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों व समस्याओं को उजागर किया. सम्मेलन में वरिष्ठ व कनिष्ठ सभी आयु वर्ग लघुकथा कारों ने भाग लिया.

भाग लेने वाले लघुकथाकारों में सेवा सदन प्रसाद- महाराष्ट्र, चंद्रिका व्यास- महाराष्ट्र, कनक हरलालका, आद्या प्रसाद मिश्र, रीटा जय हिंद दिल्ली, दिनेश प्रसाद दिनेश कोलकाता, पश्चिम बंगाल,  बजरंगी लाल यादव -बिहार, अलका पांडे - महाराष्ट्र, रेखा बोरा -उत्तर प्रदेश, के 0पी0 सक्सेना "दूसरे"-छत्तीसगढ़, पीहू पपीहा- पश्चिम बंगाल, चंचला राठौर- गुजरात, आलोक कुमार सिंह-उत्तर प्रदेश, उर्मि भट्ट, - गुजरात, पूजा नबीरा- मध्य प्रदेश, वंदना श्रीवास्तव- महाराष्ट्र, हेमलता मिश्र मानवी- महाराष्ट्र, शेख शहजाद उस्मानी -मध्य प्रदेश, डॉक्टर वर्षा महेश -महाराष्ट्र, संजय कुमार श्रीवास्तव -बिहार, डॉक्टर दीपिका राव- राजस्थान, विश्रवम्भर दयाल तिवारी- महाराष्ट्र, सुधा तारे- मध्य प्रदेश, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता- महाराष्ट्र, तनुजा दत्त -उत्तर प्रदेश, स्वप्निल यादव -उत्तर प्रदेश, डिंपल गौड़ - गुजरात, कुमकुम वेद सेन - महाराष्ट्र, डॉ ममता पाठक- नई दिल्ली, श्रुति कीर्ति अग्रवाल -बिहार, प्रवीणा राही -उत्तर प्रदेश, अंजु सिंह- उत्तर प्रदेश, रशीद गौरी- राजस्थान, व्यंजना आनंद मिथ्या, कृष्ण कुमार क्रांति- बिहार, संध्या श्रीवास्तव, -उत्तर प्रदेश, महेश राजा- छत्तीसगढ़, लता तेजेश्वर रेणुका- महाराष्ट्र, सीमा निगम- छत्तीसगढ़, अंजु अग्रवाल लखनवी -महाराष्ट्र, डॉ अंजु लता सिंह -नई दिल्ली, शकुंतला तिवारी -छत्तीसगढ़, प्रज्ञा गुप्ता -राजस्थान, डॉक्टर लता अग्रवाल, भोपाल -मध्य प्रदेश ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का वाचन किया.

पूरे कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार सेवा सदन प्रसाद -मुंबई, महाराष्ट्र ने कहा कि - इस आयोजन से लोगों में उत्सुकता पैदा हुई,आत्मविश्वास बढा , झिझक दूर हुई और अपनी लेखनी पर गर्व महसूस हुआ।

बहुत ही खूबसूरत तरीके से समारोह का समापन, नए प्रोग्रामों का एलान, आत्मीयता एवं नम आंखों से विदाई पर जुदाई नहीं कह सकते हैं।

अभी तो हम चले हैं, मंजिल है दूर,
पहुंचने के पहले हम हो जायें मशहूर।

"लघुकथा के रंग" मंच के संस्थापक अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन के संयोजक अंदाज़ अमरोही ने कहा कि यह कार्यक्रम लॉकडाउन और कोरोना के चलते ऑनलाइन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य था पूरे भारत के लघुकथा कारों को एक मंच प्रदान करना तथा उनकी प्रतिभा के रंग को दुनिया भर से अवगत कराना इस मंच पर वरिष्ठ और कनिष्ठ साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से जो रंग बिखेरे हैं उसका असर देर तक दिखाई देगा. लॉकडाउन के बुरे दौर को जब कभी हम याद करेंगे तब इस सम्मेलन की सुनहरी यादें हमारे दिल दिमाग को सुकून देंगी. रचनात्मकता से भरपूर यह दिन हमारी यादों का हमेशा हिस्सा रहेंगे.

अंदाज़ अमरोहवी ने इस मंच से संबंधित भविष्य की योजनाओं की भी घोषणा की - सितंबर में लघु कथा लेखन कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा, जनवरी -2021में अंतरराष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन का आयोजन, हिंदी दिवस पर हस्तलिखित लघु कथा प्रतियोगिता आदि कार्यक्रमों की घोषणा के बाद देश भर की लघुकथाकारों का धन्यवाद किया गया वह कार्यक्रम समापन की घोषणा की गई.
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रपट के प्रस्तोता  - सेवा सदन प्रसाद 
प्रस्तोता का ईमेल अईडी - psewasadanprasad@gmail.com
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Monday 24 August 2020

अजगैबीनाथ साहित्य मंच सुल्तानगंज भागलपुर की आभासी कवि-गोष्ठी 23.8.2020 को सम्पन्न

 हैं मुश्किलें हजार लबों पर हँसी तो है

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दिनांक 23/8/2020 को अजगैवीनाथ साहित्य मंच सुलतानागंज भागलपुर के तत्वावधान में आभासी (ऑनलाइन) अंतरराष्ट्रीय कवि गोष्ठी का आयोजन मंच के संस्थापक सदस्य डॉ. श्यामसुंदर आर्य की अध्यक्षता मशहूर ब्रह्मदेव बंधु के समन्वयन और अध्यक्ष भावानंद सिंह प्रशांत के संचालन में हुआ। कार्यक्रम में  महाराष्ट्र, नेपाल, झारखण्द, राजस्थान, यूपी और बिहार के कवियों ने अपनी साहित्यिक उपस्थिति दर्ज करायी । विभिन्न प्रदेशों के अनेक कवियों को मंच की ओर से साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। 

मुंबई से कवियित्री कुसुम तिवारी ने कविता सुनाकर रिश्तों के किरदार पर अपनी भावनाओं को यूँ रेखांकित किया - 
ये माना कि नाता छूट गया 
शाखों से रिश्ता टूट गया 
मन से बाँधी डोर प्रीत की 
सको तोड़ न पाओगे 
मधुकर तुम वापस आओगे। 

वहीं पटना से वरिष्ठ गजलकार घनश्याम ने अपनी गजल से चिरपरिचित अंदाज में कहा - 
कोठी नहीं है एक अदद झोपड़ी तो है 
हैं मुश्किलें हजार लबों पर हँसी तो है। 

बदायू  यु पी से मनोज कुमार मुन ने अपनी गजल में कहा - 
हम तो बस गम के गुबारों को गजल कहते हैं 
तेरे संग चलती बहारों को गजल कहते हैं 
जिसपे चढ़के हम तुझे खूब सताते थे कभी 
उन्हीं टूटी सी दीवारों को गजल कहते हैं। 

जयपुर राजस्थान से कवियित्री शोभना ऋतु ने प्रेम की प्रज्ञा को परिभाषित किया- 
उसे हम हाले दिल अपना सुनाकर चले आये 
मुहब्बत उसके दिल में हम जगाकर चले आये 
न उनको नींद आती है न उनको चैन आता है 
हमीं तो आग पानी में लगाकर चले आये । 

राँची झारखंड से पुष्पा सहाय ने कहा -
हम तो सपनों को हकीकत बनाए बैठे हैं ...,

भागलपुर से कवि पारस कुंज ने कहा -
भुलाता नहीं कोई एहशां किसी का
कोई हो तो उसका पता दीजिये

अंगिका और हिन्दी के कवि सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने कहा - 
पाँव जमी पर रख देने से धरती पुत्र नहीं होता 
चंदन को घसना पड़ता है पौधा इत्र नहीं होता ..

वहीं खड़गपुर से राजकिशोर केशरी ने अपनी रचना में आँगन की प्रासंगिकता को रेखांकित किया - 
बार -बार आँगन को चीरा जाना 
गाड़ देना उसके सीने पर दीवार ...।

काठमांडू नेपाल से कवियित्री अंजु डोकानिया ने अपने गीत के माध्यम से कहा -
विभावरी नींद न आए 
प्रभाकर नित्य उग आए 
श्रवण सुत भानु कर परित्याग 
अकार्यम पीर तडपाए । 

खडगपुर से कवि व शतदल पत्रिका के संपादक प्रदीप पाल ने कहा - 
सबसे बुरे दिनों में भी आसरा है प्रेम  
है प्रेम ही जो देता है साहस 
बाँटता है संबल 
तो तय है इस बुरे दिनों मे भी 
सबसे बेहतर दिनों का एहसास जीवित रहेगा ।

गजलकार दिलीप कुमार सिंह दीपक ने कहा - 
फूलों का मुरझाना कहाँ अच्छा लगता है 
हया के नूर का जाना कहाँ अच्छा लगता है । 

कार्यक्रम का संयोजन कर रहे वरिष्ठ  गजलकार ब्रह्मदेव बंधु ने अपनी गजल में कहा - 
इश्तहार हो गये लगते हो 
अखबार हो गए लगते हो 
बेच रहे हो जिस्म और इमां 
बाजार से  हो गए लगते हो ।

कवि मनीष कुमार गूंज ने अंगिका में कोरोना पर कहा -
कोरोना बहुत खतरनाक लागै छै 
जेकरा धरै छै खौफनाक लागै छै।

वरिष्ठ कवि रामस्वरूप मस्ताना ने कविता में अजगैवीनाथ की महिमा पर बेजोड बखान किया -
ये अजगैवीनाथ दरबार है, 
यहाँ की महिमा है बड़ी न्यारी 
डमरु वाले है त्रिपुरारी ।

मंच के संस्थापक सदस्य डॉक्टर श्यामसुंदर आर्य ने अपने गीत में कहा - 
उम्रभर की बात है कहो कैसे कटेगी 
बीती हुई जो बात है, यादें से भी कैसे हटेगी । 

वहीं संचालन कर रहे मंच के अध्यक्ष भावानंद सिंह प्रशांत ने कहा - 
तुम्हारा दर्द मेरे अंदर क्यों है 
मेरी आँखें आज समंदर क्यों है 
जिनके हाथों मे थी कभी कलम 
आज उनके हाथों में खंजर क्यों है। 

अंत में राष्ट्रीय कवि गोपाल सिंह नेपाली को उनके जन्मशती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह कार्यक्रम उनको ही समर्पित था।
...

रपट की प्रस्तुति - भावानंद सिंह प्रशांत
प्रस्तोता का ईमेल आईडी -
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Friday 21 August 2020

भा. युवा साहित्यकार परिषद का आभासी लघुकथा सम्मेलन 17.8.2020 को सम्पन्न

"लघुकथा समुद्र को अंजलि में भरने का काम":- डाॅ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल 
विशिष्ट लघुकथाओं के सारांश के साथ पूर्ण रपट

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पटना।17/08/2020 सर्वाधिक पठनीय और संभावनापूर्ण विधा है लघुकथा। युवा रचनाकारों ने राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक असंगतताओं के निवारण के प्रति, बेचैन दिख रहे हैं। यही बेचैनी लघुकथा का प्राणतत्व होता है। "

समकालीन लघुकथा की प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि  "इन्टरनेट के इस आधुनिक युग में लघुकथा की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। एक कमरे में बंद होकर लघुकथा पाठ करने के बजाए व्हाइटस एप या फेसबुक पर लघुकथा का पाठ करना और अधिक सावधानी बरतने की अपेक्षा करता है। क्योंकि इस मंच पर दुनिया भर के लोग और कोई भी, कहीं भी, कभी भी देख सुन सकता और त्वरित प्रतिक्रिया भी व्यक्त करने के लिए वह स्वतंत्र होता है। 

उन्होंने कहा कि - "अपनी संस्था द्वारा लघुकथा को पहली बार हमने आनलाइन प्रस्तुति देकर, इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने का प्रयास किया है, कुछ दिनों पूर्व प्रख्यात सहित्यकारों द्वरा इसके उद्घाटन के बाद से  हमने लगभग हर माह लघुकथा की आनलाइन चर्चा और पाठ करवाकर, लघुकथा को जन समुदाय से जोड़ने का प्रयास किया है। देश - विदेश के साहित्यकारों का सहयोग अतुलनीय है। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में और "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर आनलाइन आयोजित "हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन" के संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। 

मुख्य अतिथि की भूमिका में योगेंद्रनाथ शुक्ल के अलावा, देश-विदेश के कुछ जाने-माने लघुकथाकार जैसे विभा रानी श्रीवास्तव, रामयतन यादव और कमल चोपड़ा जैसे देश के लब्ध प्रतिष्ठित लघुकथाकारों ने भी अपनी लघुकथा बांची।      

मुख्य अतिथि योगेंद्रनाथ शुक्ल (जो 7वें  दशक से लघुकथा लेखन में सक्रिय रहे हैं) ने कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें साझा की। उन्होंने बताया कि " खलील जिब्रान पहले लघुकथाकार हैं, जिन्होंने विधिवत लघुकथा लेखन की शुरुआत की। लघुकथा के विषय में उनका कहना था कि -" लघुकथा का सृजन करना, समुद्र को अंजलि में भरने का काम है। और उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि - "हमें भरपूर अध्ययन करना चाहिए। तभी हम अच्छी लघुकथा  या कविता लिख सकते हैं।  उनके अनुसार लघुकथा की भाषा सहज और सरल होनी चाहिए, उसकी पहुंच आमजन तक होनी चाहिए। वरना लघुकथा का भी वही हश्र होगा जो कविताओं का हुआ है, उनके क्लिष्ट भाषा के कारण। 

इस आन लाइन लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, लेखिका ऋचा वर्मा ने, लगभग पचीस लघुकथाकारों की पढ़ी गई लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा कि - "समकालीन लघुकथाओं में सकारात्मक सोच उभरकर सामने आ रही है, जो कुछ बेहतर करते हुए प्रगतिवादी है। कुछ लघुकथा, लघु कहानी जैसी है, इससे बचने की जरूरत है।" 

पठित लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए उन्होंने कहा कि - " आज के कार्यक्रम में सबसे पहली प्रस्तुति विजय आनंद विजय (मुजफ्फरपुर) की लघुकथा 'नुमाइश' थी, जिसमें उन्होंने एक व्यक्ति को अपनी होने वाली बहू को किसी भी तरह के कपड़े पहनने की अनुमति देने की बात कही है, यह समाज में होने वाले परिवर्तन की ओर इशारा करती है कि अब लोग बहू के रूप में कोई नुमाइश करने वाली लड़की की खोज नहीं कर रहे हैं। 

दूसरी प्रस्तुति संजय कुमार अविनाश (लक्खीसराय ) की 'एफ आई आर' जिसमें सिस्टम की खामियों और भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार किया गया है। सविता मिश्रा मागधी (बेंगलुरु) की रचना 'लोरी' जिसमें एक  मां कोरोना के कारण अपने मरे हुए बेटे को देख कर उसे सोया हुआ समझती है और इसी विक्षिप्तता की अवस्था में सड़क पर आकर लोरी सुनाती है, क्योंकि उसकी बहू के वर्क फ्रॉम होम में बाधा ना पड़े। विनोद प्रसाद (खगौल) की रचना 'पश्चाताप' जिसमें किसी के बहकावे में आकर एक महिला किसी डॉक्टर को पत्थर मारती है, बाद में वही डॉ उस कोरोना संक्रमित महिला का इलाज कर उसे ठीक भी कर देता है। यह धर्म के आधार पर भेदभाव न करने का संदेश देती हुई लघुकथा है। 

डाॅ योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौर) की लघुकथा 'बेचारी तख्तियां' इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि कैसे किसी भी किसी बड़े साहित्यकार का फोटो हिंदी दिवस के दिन बस एक दिन के लिए सम्मान पाता है और उसके बाद उसे कोई नहीं पूछता। प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर) की लघुकथा 'स्वार्थ "' बताती है कि जिस बाप को पेंशन नहीं मिलता उसकी जिंदगी का कोई महत्व नहीं रहता। पूनम सिन्हा श्रेयसी की लघुकथा 'शिकारी' सोशल मीडिया पर फैले झूठ, व्यभिचार और  दोस्ती के नाम पर महिलाओं के शोषण पर प्रकाश डालती है। संतोष गर्ग(चंडीगढ़) की लघुकथा  'छोटी सी बात' हमें अपने माता-पिता को समय देने के लिए प्रेरित करती है। नरेंद्र कौर छाबड़ा (म प्र) की 'पतंग' यह बताती है कि हमें बुजुर्गों को भी अपने खेल-कूद और मनोरंजन में भाग लेने का अवसर देना चाहिए और साथ ही बुजुर्गों को भी अपने अपना आत्मविश्वास कायम रखना चाहिए। ऋचा वर्मा की लघुकथा 'विवशता' और राजप्रिया रानी की 'आजादी' स्वतंत्रता दिवस पर जिन बच्चों को स्कूल जाना चाहिए  उनके द्वारा द्वारा  झंडे बेचे जाने पर सवाल उठाती है। 

सिद्धेश्वर की लघुकथा 'अंधी दौड़' में साहित्य में पुरस्कारों को रेवड़ी की तरह बांटे जाने पर व्यंगात्मक रूप में एक सवाल उठाती है। मीना कुमारी परिहार अपनी रचना द्वारा 'पावनी' की प्रतिभा को सामने लाने की बात करती हैं  बजाय इसके कि पावनी के घर वाले ऐसा नहीं चाहते। प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र की लघुकथा 'अकेला कमरा' जिसे हम लघु नाटिका भी कह सकते हैं बहुत ही अच्छी प्रस्तुति और बहुत ही अच्छे विषय को लेती है जो आज के  समाज और सरकार का बेहद प्रिय नारा है 'घर घर शौचालय' और 'कोई भी खुले में ना जाए' इस तरह वह मनोरंजन के साथ एक सुंदर सामाजिक और सरकारी संदेश भी दे देती हैं। विभा रानी श्रीवास्तव (अमेरिका) की लघुकथा 'एकांत का दंश' बुढ़ापे में किए गए पुनर्विवाह की पैरवी करती है। डाॅ सतीश राज पुष्करणा (बरेली) की लघुकथा "पत्नी की इच्छा" एक मनोवैज्ञानिक तथ्य को रेखांकित कर्ता है। प्रेमलता सिंह की 'बिछोह' एक बेटी के मन का संताप बताती है जो अपने बीमार पिता को पानी नहीं पिला सकी, क्योंकि डॉक्टर ने मना किया था, और वह पिता मर गये। कमल चोपड़ा (नई दिल्ली) की 'खेलने का दिन" बच्चों के 'खेलने के दिन' घर में बेकार पड़े खिलौनों को गरीब बच्चों में बांटने की बात की पैरवी करती है। और रामयतन यादव(फतुआ) की लघुकथा 'विधवा' यह बताती है कि एक बच्चे को *शराबी बाप* के साये से ज्यादा जरूरी है कि उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों, इसके लिए वह बच्चा बिना बाप का भी होना पसंद करता है। 

इस तरह कुल मिला कर यह गोष्ठी बहुत ही सफल और एतिहासिक रही। जिसमें ने - पुराने हर स्तर के रचनाकारों ने भाग लिया। हो सकता है किसी की रचना लघुकथा के मापदंडों पर खड़ी नहीं उतरी हो, पर प्रस्तुत किया गया और प्रयत्न करते करते  हो सकता है, कोई लघुकथाकार एक प्रिय लघुकथाकार के रूप में पाठकों के बीच में पसंद किया जाए।अपने प्रभावपूर्ण संचालन में, ऐसे सफल और यादगार आनलाइन अंतरराष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन के संयोजन के लिए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर जी धन्यवाद के पात्र हैं। 
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रपट के लेखक - ऋचा वर्मा
रपट-लेखक का ईमेल आईडी -
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी -editorbejodindia@gmail.com

                               ० ऋचा वर्मा (सचिव) /भारतीय युवा साहित्यकार परिषद (पटना) (मो:9234760365)

Wednesday 19 August 2020

"विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में ऑनलाइन गीत गोष्ठी 16.8.2020 को सम्पन्न

कृत्य से अपने सदा निज राष्ट्र का गौरव बढाएं
 चेन्नै, दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद और बिहार के प्रखर गीतकार शामिल
गीतों में गहरी संवेदना और मनुष्यता के प्रति पक्षधरता - भगवती प्र. द्विवेदी 

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पटना। “गीत लोगों को न सिर्फ संवेदनशील बनाने में सहायक होता है बल्कि समय-समय पर यह लोगों में जोश भी भरता है. स्वाधीनता संग्राम के दौरान भी जो गीत रचे गए, उसने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंकी. वर्तमान समय में भी गीतकार ऐसे गीतों की रचना कर रहे हैं, जो सिर्फ प्रेम की अभिव्यक्ति ही नहीं, वरन लोगों को अपने अधिकारों और राष्ट्र के प्रति जागरूक भी करते हैं. ”कुछ यही भाव विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में रविवार 16 अगस्त को आयोजित गीत गोष्ठी में गीतकारों ने अपने गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया. 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ गीतकार और सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि “कविता अगर देह है, तो गीत उसकी आत्मा है। कविता यदि जिंदगी है, तो गीत उसकी धड़कन है । आज पठित अधिकांश गीतों में गहरी संवेदना और मनुष्यता के प्रति पक्षधरता परिलक्षित होती है।” 

करीब तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारम्भ भागलपुर के गीतकार राजकुमार ने वाणी वंदना से किया। कार्यक्रम में देशभर के कई राज्यों से शामिल चर्चित गीतकारों ने राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत और प्रेम गीतों की प्रस्तुति दी। गीत गोष्ठी में गाज़ियाबाद से पीयूष कांति सक्सेना, गजरौला (उप्र) से सुविख्यात गीतकार एवं वरिष्ठ कवियित्री मधु चतुर्वेदी, मुंगेर से शिवनंदन सलिल, दिल्ली से शैल भदावरी, कुसुमलता कुसुम, बिहारशरीफ से अल्पना आनंद, पटना से आचार्य विजय गुंजन, मधुरेश नारायण, सुभद्रा वीरेंद्र, चंडीगढ़ से हरेंद्र सिन्हा, चेन्नई से ईश्वर करुण, समस्तीपुर से हरिनारायण सिंह 'हरि' और पूर्णिया से डॉ मंजुला उपाध्याय ने एक से बढ़कर एक गीत सुनाए। 

कार्यक्रम के अंत में पिछले दिनों दिवंगत तीन साहित्य विभूतियों  कैलाश झा किंकर,  मृदुला झा एवं शायर राहत इंदौरी के सम्मान में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गीत गोष्ठी का संचालन दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चंदन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष पटना के वरिष्ठ शायर घनश्याम ने किया। गूगल मीट ऐप्प के माध्यम से सम्पन्न इस कार्यक्रम में अंत तक दर्जनभर श्रोता जुड़े रहे और सुरीले गीतों का रसास्वादन करते रहे।

गीत गोष्ठी में गीतकारों द्वारा सुनाए गीतों की एक झलक प्रस्तुत है -

गीत गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे पटना के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने वर्तमान परिवेश पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा”
मुक्तछंदी इस नगर में गीत बंजर हो गया है
गाछ सूखे सर्जना-संवेदना के कौन सींचे, 
कंकरीटी फ्लैट में सहमे कबूतर आँख मींचे  
साँस खूँटी पर टँगी तन अस्थिपंजर हो गया है.

गाज़ियाबाद से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे कवि और गीतकार पीयूष कांति ने राष्ट्र की आराधना कर निज गौरव बढ़ने की बात की -
हर घडी हम राष्ट्र की आराधना के गीत गाएं
कृत्य से अपने सदा निज राष्ट्र का गौरव बढाएं
मुंगेर के वरिष्ठ कवि शिवनंदन सलिल ने सुनाया:
सांझ होते ही नभ के सितारे जगे
कुछ हमारे लिए, कुछ तुम्हारे लिए

गीतकार मधु चतुर्वेदी ने अपने गीत के माध्यम से राष्ट्रहित में जीने-मरने की बात कही -
राष्ट्र आराधना, राष्ट्र की अर्चना, राष्ट्र की वंदना हम करें
राष्ट्र ही कर्म हो, राष्ट्र ही धर्म हो, राष्ट्रहित हम जिएं और मरें

समस्तीपुर से प्रसिद्ध कवि हरिनारायण सिंह ‘हरि’ ने अपने किसी प्रिय को याद करते हुए सुनाया -
जाने कितने आए कितने चले गए
मगर तुम्हारी याद सदा ही बनी रही
तुम ही मेरे मन में गहरे उतर सकी
मेरे मन की पीडाओं को कुतर सकी

दिल्ली से कवयित्री कुसुमलता ‘कुसुम’ ने प्रेम को परिभाषित करने में असमर्थता जताते हुए कहा -
प्रेम क्या है लिख सकूं मैं है नहीं सामर्थ्य मेरी
‘छंद-शब्दों में समेटूं है असंभव है असंभव
एक घट में हो भला कैसे समाहित प्रेम वैभव

पूर्णिया से कवियित्री डॉ. मंजुला उपाध्याय ने प्रेम में सुख-दुःख बांटने की बात कही:
आओ चलो हम लव-लव खेलें
सुख बाँटें और दुःख सब ले लें

चेन्नई से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे गीतकार और कवि ईश्वर करुण ने भारत देश को विश्व का सिरमौर बताया -
विश्व की संस्कृति का जो सिरमौर है
मुल्क ऐसा जहाँ में कहाँ और है
ये उठाता है गिरते हुओं को
पोंछता है दुखी आंसुओं को
इसकी रहमत से वाकिफ हरेक दौर है

भागलपुर से गीतकार राजकुमार ने एक दीपक के संघर्ष को चित्रित करते हुए कहा -
दीप हूँ मैं, जला हूँ जला आ रहा
जल रही अनबुझी मौन तनहाइयाँ
सिलसिला जूझने का रहा स्याह से
घन घिरे मौत ले लाख अंगड़ाइयाँ

पटना से वरिष्ठ गीतकार आचार्य विजय गुंजन ने गीत के बोल को पुकारा -
आ जा मेरे पास गीत के बोल
अमिय-कण पोर-पोर में घोल
कई दिन बीत गए हैं ...

दिल्ली से गोष्ठी में शिरकर कर रहे हिंदी गौरव संस्था के संस्थापक कवि शैल भदावरी ने अपने गीत से इतिहास बदलने के तरीके को बताया -
ईर्ष्या भरे प्रयास करोगे,सिर्फ कयास बदल पाओगे|
तन के बदलावों में उलझे,सिर्फ लिवास बदल पाओगे|
कथनी, करनी, सत्य मिलाकर, दृढ़ता संग विश्वास लिये, 
खून पसीना एक करोगे, तब इतिहास बदल पाओगे|

पटना से कवि और गीतकार मधुरेश नारायण ने अपने गीत के माध्यम से मानव जीवन को अनमोल बताया -
ये मानव जीवन कितना अनमोल है,तुम इसे यूँ न जाया करो
जो मिला है तुमहें,ये तो रब की दुआ इसे दिल से लगाया करो।
कभी किसी का वक्त यहाँ एक सा न रहा, जाते हुए लम्हों ने कानों में ये कहा।

चंडीगढ़ से कवि हरेन्द्र सिन्हा ने सपनों में अमृत घोलने की बात कही:
यह जीवन है अनमोल सखी, मीठे मीठे तू बोल सखी 
मैं जीवन गीत सुनाता हूं,  सपनों की बात बताता हूं ।
सपनों में तू अमृत घोल सखी, मीठे मीठे तू बोल सखी।

बिहारशरीफ से युवा कवियित्री अल्पना आनंद ने अपने गीत में देश के लिए शहादत की बात की -
खून से लथपथ इस धरती को फिर से हरा कर जाना
देश तकेगा राह तुम्हारी लौट के जल्दी आना।
पाना अगला जन्म तो फिर इस धरती पर ही पाना
देश तकेगा राह तुम्हारी लौट के जल्दी आना।

पटना से गीतकार सुभद्रा वीरेंद्र ने विरह की वेदना को गीत में पिरोते हुए कहा -
तुमसे बिछड़ के हम बहुत रोये
छलका रहा मौसम बहुत रोये।

इस तरह से यह देशभक्ति गीत पर आधारित यह विशेष कार्यक्रम देशभक्ति का अलख जगाते हुए एक अत्यंत सौहार्दपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ।
......

रपट की प्रस्तुति - चैतन्य चंदन
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - luckychaitanya@gmail.com
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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वार 15.8.2020 को कवि सम्मेलन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न

विश्व शीर्ष पर सदा भारत विराजमान रहेगा

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मुम्बई अग्निशिखा के जश्न-ए-आजादी पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम राष्ट्रभक्ति से रंगा हुआ रहा. मुख्य अतिथि श्रीराम राय, समारोह अध्यक्ष हरिप्रसाद शर्मा, विशिष्ट अतिथि  आशा जाकड और डॉ रश्मिनायर थीं.

संरस्वती वंदना पद्माक्षी शुक्ला व शोभारानी तिवारी ने की. मंच संचालन - डॉ अलका पाण्डेय, चंदेल साहिब, डॉ प्रतिभा परासर, विजेन्द्र मेव, सुरेश हेगड़े ने दो सत्रों में किया. ऑनलाइन इस कार्यक्रम के बारे में मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया की सबको तिंरगे के साथ रख कर काव्य पाठ व नृत्य या "74 वर्ष आजादी के बाद क्या खोया क्या पाया" पर मत देना था.

आठवीं क्लास की आद्रिका शर्मा ने सुदंर काव्यपाठ किया आबूदबी से शेखर तिवारी. मलेशिया से गुरविन्द्र गील यूएस से पूर्णिमा ने राष्ट्र ध्वाजा को सलामी दे देश को याद किया. ऐसा लग रहा था कि हम घर पर  ही वास्तविक कार्यक्रम का आन्नद ले रहे थे. पाँच घंटे कार्यक्रम चला सबने बहुत आनंद लिया देश भर के 90 लोगों ने भाग लिया.

मीना पराशर व रश्मि शुक्ला रानी अग्रवाल, सुषमा शुक्ला, अलका पाण्डेय ने नृत्य प्रस्तुत किया तो ढोलक थाप पर गोवर्धन लाल बंघेल  ने और गीत गया पूरी तरह तिंरगे की तरह बनकर  शुभा शुक्ला, साधना तोमर और गीता पाडेंय ने.

पढ़ी गई रचनाओं की एक झलक प्रस्तुत है - 

जागृति वशिष्ठ देहरादून - 
मगर न भूलो ये, 
इस आजादी में शहीदों की शहादत शामिल
न जाने कितनी मां के लालो का लहू शामिल

शुभा शुक्ला निशा, रायपुर, छत्तीसगढ़ - 
पंछी है बोल पाए कब
दर्द उसका है वहां ।

शेखर तिवारी -
ऐ वतन वतन मेरे आबाद रहे तू
मैं जहां रहूं जहां में याद रहे तू

स्मिता धीरसरिया, बरपेटा -
सफ़ेद शांति का धागा पहनूं
प्रेम का सुरमा लगाऊं
हरियाली की चादर ओढ़
 अमन शांति सबको सिखाऊं

पद्माक्षी शुक्ल -
हर आहट पे मां राह देख रही
सूनी गलियां अश्रु से, भिगोती रही,

ज्योति भाष्कर 'ज्योतिर्गमय', सहरसा (बिहार) -
हे पूज्य जननी, हे जन्मभूमि भारत
पतित-पावन-पुष्पित तेरे चरण हैं!
अमर-अतुल-अमिट इति आलोकित
लक्ष-लक्ष, कोटि-कोटि तुझे नमन है!
    
मीरा भार्गव सुदर्शना -
आजादी का जश्न मनाओ,  गीत शहीदों के गाओ ।
याद करो उन बलिदानों को,  वीरों को शीश नवाओ ।

मीना गोपाल त्रिपाठी -
देश की अस्मिता पर अब न कोई आंच होगी
विश्व शीर्ष पर सदा भारत विराजमान रहेगा
न जाएगा व्यर्थ अमर सपूतों का बलिदान
सदा अमर ये मेरा हिंदुस्तान रहेगा...
बात करें जो इतिहास के पन्नों की,
तो लहू से लिखे हुए दिखते हैं।
आजादी के संघर्ष को बयां करते,
अश्रु आँखों में नहीं टिकते हैं

सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश 
जांबाज सिपाही बंदूक तान
 देश की रक्षा कर रहे
भेज रही बहना रक्षा सूत्र
माथे चंदन टीका लगाया
भाई की सुरक्षा करे देश की रक्षा

डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया" इंदौर मध्यप्रदेश -
तिरंगे में लिपट आए जो वीर
वह देश की शान है

सुरेश हेंगडे -
मै कारगिल पर लिख नही  पाया कविता
नहीं दे सका जवानों को शाबशी!

डाॅ.पुष्पा गुप्ता, मुजफ्फरपुर बिहार -
हे भारत के वीर सपूतों, तेरे ही कारण
आजाद है वतन 
भारत माँ के रणबांकुरे शत-शत तुम्हें नमन ...

रागिनी मित्तल, कटनी, मध्यप्रदेश -
1947 की वो आजादी याद है
भारत किन मूल्यों पर स्वतंत्र हुआ
 हमको बर्बादी याद है।

डा. महताब आज़ाद -
मेरे दिल पूरा यह अरमान हो
प्यारा तिरंगा मेरे कफन की शान हो!

जहा देश प्रेम की भावना हो,
अपने झंडे के प्रति सम्मान हो,
अपने देश के नियम कायदे कानून का पालन हो
अपने नागरिकों,बुजुर्गो के प्रति सदभावना हो,

संजय कुमार मालवी (आदर्श) -
,शहादत देने वालों की,
खून पसीना बहाने वालो की,
आजादी का सच्चा सम्मान,
तभी होगा उनका सार्थक बलिदान
*जय हिंद , जय भारत , वन्देमातरम
यह सबका अभिमान है
हा तभी होगा उनका सार्थक बलिदान ।

इसमें भाग लेनेवाले अन्य प्रतिभागी थे -शकुन्तला, वैष्णव खत्री, जनार्दन शर्मा, छगनराव, शरद नारायण खरे,  उपेन्द्र अजनवी, संजय माववी ने अंजूल कंसल सुनिता चौहान, मंजूला वर्मा, निक्की शर्मा, वंदना शर्मा, सुनिता अग्रवाल, मुन्नी गर्ग, विजया बाली, सिमा निगम, अर्चना पाडेंय, पदमा तिवारी अंजली तिवारी, रजनी अग्रवाल, लीला कृपलानी, ममता तिवारी, रानी नांरग, देवेन्द्र कौर, दिनेश मिश्रा आनंद जैन, ओमप्रकाश पांडेय, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, निलम खरे प्रेरणा सेन्द्रे, रेखा पाडेंय, मनोज बरनवाल, सुरेन्द्र परमार, ज्योति  ज्यतिगर्मय भाष्कर, अनिता झा, द्रोपदी साहू, रविशंकर कोलते, सुरेंद्र कुमार जोशी, रवि नारायण,डॉ अविनाशी, मीरा भार्गव किरण जागृति वशिष्ठ देहरादूनग, सिमा दुबे, रागनि मित्तल 7मीना गोपाल त्रिपाठी,  अनुपपुर (मध्यप्रदेश)  अरविंद कुमार, सुपौल बिहार  डॉ जनार्दन सिंह नीलम पाण्डेय गोरखपुर  ज्ञानेश कुमार मिश्र अजमेर  प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान सागर, डाॅ0 उषा पाण्डेय, माधवी अग्रवाल आगरा, डॉ ज्योत्सना सिंह लखनऊ, अर्चना पाठक, पुष्पा गुप्ता, चंदा डागी अंकिता सिंहा सुनिल दत्त मिश्रा , ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी,, अश्मजा प्रियदर्शनी, डॉ महताब अहमद, ओजेन्द्र तिवारी , शोभा किरण,  विजय कान्त द्विवेदी आदि जिन्होंने बहुत  अच्छा प्रदर्शन किया. सभी ने घर बैठ कर आज़ादी का पर्व मनाया.
......

रपट की प्रस्तुति-  डॉ अलका पाण्डेय (मुम्बई)
प्रस्तोता का परिचय - अध्यक्ष- अ. भा, अग्निशिखा मंच
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
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Saturday 15 August 2020

ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा / कवि - अर्जुन प्रभात

गीत
 
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    ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।
    तेरा हरेक कण है प्राणों से हमको प्यारा ।।

     नगपति मुकुट तुम्हारा तेरी छटा निराली 
      फल  फूल  से  लदी  है  तेरी  हरेक  डाली 
     लगता कुशल करों ने तेरे रूप को संवारा  ।
     ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।।

       नित शस्य श्यामला है तेरी तमाम धरती 
       सरिता प्रवाह द्वारा यशगान तेरा करती 
       पग को पखारती है सागर की शुभ्र धारा ।
       ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।।

         तेरी पूरी श्रृंगेरी, मथुरा, गया अयोध्या 
         अजमेर, स्वर्णमंदिर सब में तुम्हारी माया 
         कन्याकुमारी तेरी, कश्मीर भी तुम्हारा ।
        ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।।

        उत्तुंग  शीर्ष  तेरा  उदात्त  सा  हृदय  है
      ममता की छाँव तेरी जग को न कोई भय है
       हारे थके पथिक को, मिलता यहीं सहारा ।
       ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।।

     तू सभ्यता की जननी, तू संस्कृति की माता 
      तुझ से जुड़ा है जग का सदियों से नेह नाता 
      इंसानियत के तूने नव रूप को निखारा ।
     ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।।

      क्षमता क्षमा दया का तुझमें अनोखा संगम
     महिमा तुम्हारी गाएँ शब्दों की शक्ति है कम
     हो जन्म जग में लेना, जन्में यहीं दुबारा ।
     ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा ।।
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कवि- अर्जुन प्रभात
कवि का ईमेल आईडी - arjunprabhat1960@gmail.com
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कवि - अर्जुन प्रभात