Wednesday 29 April 2020

"विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में तीसरी आभासी (ऑनलाइन) काव्य-संध्या-3 दि. 26.4.2020 को संपन्न

इस वीरान पड़े गुलशन में / लौट के फिर बहार आयेगी

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पटना। "कोरोना संकट की इस घड़ी ने कवि सम्मेलनों के आयोजनों को एक नया आयाम दिया है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये होने वाले कवि सम्मेलनों ने देश-दुनिया के कवियों को एक साथ एक मंच पर अपनी कविताएं सुनाने का अवसर प्रदान किया है। अतः अब कवि सम्मेलन स्थानीय से वैश्विक होने की ओर अग्रसर हो चुका है।" यह बातें पटना के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने विन्यास साहित्य मंच द्वारा रविवार 26 अप्रैल को आयोजित ऑनलाइन काव्य-संध्या की अध्यक्षता करते हुए कही। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से इस आपदा की घड़ी से मुकाबला करने के लिए अपनी रचनाशीलता को हथियार बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा -
नये प्रश्न नित कर रहा कालचक्र प्रतिकूल।
अपनी रचनाशीलता है उत्तर माकूल।।
देख आपदा शहर ने मारे ठांव-कुठांव।
बांहें फैलाए खडा पिता सरीखा गांव ।।

आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि बेतिया से शिरकत कर रहे वरिष्ठ कवि डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना ने गीत और प्रीत के रिश्तों को अपनी एक गीत के माध्यम से रेखांकित किया:
जो प्रीत गीत छलकाता है
वह काव्य अमर हो जाता है
कल के आलोकित पन्नों पर
इतिहास उसी को गाता है।

काव्य संध्या में मुंगेर से शिरकत कर रहे प्राध्यापक और कवि अंजनी कुमार सुमन ने हौसलों को गिरने से बचाने का उपाय अपनी ग़ज़ल के माध्यम से बताया -
नये जज़्बात गिरते हौसलों में बो रहे हैं
है छोटी आँख फिर भी लाख सपने ढो रहे हैं।

पटना के साहित्यकार हरेन्द्र सिन्हा ने अपनी कविता के माध्यम से नफ़रत की आंधी को बुझाने का आह्वान किया -
चलो देश का मान बढ़ाएं
खुशियां हम फैलाएं जी
नफरत की आंधी को बुझाएं
सबसे हाथ मिलाएं जी

पटना के भू वैज्ञानिक और पर्यावरण साहित्यकार  डॉ. मेहता नगेन्द्र सिंह ने पेड़ों को रहनुमा बताते हुए डर को अपने मन से निकालने की अपील की -
हौसला भी है हुनर भी है तो डर कैसा
सांस की खातिर शजर भी है तो डर कैसा?

राज्य सभा सचिवालय, नई दिल्ली में बतौर उपनिदेशक अपनी सेवा दे रहे युवा शायर  पीयूष कांति सक्सेना ने वर्तमान संकट को कुछ इस नज़र से देखा -
क़हर दुनिया पे है बरपा, क्या ख़ुदा नाराज़ है
या सिखाने का नया कुछ, उसका ये अंदाज़ है।

पटना के जाने-माने शायर मधुरेश नारायण ने वर्तमान संकट से जल्द ही उबर जाने की आशा करते हुए कहा -
ये धरा फिर से मुसकुरायगी
त्रासदी से निजात पायेगी
इस वीरान पड़े गुलशन में
लौट के फिर बहार आयेगी..

पटना से सुरीली आवाज़ की धनी कवियत्री  आराधना प्रसाद ने किसी भी संकट को धैर्यपूर्वक झेलने का आह्वान करते हुए  कहा -
पत्थर को पिघलने में अभी वक़्त लगेगा
हालात बदलने में अभी वक़्त लगेगा
कुछ देर चराग़ों की करो और हिफाज़त
तूफ़ां को ठहरने में अभी वक़्त लगेगा

मुजफ्फरपुर से बज़्म में शिरकत कर रहीं कवियत्री डॉ. भावना ने लोगों को वक्त के हिसाब से ढलने की नसीहत देते हुए कहा -
जो वक्त के हिसाब से ढलता चला गया
हर मोड़ पर वो आगे निकलता चला गया
जैसे कि मोम हूँ मैं, वो जलता हुआ दिया
वैसे मेरा वजूद पिघलता चला गया

पटना से वरिष्ठ शायर और हिंदी ग़ज़लों के हस्ताक्षर कवि घनश्याम ने मानवता की लाचारगी को कुछ इस तरह से बयां किया:
आस्था  की  टूटती   दीवार  है
आज  मानवता बड़ी लाचार है
मौत का आतंक चेहरे पर लिए
वक़्त  की  बढ़ती हुई रफ़्तार है

पटना से ही वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने अपनी बेबसी का बयान कुछ इस तरह किया:
कल की रात कयामत की रात थी
मेरा जनाजा तो क्या, किसी की बारात थी।
पल पल मरते रहे  हम जिनकी याद में
यह नसीहत उनके लिए थोड़ी सी बात थी ।

बज़्मे हाफ़िज़ बनारसी के संयोजक और वरिष्ठ शायर  रमेश कँवल ने बिखरी हुई ज़िन्दगी के मसलों को ग़ज़ल में पिरोते हुए कहा -
बिखरी हुई हयात से सिमटे लिबास थे
हम डूबती सदाओं के कुछ आस-पास थे
आंखों में अपनी मंज़रे-सद-दस्ते-यास थे
हम मौसमे-बहार से यूं रुशनास थे

चंडीगढ़ से काव्य- संध्या में शिरकत कर रहीं  संतोष गर्ग ने फूल और कांटों के बीच के रिश्तों को कुछ इस प्रकार शब्दों में पिरोया -
जरा गौर से देखो लोगो फूलों के संग कांटे सोए। चमन जब उजड़ गया तो तब भी देखो कांटे रोए।।

विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चंदन ने ग़ज़ल के माध्यम से अपनी बेबसी को कुछ इस प्रकार उजागर किया -
अरमान अपने दिल में कुचलते रहे हैं हम
बस मोम की मानिंद पिघलते रहे हैं हम

करीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम के अंत में चैतन्य चंदन ने काव्य संध्या में शिरकत कर रहे सभी कवियों/कवियात्रियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
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रपट का आलेख - चैतन्य चंदन
रपट लेखक का ईमेल - luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com












 





 


Monday 27 April 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद्आ की और से भासी लघुकथा विचार गोष्ठी 24.4.2020 को संपन्न

लघुकथा वह छोटा कैप्सूल है जो भयावह सामाजिक रोगों से हमें बचा सकता है 

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जैसे ग़ज़ल के ढाँचे पर ढाल दिया गया कोई पद्य ग़ज़ल नहीं हो सकता उसी तरह से यद्यपि लघुकथा, लघु भी है और 'कथा' जैसी भी लेकिन हर लघु कथा, लघुकथा नहीं होती। इसकी अपनी अर्हताएं है जिसे विद्वानों ने अपने अपने ढंग से परिभाषित किया है। कुल मिलाकर यह समझिये कि जब कोई पात्र और घटनाओं से रचित अत्यंत छोटा कथानक आपके अंतर्मन को झकझोर दे और आप सोचने को बाध्य हो जाएं तो वह लघुकथा हो सकती है। उपदेश, सीख, चुटकुला तो भूलकर भी लघुकथा नहीं कहे जा सकते।

जब आप आगे इस विचार गोष्ठी को पढेंगे तो पता चलेगा कि १. लघुकथा गंभीर कर्म है। सूक्ष्मता, प्रखरता इसके प्राणतत्व हैं, २.  लघुकथा वाचन का ऑनलाइन मंच रंगमंच का अनुभव देता है जिसमें रिटेक संभव नहीं।
संयोजक सिद्धेश्वर का प्रयास इसलिए सराहनीय रहा क्योंकि इन्होने रचनाकारों को नहीं बल्कि रचनाओं को महत्व दिया।

लॉकडाउन न सिर्फ पारिवारिक रिश्तों को मजबूत करने का सुनहला अवसर है बल्कि अपनी साहित्यिक समझ को मांजने का भी। जाने माने कवि, लघुकथाकार और राष्ट्रीय स्तर के रेखाचित्रकार सिद्धेश्वर ने 24.4.2020 को  "इंटरनेट के मंच पर लघुकथा की प्रासंगिकता विषय" * पर "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के फेसबुक पेज पर लाइव प्रसारण का आयोजन किया।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ लघुकथाकार डां  कमल चोपड़ा नई दिल्ली

"इस संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे  भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि" इंटरनेट लघुकथा गोष्ठी के आयोजन  का एक सशक्त माध्यम है। और देश दुनिया के रचनाकारों से जुड़ाव का एक बेहतरीन मंच है। लघुकथा के बीज तत्व, पंचतंत्र वाचिक परंपरा से निकलकर आज पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। इंटरनेट के माध्यम से लघुकथा देश-विदेश में  अधिक  संप्रेषित हो सकेगी। इसमें दो मत नहीं। "

संगोष्ठी की प्रस्तुति दे रहे कथाकार  सिद्धेश्वर ने कहा कि-" हमने इंटरनेट के माध्यम से साहित्य को  जोड़ने का एक सशक्त माध्यम दिया है। देश-विदेश में बैठे लघुकथाकारों से जोड़ने का सबसे सशक्त और सफल माध्यम साबित हुआ है ऑनलाइन लघुकथा की प्रस्तुति । इसका श्रेय भी पटना यानि बिहार को जाता है।"

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कथाकार और पत्रकार अवधेश प्रीत ने इंटरनेट पर लघुकथा की प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि लघुकथा का दायित्व और बढ़ गया है। लघुकथा गंभीर कर्म है। सूक्ष्मता, प्रखरता इसके प्राणतत्व है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के जरिए ऑनलाइन लघुकथाओं की प्रस्तुति सार्थक कहा जा सकता है, जिसके लिए यह संस्था बधाई के पात्र हैं। लेकिन आवश्यकता यह भी है कि ऐसे आयोजन सिर्फ लोंकडाउन में नहीं बल्कि हर महीने होना चाहिए। ताकि देश विदेश के लोग भी लघुकथा से जुड़ सकें। आन लाइन लघुकथा विचार गोष्ठी नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करती है।"

इसके अतिरिक्त देश भर से, आन लाइन जुड़ने वाले साहित्यकारों में प्रमुख हैं - सर्वश्री कविकेश निझावन (हरियाणा), मधुरेश नारायण, नीतू सुदीप्ता नित्या (भोजपुर), कीर्ति अवस्थी (लखनऊ), अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, पूनम श्रेयसी, मणिबेन द्विवेदी (वाराणसी), मीना कुमारी परिहार, अनिता राकेश, संजय कुमार आदि।

आपके लिए कुछ चुने हुए रचनाकारों के विचारों का सारांश यहाँ प्रस्तुत है-

 डॉ. ध्रुव कुमार कुमार ने लिखा है कि - "
वर्तमान परिवेश में जब पूरी दुनिया कारोना कोविड - 19 से जुड़ रही है, लड़ रही है और इससे बचने की कोशिश कर रही है। अधिसंख्य आबादी अपने-अपने घरों में रहने को विवश है। यह इस समय की वैश्विक मांग है, इससे हम इंकार नहीं कर सकते ।रचनाकार, विशेषकर लघुकथा से जुड़े लोग जो नित्य सृजन कर साहित्य के सर्वाधिक जनप्रिय विधा को समृद्ध कर रहे हैं, उन्हें भी और लोगों की तरह घर में रहने को बाध्य होना पड़ रहा है। अब सवाल है कि वह क्या करें? जो लघुकथाएं लिख रहे हैं, वह अपनी रचनाएं किसे सुनाएं ? कैसे सुनाएं?
**इस लाक डाउन में ?ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए ऑनलाइन लघुकथा पाठ का आयोजन बहुत ही सराहनीय कदम प्रतीत होता है। इससे न सिर्फ एक शहर बल्कि दूसरे शहरों और दूसरे देशों में बसे अपने प्रिय लघुकथाकारों भी हमें सुनने का अवसर मिल सकता है । हां, इसके स्वरूप को लेकर और भी प्रयोग की जरूरत है। जो तकनीक के साधन उपलब्ध हैं उनसे और भी मदद लेकर इसकी प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण की चेष्टा होनी चाहिए । इससे भविष्य के मार्ग प्रशस्त होंगे । अभी तक जो लघुकथा पाठ ऑनलाइन हुए हैं उनमें सुधार कर इसे जीवंत बनाया जा सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की तरह 8 -10 लोग जुड़कर विमर्श कर सकते हैं। इसे दोतरफा बनाया जा सकता है। अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो यह और भी प्रभावकारी हो सकता है ।

डॉ, कीर्ति अवस्थी (लखनऊ) ने लिखा है कि - "ऑनलाइन लघुकथा की प्रासंगिकता लघु कथा गद्य की वह विधा है जो अपने लघु आकार के कारण ही चर्चित होती है। किंतु लघु आकार का अर्थ यह नहीं है कि किसी घटना विशेष को बिना प्रभावी निष्कर्ष के ही प्रस्तुत कर दिया जाए। जिस प्रकार एक छोटा कैप्सूल रोगी को भयावह रोग से बचा लेता है, उसी प्रकार लघुकथा पाठक एवं लेखक दोनों को ही साहित्य के रस से अभिसिंचित करने की क्षमता रखती है। आज हर तीसरा व्यक्ति लेखक बना फिरता है, यह सही है कि विचारों की अभिव्यक्ति व्यक्ति का अधिकार है किंतु इन विचारों का प्रकटीकरण अत्यंत परिष्कृत रूप में होना चाहिए। इसके लिए ऑनलाइन कार्यशालाएं बहुत ही अधिक सहायक हो सकती हैं विशेष रूप से नए लेखकों के लिए। लघुकथा की विधा का प्रारंभ 1950 के आसपास से माना जाता है। अपनी यात्रा तय करते-करते लघुकथा 2020 तक आ गई।
**जहां तक ऑनलाइन लघुकथा की प्रासंगिकता का प्रश्न है तो जिस प्रकार युग बीते-आदिकाल, मध्यकाल के पश्चात आधुनिक काल ने भी एक निश्चित समय पर अपनी दस्तक दे दी। ठीक इसी प्रकार "परिवर्तन प्रकृति का नियम है" को प्रचारित एवं प्रसारित करते हुए लघुकथा भी अब आधुनिक परिधान से सुसज्जित होकर हमारे सम्मुख दस्तक दे रही है। कभी ऐसा था कि परिवर्तन होने में भी समय लगता था क्योंकि संचार के साधन उपलब्ध तो थे किंतु सर्वसुलभ नहीं। आज मोबाइल ने एक व्यक्ति को उसे सार्वभौमिक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया जहां वह अपने विचार सुगमता और शीघ्रता के साथ लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचाए सकतें हैं। ऐसे में साहित्य की विधाएं आसानी से प्रचारित-प्रसारित की जा सकती हैं। किंतु लंबी कथाएं, कविताएं या उपन्यास एक समय के बाद श्रोताओं को बांधे रखने में संभवतः सफल न हो क्योंकि लंबे साहित्य में हर शब्द एवं भाव श्रोता के मन को लुभाने वाला हो यह आवश्यक नहीं है।
 **मेरे विचार से वर्तमान समय में काव्य में हाइकु  एक अत्यंत प्रचलित विधा बन रही है। इसका कारण यह है कि 5 या 7 वर्णों में एक गहन विचार को प्रस्तुत किया जाता है। जबकि गद्य में यही स्थान लघुकथा को प्राप्त है। उदाहरण के तौर पर मैं अपनी ही एक हाइकु  और लघु कथा को प्रस्तुत कर रही हूं, जैसे कि- "सम्मान का शॉल खरीदा मैंने अपने लिए" इन 7 वर्णों में आजकल के समय में सम्मान देने एवं  लेने पर कटीला व्यंग किया गया है।
अब इसी भाव पर आधारित जरा लघुकथा देखिए-
शर्मा जी ने पत्नी को आवाज देकर कहा, 'मुंह मीठा कराओ भगत जी आए हैं।' कुछ देर बाद जब पत्नी घी में तर मूंग का हलवा लेकर आई। भगत जी बोले, 'बधाई हो भाभी जी, इस साल  के सुंदरतम हस्ताक्षर सम्मान के लिए शर्मा जी को चुना गया है।'
 इतना सुनकर वह भी पति के लिए मुस्कुरा दी क्योंकि सम्मान की कीमत का चेक उन्होंने ही अपने हाथों से काटा था।
आप देख सकते हैं कि व्यस्ततम् समय में भी आप गद्य व पद्य का पान श्रोताओं एवं पाठकों को करवा सकते हैं। और ऑनलाइन होने के कारण  लोगों की अधिकाधिक संख्या तक इसे पहुंचाया जा सकता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में ऑनलाइन लघुकथा की प्रासंगिकता को किसी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता है।

डां ऋचा वर्मा ने विस्तार से लिखा है कि-"
आज के साहित्य की दुनिया के सबसे चर्चित दो शब्द.. 'लघुकथा' और 'इंटरनेट' । यह बात सर्वविदित है कि तकनीक के आगमन के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों की रुचि पुस्तकों या फिर प्रिंट मीडिया से हटकर पहले  टीवी उसके बाद कंप्यूटर और अब तो स्मार्ट फोन पर आकर ठहर गई है। आज के आपाधापी के युग में, जब लोगों के पास समय की बहुत कमी है, लघुकथा विधा अपनी तीव्र मारक क्षमता  और कम शब्दों में  भरपूर मनोरंजन के गुणों के साथ बहुत ही सहज रूप से उनकी जिंदगियों में प्रवेश कर गई है।
**स्मार्टफ़ोन अपने साथ ईयर फोन की सुविधा लाया है जिसके कारण श्रव्य माध्यम की लोकप्रियता बढ़ गई है। कुल मिलाकर ऐसे समय में इंटरनेट पर लघुकथा वाचन की प्रासंगिकता से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। हमारे देश में लघुकथा वाचन की इतिहास की जड़ें पंचतंत्र की कहानियों से ही आरंभ होतीं हैं, जो अपने छोटे आकार और महत्वपूर्ण संदेशों के कारण लघुकथा विधा की जन्मदात्रि मानी जाती है। कान में इयरफ़ोन लगाये जब कोई व्यक्ति एक अच्छी लघुकथा के साथ कल्पना की दुनिया में विचरण करता है तो साहित्य के प्रति उसकी रूचि सहज ही जगती है। लीक से हटकर यह अभिनव प्रयोग हमारी युवा पीढ़ी को भी आकर्षित करती हुई हमारी भाषा का प्रचार-प्रसार का माध्यम बनती है।
**यह तो हुआ पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं का पक्ष, लघुकथा लेखकों को भी यह मंच, रंगमंच का अनुभव देता है, जिसमें श्रोताओं से सीधा जुड़ाव होता है, रिटेक की कोई गुंजाइश नहीं।
**कवि सिद्धेश्वर जी ने बहुत ही सीमित संसाधनों में परंतु अपने अथक मेहनत और लगन के सहारे इंटरनेट पर लघुकथा वाचन की नई परंपरा की सुंदर शुरूआत की है,जो बहुत कम समय में प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में सुर्खियां बटोरने में सफल भी हुईं हैं। इनके कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता है कि इन्होंने रचनाकारों को नहीं बल्कि रचनाओं को महत्व दिया है। नवोदित से लेकर स्थापित लघुकथाकारों की रचनाओं का वाचन उस पर आदरणीया चित्रा मुद्गल और आदरणीय भगवती प्रसाद द्विवेदी सरीखे लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों की बेबाक टिप्पणियां, सुझाव और समीक्षा ने इस कार्यक्रम को एक बहुत ही उच्चस्तरीय कार्यक्रम बना दिया। अपने इन्हीं सब गुणों के कारण इस कार्यक्रम ने नई प्रतिभाओं को भी अच्छे से अच्छा लिखने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया है। आदरणीय श्री सिद्धेश्वर जी एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति हैं, जिसकी छाप इनके द्वारा संचालित कार्यक्रम में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। जहां वह स्वलिखित लघुकथा 'आत्महत्या' के नाट्य रूपांतरण में एकल अभिनय कर लोगों को प्रभावित करते हैं, वहीं लघुकथा वाचन के दौरान अपने रेखाचित्रों के माध्यम से पात्रों और घटनाओं को जीवंत करने का प्रयास करतें हैं। सुंदर सी पृष्ठभूमि और मधुर संगीत लहरियों से सजा इनका आयोजन न केवल सुनने योग्य बल्कि देखने योग्य भी होता है। फिलहाल तो यह कार्यक्रम अपने शैशव काल में है, धीरे-धीरे यह और निखरेगा... निकट भविष्य में बहुत से साहित्यकार एवं साहित्यप्रेमी इससे जुड़ेंगे और इसकी अनुगूंज दुनिया के हर कोने तक पहुंचेगी वहां तक भी जहां लोग हिन्दी केवल बोलते समझते हों भले ही लिखना पढ़ना नहीं जानते हों। 

मणि बेन द्विवेदी( वाराणसी) उत्तर प्रदेश से
लघुकथा जिसने छोटी छोटी घटनाएं अपनी वैचारिक प्रक्रिया के द्वारा लेखक अपनी संवेदना के माध्यम से हमारे आप पास घटित परिस्थितियों का उल्लेख कम शब्दों में प्रभावकारी ढंग से अपनी।सीधी सी बात पाठकों तक पहुंचाता है।यूं कहें तो लंबी कहानियों का सार होता है लघुकथा।शिल्प, काल, और कथानक ये जितना ही चुस्त और का हुए होगा। कथा में उतनी ही रोचकता आएगी। समसामयिक जीवन की विसंगतियों का उल्लेख जो पाठक के मन को झंकझोर कर रख देता है ,सोचने पर विवश कर देता है। अंत में कहना चाहूंगी कि लघुकथा आज के कीमती समयावधि में पाठकों कोसमजिक,राजनैतिक दैनिखिवन की अनेक विसंगतियों से रूबरू कराती है जिसमें सभी रंगों मनोभावों का समावेश होता है। अतः तकनीक शैली और लघुता की वजह से समाज में लघुकथा कि अपनी सार्थक पहचान बन चुकी है।

डॉ मीना कुमारी' परिहार' पटना ने लिखा है कि - "कहानी सुनाना, हज़ारों वर्षों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। क‌ई कहानियां तो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती रही है। लघुकथा, "गागर में सागर" भर देनेवाली विधा है।लघु एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है,न कथा को ही।लघुकथा गद्य की एक ऐसी विधा है जो आकार में 'लघु है और उसमें "कथा" तत्व विद्यमान है। अर्थात लघुता ही इसकी मुख्य पहचान है। किसी बहुत बड़े घटना क्रम में से किसी विशेष क्षण को चुनकर उसे हाईलाइट करने का नाम ही लघुकथा है। यों कहें तो लघुकथा का मतलब छोटी कहानी ही नहीं है, वह छोटी कहानी लघुकथा होती है जिसमें लघु और कथा के बीच में एक खाली स्थान होता है।
**हिन्दी गद्य साहित्य की यह सबसे तीक्ष्ण कलम है जिसमें कम-से कम शब्दों में एक गहरी बात कहना होता है जिसको पढ़ते ही झटके से पाठक मन चिंतन के लिए उद्वेलित हो जायें। लघुकथा  लेखन एक साधन है।
लघुकथा लेखन में निम्नलिखित  विन्दुओं पर ध्यान  देना बहुत जरूरी है।
1-कथानक- प्लाट, कथ्य को कहने के लिए निर्मित पृष्ठभूमि
2-शिल्प
3-लेखन शैली
4-लेखन का सामाजिक महत्व
5-लघुकथा केसरी विधा
6-लघुकथा काल खंड दोष से मुक्त हो
7-लघुकथा के आकार-प्रकार पर पैनी नजर
लघुकथा के बारे में अक्सर कहा जाता है कि  यह एक क्षण का चित्र प्रस्तुत करती है।  परन्तु मेरा मानना है कि लघुकथा केवल किसी। क्षण की उपलब्धि मात्र ही नहीं है, अपितु यह तो दीर्घ साधना की उपलब्धि है।
**सोशल मीडिया, इंटरनेट के द्वारा लघुकथा को उच्च स्थान अब मिलने लगा है।सोशल मीडिया के कारण "लघुकथा"आज की अत्यंत लोकप्रिय विधा बन गयी है, इसमें नये-नये साहित्यकारों के लिए अपार संभावनाएं हैं और ज्यादा से ज्यादा जुड़ रहे हैं। सोशल मीडिया ने लघुकथा को बड़ा बना दिया है।
**लघुकथा का बाजार बढ़ रहा है। बहुत से लोग हैं जो सोशल मीडिया पर खूब लिख रहे हैं और शेयर भी कर रहे हैं, एक खास बात यह है कि लघुकथा के लिए वरदान है कि वह कम समय में पढ़ ली जाती है,आज के समय में किसी के पास समय नहीं है। सोशल मीडिया ने लघुकथा को बना दिया बड़ा ।
अभी तक तो  आंनलाइन काव्य पाठ  हर मंच पर  पढ़ी जा रही है। लेकिन लघुकथा की आंनलाइन पाठ की शुरुआत "अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका-"के मुख्य संपादक सिद्धेश्वर  जी  के  सौजन्य से सम्पन्न हुआ। इन्होंनें   बिहार में  लघुकथा  को आगे बढ़ाने में एक अलौकिक अलग जगाया है साहित्यकारों के दिल में लघुकथा के लिए इस जज्बे की जय हो!

 जयन्त -ने लिखा है कि -"
लधु कथाओं ने हिन्दी साहित्य में अपनी एक अलग ही पहचान स्थापित की है। आरम्भ से ही विद्वान कहानी के सिकुड़ते धरातल पर अपना आक्रोश प्रकट करते रहे हैं। उनका यह मानना रहा है कि प्रत्येक कहानी का अपना एक कथानक एवं कथ्य होने के साथ-साथ उसका एक ताना-बाना होता है तभी कहानी कला के दृष्टिकोण से वह कहानी पूर्ण मानी जाती है। लघु कथाओं को भी आरम्भ में इस प्रकार की आलोचना झेलनी पड़ी और उन्हें एक भोंडा प्रयोग तक कहा गया। आज जबकि कविता को छंद-विधान से मुक्त कर दिया गया है और मुक्त छंदों वाली कविता ही प्रचलन में ज़्यादा है तो कहानी के साथ भेदभाव क्यों आज तो लघु कथाओं और सामान्य कहानियों के बीच की कहानियों का प्रचलन हिन्दी साहित्य में देखने को मिल रहा है। ये कहानियाँ ज़्यादा लम्बी नहीं हैं तो इतनी छोटी भी नहीं कि इन्हें लघु कथा कि संज्ञा दी जा सके। मेरे विचार से कोई भी कहानी आपने-आप में पूर्ण काल्पनिक नहीं होती। कहानी की पृष्ठभूमि हमारे आसपास के परिवेश से तैयार होती है। गुजरते हुए वे क्षण जो हमारी चेतना और विचारों को झकझोरते हैं अथवा हमें कुछ सोचने को विवश करते हैं यहीं से कहानी शुरु होती है और कथाकार की कल्पना के पंख लगा कर उड़ान भरती है। छोटी बड़ी कथा या कहानी थोड़ी देर के लिए ही सही यदि पढ़ने वाले को इस भागती फिर रही दुनिया में पल भर के लिए सोचने के लिए बाध्य कर देती है या फिर उसे आड़ोलित कर जाती है तो उसे अपूर्ण या एक प्रयोग भर कदापि नहीं कहा जा सकता।
**लघु कथा वर्तमान भाग-दौड़ की उपज है। वर्तमान में किसी के पास समय नहीं है और तकनीकी विकास के कारण अनेक नई व्यस्तताएँ सामने आईं हैं। आज कोई पाठक यदि किसी पत्रिका को पढ़ने के लिए उठाता है तो सबसे पहले उसे अपने समय के आभाव का ही ध्यान रहता है और वह उस पत्रिका में सर्वप्रथम अपनी पसन्द के स्तंभ देखता है। ऐसा पाठक जो साहित्य से कुछ ज़्यादा ही जुड़ाव रखता है वह या तो लघु कथा को देखता है या फिर कविताओं पर उसकी नज़र जाती है। इसके बाद ही उसकी नज़र कहानियों पर जाती है। स्पष्टतः इन्हें वह कम समय में पढ़ सकता है और इससे उसकी मानसिक भूख शांत होने के साथ-साथ पढ़ने का सुख एवं संतुष्टि भी मिलती है।
**करोना संकट के ठीक पहले की बात की जाए तो एक ही बात सामने आती है कि दूरदर्शन, कम्प्यूटर और इन्टरनेट के प्रचलन के कारण वर्तमान में पठनीयता एवं भावपूर्ण वाचन की प्रवृति में तेज़ी से गिरावट आई है। आज का युवा वर्ग अंग्रेजी साहित्य को पढ़ना पसन्द करता है। इससे वह अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूर होता जा रहा है। जब लोग पढ़ेंगे नहीं तो जुड़ेंगे नहीं तो न तो उनके विचार बनेगे न ही उनका नव दर्शन विकसित हो पाएगा। यही कारण है कि आज समाज में वैचारिक क्षरण एवं चिन्तन का ह्रास हुआ है और नैतिकता गिरती जा रही है तथा समाज व्याकुल है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि कानून बना देने भर से हमारा कर्तब्य पूरा नहीं हो जाता। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश और समाज में बढ़ती राक्षसी प्रवृतियों के मूल कारण की ओर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है। ध्यान रहे साहित्य समाज का निर्माता है और नई पीढ़ी में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने उन्हें कल्पना से यथार्थ की ओर मोड़ने स्वयं एवं समाज के नव दर्शन के निर्माण के लिए लघु कथा की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण है। अभी के इस संकट ने लोगों को एक-दूसरे से दूर कर दिया है। एकमात्र साधन के रूप में आनलाइन सोशल मिडीया ही दिख रहा है जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े हैं।
**मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और एक-दूसरे न मिल पाने की छटपटाहट से वह अवसादग्रसित हो सकता है। इसे ही डाक्टर अंग्रेजी में डिप्रेशन का नाम देते हैं। वर्तमान में पाठक ई-पाठ्य सामग्री ही पढ़ पा रहे हैं। यही वह समय है कि आनलाइन को माघ्यम बना कर पाठकों तक कुछ श्रब्य सामग्री भी पहुँचायी जाए। लघु कथाओं का आनलाइन पाठ इस कार्य को बड़े ही सटीक ढंग से कर सकेगा। 
**लघु कथाएँ अपने पैनेपन के कारण पाठकों पर गहरी छाप छोड़ती हैं और उन्हें सोचने को विवश करती हैं और यही तो साहित्य का उद्देश्य है। संक्षेप में लघु कथाओं के लिए इतना ही कहना उपयुक्त होगा कि देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर। संकट की इस घड़ी में सिद्धेश्वर जी के द्वारा सृजनात्मकता को एक नए आयाम देने का यह प्रयास निश्चय ही प्रशंसनीय है।

संजय कुमार( बेगुसराय) के अनुसार - 
"'इंटरनेट के मंच पर ऑनलाइन लघुकथा पाठ की प्रासंगिकता ' -के संदर्भ में सर्वप्रथम निवेदित है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे आयोजन ही प्रासंगिक हैं | समस्त विश्व जब अनायास आगत आपदा से आक्रांत है, चारदीवारी में कैद आकुल -व्याकुल रचनाधर्मिता उन्मुक्त अभिव्यक्ति के लिये व्यग्र हो रही है तब उनके लिये स्वतंत्रता का मार्ग हैं ऑनलाइन कार्यक्रम ; गृह कैद की  अनुभूति से मानसिक उद्वेलन का शिकार हो रहे इंसान के लिए यह  आयोजन अमृत बूंद हैं | अतिशयोक्ति नहीं होगी कि  आज लघुकथा विधा जब विभिन्न माध्यमों से अपने आप को अत्यधिक सुदृढ़ कर चुकी है तो दूरस्थ कार्यक्रमों की सफलता भी संदेह से परे ही है | स्थिरता में  गतिशीलता के ,आलस्य में  क्रियाशीलता के अनुपम स्रोत हैं -ऑन लाइन लघुकथा पाठ के आयोजन | यहाँ  प्रदत्त विषय में तीन बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं |पहला -इंटरनेट का मंच , दूसरा - लघुकथा और तीसरा - उसके पाठ की प्रासंगिकता |अब अगर तीनों को मिलाया जाए तो एक बहुत बड़ी संभावना दिखती है | किसी लघुकथा  का सृजन हो जाना ही काफी नहीं होता ,बल्कि  उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है उसका पाठ | पुन: ,लघुकथा पाठ दो प्रकार से हो सकते  हैं  | एक - स्वयं लघुकथाकार द्वाराऔर दूसरा अन्य द्वारा | निश्चित ही  रचनाकार अपनी रचना का पाठ जब स्वयं करता है तो मानो वह अपने रक्त से पैदा किए हुए किसी बच्चे को सहला रहा होता है | संभव है वह अपनी रचना में मोहवश  दोषों को , कमियों को अनजाने ही अनदेखा कर जाता हो |किंतु मंच पर पाठ द्वारा जब उसी रचना को सार्वजनिक कर दिया जाता है तो  प्रत्यक्ष मंच की अपेक्षा करता   है। 

हेमन्त दास 'हिम' -
लघुकथा, छोटी कहानी नहीं है बल्कि एक स्वतंत्र विधा है। अपनी सूक्ष्म दृष्टि से मारक प्रहार करना इसका अनिवार्य गुण है। मेरे विचार से जब तक पात्रों के द्वारा रचा गया कोई छोटा कथानक आपके अंतर्मन को उद्वेलित या हतप्रभ न कर दे तब तक वह कुछ और हो सकता है जैसे कि- चुटकुला या उपदेश या सीख पर लघुकथा नहीं। आज के समय में बहुत बड़ी संख्या में रचनाकार सीख देनेवाली कुछ पंक्तियाँ लिखकर उसे लघुकथा समझ लेते हैं वह ऐसे ही हुआ जैसे कि कोई रचनाकार,  ग़ज़ल के फॉर्मेट पर दिनचर्या की या घिसी पीटी बातें लिखकर उसे ग़ज़ल कह दे।
कोई पाठक जब तक किसी पढ़ी या सुनी गई रचना से अपना व्यक्तिगत तादात्म्य नहीं स्थापित कर लेता बल्कि यूं कहें कि जब तक वह किसी पात्र से खुद को या अपने आसपास के किसी नजदीकी व्यक्ति को उससे जोड़ नहीं पाता तब तक उस रचना का ख़ास प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। आदमी पर उपदेशों का उतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना अनुभूतियों का पड़ता है और इसलिए लघुकथाएँ झकझोड़नेवाली अनुभूतियाँ (जो मुख्यतः करुणा या अन्याय के प्रति विद्रोह की होती है) को पाठकों के अंतर्मन तक संचरित करने में लगी रहे यही सम्पूर्ण समाज के लिए वांछित है।
**ऑनलाइन लघुकथा पाठ में दो लाभ हैं - एक तो यह देश ही नहीं बल्कि विश्व के कोने कोने से लोगों को एक साथ एक ही समय में जोड़कर संवाद करावाता है, दूसरा यहाँ - फालतू के वार्तालाप की गुंजाइश बहुत कम होती है। अतः कुल मिलाकर विचार गोष्ठी की सघनता और गुणवत्ता वास्तविक गोष्ठियों से काफी अधिक हो सकती है यदि तकनीकी गड़बड़ी की समस्या न आए।
**अपनी पहल पर लघुकथा की ऑनलाइन गोष्ठी आयोजित करने का सिद्धेश्वर जी का प्रयास अत्यंत सराहनीय है। पटना की साहित्यिक गतिविधियों को लिपिबद्ध करने का जो उनमें उल्लेखनीय जज्बा है वह बहुस्तरीय है। वे लगभग हर प्रमुख घटनाओं की अभूतपूर्व रूप से विस्तृत रपट लिखते हैं, वीडियो भी बनाते हैं और ऑनलाइन गोष्ठियां भी आयोजित करते हैं, ऑफ लाइन गोष्ठियां तो वर्षों से आयोजित कर ही रहे हैं। उनका लघुकथा पर ऑनलाइन गोष्ठी आयोजित करने विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि लोंकडाउन का बेहतर इस्तेमाल करते हुए इस प्रकार की गोष्ठियों की महती आवश्यकता है ताकि लोगों के दिमाग पर से पर्दा उठ सके।

मधुरेश नारायण:  
समसामयिक और प्रासंगिक विषय है।लाँक डाउन के इस अभूतपूर्व समय में जब कि सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।आपस में मिलना-जुलना बंद है।आन-लाइन पाठ चाहे,लघुकथा का हो,या कविता.गजल का हो प्रासंगिक हो जाता है।रही बात लघुकथा की तो आज पूरे विश्व में इस ने अपना स्थान बना लिया है।पद के क्षेत्र में जैसे हाइकु,ग़ज़ल,गीत ने।इसका एकमात्र कारण आज की पीढ़ी के पास समय का अभाव है ।मोटी-मोटी पुस्तकों का अध्ययन करने की चाहत होते हुए भी वह मजबूर हो जाता है।इस लिये 20-20 क्रिकेट मैच की तरह कम समय में  नतीजा जानने की उत्सुकता या चाहत होती है।यही कारण है कि इसके प्रति क्रेज़ बढ़ता जा रहा है। मेरे कहने का  अभिप्राय यह नही की महा ग्रन्थ या महा काव्य के पाठक या श्रोता नहीं हैं।हर विधा हर विषय वस्तु के अलग-अलग पाठक होते हैं,देखने-सुनने वाले होते हैं।
**आज आन लाइन के माध्यम से हमारा दूर-दराज़ के लेखक-कवि लोगों से सम्पर्क होता है,उन को हम जानने लगते हैं।वो हमें जानने लगते हैं।उनकी लेखन शक्ति से परिचित हो पाते हैं।
**इंटर नेट ने पूरी दुनिया को एक परिवार का रूप दे दिया है।दरअसल लघु कथा एक ऐसा माध्यम है जिसकी ख़ासियत होती है कम शब्दों में पूरी बात करना।लघुकथा सार है गद्य का।इसलिये इंटरनेट के आनलाइन मंच पर इसकी प्रासंगिकता बढ़ जाती है।
                  
अशोक अंजुम (अलीगढ़) से लिखते हैं कि - "
'इंटरनेट के मंच पर "ऑनलाइन लघु कथा पाठ की प्रासंगिकता" विषय पर आपने जो विचार गोष्ठी रखी है, यह निश्चित ही बहुत नया, अनछुआ विषय है।  इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जिसमें संचार के सभी माध्यमों का समावेश है। इंटरनेट के माध्यम से आप बहुत कम समय और कम खर्च में अपनी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचा सकते हैं क्योंकि इसकी पहुँच संसार के कोने कोने तक है। तो ऐसे में अगर लघुकथा पाठ के लिए इस माध्यम का प्रयोग सलीके से पूरी रणनीति बनाकर किया जाए तो हम इस विधा को विश्व पटल पर लोकप्रिय बना सकते हैं। अभी इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। सिद्धेश्वर जी ने कमान संभाली है और इस विचार गोष्ठी के पूर्व वे इंटरनेट पर लघुकथा पाठ का एक कार्यक्रम आयोजित भी कर चुके हैं। उस कार्यक्रम की लोकप्रियता के चलते यह कहना निश्चित ही उचित होगा कि अगर लघु कथा पाठ के लिए इंटरनेट के माध्यम को अपनाया जाता है तो न सिर्फ यह नए लेखकों के लिए एक अच्छे प्लेटफार्म का काम करेगा बल्कि अधिक से अधिक लोगों तक अपनी पहुँच बना कर लघुकथा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सिद्धेश्वर जी ने इस कार्य को अंजाम दिया है। अन्य लघुकथा प्रेमियों को भी इस दिशा में क़दम आगे बढ़ाना चाहिए ताकि गागर में सागर भरने वाली यह विधा अधिक से अधिक प्रचारित और प्रसारित हो सके। 

डा बी एल प्रवीण डुमरांव
सवाल लघुकथा का नहीं, साहित्य के अन्य विधाओं का भी है जिनका पाठ इंटरनेट के मंच पर किया जा सकता है। काव्य पाठ इसका ज्वलंत उदाहरण है। परंतु यहां प्रासंगिकतावश लघुकथा पर विचार किया जाना है जो एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उदित हुआ है। कहना न होगा कि न्यूनतम साधन,समय एवं लागत के हमारी साहित्यिक चेतना का प्रसार अधिक लोगों तक एक साथ होना अब संभव प्रतीत होने लगा है।
** विषयगत तथ्यों पर विचार करें तो हम पाते हैं कि एक लम्बे अरसे से हमारी जड़ें प्रिंट मीडिया से जुड़ी हुई रही हैं। किंतु आज इंटरनेट की वजह से इसकी सार्थकता प्रभावित हुई है। जब हम किसी विषय पर बोलते हैं तो भाव-भंगिमा के जरिए उसके कथ्य और दृश्य ज्यादा प्रभावकारी हो उठते हैं जो रोचकता के साथ-साथ मनुष्य के अवचेतन मन में भी अपनी पैठ बना लेते हैं। वही चीज यदि केवल मन में पढ़नी हो तो पाठक विशेष पर उसकी बोधगम्यता अलग-अलग तरीके से प्रकट होती है जो उनके मनोवैज्ञानिक कारणों को दर्शाता है।
**ऑनलाइन लघुकथा पाठ का इंटरनेट पर किया गया प्रदर्श तुलनात्मक दृष्टिकोण से हमें अधिक उत्साहित एवं प्रफुल्लित करता है। गोया, इसका अपना अलग ही रचना संसार हो।
इस प्रकार के आयोजनों की सार्थकता एवं उपयोगिता इनकी प्रस्तुति कला एवं सामंजस्य पर निर्भर करती है। आवश्यकता है इसके विस्तारीकरण की जिसका अपना सुदृढ़ नेटवर्क हो तथा इसकी तारतम्यता बरकरार रहे।
यद्यपि, लघुकथा लेखन में काफी मेहनत की आवश्यकता होती है। एक छोटी-सी घटना कभी कहानी नहीं बन सकती। किंतु उसका घटित होना यदि मुखर बन जाए तो उसे आबद्ध कर लेना ही लघुकथा है। अन्यथा, उसे रिपोर्ताज ही रहने दिया जाए तो बेहतर।
**आम तौर पर कथा लेखन में कलात्मक पक्ष गौण हो जाता है। हम उपदेश और ज्ञान देने में ज्यादा भरोसा करते हैं। इसी बूनावट पर हम अपनी लेखनी की सूई पिरोने लगते हैं। फलत: हम लघुकथा के साथ कभी न्याय नहीं कर पाते। कम ही लघुकथाएं होती हैं जिनसे हम प्रभावित भी होते हैं। अतः मंच इस दिशा में भी अपनी भूमिका निभाए तो सकारात्मक प्रयासों को एक सार्थक आयाम मिलेगा।
अस्तु, लघुकथा पाठ की प्रासंगिकता को   इंटरनेट के माध्यम से  एक नया पंख ग्रहित हुआ है, इस बात से गुरेज नहीं किया जा सकता। विशेष रूप से तब,जब श्रव्य और दृश्य को एक साथ जोड़ कर प्रस्तुत करने का एक निहायत ही अभिनव प्रयास किया जा रहा हो।इस कार्यक्रम के संयोजक सह प्रस्तावक सिद्धेश्वर जी धन्यवाद के पात्र हैं जिनकी कलात्मक सोच एवं कर्मठता की वजह से हम लघुकथा के इतिहास में पहली बार इस प्रकार का अद्भूत परिवर्तन देख पाए हैं।

अनीता राकेश- 
'इंटरनेट के मंच पर ऑनलाइन लघुकथा पाठ की प्रासंगिकता ' -के संदर्भ में सर्वप्रथम निवेदित है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे आयोजन ही प्रासंगिक हैं | समस्त विश्व जब अनायास आगत आपदा से आक्रांत है ,चारदीवारी में कैद आकुल -व्याकुल रचनाधर्मिता उन्मुक्त अभिव्यक्ति के लिये व्यग्र हो रही है तब उनके लिये स्वतंत्रता का मार्ग हैं ऑनलाइन कार्यक्रम ; गृह कैद की  अनुभूति से मानसिक उद्वेलन का शिकार हो रहे इंसान के लिए ये  आयोजन अमृत बूंद हैं | अतिशयोक्ति नहीं होगी कि  आज लघुकथा विधा जब विभिन्न माध्यमों से अपने आप को अत्यधिक सुदृढ़ कर चुकी है तो दूरस्थ कार्यक्रमों की सफलता भी संदेह से परे ही है | स्थिरता में  गतिशीलता के ,आलस्य में  क्रियाशीलता के अनुपम स्रोत हैं -ऑन लाइन लघुकथा पाठ के आयोजन | यहाँ  प्रदत्त विषय में तीन बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं |पहला -इंटरनेट का मंच , दूसरा - लघुकथा और तीसरा - उसके पाठ की प्रासंगिकता |अब अगर तीनों को मिलाया जाए तो एक बहुत बड़ी संभावना दिखती है | किसी लघुकथा  का सृजन हो जाना ही काफी नहीं होता ,बल्कि  उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है उसका पाठ | पुन: ,लघुकथा पाठ दो प्रकार से हो सकते  हैं  | एक - स्वयं लघुकथाकार द्वाराऔर दूसरा अन्य द्वारा | निश्चित ही  रचनाकार अपनी रचना का पाठ जब स्वयं करता है तो मानो वह अपने रक्त से पैदा किए हुए किसी बच्चे को सहला रहा होता है | संभव है वह अपनी रचना में मोहवश  दोषों को , कमियों को अनजाने ही अनदेखा कर जाता हो |किंतु मंच पर पाठ द्वारा जब उसी रचना को सार्वजनिक कर दिया जाता है तो  प्रत्यक्ष मंच की अपेक्षा इंटरनेट का मंच पाठकों के बड़े समूह को जोड़ता है और रचना को खुलकर देखने सुनने और समझने का अवसर देता है | सुधी पाठकों और आलोचकों के कर्ण कुहरों से गुजर  कर लघुकथा मानो परीक्षा की घड़ियों से गुजरती है |यह अग्निपरीक्षा भी हो सकती है और सामान्य परीक्षा भी |   ऑनलाइन  पाठ के क्रम में लघुकथाकार को एक विद्यार्थी एवं परीक्षार्थी की भांति स्वयं को स्थापित करना होता है |प्रतिफल को यदि  ईमानदारी से स्वीकार किया जाय तो निस्संदेह  ऐसे आयोजन समाज को और साहित्य को उत्कृष्ट रचना और महान रचनाकार प्रदान कर समृद्ध बनाने में सहायक होते हैं |वर्तमान परिदृश्य में अॉनलाइन लघुकथा पाठ के आयोजन  ही प्रासंगिक हैं | ये स्नेहपूर्ण शाबाशियों एवं थपकियों के बीच परिमार्जन का काम उस गुरू के समान करते है जिसकी बात क्रांतिकारी  कबीर करते हैं -
'' गुरु कुम्हार शिष कुंभ है ,
गढ़ि - गढ़ि काढ़े खोट |
भीतर हाथ सहार दे ,
बाहिर मारे चोट |''

कवि पत्रकार अमलेंदु ने कहा कि - इंटरनेट के माध्यम से  लघुकथा की व्यापकता  तो  बढ़ी ही है, सकारात्मक रुझान भी पैदा हुआ है । दूर दराज के लोगों को समेटने का  सक्षम माध्यम है  इंटरनेट।

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया कथाकार जयंत ने। 
........
प्रस्तुति :सिद्धेश्वर एवं हेमंत दास हिम
परिचय : श्री सिद्धेश्वर - अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /पटना/
मोबाइल नं:9234760365 (ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com)
श्री हेमन्त दास 'हिम' - सदस्य, संपादक मंडल, बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com)


















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Tuesday 21 April 2020

विन्यास साहित्य मंच द्वारा 19.4.2020 को आभासी कवि सम्मेलन सम्पन्न

एक जंगल हूं मैं  गमले में नहीं आऊंगा

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साहित्यिक संस्था "विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन में वरिष्ठ और युवा कवियों ने समां बांधा

नई दिल्ली। कोरोना संकट के इस घड़ी में कवि सम्मेलनों का आयोजन स्थगित रहने की वजह से कवियों-कवियत्रियों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर सीमित हो गया है। साथ ही एकदूसरे से मिलना-जुलना भी असंभव हो गया है। ऐसे में ऑनलाइन सम्मेलनों का आयोजन ही एकमात्र विकल्प रह गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन रविवार 19 अप्रैल 2020 को संध्या 6 बजे से किया गया। इस आयोजन में कुल 12 कवियों ने अपनी-अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया। यह कवि सम्मेलन इसलिए भी खास रहा, क्योंकि इसमें वरिष्ठ और युवा शायरों की बराबर की भागीदारी रही। यह ऑनलाइन कवि सम्मेलन स्काईप एप्प के माध्यम से सम्पन्न किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता खगड़िया से वरिष्ठ शायर कैलाश झा किंकर ने तथा संचालन वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने किया। कवि सम्मेलन में अन्य जाने-माने शायरों में मुंगेर से अनिरुद्ध सिन्हा, पटना से कवि घनश्याम, कवि सिद्धेश्वर,  मधुरेश नारायण, सुनील कुमार वहीं युवा शायरों में पटना से प्रणय प्रियंवद, डॉ. रामनाथ शोधार्थी, कलकत्ता से एकलव्य केसरी और दिल्ली से सैयद अज़हर हाशमी सबक़त और चैतन्य चंदन ने अपने क़लाम पेश किए।

पटना के मशहूर युवा ग़ज़लकार रामनाथ शोधार्थी ने अपनी ग़ज़ल से अपने तेवर कुछ इस तरह बयान किया:
अय ग़ज़ल मैं तेरे सांचे में नहीं आऊंगा
एक जंगल हूं मैं  गमले में नहीं आऊंगा
क़ैद कर लोगे जिसे कोई परिंदा मैं नहीं
आस्मां हूंं किसी पिंजरे में नहीं आऊंगा

पटना से वरिष्ठ शायर मधुरेश नारायण ने अपनी हसरत भरी निगाह को बार-बार उठाते हुए एक खूबसूरत गीत प्रस्तुत किया:
हसरत भरी निगाहें उठती है बार-बार
कब से कर रहा है दिल तेरा इंतजार।
**तारो को भी कहा है, सूरज को भी कहा है,
रौशन कर दे राहें,रहता वह जहाँ. है।
चंदा की आँखों से हरदम करता रहूँ दीदार....
**चलती है जो हवायें हो कर वहाँ से आये।
रहता है कोई अपना,उसकी खबर ले आये।
जीवन में जा कर भर दे,खुशियों की बहार....

दिल्ली से मुशायरे में शिरकत कर रहे युवा शायर सैयद अज़हर हाशमी सबक़त ने अपने किसी अजीम से नाराजगी कुछ इस तरह से जाहिर की -
अब रूबरू अपने मुझे पाओगे नहीं तुम
जब तक के मोहब्बत से बुलाओगे नहीं तुम
हां इसलिए भी तुमसे कभी रूठा नहीं हूं
मैं जानता हूं मुझको मनाओगे नहीं तुम

पटना से युवा पत्रकार एवं कवि प्रणय प्रियंवद ने असमय बारिश से किसानों को हो रहे नुकसान की चिंता कुछ इस प्रकार जाहिर की:
खेत  में  गेहूं  खड़े   हैं, क्यों भला बारिश हुई
सोच में हलधर पड़े हैं,  क्यों भला बारिश हुई।
क्यों अचानक आसमां से, इस क़दर ओले गिरे
आम सब कच्चे झड़े हैं, क्यों भला बारिश हुई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि एवं कौशिकी पत्रिका के संपादक कैलाश झा किंकर ने दो ग़ज़लें और माहिया सुनाया जिसे अन्य शायरों की भरपूर वाहवाही मिली। उन्होंने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से देश की साम्प्रदायिकता पर चोट करते हुए कहा:
सोचिए सोजे वतन की बात है
हिन्द के उजड़े चमन की बात है
कौन हिन्दू कौन मुस्लिम छोड़िए
प्रीत के रीते चलन की बात है
मन्दिरों के देव! मस्जिद के ख़ुदा !
देश के बदले पवन की बात है
राष्ट्र के उत्थान में मशगूल हों
फालतू क्यों विष-वमन की बात है

पटना से वरिष्ठ शायर कवि घनश्याम ने दोहों के माध्यम से कोरोना को ललकारा:
कोरोना से क्यों भला, दुनिया  है  भयभीत ।
बस किंचित परहेज से, होगी उसपर जीत ।।
कोरोना  तेरी  यहां,  नहीं  गलेगी  दाल ।
तू अपने ही  देश में, जाकर  डेरा  डाल।।
रक्तबीज की है अगर,   कोरोना  संतान ।
तो निश्चय ही चंडिका, लेगी उसकी जान।।
जागरूक हो जाएं गर, दुनिया के सब लोग।
मिट जाएगा खुद-ब-खुद, कोरोना का रोग।।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे पटना के वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने अपनी नज़्म से बज़्म में चार चांद लगा दिया:
आस्थाओं का मुसाफिर खो गया
रास्तों की बत्तियों को क्या हुआ
भावनाओं के समुंदर से परे
अक्षरों के हुस्न ने जादू किया
दिल के दरवाजे की सांकल खुल गई
दस्तकों के साथ एक चेहरा बढ़ा
आदिवासी औरतों के गांव में
थोड़े दिन ही ख्वाब का मौसम रुका
एक शिला थी एक था पत्थर 'कंवल'
दोनों के संघर्ष से चूल्हा जला

कलकत्ता से बज़्म में शिरकत कर रहे युवा कवि एकलव्य केसरी अपने हृदय में प्रेम का दीपक जलाकर बैठे दिखे:
हृदय में प्रेम का दीपक जलाकर कब से बैठा हूँ
तेरे खत को मैं सीने से लगाकर कब से बैठा हूँ
मेरा दिल याद करता है हमेशा तुझको जानेमन
तेरी तस्वीर को दिल में छुपाकर कब से बैठा हूँ

दिल्ली से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे और विन्यास साहित्य मंच के संस्थापक चैतन्य चंदन ने अपने दिल मे इश्क़ के जंजाल को महफूज़ रखने की बात अपनी ग़ज़ल के माध्यम से कुछ इस तरह रखी:
तुम्हारे दिल में मैंने जब से लंगर डाल रक्खा है
तभी से दिल में मेरे दर्द का टकसाल रक्खा है
ज़रा खोलो हमारे दिल का दरवाजा सलीके से
यहां महफूज़ हमने इश्क़ का जंजाल रक्खा है

पटना से वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने कोरोना वायरस के खतरे से आगाह करते हुए एक हास्य गीत सुनाया:
"ज्ञान- विज्ञान, धर्म - ग्रंथ, कुछ न काम आवत है।
क्रोध में जब  प्रकृति अपना विनाशकारी रूप दिखावत है।।
हैवान बन गईल ई मानव से  खतरा हमें जरूर है!
ई तो कह भगवान जी, ई में हमरा का कुसूर  है?!"
"कोरोना" वायरस से बचना हमें जरूर है !!
ई तो कह भगवान जी, ई में हमरा का कुसूर है ?!"

पटना से वरिष्ठ कवि सुनील कुमार ने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से कोरोना संकट के जल्द ही टल जाने की आशा जताई:
जो भी करना है उसे वक़्त वो कर जाता है
तू ग़म-ए-जिस्त से घबरा के किधर जाता है
हमने माना कि भयानक है कहर “कोरोना”
हर महामारी का दुनिया से असर जाता है
मैंने ठाना है मुझे घर पे ही रहना है अभी
लॉक डॉउन में भला कौन किधर जाता है

मुंगेर से मुशायरे में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर और आलोचक अनिरुद्ध सिन्हा ने जुगनुओं के तमाशे को कुछ इस तरह से बयान किया:
जब से है एक चाँद घटा में छुपा हुआ
तब से है जुगनुओं का तमाशा लगा हुआ
हिस्सा था एक भीड़ का वो आदमी मगर
रहता है अब हरेक से तन्हा कटा हुआ

करीब पौने दो घंटे तक चले इस मुशायरे के अंत में विन्यास साहित्य मंच के संस्थापक चैतन्य चंदन ने कार्यक्रम में शामिल सभी शायरों का आभार व्यक्त किया और अगले रविवार को फिर से इसी प्रकार की एक गोष्ठी के आयोजन की घोषणा की।
...............

रपट का आलेख - चैतन्य चंदन
रपट लेखक का ईमेल - luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com









Sunday 19 April 2020

बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना के 16.4.2020 को आयोजित तीसरा आभासी (ज़ूम) मुशायरा सम्पन्न

शिकायत क्यों मुझे होगी किसी से  /  मैं घर में रहता हूँ अपनी ख़ुशी से

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बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना के तीसरे मुशायरा में आपका स्वागत है | खैर मक़दम है | पुरखुलूस इस्तकबाल है |
घर बैठना इसलिए ज़रूरी नहीं कि ये वज़ीरे-आला की गुज़ारिश है | घर बैठना इसलिए भी ज़रूरी है कि इसी में हमारी भलाई है | जान भी है जहान भी है | बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी, पटना ने इसकी ख़ूबसूरत राह फराहम की है | टेक्नोलॉजी की मदद से दूर दराज़ शहरों में बैठे हुए शाइरों की तख्लीकात से आपको रूबरू कराना | जी हाँ ! शामे- मुशायरा की पेशकश एक ऐसी ही तजवीज़ है | आइये मैं आपको आज के मुशायरे के शोअरा–ए-कराम का तआरुफ़ करवा दूँ |

1. श्री अनिल सिंह (पुलिस उप महानिरीक्षक (से.नि.), पटना 
2. डॉ.आरती कुमारी, मुज़फ्फ़रपुर 
3. श्रीमती इंदिरा शबनम इंदु,पुणे 
4. डॉ. कविता विकास,धनबाद
5. श्री घनश्याम ,पटना
6. श्री चैतन्य चन्दन, दिल्ली
7. श्रीमती नन्दनी प्रनय, रांची
8. मो. नसीम अख्तर, पटना
9. श्रीमती पूनम सिन्हा श्रेयसी, पटना 
10. डॉ.मीना कुमारी परिहार,पटना 
11. डॉ. शालिनी पाण्डेय, पटना
12. श्री सुनील कुमार,पटना  और ख़ाकसार
     रमेश कँवल,पटना (संचालक)

मुशायरे का आगाज़ हम साहिर लुधियानवी के चंद मिसरों से करते हैं और दवाते-सुखन देते हैं डॉ.आरती कुमारी ,मुजफ्फरपुर को
यही फ़िज़ा थी यही रुत यही ज़माना था
यहीं से हमने मुहब्बत की इब्तिदा की थी

डॉ. आरती कुमारी ने ये नज़्म सुनाई
*सोचा न  था*
सोचा न  था कभी
कि आएगा प्रलय ऐसे
नाचेगा काल विकराल रूप धर
और निगल जाएगा
लाखों लोगों को
एक बार मे ही..
**सोचा न था कभी कि
ठहर जाएगा वक़्त
एक पल को भी इस तरह
रुक जाएगी सपनो के पीछे
भागती -दौड़ती दुनिया
ठप्प पड़ जाएंगे सारे काम धाम
और बेबस हो जाएंगे हम इंसान
**सोचा न था कि इस वर्ष का वसंत
आते ही बदल जायेगा पतझड़ में
खुशियों के रंग हो जाएंगे मलिन
और एक दूसरे का स्पर्श भी
कर देगा भयभीत मनुष्यों को
**सोचा न था कि
प्रगति साधकों को कभी
मिलेगी प्रकृति से खुली चुनौती
और कीड़े मकोड़ों की तरह रेंगते
घर मे दुबके पड़ेंगे महीनों  तक
**सोचा न था कभी कि
सुननी पड़ेगी सन्नाटों की चीखें
कि मानवता बचाने की खातिर
मानव को ही रखना होगा मानव से दूर
और जलाने होंगे उम्मीदों के दीप
बोझिल थके निराश मन में
**सोचा न था कभी कि
हो जाएगी पृथ्वी फिर से हरी भरी
सुगंधित हवा फिर से
करने लगेगी अठखेलियाँ
और गाएगी बादलों संग मल्हार
चिडियाँ गायेगी लयबद्ध संगीत
और मेरे हृदय में पुनः गूंजने लगेगा
मेरे एकांत का एकतारा

डॉ.आरती कुमारी के बाद धनबाद से जुड़ीं डॉ. कविता विकास को इन चार मिसरों से ज़हमते-सुखन दी गयी
परिंदा कब फ़लक को नापता है
परों के हौसलो को जानता है

डॉ. कविता विकास ने एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश की -
शाम तनहा कभी सहर तनहा
ज़िन्दगी हमने की बसर तनहा
जलती रहती हूँ रात भर तनहा
जलता रहता है ज्यूं क़मर तनहा
तेरे ही इंतज़ार में अब तक
मेरा कटता रहा सफ़र तनहा
हर तरफ़ लोग - बाग हैं लेकिन
तुम उधर तनहा मैं इधर तनहा
कोई भाया नहीं सिवा तेरे
रह गए फिर दिलो - जिगर तनहा
कोई आता नहीं है ख़्वाबों में
हो गयी हूँ मैं इस कदर तनहा
ज़िन्दगी 'कविता' मुस्कुराएगी
छोड़ दो रहना तुम अगर तनहा

कोरोना से जूझ रहे मुंबई शहर की मशहूर शायरा राजेश कुमारी राज की पंक्तियों से पटना के मशहूर ग़ज़लकार श्री घनश्याम जी को ग़ज़ल पाठ के लिए आमंत्रित किया गया
क्या खूब हुनर पाया है भूख छुपाने का
रोती हुई हंसती है मुफ़्लिस की ये बच्ची है
-राजेश कुमारी राज

घनश्याम ने शुद्ध हिंदी ग़ज़ल पेश की -
अलग  तुमसे  नहीं  मेरी  कथा है
तुम्हारी  ही  व्यथा  मेरी  व्यथा है
ये   गूंगे और  बहरों   का  नगर है
किसी से कुछ यहां कहना वृथा है
हताहत   सभ्यताएं   हो   रही   हैं
हुआ  पौरुष  पराजित  सर्वथा   है
तुम्हीं  से   ज़िन्दगी  में   रोशनी  है
चतुर्दिक  कालिमा  ही  अन्यथा  है
बिना  बरसे  घुमड़कर  भाग जाता
कृपण  बादल  कभी  ऐसा न था, है
समय  का  दोष  है  या आदमी का
सदा   ऐसे    सवालों   ने   मथा   है
अभी  "घनश्याम" की  पूंजी यथा है
समर्पण,  प्यार,  अपनापन  तथा  है

ज़ेबा तस्लीम के एक मतला  से दिल्ली में निवास करने वाले शाइर चैतन्य चन्दन को आवाज़ दी गयी :
जिसने बख्शी है अश्कों की दौलत मुझे
आज भी है उसी से मुहब्बत मुझे

चैतन्य चन्दन ने सामजिक व्यसन गुटखा को ग़ज़ल का मौजू बनाया जिसे नया प्रयोग के रूप में मुशायरे में शिरकत करने वाले शाइरों और शाइरात ने खैर-मक़दम किया -
पान, गुटखा तुम्हें काहे को ज़हर लगता है
इन्हें चबाने में लोहे का जिगर लगता है
है कठिन काम दीवारों को मुंह से रंग देना
गाल भर इसमें मेरे यार शिखर लगता है
लड़खड़ाने लगी है उसकी जुबां केसरिया
विमल का उसपे भी कोई तो असर लगता है
गंध आती है उसके मुंह से जैसे कोई गटर
राजश्री का मुझे शायद ये कहर लगता है
थूकते रहते हैं सड़कों पे वो रजनीगन्धा
और कदमों में उनको कोई शहर लगता है
कोई दिवाना है कमला पसंद का 'चंदन'
मगर ये मौत है उसको ये किधर लगता है

पवन शर्मा की एक ग़ज़ल इन दिनों जुबान पर है उसी ग़ज़ल के अशआर से रांची से जुडी उभरती कवयित्री  नन्दनी प्रनय को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया :
चाँद करे है चौकीदारी, चैन कहाँ सूरज को पल भर।
शहर वबा ने घेर रखा है,, चुप्पी साधे बैठा है घर।
-पवन शर्मा

रांची, झारखंड से शामिल हुई नंदिनी प्रनय की रचना का आनंद लीजिए -
साँझ का सूरज
कभी मेरे घर आता था
वो मेरे सांझ का सूरज,
आकर दिल को बहकाता
वो मेरे साँझ का सूरज।
**परछाई भी उसकी
अंधेरी रात की सी थी,
ढले फिर शाम आता था
वो मेरे साँझ का सूरज।
**सुबह होते निकलता था
बड़ी वो लाल बिंदी सा,
ढले आंखों में बस जाता
वो मेरे साँझ का सूरज।
**सुर्ख वो होठ की लाली
वो मेरा रंग मेहंदी का,
रंग जाती थी जब आता
वो मेरे साँझ का सूरज।
**चढ़े जो दिन तो रहता था
वो मेरे सर पे घूँघट सा,
ढलक जाता था सर से फिर
वो मेरे साँझ का सूरज।
**दोपहरी दिन में जब उसके
तपन से मैं जल उठती थी,
तभी नीचे सरक आता
वो मेरे साँझ का सूरज।
**वो काली स्याह सी रातें
अकेले जब न कटती थी,
चमकता फिर से नभ में था
वो मेरे साँझ का सूरज।

नंदिनी के बाद हफ़ीज़ बनारसी के एक मतला और एक शे’र से पटना के रेल महकमा से जुड़े बहुत ही मशरूफ़ शायर मो. नसीम अख्तर, को दावते-सुखन दी गयी
क्या जुर्म हमारा है बता क्यों नहीं देते
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यों नहीं देते
कुछ लोग अभी इश्क़ में गुस्ताख बहुत हैं
आदाबे-वफ़ा उनको सिखा क्यों नहीं देते

मो. नसीम अख्तर ने ये ग़ज़ल सुनाकर वाहवाही 
लूटी -
इधर शम्मे उलफत जलाई गई है
उधर कोई आँधी उठाई गई है।
वो घर को नहीं बाँट डालेगी दिल को
जो दीवार घर में उठाई गई है।
किसी में यहाँ अब मुहब्बत नहीं है
वो नफरत दिलों में बिठाई गई है।
अजब है तमाशा तुम्हारे जहाँ का
अजल में भी दुनिया सजाई गई है।
कभी तुम भरोसा नहीं उसपे करना
ये दौलत जो 'अख्तर' कमाई गई है।

हफ़ीज़ बनारसी के एक मतला और एक शे’र से पटना की चर्चित शाइरा
पूनम सिन्हा श्रेयसी को बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी पटना के तीसरे ज़ूम मुशायरा में दावते-सुखन दी गयी 
क़दम शबाब में अक्सर बहकने लगता है
भरा हो जाम तो अज ख़ुद छलकने लगता है
कोई चिराग़ अंधेरों में जब नहीं जलता
किसी की याद का जुगनू चमकने लगता है
-हफ़ीज़ बनारसी 

पूनम सिन्हा श्रेयसी ने ये ग़ज़ल पढ़ी -
रात ढलती रही ,चाँद हँसता रहा
बिछ गई चाँदनी, इश्क जलता रहा ।
नींद जागी रही,स्वप्न सोते रहे-
अक्स उनका दृगों में उभरता रहा।
वो न आए , मगर याद आते रहे-
तन्हा दिल इस तरह से बहलता रहा ।
मेरे दिल में जो चाहत मिलन की जगी -
क्या बताएँ कि मन क्यों बहकता रहा ।
गम के आलम में क्या अब करूँ मैं ' पूनम '-
इस जुदाई में तन-मन सुलगता रहा ।

ग़ज़ल की दुनिया के मशहूर ओ मारूफ़ उस्ताद शाइर जनाब मेयर सनेही के एक मतला और एक शे’र के साथ पटना उच्च न्यायलय से जुड़े शाइर श्री सुनील कुमार को विडियो मुशायरा में शिरकत करने की दावत मिली |
शिकायत क्यों मुझे होगी किसी से
मैं घर में रहता हूँ अपनी ख़ुशी से

सुनील कुमार की पेश की गयी ग़ज़ल का लुत्फ़ आप भी उठाइये -
यही दर-अस्ल-हक़ीक़त में ज़िंदगी यारो
गुजारी जा न सके पर गुज़र रही यारो
बची है कौन सी हसरत कि जी रहा हूँ मैं
अगर न मौत से उन्नीस ज़िंदगी यारो
कभी हसीन कहाँ ज़िंदगी सजी उनकी
जिन्हें मिले न मुहब्बत की रौशनी यारो
ये ज़िंदगी है अज़ब खेल खेलना है जिसे
न कोई जय ही पराजय है आख़िरी यारो
कभी जो ज़ीस्त की उफ़्ताद दिल पे होती है
वही तो एक कयामत की है घड़ी यारो
जो मुस्कुराता तुम्हें दर्द में ‘सुनील’ मिले
समझ लो जिंदा हुई उसकी शायरी यारो

मुशायरा में डॉ.मीना कुमारी परिहार,पटना , डॉ. शालिनी पाण्डेय,पटना    श्रीमती इंदिरा शबनम इंदु, पुणे  और अनिल सिंह, पुलिस उप महानिरीक्षक, (से.नि.) भी  शामिल हुए | इंदिरा शबनम इंदु या इंदिरा पुनावाला की आवाज़ दूर से आनेवाली आवाज़ की तरह आई | चेहरा दिखा कभी ओझल हो गया | उन्होंने यह रचना पेश की |
कैसे हम कह दे कि सरशार नजर आती है
घर की हर चीज़ तो बीमार नजर आती है
कोई शिकवा न शिकायत है न आँसू न हंसी
जिंदगी बर्फ का अबार नजर आती है
छत तो मजबूत है मजबूत हैं दरवाजे भी
सिर्फ टूटी हुई दीवार नज़र आती है
ऊंची आवाज़ में हंसने पे है पाबंदी यहां
मुस्कराहट पसे दीवार नज़र आती है
ऐसा लगता है समय ठहर गया है शबनम
जिंदगी रेंगती रफ्तार नजर आती है|

डॉ.मीना कुमारी परिहार का स्पीकर ऑन नहीं हो पाने की वजह से वे मूक वधिरों के लिए समाचार पढ़ती नज़र आईं | उनकी रचना का आनंद लीजिये -
उम्मीद हर शख्स से लगाई नहीं जाती
बैचैनियां दिल की बताई नहीं जाती
उम्मीदों पे टीकी है लहलहाती फसल
उजियारे में शम्मा जलाई नहीं जाती
सबको पता है मेरी आमदनी का जरिया
क्यों खुदकुशी की खुशी मनाई नहीं जाती
हमामे-इश्क में नहाते तो सभी हैं मगर
इश्के-दरिया की राह लगाई नहीं जाती

डॉ मीना  के बादआगे बढ़ते हैं| अनिल सिंह जहाँ रहते हैं वहां का नेटवर्क उनके रिटायरमेंट के बाद भी उनके पुलिसिया रुतबे से डरा सहमा रहता है | कभी छवि है तो ध्वनि नहीं कभी ध्वनि मिले तो चेहरा ओझल | थक हार कर उन्होंने अपने एकांतवास की ग़ज़ल ज़ूम मुशायरा के लिए भेज दिया  -
हमारी दुखती रग उसने नहीं छेड़ी बहुत दिन से
हमारी याद क्या उसको नहीं आई बहुत दिनसे
समाया था वो इस दिल में हमारी धड़कनों जैसी
नज़र आती है दिल की बस्तियाँ सूनी बहुत दिनसे
वो कहते थे कि तेरे बिन बड़ा दुश्वार है जीना
मगर सूरत मेरी उसने नहीं देखी बहुत दिनसे
बिना मौसम हुआ करती थीं अश्कों की वो बरसातें
कहाँ बरसात में भी ये पलक भींगी बहुत दिनसे
तेरी यादों की दस्तावेज बन बैठी है सब चिट्ठी
इन्हें तो डाक खाने में नहीं डाली बहुत दिन से
खुदाया ख़ैर हो अपने पराये सब परीशां हैं
ख़बर आई नहीं कोई कभी अच्छी बहुत दिन से
तुम अपनी बात तो शेरों में कहते हो 'अनिल' लेकिन 
तुम्हारी बात लोगों ने नहीं  मानी बहुत दिनसे

डॉ. शालिनी पाण्डेय मुशायरे में शामिल तो थीं लेकिन जब उन्हें ग़ज़ल पाठ के लिए आमंत्रित किया गया तो नेटवर्क ने उनके साथ शालीनता का व्यवहार नहीं किया  -
अब मुझे खुल के मुस्कुराने दो
बात दिल की लबों पे आने दो
जाने किस पल हों आँख में आसूं
आज खुशियों से घर सजाने दो
यूं तो सासों पे है कड़ा पहरा
फिर भी नग्में वफ़ा के गाने दो
कौन जाने लुभाए कौन अदा
उनके सपनों में मुझको आने दो
गर्म सासों में उनको घुलने दो
बिस्तरे-शब को मुस्कुराने दो
सर्द आहों ने दिल की बात कही
अश्क आँखों में अब न आने दो
'शालिनी' घर में भी रहो कुछ दिन
लॉक डाउन सफल बनाने दो

मुशायरा समाप्त होते देखकर डॉ.कविता विकास एवं घनश्याम जी ने मुझे भी अपनी ग़ज़ल पेश करने की गुज़ारिश की| ख़ाकसार रमेश कँवल ने यह ग़ज़ल पेश की : 
लम्स की आँधियों से जो डर जायेंगे
क़ुर्ब के सारे मंज़र बिखर जायेंगे
रात दरबान बन कर रहेगी मगर
दिन निकलते ही ख्वाब अपने घर जायेंगे
साँसों के डूबता उगते सूरज लिए
उम्र की सरहदों से गुज़र जायेंगे
जिस्म की रिश्वतें देंगे बरसात को
फिर नए पत्ते लाने शजर जायेंगे
उसकी यादें न कर दरबदर ऐ ‘कँवल’
बे ठिकाने ये मंज़र किधर जायेंगे

मोहतरमा मासूमा ख़ातून जल्वा अफरोज़ होने की जद्दो-जहद करती रहीं लेकिन नेटवर्क ने उनके मनसूबे पर पानी फेर दिया |
ये ऑनलाइन मुशायरा बेहद कामयाब रहा |
.......

प्रस्तुति -  रमेश कँवल
प्रस्तुतकर्ता का ईमेल - rameshkanwal78@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com