Sunday 26 July 2020

मुम्बई अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का आभासी सम्मान समारोह 19.7.2020 को संपन्न

                   देर रात तक वीडियो के माध्यम से चला नृत्य संगीत और फैशन शो का कार्यक्रम 
करीब 200 लोग सम्मानित * कुछ को विशेष सम्मान * बेजोड़ इंडिया के हेमंत  'हिम' को  कलम योद्धा सम्मान 

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मुम्बई अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच ने लाकडाऊन में अग्निशिखा के संग , कोरोना की जगं, विविध काव्य के रंग , शुरु किया था जो सतत जारी रहा. कोरोना की जंग में अपनी साहित्यिक गतिविधि  51  ऑनलाइन कवि सममेलन सम्पन्न कर 52 वाँ दिन यानी 19.7.2020 को सभी प्रतिभागियों का सम्मान दिया गया.  सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ सावन के मौसम में गतिविधियों का समापन हुआ,

अलका पाण्डेय ने बताया कि लॉकडाउन में भी ओंनलाइन विडीयो के माध्यम से रंगारंग कार्यक्रम के तहत सावन के गीत, फ़ैशन शो, नृत्य के रंगारंग कार्यक्रमों के साथ सबका सम्मान, सम्मान पत्र दे कर किया गया, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे सेवासदन प्रसाद और विशिष्ट अतिथी- संतोष साहू , आशा जाकड, सुनिलदत्त मिश्रा.

समारोह अध्यक्ष. पन्ना लाल शर्मा  थे. मंच संचालन, अलका पाण्डेय और चंदेल साहिब ने तथा सरस्वती वंदना पदमा तिवारी और शोभारानी तिवारी ने की.

कार्यक्रम की शुरुआत अलका पाण्डेय ने सबका अभिनंदन किया और सावन पर एक गीत सुनाया.

मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया इस कार्यक्रम में सबको हरे वस्त्र पहन कर हरियाली में प्रस्तुति देनी थी. पुरुषों ने भी कैटवॉक व बाहर  पेड़ों के बीच प्रस्तुतियाँ दी. सबसे बड़ी बात ६० - ७० वर्ष की महिलाओं ने बहुत ऊर्जा के साथ नृत्य प्रस्तुत किया क़रीब दौ सो प्रतिभागी थे रात देर तक कार्यक्रम का आनंद लिया सबने बहुत सराहना की. इस कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोगी रिशु पाण्डेय , चंदेल साहिब , प्रतिभा परासर , संजय मालवी आनंद जैन आदि थे.  

रजनी अग्रवाल, विजया बाली नृत्य किया तो पद्माक्षी शुक्ला , शोभारानी तिवारी , ऐश्वर्या जोशी मधु मान्या वैष्णवी  ने फ़ैशन शो किया. शकुन्तला पावनी, मीना पराशर, रश्मि शुक्ला ने नृत्य कर समा बांधा तो वहीं मंजूला वर्मा, स्मिता धीरासरिया  ने हरियाली के बीच ले जाकर फ़ैशन शो कर सुंदर गीत प्रस्तुत किया. सुनीता चौहान ने हिमाचल की हरियाली व सौन्दर्य के दर्शन कर गीत सुनाया.  रेखा पाण्डेय , आशा जाकड , ममता तिवारी , रानी अग्रवाल , साधना तोमर , दीपा परिहार , चंदाडागी चंद्रिका व्यास, अंकिता सिंहा, रानी नारंग, सुनिता अग्रवाल, सुषमा शुक्ला. गीता पाडेंय, शुभा शुक्ला , मीना त्रिपाठी, अश्मजा प्रियदर्शनी, अनीता झा , माधवी अग्रवाल , प्रेरणा सेन्द्रे, गरिमा  ने हरे भरे वृक्षों के बीच जाकर अपनी प्रस्तुतियाँ दी.  पुरुषों ने भी उपवन में जाकर गीत गाये कैट वाक किया.

सुरेन्द्र हेगड़े , उपेन्द्र अजनवी , शेखर तिवार , श्रीहरि वाणी भरत नायक, रविशंकर कोलते, संजय मालवी  कान्हा बन कर छाए तो जनार्दन शर्मा राजस्थानी सेठ बने चंदेल ने एक लेखक का किरदार में अवतरित हुए और  आनंद जैन जी व्यापारी सुनिलदत्त मिश्रा मज़दूर का अभिनय, आश्विन पाण्डेय. राजेंश बंजारा सागर तट पर जाकर गीत गाया तो बैजेन्द्र मारायण ने संत का रुप लिया गोवर्धन लाल बंघेल,  पेड़ के झुरमुट में दिनेश शर्मा, छगनराव, ओम प्रकाश पाण्डे , रामेश्वर गुप्ता, महताब आजाद, विजयकांत द्विवेदी, ज्ञानेश्वर मिश्रा, गुलाबचंद पटेल, ज्योति भास्कर ने पेडो के गिर्द गिर्द गीत गाये दो दो बाल कलाकार आहन पाण्डेय अवीर पाण्डेय ने कविता सुनाई.

नीरजा ठाकुर, अर्चना पाण्डेय, नेहा इलाहाबादी, पदमा तिवारी, सिमा दुबे, वंदना शर्मा प्रतिभा पराशर, निलम पाण्डेय,  मधु तिवारी, रागनि मित्त , ऊषा पाण्डेय, मुन्नी गर्ग, द्रोपदी साहू, संगीता पाल, गुरमित गिल, कल्पना भदौरिया, कांता अग्रवाल, सुमित्रा तिवारी, लीला दीवान, अंजूल कंसल, मीरा भार्गव, अर्चना पाठक, अंजली तिवारी  प्रिया उदयन आदि ने विविध रंगा रंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया. सभी को सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया. क़रीब दौ सो लोगों का सम्मान किया गया. यह तीसरी बार सम्मान दिया गया लाकडाऊन में ,

विशेष सम्मान दिया गया सेवासदन प्रसाद , संतोष साहू, डॉ. अवधेश अवस्थी , आशा जाकड , श्री हरिवाणी , विनय शर्मा दीप , रमाकांत पाण्डेय,. डा जनार्दन सिंह , हेमंतदास हिम , भास्कर राव पाढरे, पन्ना लाल शर्मा , संध्या रायचौधरी , अभिलाष अवस्थी , डॉ अंरविंद श्रीवास्तव, बिजैन्द्र मेव, शिव पूजन पाण्डेय , रिशु पाण्डेय , चंदेल साहिब , संजय मालवी , जनार्दन शर्मा , सुरेन्द्र हेगड़े , डॉ प्रतिभा पराशर , शोभारानी तिवारी. 

अब राष्ट्रगान से कार्यक्रम का समापन १५ अगस्त को "मेरे वतन" पर ज़ोरदार कार्यक्रम की तैयारी चल रही  है.
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रपट की लेखिका - डॉ. अलका पाण्डेय
परिचय - रा. अघ्यक्ष, अग्निशिखा काव्य मंच 
रपट की लेखिका का ईमेल आईडी - alkakpandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Thursday 23 July 2020

भा.युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आभासी लघुकथा सम्मेलन 19.7.2020 को संपन्न

सृजनात्मकता की प्रासंगिकता कभी प्रश्नों के सलीब पर नहीं टँगती
लघुकथा समीक्षक निशांतर की मृत्यु पर शोक प्रकट किया गया 

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पटना :"समयगत सच्चाईयों  को पूरी शिद्दत के साथ बयां कर रही हैं, नए मूल्यों को प्रतिस्थापित कर रही हैं समकालीन लघुकथाएं। "भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित तथा अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर ऑनलाइन आयोजित हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। 

यह सारस्वत समारोह वरिष्ठ लघुकथा समीक्षक स्व निशांतर की स्मृति को समर्पित था। इस  लघुकथा सम्मेलन में पढ़ी गई लघुकथाओं में लवलेश दत्त (बरेली) ने "नेकी की दीवार", प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र 'ने  'तितलियां', विजयानंद विज(मुजफ्फरपुर)'', ने' प्यासी नदी', राजप्रिया रानी ने ' परिवेश', पुष्परंजन कुमार ने'पॉर्न वीडियो', पूनम सिन्हा श्रेयसी  ने ' इंतजार', प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर) ने "दहेज प्रथा", मीना कुमारी परिहार ने 'औरत तेरी यही कहानी', मधुरेश नारायन ने 'बिखरते रिश्ते', बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता ने' प्रतिक्रिया' लघुकथाओं का पाठ किया। इसके अतिरिक्त डॉ सतीशराज पुष्करणा, डॉक्टर शिवनारायण, डाॅअनिता राकेश, सिद्धेश्वर, पुष्पा जमुआर, सविता मिश्रा मागधी आदि ने भी लघुकथाओं का पाठ किया।

मुख्य अतिथि में डॉ सतीशराज पुष्करणा ने लघुकथा की सृजनात्मक प्रासंगिकता विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि- "  सिद्धेश्वर द्वारा आयोजित ऑनलाइन. लघुकथा सम्मेलन, अपने आप में समकालीन लघुकथा की प्रासंगिकता को नए अर्थ से अभिव्यक्त करने का प्रयास है। इसके पहले उन्होंने लघुकथा समीक्षक निशांतर की आकस्मिक मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की। 

विशिष्ट अतिथि डॉ. शिव नारायण ने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि इधर के वर्षों में अनेक रचनाकार सामने आये हैं जो अच्छा लिख रहे हैं |

विजयानंद विजय ने कहा-" मुझे खुशी है कि मेरी लघुकथा पर लघुकथा मर्मज्ञों की सकारात्मक टिप्पणियाँ आईं।यह लघुकथा अभी कुछ दिनों पहले अनुभव पत्रिका में प्रकाशित हुई है और मेरे सद्यः प्रकाशित लघुकथा संग्रह " संवेदनाओं के स्वर" का हिस्सा है।"

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर अनिता राकेश ने कहा कि सृजनात्मकता की प्रासंगिकता प्रश्नों के सलीब पर नहीं टंगती। लघुकथा की कृतियों में बहुरंगी पुष्पों का विकसित होना ही लघुकथा  के महत्व को रेखांकित करता है। सृजनात्मकता की प्रासंगिकता कभी प्रश्नों के सलीब पर नहीं टँगती | चाहे वह किसी भी विधा  की सृजनात्मकता हो | रचनाकार सदैव अपने समकालीन परिवेश से संचालित होता है, प्रभावित होता है  - यह अकाट्य सत्य है| लघुकथा की बगिया में  बहुरंगी पुष्पों का विकसित होना उसकी समृद्धि का ही द्योतक है | पुष्प छोटे ,बड़े ,सुगंधित, गैर सुगंधित रंगीन सभी प्रकार के हो सकते हैं और सब का अपना महत्व है | आवश्यक नहीं ये सभी फूल देवों पर ही चढ़ाए जाएं |कुछ बगिया की सुंदरता के लिए भी आवश्यक है |

इस संगोष्ठी में संजय राॅय, आलोक चोपड़ा, ऋचा वर्मा,पुष्पा जमुआर, वीणाश्री हेम्ब्रम, विनोद प्रसाद, घनश्याम समेत बड़ी संख्या में रचनाकारों ने अपनीउअपस्थ्तिति दर्ज की। 
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प्रस्तुति -  सिद्धेश्वर 
प्रथम प्रस्तोता का चलाभाष - 9234760365
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Tuesday 21 July 2020

राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच' की बिहार इकाई की कवि गोष्ठी 19.7.2020 को सम्पन्न

फूल नहीं खिलते उपवन में काँटे बोने से / खुशियाँ नहीं मिला करती हैं जादू-टोने से

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दिनांक 19.7.2020 को 'राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच' की बिहार इकाई की ओर से दोपहर तीन बजे से रात्रि नौ बजे तक ऑनलाईन काव्य गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। यह गोष्ठी मंच के संस्थापक नरेश नाज़ की उपस्थिति  में हुई।

गोष्ठी की अध्यक्षत, मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष एम.एस.जग्गी  ने की। विशिष्ठ अतिथि; संस्था की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा सविता चड्ढ़ा  तथा राष्ट्रीय सलाहकार राजेंद्र निगम रहे। मंच का संचालन पूर्वी उत्तर प्रदेश की अध्यक्षा  मणिबेन द्विवेदी  ने किया।नरेश नाज़  द्वारा मां सरस्वती की वन्दना से कवि गोष्ठी का शुभारंम्भ हुआ।

गोष्ठी में भारत के बीस राज्यों के कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया। सबने अपनी कविताएं, गीत, गजल, कजरी ; ऑडियो के माध्यम से सुनाईं ।

इक्कीस राज्य जिसमें, ओड़िसा, पंजाब,चंडीगढ, हरियाणा, दिल्ली, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड, आसाम, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक से 52 कवि,कवयित्रियों एवं  गजलकारों ने भाग लिया। सभी ने बहुत हीं सुन्दर, सुमधुर स्वर में समां बांधा और माहौल को गुलजार कर दिया ।

हरेंद्र सिन्हा ने मिलकर बातें की -
आओ हमतुम दोनों मिलकर बात करें मन की ,रे सजनी
गांठ खोलें मन की।
कभी तुम रूठी,कभी मैं रूठा 
अब बात करें मन की ,रे सजनी ।

किरण गर्ग (पटियाला) ने आजकल दूर कर लिया है खुद को एक नशे से -
मोहब्ब्त की बातें अब हमसे न किया करो
आजकल हम इस नशे से बहुत दूर रहते हैं
कभी रहते थे डूबे इश्क़ की मस्ती में
आजकल हर दर्द ओ गम से दूर बैठे है,,,,

डॉ.प्रणव भारती ने उम्र की रवानगी को कुछ यूँ बयां किया -
चिंदी चिंदी समय की कतरन,
देख देख घबराता ये मन।
आड़ी तिरछी सी रेखाएं ,
पोंछ पोंछकर जाता ये मन ।

डॉ श्रीलता सुरेश, बैंगलोर, कर्नाटक कोई बंधन नहीं मानती प्रेम में -
इस पर नहीं है बंधन
       किस पर कब आ जाएं
मनोभावों से सृजन कर
              अपना इसे बनाए

राशि श्रीवास्तव, चंडीगढ़ ने बड़ी मार्मिकता से कहा -
जीवन जो देती हमको 
उसे देंगे क्या भला 
मां मांगती कहां है कुछ 
दुआओं के सिवा

राजेन्द्र निगम 'राज' ने आंखें खोलीं भटके हुए लोगों की -
  गुरुग्राम
फूल नहीं खिलते उपवन में 
काँटे बोने से
खुशियाँ नहीं मिला करती हैं
जादू-टोने से

जिधर देखो सब सिर्फ माँ  की महिमा गाने में लगे हैं।  लेकिन डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार' जानते हैं कि पिता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं -
पिता पर्वत है सूरज है,
सुबह की भोर लाली है 
पिता है घर में तो,हर रोज़ होली है दीवाली है ।
पिता ही दोस्त, साथी, मित्र
बंधु ,  है सखा अपना 
‘उदार’ हमने हैं देखे सब,
वही बगिया का माली है।


डॉ. मंजु रुस्तगी, चेन्नई उस सावन को बेकार मानती हैं जो साजन के बिन हो -
बिन साजन के आया सावन 
क्या क्या करूँ जतन, 
कैसे धीर धरे ये मनवा, 
चैन न पाए तन--- 

महेन्द्र जैन, हिसार हर सजा को तैयार हैं कोई उनका ज़ुर्म तो बताए -
ज़ुर्म क्या है मेरा ये बता दीजिए
फिर जो चाहे मुझे वो सजा दीजिए
आ गया तेरे मयख़ाने में साक़िया
आज जी भर के मुझको पिला दीजिए

अरुण दुबे  मध्यप्रदेश ने शायरी के करीब आने का राज बताया - 
सच से ऐसा हुआ सामना बेख़ुदी के करीब आ गए
इश्क़ में चोट खा खा के हम शायरी के करीब आ गए

     
डाः नेहा इलाहाबादी (दिल्ली) ने देश की हिफाज़त में लगे लोगों को गम्भीर होने को कहा -
अँधेरे कूकते  हैं बागबाने,
          दिल  की  गलियों  में ।
कहर  बरपा  न हो  जाए,
         कहीं मासूम कलियों में ।।
हिफा़जत देश की है आज ,
         जिन लोगों के काँधे पर ।
वही  खोए  हुए  हैं आज ,
           बहशी  रंग  रलियों  में ।।

सरला विजय सिंह 'सरल' चेन्नई ने देशभक्ति की मशाल जलाई -
हिंद के निवासी हैं तो हिंदी के लिए दिलों में 
गीत वंदे मातरम जीवंत होना चाहिए 

भारती जैन 'दिव्यांशी' ने गीत को सरगम पर ढाला -
मेरे गीत तुम्हारी सरगम,  अधर -अधर पर जब महकेंगे
कितने ही मन व्याकुल होंगे, कितनों की उर पीर हरेंगें

विजय मोहन सिंह, चेन्नै मे सीमा की स्थिति का जायजा लिया - 
उनसे कह दो कि ना देखें वो,  इस तरह से बदगुमान.. 
सीमाएं हमारी चाक-चौबंद हैं, 
डटे खड़े हैं वीर जवान..

मंजु महिमा भटनागर, अहमदाबाद ने बढ़ती उम्र की दास्तां बताई -
ज्यूं ज्यूं उम्र बढ़ती है, मन पीछे लौटता है,
किसे ढूँढता है? कुंआरी क्यारियों में छिपे,
संजीवनी के बीज या फिर अग्नि- कुसुम. -- 

राजेश अनुभव  झारखंड आसपास चल रहे महाभारत की बात कही -
हमारे आसपास भी
एक महाभारत पल रहा है।
अनजाने शत्रुओं से
हमारा एक युद्ध चल रहा है।

डॉ सुमन दहिया, जयपुर राजस्थान ने पुराने  दिनों की बात बताई -
यह तब की बात है ........
जब जीना सीखा न जाता था
हम यूं ही बिंदास जिया करते थे 
हम भी रईस हुआ करते थे
यह तब की बात है.........…

सुधा सिन्हा सावन के झूलों को खूब पसंद करती दिखीं -
सावन के झूले लगने लगे
गुलशन फूलों से सजने लगे 

धन्यवाद ज्ञापन मणिबेन द्विवेदी  ने किया।  गोष्ठी के समापन की घोषणा मंच के राष्ट्रीय महासचिव  हरेंद्र सिन्हा ने की।
.......

रपट के प्रस्तोता - हरेंद्र सिन्हा /  हेमन्त दास 'हिम'
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - 
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अजगैवीनाथ साहित्य मंच, सुलतानागंज (भागलपुर) द्वारा अंतरराष्ट्रीय आभासी कवि गोष्ठी 19.7.2020 को सम्पन्न

ये दरिया रूख बदलना चाहता है
ब्रह्मलीन कवि कैलाश झा किंकर को सभी कवियों  ने श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई

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(भावानंद सिंह प्रशांत एक ओजस्वी रचनाकार हैं जो अंगिका और हिंदी में रचनाकर्म करते हैं तथा सुल्तलनगंज में सक्रिय अपनी संस्था के माध्यम से नियमित रूप से कवि-गोष्ठी का आयोजन करते रहते हैं. लॉकडाउन के करणों से आजकल ये गोष्ठियाँ आभासी (ऑनलाइन) हो रही है तो इस अवसर का लाभ उठाते हुए उन्होंने अमेरिक, कनाडा, नेपाल के हिंदी साहित्यकारों को इकट्ठा करते हुए और उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महराष्ट्र , बिहार के साहित्यकरों के साथ एक जोरदर कवि-गोष्ठी कर डाली. ऐसी ही एक गोष्ठी की रपट नीचे देखिए-  सम्पादक)

अजगैवीनाथ साहित्य मंच सुलतानागंज भागलपुर के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय आनलाइन कवि गोष्ठी का आयोजन मंच के संस्थापक सदस्य डॉक्टर श्यामसुंदर आर्या की अध्यक्षता में दिनांक 19.7.2020 को आयोजित की गई जिसका संयोजन खडगपुर के ख्यातिलब्ध शायर ब्रह्म देव बंधु ने किया और संचालन मंच के अध्यक्ष भावानंद सिंह प्रशांत ने किया। यह आयोजन देश-विदेश की शामिल कवियित्रियों के नाम रहा जिसमें सिअट्ल (अमेरिका) ,काठमांडू (नेपाल) ,टोरंटो (कनाडा) के अलावा पानीपत, सोनीपत (हरियाणा), गोरखपुर, खीरी, आगरा (उ/प्र.), मुंबई तथा बिहार के कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया। सभी आमंत्रित कवयित्रियों को साहित्य रत्न सम्मान से मंच द्वारा सम्मानित किया गया।

सर्वप्रथम गोरखपुर से सुनीता सामन्त ने अपनी कविता से सबको सराबोर कर दिया. उन्होंने कहा -
 चलो मोहब्बत की कश्ती में बैठ, 
फरिस्तों के उस देश चलें ,
जहाँ चाँदी सी चमकती नदी बहती है...। 

वहीं टोरंटो (कनाडा) से कवियित्री रीनू शर्मा ने समां बाँधा - 
अब मेरी सहमी सी वो सूरत न रही 
चश्म नम करने की तो आदत न रही 
हम तलब में ही तेरी बेताब रहे
,पास तेरे ही कभी फुरसत न रही।

सिअट्ल (अमेरिका) से कविता माथुर ने कविता के माध्यम से कहा - 
लकीरबद्ध सभ्यता ओ संस्कृति की तरह 
सर्द मौसम में जमी हुई हिमनदी की तरह 
अब कतरा बन पिघलना चाहता है 
ये दरिया रूख बदलना चाहता है । 

अंजू डोकानिया ने काठमांडू (नेपाल) से एक सुरीला गीत सुनकर सबको झुमने पर मजबूर कर दिया - 
मास सुहावन रीतु मनभावन ,
मेघ बहार छाई सी ,
शीतल चंदन सी पवन बहे ,
बरखा बूंद अकुलाई सी । 

खीरी (उ.प्र.) से मोहिनी गुप्ता ने अपनी रूमानी गजल सुनाकर मन मोह लिया - 
कई जन्मों के पुण्यों का मिला उपहार ही हो तुम 
करू मैं गर्व जिसपर वो मेरा तो प्यार ही हो तुम ।

सोनीपत हरियाणा से राधिका राधा जयसवाल ने अपनी गजल से प्रेम का अंदाज बयां किया - 
दूर हमसे तो न यूं रहा कीजिए
कम से कम इतनी हमसे वफा कीजिए 
हम यहाँ तक चले आए हैं इश्क में 
आप भी तो जरा हौसला कीजिए। 

मुंबई से नीलिमा दूबे पांडे ने दोहा के माध्यम से कहा - 
दर्द सहे पीड़ा सहे,रहे व्यथा से चूर।
असली शालीग्राम है ,धरती का मजदूर ।।

पानीपत हरियाणा से सोनिया अक्स ने समकालीन व्यवस्था पल प्रहार करते हुए कहा -
कोई मासूम सा जब शजर देखिये ,
काटने वाले हैं किस कदर देखिये ,
मौन धारण किया है समंदर ने फिर, 
सहमी सी है नदी की लहर देखिये । 

वहीं आगरा से कवियित्री निभा चौधरी ने गजल कही  - 
रौशनी के घरों में अंधेरे मिले , 
धुंध का शाल ओढ़े सवेरे मिले ।

वहीं उषाकिरण साहा ने बेटी भ्रूण हत्या पर बेटी पर संताप करते हुए अपने शब्दों में कहा -
क्या गलती मेरी थी ओ माँ ,क्या मैने किया था गुनाह ।

मुंगेर से शायर विकास ने कहा - 
हर कदम साथ मुस्कुराहट है ,
दूर रहती अभी थकावट है ,
क्या किसी ने कोई शरारत की ,
आज गलियों में सुगबुगाहट है ।

ख्याति लब्ध शायर राजेंद्र राज ने कहा - 
ऐसी तन्हाई है तन्हाई नहीं ,
शौक फिर भी मिरा जुदाई नहीं।

मंच के अध्यक्ष भावानंद सिंह प्रशांत ने कहा - 
शहर के हर मोड़ पर गाँव जिन्दा है , 
है उदर में भूख मन में छाँव जिन्दा है ।
हम पसीने से नहाएं धूप की खातिर , 
हम चलेंगे मंजिल तक ,पाँव जिन्दा है । 

वहीं खड़गपुर के ख्याति लब्ध शायर व कार्यक्रम के संयोजक ब्रह्मदेव बंधु ने अपनी गजल म़े कहा -
इन पुराणों में पता भी ढ़ूंढ़ लेंगे, 
पर्वतों में हम सदा भी ढ़ूंढ़ लेंगे, 
दिल में लोगों ने दबा रख्खी है चिंगारी,
उसकी खातिर वो हवा भी ढ़ूंढ़ लेगें ।

बरियारपुर के गजल गो दिलीप कुमार सिंह दीपक ने कहा -
इश्क और शराब का गुलाम है दुनिया । 

वहीं मंच के संस्थापक सदस्य ने एक गीत गाकर मन मोह लिया - 
जिन्दगी अपना ठिकाना ढ़ूंढ़ ले 
जीने का कोई बहाना ढ़ूंढ़ ले 
हमसफर कोई नया मिलता नहीं 
यार ही कल का पुराना ढ़ूंढ़ ले । 

युवा कवि मनीष कुमार गूंज ने बच्चों को प्रेरित करती अंगिका कविता का पाठ किया - 
चुपा चुपा रे नूनू रे चुप रे ,
तोरा हटिया मे देबौ गुपचुप रे । 

अंत में ब्रह्मलीन कवि कैलाश झा किंकर को सभी कवियों  ने श्रद्धांजलि अर्पित की ।
......

रपट के लेखक - भावानंद सिंह 'प्रशांत'
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Sunday 19 July 2020

यथार्थवादी शायर कैलाश झा किंकर

धन जोड़ते जाते  मगर / खुशियां नहीं टकसाल से
अति-लोकप्रिय प्रखर दिवगंत कवि कैलाश झा किंकर को श्रद्धांजलि स्वरूप  (पुण्य तिथि - 13.7.2020)

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अंतिका और हिंदी के प्रसिद्ध कवि कैलाश झा किंकर


हिंदी और अंगिका में अपनी सशक्त लेखनी के बलबूते खगड़िया की उर्वर साहित्यिक माटी की उपज शायर कैलाश झा किंकर किसी परिचय के मोहताज नहीं बल्कि दर्जनों पुस्तकें लिखकर उन्होंने हिंदी काव्य-संसार में अपनी सिद्धस्तता का लोहा मनवा लिया और विशिष्ट पहचान कायम की, जहां वे आजीवन अपनी साहित्य-साधना में लीन रहकर अन्य साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी करते रहे। अनेकानेक सम्मानों से सम्मानित कविवर किंकर हिंदी साहित्य परिषद खगड़िया के महासचिव और 'कौशिकी' त्रैमासाकी के यशस्वी संपादक के रूप वर्षों से अपने साहित्यकार मित्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे। ग़ज़ल उनकी सर्वप्रिय विधा थी जिसमें उनके आधे दर्जन से भी अधिक संकलन प्रकाशित  हो चुके हैं---'हम नदी की धार में', ' देखकर हैरान हैं सब', ' ज़िन्दगी के रंग हैं कई' ,'मुझको अपना बना बना के लूटेगा', ' गज़ल तो गां-घर में पसर चुकी है' आदि, जिसमें 'मुझको अपना बना के लूटेगा' 'की ग़ज़लों ऐसी धूम मचाईं कि समूचा साहित्य-संसार इन्हें निहारने लगा। जहां वे अपनी शायरी में जीवन की तमाम सच्चाइयों की यथार्थपरक तस्वीर उतारने में सफल रहे।

कल्पनालोक से उतरी ग़ज़ल लेखन की परंपरा ने जब यथार्थ की पथरीली ज़मीन पर अपने कोमल और ख़ूबसूरत पांव धरे तो फिर कल्पनालोक की इंद्रधनुषी चमक यों ही दूर होती गई जिसका परिणाम हुआ कि रमणियों  के सौंदर्य की चकाचौंध की जगह पीड़ित अबलाओं की आह के आंसू हिंदी ग़ज़लों की मंदाकिनी में बहने लगे। और इसी परिदृश्य के मध्य गज़लकार कैलाश झा किंकर का अभ्युदय हुआ जिसने आम आदमी की ज़िंदगी के यथार्थ को एक संजीदा एडवोकेट की भांति सवालिया लहजे में उठाना शुरू कर दिया । घर-घर में घटित होने वाली घटनाओं की न सिर्फ उन्होंने आग ली बल्कि उससे नि:सृत धुओं को भी उन्होंने छोड़ना मुनासिब न समझा:
" ज़िन्दगी क्या है? बता पाता है
जब बुढ़ापे का वक़्त आता है।
जो भी आया है, उसे जाना है
चंद दिवसों का फक़त नाता है।
घोंसले में जो कलह हो हरदम
चैन जीवन का चला जाता है।" 

तो बेरोजगार बेटों से त्रस्त -अभ्यस्त  परिवार के  उस चित्र पर भी दृष्टि डालें जहां अभी-अभी नौकरी की सौगात आई है:
" जीवन में खुशहाली आई
   सब होंठों पर लाली आई।
   बेटों को अब मिली नौकरी
    मुस्काती घर वाली आई।
   दिनभर होली होली थी तो
    सचमुच रात दिवाली आई।" 

तो सचमुच घर में उल्लास रूपी पंछी ने घोंसला ही बना डाला तो शायर का मन भी मचल उठा:
    " आ गए उल्लास के दिन।
       मिट गए संत्रास के दिन।
       लोग   करते  हैं  प्रशंसा
      अब नहीं उपहास के दिन।
       अन्न से घर  भर गया  है
       अब गए उपवास के दिन।" 

कवि को कभी घर की चिंता तो कभी समाज की फिक़्र ने चैन से रहने-जीने न दिया। गंगोत्री -सी खिलखिलाती कभी खुशियां इनके आंगन उतरती तो बाढ़-सी परेशानियां भी उनके घर की हंसी-खुशी को बहाकर ले जातीं :
     " सुंदर घर-परिवार लगे।
        सबसे ऊपर प्यार लगे।
        माता जी का आंचल ही
        जीवन का आधार लगे।
        बाबू  जी  के  बाजू   तो
        नावों की पतवार  लगे। " 

लेकिन बहुत सारी घटनाएं तो जीवन में आती रहती हैं, अभाव -ग़रीबी और अजनबीपन के नाग ने भी घर के  किसी कोने में  कुंडली मार लिया है और  इन्हीं दुखों की इस परिधि में जीते हुए आदमी की जिजीविषा जब कुछ सांसें लेने लगती हैं तो नज़रों से कुछ-कुछ दिखाई भी पड़ने लगती है तो कविवर किंकर भी आशान्वित हो उठते हैं:
    " 'किंकर' आज भले किंकर
       पुत्र 'शंकरानंद ' हुआ  है।"

मगर सारी खुशियां तब काफ़ूर हो जाती हैं जब औफिस के काइयां बड़ा बाबू की जेब में ही सारे विपत्र अंटके कुछ 'आक्सीजन' की मांग करते  नजर आते हैं तो पीड़ित अवाम कलेजा थामकर गेट पर ही बैठ जाता है:
        " बात-बात  में   उठा  पटक।
          बिल सभी गये हैं फिर लटक।
          जीतने  को  तिकड़मी   हुए
          लोकतंत्र  के   सभी   घटक।
          अफसरों की चाल चल  गई
          डर से सब गये हैं अब सटक।"

कार्यालयीन तिकड़मों की ऐसी जीवंत तस्वीर भला कौन खींच सकता है तो ऐसी वारदातों से मन का  खिन्न होना स्वाभाविक है । तभी तो शायर कैलाश झा किंकर के मन में  ऐसी ख़्वाहिशों ने जन्म लेना शुरू कर दिया कि तो उनकी कलम दार्शनिकता के आकाश में उडा़न भरने लगती है:
  " एक ही ख़्वाहिश हमारी, एक ही अरमान है।
    तब तलक जिंदा रहें हम, जब तलक सम्मान है।
   रोशनाई  से  रचे  सब पात्र हो  जाते  अमर
   मांस, हड्डी ,खून का पुतला बड़ा नादान  है।
    आदमी से आदमी की दूरियां खलने लगीं
   व्यर्थ की बातों में शायद खो गई पहचान है।"

लय-छंद और बह्रों के गंभीर प्रवक्ता किंकर जी को हिंदी छंद और उर्दू बह्रों की अच्छी पकड़ थी। यही कारण है कि बिना छंद और लय की रचनाओं से दूरी बनाए रहते थे और इनकी ग़ज़लें भी हमेशा बाबह्र ही हुआ करती हैं।छंदमुक्तता के वे कभी हिमायती न रहे जिसे उनके चंद अश्'आरों में झलक देखी जा सकती है:
     " संगत ढोलक-झाल से
       गाएं जरा सुर-ताल से
       धन जोड़ते जाते  मगर
       खुशियां नहीं टकसाल से।
      ' किंकर' सुनहरी पत्तियां
       रोती बिछुड़कर डाल से।"
या,
       "नज़रों की पहचान  गई
         जब से दौलतमंद हुआ है।
         गद्य- पद्य का सब भेद  मिटा
         यह भी कोई छंद हुआ है?"

उपर्युक्त अश्'आर में यह भी द्रष्टव्य है कि इनके लिए दौलत ही सबकुछ नहीं है और वे साहित्य को ही सबकुछ समझते हैं, सामाजिक प्रतिष्ठा ही उनके लिए सर्वोपरि है । तभी तो वे उन पियक्कड़ों को भी नसीहत देने से न चूकते, जब अपने ही खानदान या गांव के किसी ने ऐसी हरकतें की होगी:
  " बूंद ओंठ पर पर मैंने कभी ली ही नहीं
    पर प्रतिष्ठा रात-दिन की आबकारी में गई।
    खानदानी थी दौलत हम ग़रीबों के लिए
   कुछ शराबी में गई तो कुछ जुआरी में गई।

घर-द्वार, समाज ,चौक-चौराहों से होती हुई किंकर जी की ग़ज़लें राजनीति के दरबार में नहीं बल्कि चौखटे तक पहुंचकर उसे आंखें दिखाने और ललकारने में भी पीछे नहीं रहती। जरा देखें हम इनके चंद अश्"'आर को:
  " पग -पग कौन सहारा देगा।
     बहुत हुआ तो नारा देगा।
     धोखा जो इक बार दिया है
     धोखा वही दुबारा देगा।"

इस तरह इनकी ग़ज़लों के चंद अश्'आर की पड़ताल से हम निश्चित ही उस गवाक्ष तक पहुंचते जहां से शायर की लेखन -प्रविधि, उसके सामाजिक -राजनीतिक-आर्थिक चिंतन और हृदय की गहराइयों में मानव-कल्याण  के लिए कितने दर्द समाहित हैं जिसे हम कल्पना की नाव में  बैठकर नहीं बल्कि यथार्थ के हिमालय पर चढ़कर ही दर्शन कर सकते हैं। एतदर्थ हम कह कह सकते हैं कि शायर कैलाश झा किंकर निश्चित ही यथार्थवाद के शायर हैं मात्र कल्पना में जीना उनके कृतित्व की नियति नहीं रही है।
......

लेखक - ज्वाला सांध्यपुष्प
लेखक का ईमेल आईडी - jwalasandhyapushpa@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com





इस लेख के लेखक - ज्वाला सांध्यपुष्प



Saturday 18 July 2020

अग्निशिखा काव्य मंच की 51वीं आभासी गोष्ठी 12.7.2020 को संपन्न - लगातार गोष्ठी में हजारों रचनाकारों को जोड़ रचा नया इतिहास

'किताब' और 'सावन' विषयों पर बरसी काव्य सुधा 
बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के हेमन्त दास 'हिम'  थे विशिष्ट अतिथि 

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यूं तो इस तीन महीने से चल रहे लॉक डाउन (जिसका हम भी समर्थन करते हैं) ने सबको अस्त व्यस्त करके रख दिया है पर साहित्यकारों को यह मंच पर न जा पाने की वजह से काफी खल रहा था। एक बेहतर रचना को कोई बेहतर आदमी ही सराह सकता है और इस मामले में अपने साहित्यानुरागी मित्रों से बढ़कर भला कौन होंगे? इसलिए अग्निशिखा मंच ने अपनी आभासी गोष्ठी की मशाल जलाई और देखते देखते 51 गोष्ठियां कर एक इतिहास रच दिया। इस महत्वपूर्ण अवसर पर मुझे भी विशिष्ट अतिथि बनने का अवसर मिला जिस हेतु मैं इस संस्था का आभार प्रकट करता हूँ।  विस्तृत रपट नीचे प्रस्तुत है।(-हेमन्त दास 'हिम')

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से पूरा विश्व प्रभावित हुआ है औऱ भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है यहां के लोग भी ४ महीनों से अधिक समय से घरों में कैद हैं जिससे हर तरह की सामाजिक गतिविधियां बंद हो गयी हैं। लोगों को सिर्फ़ औऱ सिर्फ़ सामाजिक दूरी का पालन करते हुए ही ज़रूरी कामों को करने की इजाज़त दी गयी है। ऐसे में लम्बे वक़्त से घरों में बंद लोग डिजिटल माध्यम से ही एक-दूसरे के संपर्क में हैं जो सुरक्षित और कारगर तरीका भी है। इस मुश्किल वक़्त में एक सराहनीय प्रयास किया है अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच मुंबई ने, जिसकी सरंक्षक अध्यक्ष हैं डॉ अलका पांडेय. इस कोरोना काल में अग्निशिखा मंच के द्वारा अभी तक कुल मिलाकर दिनांक 12.7.2020 को 51गोष्ठियों का समापन किया जा चुका है, जिसमें पहले तो 40 दिन लगातार हर रोज काव्य पाठ किया जाता रहा लेकिन बाद में लोकडाऊन ढीला पड़ने से इसको प्रत्येक रविवार को दो सत्रों में विभाजित कर दिया गया! अप्रैल से लेकर अभी तक 51 ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं जो अभी भी जारी है। अलका पांडेय ने साहित्यकारों के साथ-साथ युवा रचनाकारों को भी लोगों से जुड़ने का मौका दिया है। जिसका जीता जागता है हिमाचल प्रदेश के युवा शायर कवि लेखक चंदेल साहिब

अग्निशिखा काव्य मंच सामाजिक ,साहित्यिक संस्था की संस्थापक और आयोजक अलका पांडेय हैं। अलका का मानना है कि हर किसी को अपनी काबलियत साबित करने का मौका देना चाहिए जो उन्होंने अग्निशिखा मंच के द्वारा देश ही नहीं अपितु विदेशों में रह रहे भारतीयों को भी प्रदान किया

आज का कार्यक्रम दो कारणों से सबसे हट कर, भव्य औऱ शानदार रहा, एक तो आज अग्निशिखा परिवार ने अपने 51 गोष्ठी कार्यक्रम पूरे किए जो कि हमारे हिंदू शास्त्रों के अनुसार भी बहुत बढ़िया व शुभता का अंक मन जाता है
और दूसरा कारण आज के मुख्यातिथि थे!
मुख्य अतिथि -
1) हरि वाणी  - कानपुर (वरिष्ठ साहित्यकार)
विशिष्ठ अतिथि -
२)  हेमंत दास हिम - मुम्बई ( सम्पादक बेजोड़ इंडिया )
३)  आशा जाकड ( साहित्यकार ) इंदौर
कार्यक्रम अंध्यक्ष -
पी एल शर्मा ( सम्पादक )
( अमृत राजस्थान )

अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का 51वां ऑनलाइन कवि सम्मेलन भव्य उत्तम रहा! इस काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन संस्था की अध्यक्षा डॉ अलका पांडेय साथ में उनके अनुज चंदेल साहिब के द्वारा किया गया। मंच का संचालन अत्यंत प्रभावकारी और स्मरणीय रहा.

कार्यक्रम दो शत्रों में किया गया! पहले शत्र में संचालनकर्ता की भूमिका को मिलकर निभाया मुंबई से अलका पांडेय, हिमाचल के शायर चंदेल साहिब (विक्की चंदेल)  औऱ मधुर आवाज की धनी प्रतिभा पराशर ने.

आज के मुख्य अतिथिगण -
 हरि वाणी जी - कानपुर (वरिष्ठ साहित्यकार)
विशिष्ठ अतिथि-
२) हेमंत दास हिम - मुम्बई ( सम्पादक बेजोड़ इंडिया )
पी एल शर्मा:-अमृत राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार,  आशा जाकड़  और सुनील मिश्रा एक्टर राइटर छतीसगढ़ ने काव्य पाठ के मंच की शान को चार चांद और लगा दिए.

दूसरे शत्र को संभाला अलका , जनार्दन शर्मा, सुरेंद्र कुमार शर्मा, शोभा रानी तिवारी  ने, सह संयोजक की भूमिका कवि आनन्द जैन अकेला  ने निभाई.

निर्णायक का दायित्व -
डॉ अरविंद जी ने बहुत खूबसूरती से निभाया, आभार का कार्य सफल हुआ संजय कुमार आदर्श मालवी केशव के मुख से औऱ *सरस्वती वंदना* की आशा जाकड़ व चंदेल साहिब हिमाचल प्रदेश से

अलका पांडेय ने लिखा -
कभी प्यार से हंसाती
है किताबे
कभी दर्द से रुलाती
है किताबे कभी खौफ
से डराती है किताबे
कभी अनबुझी पहेली सी उलझाती है किताबे
हाँ हाँ किताबे

चंदेल साहिब ने फ़रमाया -

खुली क़िताब की तरह सँजो रखा है अपने दिल को साहिब
वही टूटे ख़ाब अधूरे जज़्बात औऱ पुराने ख़्यालात
इन्तेजार है उस वक़्त का जब- दोनों को मिलाएगी क़ायनात

 श्रीहरि वाणी -
“पन्ने पन्ने बिखर गये “
     अक्षर भी सब मौन रहे
      पीड़ा की सीमा से आगे
     कैसी पीड़ा, कौन सहे
अनहद में गीतों को रच देंं, ऐसे छन्द सवैया हों..
मैं पिंजरे का पँछी बेबस, तुम आजाद चिरैया हों...

हेमन्त दास 'हिम' -
बूढ़ों को गर्मी से राहत और जवां मन में हिलोर
बरखा से पनपी लहरों में युगल विवश रहा है।
लाख मुसीबत रहने पर भी सावन है तुष्टि का नाम
चाहे आलिंगन मिल रहा या विरह डंस रहा है

आशा जाकड़़ -
रिमझिम  मेंहा बरसे अपने आंगन में बारिश की हम धूम मचावे सावन में
पेड़ों पर हम झूला डालें सखियों संग संग झूलेंगे
ऊंचे ऊंचे पैग बढ़ाकर कर गीतों के स्वर गूंजेगे
खुशियों के हम मृदंग बजावे उपवन में

श्रीमती अनिता शरद झा  रायपुर छत्तीसगढ़ -
साँवरिया आये नहि 
नैहर की रीत मोहें भायें नहीं
सैंया संग लागी हैं नज़रिया
सावन में बरसी बदरिया रे
साँवरिया आये नहीं
बह गई हैं सारी कजरिया रे
सवरियाँ आयें नहि

सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश -
बारिश की झमाझम बरसती बूंदे,
विरहा की अग्नि में घी का काम करती।
ऐसे में दीदार हो सजन तेरा तो,
मेरी अंतरात्मा भी भव सागर तरती।

  मधु वैष्णव "मान्या",जोधपुर राजस्थान
माह सावन ,
महक रस धार,
  छठा निराली।

रानी नारंग जोधपुर राजस्थान -
पहला अक्षर जब पढ़ना  सीखा तो शब्दों से पहचान हुई
और शब्दों को जब गढ़ना सीखा तो किताबें मित्र हमारी खास हुई।  

डा. महताब अहमद आज़ाद उत्तर प्रदेश -
सावन जब भी आता है!
तंहाई का एहसास कराता है!!
लौट आ रूठ के जाने वाले!
अकेला पन बहुत सताता है!!

कवि आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश -
सतरंगी वसुंधरा पर, फैली मोहक हरियाली है।
बहार श्रावणी व्याप्त हर तरफ, लगती छटा निराली है।

शोभारानी - तिवारी -
सावन आयो ये हो सावन आयो ये
उमड़ घुमड़ कर आई बदरिया
आसमान में छाए बदरिया
छम छम छम छम बिजुरिया चमके
तन मन को हर्षाए बदरिया

 अश्मजा प्रियदर्शिनी पटना बिहार
आयो सावन मैं बांट निहारु।
आयो सावन मै बांट निहारु।
अमुवा की डाली पे झूला पड़गए।
राधा झूले कन्हैया झूला रए।

वंदना शर्मा बिंदु देवास -
ये रिमझिम झिमझिम रस बरसाता
बन जाता उत्सव है।

शकुंतला (पावनी ), चंडीगढ़ -
वो कौन थी

कांता अग्रवाल -
आकर मेरे सिरहाने
करने लगी मुझसे बात
मेरी किताब...

जनार्दन शर्मा -
चहु और प्रकृति बारीश की बूंदो के सामिप्य से मुस्काई,
सावन कि ऋतु आई,,,,,
कड़कती बिजली, और तेज बारिशो की फूहारो से ठंडी हवा आई घूम के,
 आया सावन झूम के

प्रतिभागी थे -
1) मंजुला वर्मा हिमाचल प्रदेश
2)अंकिता सिन्हा जमशेदपुर
3) सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश
4)सुनीता अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश
5)द्रोपती साहू सरसिज छत्तीसगढ
6)ज्ञानेश कुमार मिश्रा
7) गुरिंदर गिल मलेशिया
8) मधु वैष्णव जोधपुर
9) शोभा किरण,जमशेदपुर
10) इन्द्राणी साहू साँची छत्तीसगढ़
11)शेखर राम कृष्ण तिवारी
12) वैष्णो खत्री वेदिका
13)सुषमा शुक्ला इंदौर
14) शकुंतला (पावनी )
राज्य चंडीगढ़।
15) शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छ्तीसगढ़
16)शोभा रानी तिवारी
17)दिनेश शर्मा
18)ज्योति जलज
19) सीमा दूबे साँझ
20)"पद्माक्षी शुक्ल, पुणे,
21) रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, नवी मुंबई,
22) ओमप्रकाश पांडेय, खारघर नवि मुंबई
23) रागिनी मित्तल कटनी
24) अश्मजा प्रियदर्शिनी पटना
25)आनंद जैन अकेला कटनी
26) संजय मालवी आदर्श
27) प्रतिभा कुमारी पराशर
28)ऐश्वर्य जोशी कापरे
29) विजया बाली
30)चंदेल साहिब बिलासपुर
31) सुनील दत्त मिश्रा एक्टर डायरेक्टर छतीसगढ़
31)कान्ता अग्रवाल गुवाहाटी
32) डॉ. दविंदर कौर होरा,
33)रानी नारंग जी,
34) मुन्नी गर्ग
35) डॉ संगीता पाल कच्छ गुजरात   
36)हीरा सिंह कौशल हिमाचल प्रदेश
37)माधवी अग्रवाल आगरा
38) डॉ पुष्पा गुप्ता मुजफ्फरपुर बिहार
39) डा. महताब अहमद आज़ाद
उत्तर प्रदेश
40) अलका पांडेय मुंबई
41)रजनी अग्रवाल जोधपुर
42) चन्दा डांगी
43) उपेंद्र अजनबी गाजीपुर उत्तर प्रदेश
44) प्रेरणा सेन्द्रे
45) अवतार कौंडल
46) ममता तिवारी इंदौर
47) छगनराज राव "दीप" जोधपुर
48) दीपा परिहार "दीप्ति" जोधपुर
49)ज्योति भाष्कर ज्योतिर्गमय (बिहार)
50) स्मिता धीरसरिया  . बारपेटा रोड
51)पदमा ओजेंद्र तिवारी मध्य प्रदेश
52)डॉ रश्मि शुक्ला प्रयागराज
53) रविशंकर कोलते
54)सावित्री तिवारी दमोह
55)नीलम पांडेय गोरखपुर
56)मीना गोपाल त्रिपाठी
57)डॉ साधना तोमर बागपत
58)मीना कुमारी परिहार पटना
59) जनार्दन शर्मा आशूकवि
60)गीता पांडेय "बेबी" जबलपुर
61) वंदना शर्मा बिंदु देवास
62)डॉ लीला दीवान
63)रेखा पांडे
64) गोवर्धन लाल बघेल छतीसगढ़
65) डॉ राम स्वरुप साहू कल्याण
66)भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.)
67) गरिमा लखनऊ
68)प्रिया उदयन, केरला
69) मीरा भार्गव सुदर्शना कटनी मध्यप्रदेश
70) सुरेन्द्र हरडे कवि नागपुर
71) आशा जाकड़ जी
72) मनीष कुमार सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश
73) अनिता मंदिलवार सपना
74) डॉ नेहा इलाहाबादी दिल्ली
75) डाॅ0 उषा पाण्डेय
कोलकाता
76) वंदना श्रीवास्तव
77) अनिता शरद झा
78) डां अंजुल कंसल- इंदौर
79) अर्चना पाठक निरंतर
अम्बिकापुर
80)डॉ गुलाब चंद पटेल, गांधी नगर
81) कल्पना भदौरिया नाम
"प्रतिभा कुमारी पराशर"
82) विजयकांत द्विवेदी
83) निहारिका झा खैरागढ़
"84) डॉ अलका पांडेय मुंबई"
"85) चंदेल साहिब" बिलासपुर हि. प्र.
86) श्री हरि वाणी - कानपुर
87) श्री हेमंत दास हिम - मुम्बई
88) आशा जाकड - इंदौर
89) पी एल शर्मा जी - राजस्थान
90) अश्विन पाण्डेय

मंच की उत्कृष्टता इसी बात से जानी जा सकती है कि यहाँ कोई भी बड़ा या छोटा नहीं सब एक बराबर है, सब एक दूसरे को सहयोग करते प्रेरित करते मार्गदर्शन करते एवं सब ने एक दूसरे को सुना व सराहा, निर्णायकों ने शपष्ट टिप्पणी दी सबको बहुत कुछ सीखने को भी मिला!
अभी तक 51) वें कवि सम्मेलन तक 4600/से ज्यादा कवियों ने कविता पाठ कर एक कीर्तिमान स्थापित किया है! 'किताब' / 'सावन'  जो इस बार के विषय थे उन पर खूब रंग जमा। सब ने एक दूसरे को सराहा और कई कवियों ने  अपने काव्य पाठ से सभी को मंत्रमुग्ध किया। इसमें पूरे भारत औऱ विदेश में रह रहे भाई बहनों को भी एक पटल पर लाकर रखा। इतने लंबे अरसे से इस मंच ने एक परिवार की भांति सब को साथ जोड़े रखा तो इसका सारा का सारा श्रेय अग्निशिखा मंच को जाता है। तो इसलिए इस मंच की गरिमा औऱ शोभा बढ़ाने हेतू एक रचना कविता पाठ इसके नाम पर रखा गया, सभी रचनाकारों का यही मानना है की 51 वें कवि सम्मेलन तक के इतिहास में यह विषय सबसे उत्तम विषय रहा!

अगला आयोजन १९/७/२०२०का सम्मान समारोह होगा ।उसके बाद महिने में एक होगा क्योकि अब लाकडाऊन बहुत जगहों पर ढीला हो गया है ।
,,,,,

रपट की लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय 
पता - मुम्बई
परिचय - अध्यक्षा, अग्निशिखा काव्य मंच 
रपट की लेखिका का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
 प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodidia@gmail.com

राजेश झरपुरे के कविता संग्रह "कुछ इस तरह" की अस्मुरारी नंदन मिश्र द्वारा समीक्षा

प्रार्थनाओं के बेअसर होने के बाद की बेचैनी 

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*आज फिर स्कूल में
एक बच्चे की लाश मिली- वाशरूम में
स्कूल के ही
किसी बच्चे ने गला रेत दिया उसका।
*एतबार नहीं होता
पर करना पड़ा
सारे तथ्य और सबूत
बच्चे के खिलाफ़ थे।
*अब सवाल यह नहीं
कि बच्चा स्कूल में
चाकू कहाँ से लाया...?
*हैरानी तो इस बात पर है
कि इस तरह अनिष्ट के लिए
जितनी घृणा और प्रचंडता की
ज़रूरत होती है
वह कहाँ से लाया - बच्चा...?
&बच्चे के बस्ते के
किसी कोने में
नफ़रत का बीज तो नहीं पल रहा?

कवि-कथाकार राजेश झरपुरे की यह विचलित कर देने वाली कविता उनके नये काव्य-संग्रह 'कुछ इस तरह' में संकलित है।राजेश झरपुरे के इस संग्रह की कविताओं में एक बेचैनी और कसमसाहट है, जो प्रार्थनाओं के बेअसर होने के बाद पैदा होती है।

संग्रह की कविताओं में एक भाव सबलता से आता है कि अपनी दुर्गति के पीछे कुछ अपनी कमज़ोरी भी होती है। हमारे पास एक दूसरी राह पर चलने का विकल्प भी साथ-साथ होता है, भले ही वह बहुत जोखिम का हो। इसलिए मानो वे दो उँगलियों में से एक पकड़ने के लिए देते हैं; अब आप ही चुनिए-
"आप सिर बचाना चाहते हैं
या टोपी?"
इस संग्रह में ऐसा आम आदमी है, जो जीवन भर एक आकाश-कुसुम के फेर में मानो बढ़ा चला जाता है। उसका हर कदम एक अलक्ष्य उम्मीद पर बढ़ रहा होता है, किंतु उसका हासिल तमाम तरह की ठोकरें ही होती हैं। नौकरी, शादी, बच्चे, जिम्मेदारी फिर रिटायरमेंट; और अंततः-
"ता-उम्र दुःखों के बीच गुज़ार देने के बाद
सुखी हो‌ जाने
मुक्त हो जाने से डर जाता है
वह रिटायर होता आदमी।"

इसमें अनेक कविताएँ हैं, जो पचास पार के वय को‌ अलग-अलग संदर्भों में देखती हैं। पचास पार की‌ नौकरी, पचास पार की गृहस्थी, पचास पार का प्रेम, फिर साठ तक आते-आते रिटायरमेंट की प्रक्रिया, फिर रिटायरमेंट के बाद का उपेक्षित जीवन। अपने ही बनाये घर के बाहर वे पति-पत्नी बैठे रहते हैं, जैसे घर के बाहर लिख देते हैं- शुभ और लाभ। बस इनके जीवन का शुभ-लाभ अलभ्य ही रह जाता है।

राजेश झरपुरे ने अपने आस-पास को प्रामाणिकता से कविता में ढालने का काम किया है। खनिक जीवन, उनकी मेहनत, संघर्ष, दुर्घटना और मौत पर लिखी कविताएँ एक परिदृश्य रचती हैं। यद्यपि इनमें बिंबों और कहन का दुहराव भी है, तथापि ऐसे उपेक्षित खनिक मज़दूरों को कविता में नायकत्व देना अच्छा भी लगता है। नेमीचंद उईके, रामप्रसाद, रविशंकर, राजेश कनोजे, रफ़ीक जैसे जीते-जागते और मरते हुए लोग हैं, जो अंधेरे को खदेड़ने के प्रयास में लगे रहे और अपना बलिदान करते रहे। इन कविताओं में लेखक का कथाकार भी बोलता प्रतीत होता है। इनमें पात्र हैं, चरित्र हैं, चरित्रों का विकास है, छोटे-छोटे डिटेल्स हैं और सीधी-सादी भाषा है। इनके द्वारा कविता बुनी जाती है। कविताओं पर परिवेशगत ईमानदारी की छाप है।

व्यक्तिगत भावनाओं के प्रति भी उसी ईमानदारी को देखा जा सकता है। पचास पार प्रेम करता कवि कहता है-
"मैं समझ नहीं पाता
उम्र के इस ठौर पर
ऐसा क्यों हो रहा मेरे साथ?
*क्या कल तक
बंधन में था मेरा प्रेम?"

संबंधों पर कविता लिखते हुए आदमी अक्सर भावुकता और आदर्शवादिता का शिकार हो जाता है। झरपुरे जी ने इसे पूरी तरह से तोड़ा है। अभी फादर्स डे पर ममता सिंह ने सवाल किया था कि सब के पिता इतने अच्छे-अच्छे ही हैं, तो समाज में सामान्य रूप से दिखने वाले पुरुष कहाँ से आ गये?
इस संग्रह की 'पिता तुम ईश्वर हो' शीर्षक कविता पूरी विद्रूपता से उसका जवाब प्रस्तुत करती है:-
"वैसे भी तुम
कभी पिता थे ही नहीं
तुम तो
माँ का
माँस नोचने वाले
एक आदमख़ोर भेड़िया थे
और हम सब भाई
तुम्हारे .....।"
'आमुख' में मोहन कुमार डहेरिया ने इस कविता पर टिप्पणी की है- "यहाँ उनकी‌ कलम नश्तर से भी ज़्यादा निर्मम और क्रूर होकर तथाकथित सामाजिक ताने-बाने की चीड़-फाड़ करती है। बड़ी होती असंवेदनशील नयी पीढ़ी के लिए यह कविता एक बेहतरीन सामाजिक दस्तावेज़ मानी जा सकती है।"

इसी तरह 'छोटी बहन' कविता में मारे जाने के तमाम प्रयासों के बाद भी जन्मी तीसरी बेटी कहती है-
"अच्छा हुआ मेरी जगह
उस कोख से
नहीं‌ जन्मा कोई लड़का
वरन् ज़्यादा उपेक्षित होतीं वे।"
तमाम उपेक्षाओं को सहती यह बेटी मानो अपने ही माता-पिता को शाप देती है कि तुम निपूते ही रहो।

संग्रह एक मिला-जुला असर पैदा करता है, जिसमें यथार्थ को नंगा देखने की अकुलाहट, बेचैनी, मजबूरी और विरोध है।
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पुस्तक – कुछ इस तरह (कविता संग्रह)
कवि - राजेश झरपुरे ( मो.न. 9425837377 )
प्रकाशक – रश्मि प्रकाशन , लखनऊ
सहयोग राशि – 175 रूपये
समीक्षक - अस्मुरारी नंदन मिश्र 
समीक्षक का ईमेल आईडी -  asmuraribhu@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


समीक्षक - अस्मुरारी नंदन मिश्र