Wednesday 30 September 2020

वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच की बिहार इकाई द्वारा ऑनलाइन मासिक गोष्ठी 29.9.2020 को सम्पन्न

फिर क्यों  इसकी राह में है इतना अवरोध 

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राजभाषा की मान्यता प्राप्त हिन्दी को हमें राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाना हैl इस हेतु यह आवश्यक है कि इस मधुर, शिष्ट, सरल, सौम्य और सर्वग्राही भाषा को हम क्षेत्रीयता, जाति, सम्प्रदाय और अन्य बंधनों से मुक्त करेंl  हिंदी का मानकीकृत रूप तो आवश्यक है ही औपचारिक और शासकीय संचार हेतु किन्तु विभिन्न रूपों में यानी बोलियों के नाम से बोली जानेवाली हिंदी के प्रति भी हम सम्मान व्यक्त करें और उसकी खिल्ली न उड़ाएँl  इसमें यदि दक्षिण भारतीय भाषाओं में से कुछ अतिप्रचलित शब्दों को यत्नपूर्वक जोड़ दिया जाय और उसका सबके द्वारा व्यवहार हो तो हिन्दी की दक्षिण भारत में सुग्राह्यता में वृद्धि हो सकती हैl  हिंदी  के प्रचार-प्रसार हेतु प्रतिबद्ध संस्था वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच ने हाल ही में एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया जिसकी रपट नीचे प्रस्तुत हैl (हेमन्त दास 'हिम')

अवसर था, वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच की बिहार इकाई द्वारा ऑनलाइन मासिक गोष्ठी का जो राजभाषा हिंदी पखवाड़ा के समापन एवं राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती  के अवसर पर आयोजित की गई थी! इस आयोजन के  अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी तथा मुख्य अतिथि  डॉक्टर गोरखनाथ मस्ताना और घनश्याम थे l
इस पूरी गोष्ठी का सफलतापूर्वक संचालन किया मनीबेन द्विवेदी ने l

भगवती प्रसाद द्विवेदी ने धैर्य रखने को कहा -
 जहां  धैर्य है, सृजन है, कहां टिकेगी रात 
विजयी  होगी मनुष्यता, होगा शुभ प्रभात!"

कवि घनश्याम ने सभी को सम्मान देते हुए हिन्दी के प्रसार की बात की -
 हर भाषा का हम करें यथायोग्य सम्मान,
 लेकिन हिंदी से बने भारत की पहचान !
हिंदी हिंदुस्तान की भाषा सरल सुबोध, 
फिर क्यों  इसकी राह में है इतना अवरोध ?"

संस्था के अध्यक्ष मधुरेश नारायण  ने देशभर में इसे फैलाने की प्रतिबद्धता दिखाई-
"हिंदी का मान बढाना है,जग में स्थान दिलाना है!
/देश के कोने-कोने तक पैगाम ये पहुचाना है।"

सिद्धेश्वर ने सौतेले व्यवहार पर चिता जताई-
"हिंदी की यह दुर्दशा अब देखी नहीं जाती, 
सौतेली बनी हमारी भाषा अब देखी नहीं जाती !"

मनोज कुमार अम्बस्ठ  ने हिंदी का गुणगान यूँ किया-
"सरल सुहावन मीठी बोली, माथे पर लाल बिंदी है!/ 
हम सब है भारत के निवासी, अपनी भाषा हिंदी है!"

विजयकांत द्विवेदी ने भीतरघात करनेवालों को लपेटा-
" सत्तासीन है अंग्रेजी साहित्य में उर्दू भरमार, 
हिंदी हार रही निजगृह, अपनो से खाकर मार!"

हम जिस समाज में रह रहे हैं वहाँ स्त्री को पूजनीय माना गया है फिर भी रोज किसी निर्भया का बलात्कार और हत्या हो रही हैl आज हाथरस गैंगरेप की पीड़िता की मौत की खबर से पूरा देश स्तब्ध हैl
रजनी पाठक ने नारी के प्रति समाज के दोहरे चरित्र का पर्दाफाश किया-
" मैं हूं  कन्या भारत की, देवी का स्थान पाती हूं, 
पर पता नहीं क्यों मैं बलि मैं  चढ़ाई जाती हूं !"

 एम के मधु ने बताया कि सभ्यता में प्रवाह होता है और वह सबको मिलानेवाली होती है-
"वह भाव है, वह सभ्यता है, जो नदी-सी  बहती है, 
और समंदर  बन जाती है !"

देवी नागरानी ने अपनी जुबान की मांग की -
"हमें अपनी  हिंदी जुबान चाहिए, 
सुनाएं जो लोरी, वह माँ चाहिए!/

नूतन सिंह ने अंग्रेजी में ग्लैमर और  हिंदी में शर्मिंदगी की कड़वी सच्चाई को रखा -
"हिंदी कुछ कहती है, अंग्रेजी ठाट- बाट देख कर, 
शर्म से लोग मुझे अपनाने से कतराते हैं !"

 मणिबेन अपने धार्मिक अंदाज़ में दिखे-
"आज गजानन आना!/ तेरी राह निहारु!"

डॉ सुधा सिन्हा ने हिंदी को कालजयी करार दियाl
यह  कालजयी,  यह कालजयी,  
देखो है हिंदी कालजयी !"

इसके अतिरिक्त मीना कुमारी परिहार, संजय शुक्ला, अलका वर्मा, रजनी पाठक, सत्येंद्रनाथ वर्मा,  डॉ सुधा सिन्हा,  मनोज कुमार, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, डॉ सुधा सिन्हा, विजकांत द्विवेदी आदि दो दर्जन से अधिक देश भर के कवि-कवयित्रियों ने भी अपनी  समय संदर्भित कविता से, इस कवि गोष्ठी को यादगार बनाया l 

 गोष्ठी के अंत में संस्था के अध्यक्ष मधुरेश नारायण ने सभी कवियों के प्रति आभार प्रकट कियाl
.......

रपट का मूल आलेख - सिद्धेश्वर 
प्रस्तुति - बेजोड़  इंडिया ब्लॉग
मूल रपट लेखक का ईमेल आईडी - idheshwarpoet.art@gmail.com
मूल रपट लेखक का मोबाइल - 92347 60365
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Tuesday 29 September 2020

"विन्यास साहित्य मंच" द्वारा 27.9.2020 को आभासी मंच पर काव्य संध्या सम्पन्न

दुश्मनी प्यार की तलवार से कट जाती है 

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"मौसम चाहे सलोना हो, या फैला हुआ करोना हो", कोई फर्क नहीं पड़ता- शायर जहाँ रहते हैं माहौल शायराना हो जाना लाज़मी होता है। और जब देश के कुछ जाने-माने शायरों का जमावड़ा हो अपने मिजाज़ के कुछ युवाओं की टोली के साथ तो रंग में अजब निखार आ जाता है। हालाँकि इस महफिल में शृंगार रस पर फोकस बना रहा परन्तु देश-दुनिया के मामलात भी छलकते रहे इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता। आइये लुत्फ लेते हैं गोष्ठी-सह-मुशायरे का (सम्पादक)

पटना। "पिछले कई महीनों से ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों/ मुशायरों ने जिस प्रकार देश-विदेश के साहित्यकारों को करीब आने का मौका दिया है, वह सही मायनों मे नवीनतम तकनीकों की वजह से ही संभव हो पा रहा है। सोशल डिस्टेन्सिंग के इस काल में सोशल मीडिया ने जो साहित्यकारों को मंच उपलब्ध करवाए हैं, उससे साहित्य एक नए मुकाम को हासिल करने की तरफ अग्रसर है।" यह बातें साहित्यिक संस्था विन्यास साहित्य मंच द्वारा आयोजित ऑनलाइन काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुये पटना के शायर घनश्याम ने कहीं। काव्य संध्या में देश भर के चर्चित कवि-कवयित्रियों ने एक से बढ़कर एक रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम में गजरौला (उत्तर प्रदेश) से डॉ. मधु चतुर्वेदी, सागर (मध्य प्रदेश) से अशोक मिजाज 'बद्र', आसनसोल (पश्चिम बंगाल) से निगार आरा, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) से एकलव्य केसरी के अलावा बिहार के मुंगेर से अनिरुद्ध सिन्हा, मुजफ्फरपुर से डॉ. पंकज कर्ण, पटना से संजय कुमार कुन्दन, नीलांशु रंजन, डॉ. नसर आलम नसर, आराधना प्रसाद, सुनंदा केसरी और मो. नसीम अख्तर ने अपनी गज़लों-नज़मों की बेहतरीन प्रस्तुतियों से समा बांध दिया। कार्यक्रम का संचालन नई दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चन्दन ने किया। लगभग दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में श्रोता के रूप में भी अनेक सुप्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार जुड़े रहे।

काव्य संध्या में सुनाई गई कविताएँ इस प्रकार हैं:

घनश्याम ने गांधी के प्रेम के धागे के टूटने पर चिंता जाहिर की -
हमारा मन सुबह से खिन्न क्यों है
निगोड़ी धारणा भी भिन्न क्यों है
जिसे जोड़ा था गांधी ने जतन से
वो धागा प्रेम का विच्छिन्न क्यों है

अशोक मिजाज बद्र ने क्यों नहीं घर का ताला बदला, जानिये- 
हमने तकिए में ही सिलवा दिए तेरे सब खत 
और उसी दिन से वो तकिया नहीं बदला हमने।
उसकी इक चाबी तेरे पास रहा करती थी,
इसलिए घर का वो ताला नहीं बदला हमने।

अनिरुद्ध सिन्हा जैसे मंझे शाय्रर की बातों में धार होती है -
उलझनों से  तो कभी प्यार से कट जाती है 
ज़िंदगी वक़्त की  रफ़्तार से  कट  जाती है 
मैं तो क्या चीज़ हूँ परछाई भी मेरी अक्सर 
रोज़  उठती  हुई दीवार  से  कट  जाती है 
यूँ तो मुश्किल है बहुत इसको मिटाना साहब 
दुश्मनी प्यार   की  तलवार से कट  जाती है 

संजय कुमार कुन्दन रूमानी शख़्सियत वाले शायर हैं जिनकी रूमानियत अब एक बड़ी लम्बी दौड़ तय कर चुकी  है -
देख वो किस क़दर दीवाना हुआ
पारा पारा  कोई  अफ़साना हुआ
शाम  का  लम्हा  राज़ का  लम्हा
लेकिन उस बात को ज़माना हुआ

आराधना प्रसाद एक मुकम्मल शायरा हैं मुहब्बत में डूबी हुई -
ऐसी देखी न थी कभी आंखें
रह गई जिनको देखती आंखें
मेज़ पर तेरे छोड़ आयी हूं
लाके दे दे मुझे मेरी आंखें
ज़िक्र कैसे बयां हो उस पल का
उसकी आंखें थीं और मेरी आंखें

नीलांशु रंजन के अंदाज़ में नज़ाकत अहले दर्ज़े की दिखती है - 
" चाहता हूँ 
 दुनिया की सारी ख़ूबसूरत नज़्मे 
किताबों से निकाल कर टांक दूँ उन्हें 
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में जूही- बेली की तरह।"

मो. नसीम अख्तर वक़्त के दोहरे किरदार को असरदार तरीके से दिखाते नज़र आ रहे हैं -
इधर शम्मे उलफत जलाई गई है
उधर कोई आँधी उठाई गई है
वो घर को नहीं बाँट डालेगी 
दिल कोजो दीवार घर में उठाई गई है

डॉ. मधु चतुर्वेदी की आशिकाना गुज़ारिश गौरतलब है -
जी चाहता है तू मुझे हर पल दिखाई दे
आँखों की ठहरी झील में हलचल दिखाई दे।
इसको फ़रेबे-चश्म का तुम नाम दो तो दो,
मुझ को हवा के पावों में पायल दिखाई दे।

डॉ पंकज कर्ण एक सामाजिक सरोकार वाले इंसान हैं जो भूखे को खिलाकर ही अपना निवाला उठाते हैं -
सबकुछ अपने-आप संभाला जाएगा
अर्थ-प्रबंधन कब तक टाला जाएगा
पहले हर भूखे को उनके हक़ की दें
मेरे अंदर तभी निवाला जाएगा

डॉ. नसर आलम नसर एक इश्क़क़मिज़ाज शायर हैं जो चांदनी रात में सोना नहीं जानते -
आप की मेरे ऊपर नज़र हो गई 
ज़िंदगी खूब से खूबतर हो गाई 
चांदनी  मुस्कुराती रही रात भर 
देखते  देखते ही  सहर हो गई

एकलव्य केसरी रोजगार और प्यार के मुस्तक़िल मसाइल को झेलते दिख रहे हैं -
तेरा दीदार हो जाये, है दिल में ये बड़ी हसरत
मगर रोटी कमाने से नहीं मिलती ज़रा फुर्सत
वो दरवाजे पे आने की मेरे बस राह देखे है
मेरा मन भी तड़पता है मगर छुट्टी पे है आफत
  
सुनंदा केसरी अपने मनमुताबिक मौसम के लिए मुंतज़िर हैं - 
मौसम सारे आते है 
गरमी जाड़ा बरसात 
आता वह एक बसंत नहीं 
मुझको है जिसकी आस

निगार आरा भी अपने प्रिय के ख़्यालों में खोई रहीं - 
हर शब में तुझे देखूं ख्वाबों में ख्यालों में
तस्वीर तेरी जबसे रक्खी है  किताबों में
गुलशन की बहारों को हम देख नहीं पाते
खोए   हुए   रहते  हैं  यूं  तेरे  खयालों में

चैतन्य चन्दन ने माँ पर कशीदे पढ़े - 
दिलों के जख्म पर मरहम लगाना जानती है माँ
अगर रूठे कोई बच्चा, मनाना जानती है माँ
खिला देती है भूखे को वो रोटी अपने हिस्से की
ग़रीबी में भी हर रिश्ता निभाना जानती है माँ

इस तरह से सौहार्दपूर्ण माहौल में इस गोष्ठी का समापन हुआ
...

रपट का मूल आलेख - चैतन्य चंदन 
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
रपट के मूल लेखक का ईमेल आईडी - luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Wednesday 23 September 2020

भा. युवा साहित्यकार परिषद के द्वारा 21.9.2020 को ऑनलाइन (आभासी) लघुकथा सम्मेलन सम्पन्न

असम्भ्य से सभ्य हुए और अब सभ्य से असभ्य होंगे?
अमेरिका, महाराष्ट्र, नई दिल्ली, उ.प्र.,म.प्र., बिहार, कर्णाटक, राजस्थान आदि के लघुकथाकारों द्वारा पाठ 

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पटना: 21.9.2020. "राजभाषा हिंदी की प्रासंगिकता के संदर्भ में,  हम कह सकते हैं, कि हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने में, हिंदी फिल्में कामयाब रही है तो दूसरी तरफ हिंदी को श्रेष्ठ भाषा के आसन पर बैठाने में हिंदी साहित्य का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. सिद्धेश्वर ने आगे कहा कि - "आज कविता के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय विधा लघुकथा है." 

भारतीय युवा  साहित्यकार  परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी  पत्रिका" पेज पर ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में देश के नए-पुराने लगभग 25 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी समकालीन लघुकथाओं का पाठ कियाl 

आन लाइन आयोजित हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन के मुख्य अतिथि  वरिष्ठ लघुकथा लेखिका पुष्पा जमुआर ने कहा कि- "हिंदी दिवस के झरोखे से झांकती हुई लघुकथा  शीर्ष पर पहुंच गई है । यह  अक्षरशः सत्य है कि कथा साहित्य को पढ़ने हेतु ही तत्कालीन लोगों ने हिंदी सीखी थी। और फिर  कथा साहित्य में लघुकथा का विकास भी  शनैः-शनै हुआ । लघुकथा लेखन में दैनंदिन बढ़ोतरी हुई है ।मानें तो हिन्दी  राजभाषा के विकास में भी लघुकथा अपना मुख्य योगदान दे रही है । 

उन्होंने हिंदी लघुकथा पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि - "लघु पत्र-पत्रिकाओं में,  कम जगहों में लघुकथा अपना स्थान बना लेती है। साथ ही पाठक वर्ग भी   लघुकथा  को कम समय में पढ़ कर   संपूर्ण कथा का आनंद लेते हैं। लघुकथा में अनावश्यक शब्दों की  विस्तार से  रचनाकार  को बचने से  पाठक  भी लघुकथा  पढ़ने का आनंद लेते हैं।"

कथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, विजयानंद विजय (मुजफ्फरपुर) ने ऑनलाइन पठित लघुकथा पर विस्तार से समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा कि- "ऑनलाइन मासिक लघुकथा कार्यक्रम में आज वरिष्ठ व नवोदितों द्वारा अच्छी-अच्छी लघुकथाएँ प्रस्तुत की गयीं। हिंदी दिवस पर हिंदी का नकली आवरण ओढ़े नेताजी को अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने पर करारा तमाचा लगाती है पुष्पा जमुआर की लघुकथा छद्मवेशी। गुदड़ी का लाल वह होता है जो व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर उठकर देशहित में कुर्बान होता है, यह संदेश देती है राज प्रिया रानी की लघुकथा "गुदड़ी के लाल"।

सिद्धेश्वर की लघुकथा "बेटे की कीमत" हमारी घृृृणित सोच और मानसिकता पर प्रहार करते हुए बेेेटे के  होने न होने का सही अर्थ बताती है। रशीद गौरी जी की लघुकथा "बाबू जी हैं ना" उस मानसिकता पर चोट करती है जहाँ बुजुर्गों को सम्मान देने की बजाय उनका अपमान और तिरस्कार किया जाता है। नरेन्द्र कौर छावड़ा की लघुकथा "अप्रत्याशित" भी इसी मानसिकता पर प्रहार करते हुए बेटे-बहू को जीवन का सही सबक सिखाती है। ईमानदारी, सच्चाई और वफादारी अभी भी जिंदा है समाज में। गलत प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख न होकर हमेें सही राह पर चलना चाहिए। 

डॉ. शरद नारायण खरे की लघुकथा पढ़कर लगेगा कि उम्मीद अभी जिंंदा है। हम असभ्य से सभ्य हुए और अब सभ्य से कैसे असभ्य होते जा रहे हैं, यह बताती-दिखाती है पुष्प रंजन जी की लघुकथा।

स्वतंत्रता सेनानी की वास्तविकता बताती है ऋचा वर्मा की लघुकथा। हरिनारायण हरि की लघुकथा "अंतर्धर्म" सर्व धर्म समभाव की महत्ता स्थापित करती है। समाज सेवा दिखावे के लिए नहीं की जाती, मानव हितार्थ की जाती है, यह संदेश देती है मीना परिहार की लघुकथा। पुलिस के मानवीय स्वरूप का बेहतरीन चित्रण है सेवा सदन प्रसाद की लघुकथा "क्या ये वही पुलिस है?" में। सही गुरू वह होता है जो ज्ञान को पीढ़ियों में हस्तांतरित करता है, यही समझाने की कोशिश करती है कल्पना भट्ट की लघुकथा "दृष्टिभ्रम"।

अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए ऑनलाइन आयोजित इस अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में अमेरिका से विभा रानी श्रीवास्तव ने (वृद्धा आश्रम), भोपाल से कल्पना भट्ट ने ('दृष्टि),  मुंबई से सेवा सदन प्रसाद ने (क्या यही पुलिस है?), मंडला मध्य प्रदेश से डॉक्टर शरद नारायण खड़े ने (उम्मीद अभी जिंदा है), सांगरिका रॉय ने (मुस्कान),  बरेली से डॉक्टर सतीशराज पुष्करणा ने (चूक), सिद्धेश्वर ने (एक बेटे की कीमत ), बेंगलुरु से सविता मिश्रा मागधी  ने (कतरन),  पुष्पा जमुआर ने (हिंदी दिवस),  मीना कुमारी परिहार ने (समाज सेवा),  मुजफ्फरपुर से विजयानंद विजय ने (तीन बंदर ), समस्तीपुर से हरि नारायण हरि ने (अंतरधर्म), ऋचा  वर्मा ने (स्वतंत्रता सेनानी), अरवल से  पुष्परंजन कुमार ने (बौद्धिक विकास ), महाराष्ट्र से नरेंद्र कौर छाबड़ा ने (अप्रत्याशित), सोजत सिटी (राजस्थान) से रसीद गौरी ने (बाबूजी हैं न !), राजप्रिया रानी ने (गुदड़ी के लाल),  नई दिल्ली से डॉ. कमल चोपड़ा ने (खिलौना) आदि लघुकथाओं की सशक्त प्रस्तुति दी गई 

इस सार्थक ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र,  श्रीकांत गुप्ता,  आलोक चोपड़ा, संजय रॉय,  घनश्याम राम, विनोद प्रसाद आदि 100 से अधिक श्रोताओं और दर्शकों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की l
.....

रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय -  (अध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद,  पटना
प्रस्तोता का चलभाष - 92347 60365,
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - :Sidheshwarpoet.art@gmail.com
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Sunday 20 September 2020

हिंदी साहित्य सेवा मंच द्वारा हिंदी दिवस 14.9. 2020 को प्रतियोगिताएँ और कवि सम्मेलन सम्पन्न

 तुमसे सुन्दर दुनिया की तस्वीर नहीं

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हिंदी साहित्य डॉट कॉम (हिंदी साहित्य सेवा मंच) द्वारा हिंदी दिवस पर्व (१४ सितंबर २०२०) के उपलक्ष्य में आयोजित की गयी प्रतियोगिता में  देश-विदेश के रचनाकारों/ साहित्यकारों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया| रचनाओं (कविता/ ग़ज़ल/ गीत) का आमंत्रण १ जुलाई से ३१ अगस्त के बीच दिया गया जिसमे ४५६ प्रतिभागियों ने अपनी रचनाएँ मेल द्वारा हिंदी साहित्य सेवा डॉट कॉम पर भेजीं| इस काव्य प्रतियोगिता में हिंदी साहित्य सेवा डॉट कॉम (मंच) द्वारा रचनाकारों से कोई भी शुल्क नहीं लिया गया था| इस प्रतियोगिता के लिए प्रथम पुरस्कार-₹२१०० एवं प्रशस्ति पत्र,  द्वितीय पुरस्कार-₹११०० एवं प्रशस्ति पत्र,  तृतीय पुरस्कार-₹५५१ एवं प्रशस्ति पत्र, चतुर्थ पुरस्कार-₹२५१ एवं प्रशस्ति पत्र, पंचम पुरस्कार-₹१५१ एवं प्रशस्ति पत्र घोषित था तथा पहले पचास स्थान पर आए रचनाकारों को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित करने की घोषणा हिंदी साहित्य सेवा डॉट कॉम द्वारा की गयी थी|

पहले पाँच स्थान पर रचनाकारों के नाम और पुरस्कार निम्नलिखित है –
(१) डॉ. शोभा श्रीवास्तव, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ (प्रथम पुरस्कार)
(२) शिव प्रताप सिंह "सूर्य", फतेहपुर, उत्तरप्रदेश (द्वितीय पुरस्कार )
(३) शैलेन्द्र 'असीम', कुशीनगर, उत्तरप्रदेश (तृतीय पुरस्कार)
(४) ब्रह्म स्वरूप मिश्र "ब्रह्म", शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश (चतुर्थ पुरस्कार)
(५) मंजू गुप्ता, नवीमुंबई, महाराष्ट्र (पंचम पुरस्कार)  

हिंदी दिवस १४ सितंबर २०२० को हिंदी साहित्य सेवा डॉट कॉम (हिंदी साहित्य सेवा मंच) द्वारा इस प्रतियोगिता में पहले पांच स्थानों पर आए रचनाकारों के लिए एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसका संचालन हिंदी साहित्य सेवा डॉट कॉम के संस्थापक,  संचालक कवि बीरेन्द्र कुमार यादव  ने किया एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार शिव प्रताप सिंह 'सूर्य' जी ने की| सचांलक बीरेन्द्र कुमार यादव द्वारा साहित्यकारों के परिचय के बाद कार्यक्रम की शुरुआत कवियित्री डॉ. मंजू गुप्ता जी ने की  दीप प्रज्वलित करके  "जयति जय - जय माँ सरस्वती" से   सरस्वती वंदना की | सभी साहित्यकारों ने प्रतियोगिता में भेजी अपनी एक रचना पढ़ी और उसके अलावा मुक्तक, छंदो और ग़ज़लों को सुनाकर कार्यक्रम को यादगार बना दिया| । 

शाहजहांपुर उत्तरप्रदेश से कवि ब्रह्म स्वरूप मिश्र 'ब्रह्म' ने गीत सुनाया -
 "हिमशिखरों से चली नदी एक मृदु जल का अभिमान लिए" 

कुशीनगर,  उत्तरप्रदेश के शैलेन्द्र असीम जी ने अपनी मधुर आवाज़ में ग़ज़ल सुनाई -
"बादल चन्दा तितली फूल समीर नहीं, 
तुमसे सुन्दर दुनिया की तस्वीर नहीं
धरती से अम्बर तक हमने देख लिया, 
माँ के जैसा कोई पीर-फकीर नहीं

 नवी मुंबई महाराष्ट्र से उपस्थित साहित्यकार डॉ. मंजु   गुप्ता जी ने अपनी ग़ज़ल संसार की सभी  माँओं को समर्पित करते हुए गाया - 
 "खुदा के नूर - सी रोशन हमेशा घर सजाये माँ, 
मकानों को मुहब्बत से हमेशा घर बनाये माँ ।" 

 नेटवर्क की समस्या की वजह से दो साहित्यकारों का संपर्क टूट गया ।

संचालक गीतकार बीरेन्द्र कुमार यादव जी ने अपना गीत सुनाया -
"आईना दिखा रहा हमे, कौन सी उसे सज़ा मिले"
इसे सुनकर  कमेंट्स के माध्यम से सभी साहित्यप्रेमियों ने उन्हें भरपूर प्यार दिया  ।

 सभी साहित्यप्रेमियों ने जो ऑनलाइन जुड़े थे , सभी की कविताओं पर  भरपूर कमेंट दिए || अंत में बीरेन्द्र यादव ने सभी साहित्यकारों और जुड़े साहित्यप्रेमियों का आभार व्यक्त किया और कार्यक्रम समापन की घोषणा की|
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रपट की  प्रस्तुति - डॉ मंजु गुप्ता
प्रस्तोता का पता -  वाशी , नवी मुंबई 
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - writermanju@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


रेल राजभाषा विभाग, दानापुर मंडल द्वारा कवि सम्मेलन का आयोजन 18.9.2020 को संपन्न

सृजनरत रहता हूं मैं, अहर्निश

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 पटना. 18/09/2020. "हमारे रेल में राजभाषा की नीति काफी उदार रही है. देवनागरी में लिखे गए लिप्यान्त्ररण को भी हम स्वीकार करते हैं और राजभाषा हिंदी का अधिकाधिक उपयोग करते  हैं l राजभाषा हिंदी को रेल कर्मियों से जोड़ने में दानापुर रेल मंडल के राजभाषा द्वारा प्रकाशित रेलवाणी पत्रिका की अहम भूमिका रही है."  मंडल रेल प्रबंधक दानापुर के  राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित "हिंदी सप्ताह " के अवसर पर, ऑनलाइन गूगल मीट के माध्यम से कवि सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए राजभाषा अधिकारी  राजमणि मिश्र ने  उपरोक्त उद्गार व्यक्त कियेl

शायर मो. नसीम अख्तर ने कवि गोष्ठी का संचालन किया जिसमें  घनश्याम, संजीव प्रभाकर (गुजरात) मो. नसीम अख्तर, राजमणि मिश्र,  मधुरेश नारायण, सुनंदा केसरी, रश्मि गुप्ता,  भारत भूषण पांडे एवं सिद्धेश्वर ने सारगर्भित कविताओं का पाठ किया.

वरिष्ठ शायर घनश्याम ने  रिश्तो के बीच आपस में मनमुटाव पैदा करने वाले लोगों से सचेत रहने  की बात कहते हुए कहा-
"दो दिलों के दरम्यांँ दूरी बढ़ाता कौन है? 
हमको आपस में लड़ा कर मुस्कुराता कौन है ?"

लाख मन को भरमा लें लेकिन सच यही है कि आदर्श और नैतिकता ही आदमी को संतुष्ट करता है, इसी संदर्भ में शायर संजीव प्रभाकर ( गुजरात) ने - अपनी ग़ज़ल कही-
"कौन   कहता है 
    ज़माने में रहे, वो शान से !
     जी न पाये ज़िन्दगी को
      जो कभी  ईमान से?"

 मां की महत्ता पर तो ढेर सारी कविताएं लिखी गई है, किंतु पिता के महत्व को रेखांकित करते हुए सिद्धेश्वर  ने  कहा -
  " जमीं  है मां तो,  
      आसमां है पिता!
       रोटी, कपड़ा और
           मकान है पिता !" 

रश्मि गुप्ता ने नारी अस्मिता का बचाव करते हुए उनके आत्मनिर्भर होने की ओर इशारा करते हुए एक मुक्तछंद कविता का पाठ किया -
 " बेल नही हूँ मैं 
   जिसे  किसी सहारे की 
    जरूरत होती है 
       धरती हूँ मैं !"

पत्थर दिल इंसान और संवेदनहीन समाज के प्रति बेरुखी में एक समय संदर्भित गजल कही चिर-युवा शायर मो. नसीम अख्तर ने -
 "हाथ में जब 
  सभी के ही पत्थर रहे,
    किस तरह फिर 
      सलामत कोई सर रहे !"

अपने सृजन के प्रति गंभीर होने की बात स्वीकारते हुए राजमणि मिश्र  ने एक मुक्तछंद की कविता प्रस्तुत की -
  "एक सर्जक हूं मैं 
     अपने संसार में 
       रमा रहता हूं  !...
       सृजनरत रहता हूं मैं, अहर्निश!"

ताजगी भरे नवगीत की ज़बरदस्त अदायगी रही भारत भूषण पांडे  के इस गीत के द्वारा -
-"रूकती हवा निढाल लहर पर 
     उतर गया है ज्वार,
        जाने कहां गई आंखों की 
          खींची हुई वह धार !"

पहले राजभाषा से संदर्भित कविताओं के पाठ के बाद रेल से संदर्भित एक अनूठी प्रस्तुति दी -मधुरेश नारायण ने-
-"है  यह तुम्हारी गाडी 
       है यह गाडी हमारी 
      हम ही है गाडी के सवारी
       टिकट लेकर,जाते है बैठ कर
        अपने-अपने गंतव्य को."

इसके  अतिरिक्त अर्चना त्रिपाठी और सुनंदा केशरी ने भी एक से बढ़कर एक गीत ग़ज़ल कविताओं से श्रोताओं का मन मुग्ध कर दिया!
...
रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय - भूoपूo सचिव :स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति ( पूर्व मध्य रेल)
प्रस्तोता की चलभाष संख्या - 92347 60365
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - :sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Saturday 19 September 2020

अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का हिंदी दिवस की पूर्व संध्या यानी 13.9.2020 को पर सम्मान समारोह सम्पन्न

आओ जि़न्दगी से चुराएं कुछ पल

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अग्निशिखा के संग काव्य के विविध रंग में हिंदी दिवस पर भव्य सम्मान समारोह रखा गया. मंच की अध्यक्ष डॉ अलका पाण्डेय ने बताया की कवि  लेखक , कलाकार , नवांकुर वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार आदि  हिंदी के क्षेत्र में विशिष्ठ कार्य करने वाले क़रीब दो सौ लोगों को सम्मानित किया.

कार्यक्रम में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम भी लोगों ने पेश किये व हिंदी का महत्व पर कविता व लेख आदि. इस  बार कार्यक्रम केमुख्य अतिथि थे  महेश राजा ( लघुकथा कार ), विशिष्ठ अतिथि थे ठाकुर अखंड प्रताप सिंह  और मुकेश कुमार व्यास “ स्नेहिल ( कवि एवं वक्ता ).समारोह  के अध्यक्ष थे सुनिल दत्त ( अभिनेता , लेखक ) छत्तीसगढ. अन्य आमंत्रित अतिथि थे संतोष साहू ( पत्रकार ) श्रीवल्लभ अम्बर, श्रीराम रॉय - शिक्षक , झारखंड सरकार और आशा जाकड (अध्यक्ष - अं हिंदी परिषद ). कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ.

पहले सत्र का संचालन,अलका पाण्डेय- मुम्बई और चंदेल साहिब:- हिमाचल एवं प्रतिभा कुमारी पराशर बिहार ने किया जबकि  दूसरे सत्र का  विजेन्द्र मेव जी- राजस्थान, सुरेंद्र हरड़े जी-नागपुर, शोभा रानी तिवारी जी एवं:  अलका पाण्डेय ने. 

अग्निशिखा के संग काव्य के रंग*का 56वाँ कार्यक्रम, समय  - शाम 4 बजे से१० बजे तक चला.  इस दिन के   निर्णायक थे   प्रो. शरद नारायण खरे मंडला, डॉ अरविंद कुमार श्रीवास्तव. समीक्षा एवं आभार, संजय कुमार मालवी आदर्श के द्वारा किया गया.

गणेश वंदना प्रस्तुत की पद्माक्षी शुक्ल, पुणे ने और सरस्वती वंदना, प्रतिभा कुमारी पराशर ने.  स्वागत भाषण अलका पाण्डेय ने दिया और आए हुए सभी अतिथियों, प्रतिभागियों और दर्शकों का अभिनंदन किया.

अलका पाण्डेय ने कहा कि हिंदी  के प्रयोग करनेवाले क्षेत्र का जब विस्तार होगा और हिंदी में अधिकाधिक रोज़गार जिस दिन मिलने लगेगा उस दिन हिंदी बहुत सशक्त भाषा बन जायेगी. हमें पहले हिंदी के विस्तार पर ही काम करना होगा.   सभी अतिथियों ने सार्थक बातें व व्यक्तव्य दिया.

लो दोस्तों आ गई है होन घड़ी मेरे जोन्न दी।
जे कदे भूली बिसरी याद आवे मेव ज जेह इंसान दी।
-विजेन्द्र मेव "भाईजी"राजस्थान

अकेले हैं हम इस जग की भीड़ में
चले आओ ना पवन बनकर
कुछ देर बैठो पास हमारे एहसास बनकर
- डॉ. दविंदर कौर होरा

" हिन्दी भाषा प्रेम की
  सहज समझ आ जाए
  बोलन  में मीठी लगे
   सुनने में ललचायें
-सुरेन्द्र हरडे नागपुर. 

मंचसंचालक थीं पद्माक्षी शुक्ल.

छंद, मक्तक, गितीका से,
काव्य रचना करने लगी,
चुराया है जीन्दगी से दो पल
खुद के लिए।
चलो करते है कुछ काम अपने उस आने वाले कल के लिए ।
- बृजकिशोरी त्रिपाठी गोरखपुर, यू,पी

आओ जि़न्दगी से चुराएं कुछ पल
कुछ अच्छा करते हैं आएगा कल
चलो अग्निशिखा में चल कर
धूम मचाएँ,नाचें गाएं,मौज मनाएं
कजरी गाएं हंसी ठिठोली करें
और सुकून के ढूंढ लाएं हजा़र पल
-डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया"

कल तक जो था बेपरवाह
आज वो जिम्मेदार हो गया है
मेरा लाल देखते -देखते
मेरा पहरेदार हो गया है
-मीना गोपाल त्रिपाठी

सबकी गजब प्रस्तुति ने मंच को दिया हिला।
-प्रेरणा सेन्द्रे

मैं हूँ आशा
मैं आशा जगाती हूंँ
सोतों को जगाती हूं
नाम है मेरा आशा
उन्हें आशा दिलाती हूँ
-आशा जाकड़, अध्यक्ष जिला इंदौर
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद

इस तरह से प्रेम और सौहार्द के साथ इस साहित्यिक कार्यक्रम-सह- सम्मान समारोह का समापन हुआ.
.................

रपट की लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय 
पता -मुम्बई
परिचय - राष्ट्रीय अध्यक्ष, अ.भा. अग्निशिखा काव्य मंच, मुम्बई
रपट की लेखिका का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


Thursday 17 September 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा दि. 16.9.2020 को ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन संपन्न

 भाषाई विविधता बहुत प्यारी होती है / पर सदस्यों से भरे  परिवार का /  एक मुखिया तो होता है? 

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हिन्दी की पैठ भारत के हर एक घर में है l शहर की तो बात छोड़िए शायद ही कोई गाँव हो देश में जहाँ हिंदी समझनेवाला कोई न हो l यह प्रसार कोई सरकारी नीतियों के बल पर ही नहीं बल्कि स्वत:स्फूर्त भी कहीं ज्यादा हैl आखिर कौन है देश में जो अमिताभ बच्चन के फिल्म नहीं देखना चाहे और कौन है जो लता मंगेशकर के सुरीले हिंदी नगमे के अलौकिक श्रवण सुख को न पाना चाहे l साथ ही कौन नौजवान है जो जानबूझकर अपनेआप को देश के सत्तर प्रतिशत भाग में नौकरी   या धंधा न करना चाहे? यह सब बिना हिंदी जाने सम्भव नहीं है l टीवी भी किसी न किसी रूप में हिंदी का प्रचार तो कर ही रहा है l लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि हिंदी कोई दूसरी भाषाओं के विकास को रोककर आगे बढ़नेवाली भाषा नहीं है l इसकी प्रतिद्वंदी मूलत: अंग्रेजी है जो आज भी हिंदी की जगह न्यायालयों और सरकारी आदेशों में प्रयुक्त होती है हिंदी में अनुवाद की नाममात्र की औपचारिकता के साथ l  जिस भारतीय का भारतीय भाषाओं में अनुराग होगा उसे हिंदि से तो अपनेआप प्यार होगा क्योंकि हिंदी भारत के अधिकाधिक क्षेत्र में बोली-समझी जानेवाली भारतीय भाषा है l इसलिए कोई बंगला, तमिल, कन्नड़ , गुजराती, मराठी किसी भारतीय भाषा के पक्ष में बोले तो उसका भरपूर समर्थन करना चाहिए l  हिंदी का सम्बंध सबसे है और यह इन सभी भाषाओं की बहन है l पटना में श्री सिद्धेश्वर ने हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए अभियान छेड़ा हुआ है और अपने संयोजन में हर माह अनेकानेक साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं l  अभी हिंदी पखवाड़े के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम की रपट देखिए l (- हेमन्त दास 'हिम')

पटना .16/09/2020 l"ऑनलाइन देश भर से जुटे लगभग 40 नए पुराने कवियों ने राजभाषा हिंदी पर केंद्रित एवं जीवन से जुड़ी हुई एक से बढ़कर एक गीत,  गजल, दोहा और समकालीन कविताओं का पाठ कर इस आयोजन को स्मरणीय बना दिया व पूरे कार्यक्रम का सफल संयोजन और संचालन किया संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने। अवसर था, राजभाषा हिंदिवस व  पखवाड़ा का,  भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित तथा "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के फेसबुक पेज पर आयोजित लाइव "हेलो फेसबुक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का l


पढ़ी गई कविताओं की बानगी देखिए - 

अरविंद अंशुमान (झारखंड)  -
"स्वाधीन भारत के लिए उपहार है हिंदी,
  अब तो हमारे राष्ट्र का श्रृंगार है हिंदी !", 

डॉ पुरुषोत्तम दुबे (इंदौर)\ -
"ना सही ज्यादा मगर तुझ पर हक जरा सा है,
  मेरी आंखों में दर्द का खुलासा है !"

भगवती प्रसाद द्विवेदी -
"भाषा बेहतरीन हमारी हिंदी है,  
तहजीब तासीर हमारी हिंदी है, 
इसमें गंगा जमुनी संस्कृतियों का लय, 
जन मन की आशा अभिलाषा का संचय  !"

सिद्धेश्वर -
 आज भी राष्ट्रभाषा नहीं,  राजभाषा है हिंदी, 
 अपने आप से, बहुत शर्मिंदा है हिंदी

अचार्य विजय गुंजन 
-"अपने ही घर में देखो रानी पड़ी उदास रे, 
 शायद कोई सौतन घर में बन बैठी है खास रे!"

आरती कुमारी (मुजफ्फरपुर)  -"
घेरा हमको मौत ने, कैसे कटे दिन जी, 
 रहे डर-डर के हम,  सांसो को गिन-गिन !"

अनुजा मनु (लखनऊ)  -
" हिंदी हिंद का अनमोल उपहार है, 
हिंदी प्यारा शब्द संसार है !"

डॉक्टर अनिता राकेश  -
"आजादी की एक लड़ाई और चाहिए, 
शासन करता सब अच्छा अच्छा है, स
च जानता सब बच्चा बच्चा है!"

 चैतन्य  चंदन (नई दिल्ली  -
"आसमान में जब छिटकती  चांदनी रह जाएगी, 
तम घेरे का जग में, केवल रोशनी रह जाएगी !
 है नहीं दुनिया में कोई जिसको मैं अपना कहूं, 
 मेरी हमदम एक हमारी शायरी रह जाएगी !"

हरि नारायण हरि( समस्तीपर )  -
" हिंदी हिंदुस्तान देश की यह परिभाषा है, 
वाणी यह तो जन गण की हर मन की आशा है !"

 मधुरेश नारायण  -"
हिंदी का मान बढ़ाना है, जग में स्थान दिलाना है,  
देश के कोने- कोने पर, पैगाम ये  पहुंचाना है !" 

तथा अजय (झारखंड) -
"दोपहर की धूप में साया नजर आता नहीं, 
 पांव में छाले हुए थक कर चला जाता नहीं!"

इस ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में पाठ करने वाले अन्य कवियों की कविताएं इस प्रकार है :-
ऋचा  वर्मा -:
"हिंदी है विज्ञान की भाषा, 
     हिंदी है अभिमान की भाषा ll"

नरेंद्र कौर छाबड़ा (महाराष्ट्र ):
"फिर उनके नन्हें-नन्हें पर 
   निकल आएंगे? उड़ना सीखेंगे
   एक दिन यहां से रुखसत हो जाएंगे !"

संजीव प्रभाकर ( गुजरात):
 "हमारी आन हिंदी है /हमारी शान हिंदी है!
    हमारे देश का गौरव  तथा सम्मान हिंदी है !"

रमेश कँवल :
 " गम छुपाने में वक्त लगता है !
    मुस्कुराने में वक्त लगता है !!"
 
सांगरिका रॉय :
" अनेकता में एकता बहुत प्यारी होती है !
   भाषाई विविधता बहुत प्यारी होती है !!
       पर सदस्यों से भरे  परिवार का
        एक मुखिया तो होता है? "

 डॉक्टर सविता मिश्रा माधवी( बेंगलूर) :
"  कर्कश कंठ को कोकिल  कर दूँ,  
ऐसी हूं मैं मृदभाषा हिंदी भाषा !""

राजकांता राज:
" हिंद देश की हिंदी प्यारी !
    यह भाषा है कितनी न्यारी !!
     हिंदी से अपनापन लगता !
       हिंदी बोलो मधु रस टपकता !!"

 प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ::
"बदलते मौसम में बहुत कुछ देखा 
  कहीं बनते, कहीं बिगड़ते देखा !
     कहीं मशीन पर आदमी देखा!
      कहीं मशीनी आदमी देखा!!"
मनीष राय :
" खुद में बंधा रहता हूं अक्सर !
     मैं भरी महफिल में तन्हा रहता हूं अक्सर !!"

श्रीकांत (झांसी):
"  फहराते है जंग  में जो परचम नए-नए !
  आस्तीन के सांपों  से अक्सर डंसे गए !!"

रामनारायण यादव( सुपौल ):
" पुरस्कार और सम्मान के जाल में
     फंस गया है आज हिंदी !
   हिंदुस्तान की जान है हिंदी 
    सुरमई रंगों में भीगा हिंदुस्तान है हिंदी !!"

दुर्गेश मोहन :
"हिंदी जन की भाषा है !
 हम सब की अभिलाषा है!!"

,प्रणय सिन्हा :
, शब्द - शब्द चंदन है !
ऐसी हिंदी भाषा को 
कोटि-कोटि अभिनंदन है !!"

अजय :
"दोपहर की धूप में साया नजर आता नहीं!
   पांव में छाले हुए  थक कर  चला जाता नहीं !!"

इसके अतिरिक्त मीना कुमारी परिहार,  विनोद प्रसाद, डॉ नूतन सिंह,  कीर्ति  अवस्थी,  दिवाकर भट्ट, अनीता सिंह,  डॉ अनीता राकेश, शरद रंजन शरद ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया 
...
रपट के लेखक - सिद्धेश्वर
रपट लेखक का परिचय - इस कर्यक्रम के संयोजक और अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 'पटना 
रपट के लेखक का मो :9234760365
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


















Tuesday 15 September 2020

"विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर यानी 13.9.2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न

लेकिन हिन्दी से बने भारत की  पहचान

FB+ Bejod  -हर 12 घंटे पर देखिए )




हिंदी भाषा का दायरा खुला हुआ है इसके निर्माण काल से ही। इसने कभी अपनेआप को बांध कर नहीं रखा सबको अपने में समाहित करती गई।  यही कारण है कि भारत जैसे विशाल और अत्यधिक विविधतापूर्ण देश के हर कोने में यह अपना स्थान बना पाई है।  यह न तो किसी क्षेत्र, संस्कृति वर्ग, जाति या धर्म से कभी बंधी है न इसे बांधा जाना चाहिए

पटना।  साहित्यिक संस्था "विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी आयोजित की गई

“हिंदी भाषा आज पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रही है। इसके पीछे लेखकों-साहित्यकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हालांकि क्षेत्रीय भाषाओं की उन्नति से ही हिंदी भाषा का भी उत्तरोत्तर विकास संभव हो पाया है।” यह बातें हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और "नई धारा" पत्रिका के संपादक डॉ. शिवनारायण ने कही।

 कार्यक्रम की शुरुआत भागलपुर के कवि राजकुमार ने वाणी वंदना से की। काव्य गोष्ठी में चेन्नई से मंजू रुस्तगी, दुर्ग (छत्तीसगढ़) से सूर्यकांत गुप्ता, समस्तीपुर से हरिनारायण सिंह ‘हरि’, प्रयागराज से अशोक श्रीवास्तव, गया से कुमार कांत, भागलपुर से दिनेश तपन के साथ ही पटना से वरिष्ठ कवि घनश्याम, डॉ. सुधा सिन्हा, पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी, आराधना प्रसाद, अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’ ने हिंदी दिवस पर एक से बढ़कर एक कविताओं का वाचन किया। गूगल मीट ऐप्प के माध्यम से लगभग दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में श्रोता के रूप में भी अनेक सुप्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार जुड़े रहे। काव्य गोष्ठी का संचालन दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चंदन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने किया। 

काव्य संध्या में सुनाई गई कविताओ की एक झलक नीचे प्रस्तुत है :

राजकुमार ने इसे देशवासियों का प्राण बताया -
हम देश वासियों के लिए प्राण है हिन्दी।
नदियों की लहर सुरसरि अभियान है हिन्दी।।
इसकी हरीतिमा से हरित है वसुंधरा,
मां भारती की चिन्मयी मुस्कान है हिन्दी।

कवि घनश्याम ने बहुत महत्वपूर्ण बात रखी कि हिन्दी के प्रसार के लिए आवश्यक है कि हर भाषा का सम्मान किया जाय और साथ ही सब को हिन्दी भी अपनाने को कहा जाय -
हर भाषा का हम करें यथायोग्य सम्मान
लेकिन हिन्दी से बने भारत की  पहचान
हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा सरल, सुबोध
फिर क्यों इसकी राह में है इतना अवरोध
इसकी तुलना में नहीं, कोई भाषा अन्य
हिन्दी को पाकर हुआ, देश हमारा धन्य
दो  हिन्दी  भाषी  करें  अंग्रेज़ी  में  बात
लगता है इस देश के अन्तर को आघात

डॉ. दुर्गा सिन्हा ‘उदार’  की जो अभिलाषा है वह हम सब की भी है -
हिन्दी से प्यार कीजिए,हिन्दी है मन की भाषा
भारत की राष्ट्र भाषा, अमन और चमन की भाषा ।।

मंजू रुस्तगी ने राष्ट्रर-एक्य  की मिसाल कुछ यूँ रखी-
चाहे खेत हों केसर के,
चाहे हो सागर अनंत विशाल,
चाहे तपती रेत मरू की,
या हो सप्त बहनों का भाल।
संस्कृति-सभ्यता की संवाहक,
राष्ट्र-ऐक्य की तू ही मिसाल।

प्रो. डॉ. सुधा सिन्हा ने इसे सर का ताज बनाया -
विश्व हिन्दी दिवस आज है,
हिन्दी की महत्ता बतलायें।
हिन्दी भारत की बिन्दी है,
इसे हम सर का ताज बनायें।
गुलामी की बेड़ियां जकड़ीं थीं,
यह चारों खाने चित गिरी थी।
चौदह सितम्बर की वह तिथि थी,
जब हिन्दी राजभाषा बनी थी।

कुमार कांत ने इसके विविध आयामों को रखा -
 -
यह मूर्तस्वर है, साधना है, ज्ञान है विज्ञान है
यश की पताका व्योम तक, जैसे अडिग हिमवान है।।

सूर्यकांत गुप्ता ने छद्म प्रयास की खिल्ली उड़ाई -
पखवाड़ा  मनता  यहाँ,  मास सितंबर खास।
हिन्दी   के  उत्थान  का  करते  छद्म प्रयास।।
सरकारी  सब  काम, आँग्ल  में करे कबाड़ा।
अद्भुत   हिंदी   प्रेम,   मना    हिंदी    पखवाड़ा।।

पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’ ने आर्य सभ्यता का पक्ष रखा -
कल-कल,छ्ल-छल गंगधार हिन्दी,
दिग दिगन्त सरल विस्तार हिन्दी।
जन-जन का सहज उद्गार हिन्दी,
संस्कृत सुता है उपहार हिन्दी।
हो राष्ट्रभाषा है अभिलाषा!
बने कालजयी यह विश्वभाषा!

हििंिंिंिंदीदीदिद
हिंदी को देशभर में अपनाये जाने का मसला नागरिकों के आपसी रिश्तों पर भी निर्भर है।  इसलिए शिवनारायण ने रिश्तों के बेबस हो जाने पर चिन्ता प्रकट की -
आंगन का हर कोना कोना बेबस है
घर के अंदर घर का रिश्ता बेबस है 
खेत की हर फसल धूप फिर ले गयी
इन किसानों की अब जिन्दगी देखिए

अशोक श्रीवास्तव ने अपना आक्रोश कुछ यूँ जताया -
अपनों से ही छली गई हिंदी
राष्ट्रभाषा न बन सकी हिंदी
साल-दर-साल माह पखवाड़े
फाइलों में ही घुट रही हिंदी

हरिनारायण सिंह ‘हरि’ ने हिंदी को एक भाषा नहीं वरन्  पूरे देश की परिभाषा बताया - 
हिंदी हिंदुस्तान देश की यह परिभाषा है
समझी जाती सभी जगह बोली भी जाती है
हिंदी अब तो बहुत मुखर अब कम शर्माती है
गूँज रही यह भाषा यह तो खूब विदेशों में
पूरी दुनिया इस हिंदी में गाना गाती है

दिनेश तपन ने प्यार जताया -
कितनी प्यार प्यारी हिंदी
लगती आज हमारी हिंदी

आराधना प्रसाद ने शुचित अभिव्यंजना की बात रखी - 
स्वर सुसज्जित व्यंजनों के रूप की परिकल्पना
है सुगम वाचन, सृजन में ;है शुचित अभिव्यंजना

अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’ कविताओं को अविराम रचती दिखीं -
हिन्दी भाषा के लिए, करें सभी कुछ काम।
बहुत रचे मिलकर सभी, कविताएं अविराम।।
......

रपट के लेखक - चैतन्य चंदन
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
रपट के लेखक का ईमेल आईडी- luckychaitanya@gmail.com
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