हम तो अहसास के मालिक/ मालो-ज़र क्यों जोड़ें
दिनांक 28.5.2024 को देश के नामचीन शायर संजय कुमार कुंदन के पटना स्थित आवास पर कुछ साहित्यकारों के सांयोगिक जुटान हुआ जो एक काव्य गोष्ठी के रूप में परिणत हो गया. इस अनौपचारिक कवि-गोष्ठी न तो कोई अध्यक्ष घोषित किया जा सका न ही संचालक. पर कार्यक्रम सुचारू रूप से चला.
रोमांटिक और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी और संबंधों के विवादास्पद पहलुओं को बखूबी उजागर करनेवाले उपन्यासकार और नज़्म-निगार नीलांशु रंजन हिन्दी और उर्दू पर भयंकर पकड़ रखते हैं. उनका अंदाज़े-बयां और तलफ्फ़ुज़ भी कमाल का है! उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में पढ़ा-
"कल जहाँ रखी थी तुमने मेरे रुख़सार पे उंगली
आज वहां उग आया है एक तिल"
नीलांशु रंजन का एक म्यूजिक एल्बम "रात भर" हाळ ही में रिलीज हुआ है जिसका नाम है- "रात भर - ए लौन्गिंग"-
"दूर थरथराए कहीं लब तो जुम्बिश हुई मेरी आँखों में
रूह पे मेरी कोई दस्तक देता रहा रात भर
ये कैसी फजां कैसा मंज़र है खुदा
बारिश होती रही चाँद भींगता रहा रात भर.."
भारत की संस्कृति के विभिन्न पहलुओं से बेपनाह मुहब्बत करनेवाली और आज के हालात को बेबाकी से रखने का हौसला रखनेवाली शायरा, लेखिका सदफ़ इकबाल ने अपनी नज़्म पढ़ी. हर विषय के दो पहलू होते हैं और हमारे देश की ख़ासियत है कि दोनों पहलुओं को यहाँ गंभीरता से लिया जाता है. अपनी नज़्म से उन्होंने साबित कर दिया कि किसी विषय पर अपने कोई भी विचार काफी प्रभावकारी ढंग से रखने हेतु उसी विषय द्वारा प्रयुक्त प्रतीकों और सन्दर्भों में भी की जा सकती है. एक झलक देखिए-
"..सदफ़ इकबाल
यह कैसी है महाकाल की बेला
शिवजी ने अचानक खोल दी जैसे अपनी तीसरी आँख
बुद्ध ने दुःख से अपनी आँखें बंद कर ली
बादशाह ने और जोर से अट्टहास किया.."
हेमन्त दास 'हिम' आजकल मुम्बई में रहते हैं पर संयोगवश इस दिन पटना में थे. उन्होंने ने भी गोष्ठी में भागीदारी की और दो छोटी गज़लें पढ़ीं-
"जज़्बा तो जरूरी है पर जाना न बह
कि न वो बन जाए दूरी की एक वजह
अदिति को तू देख अदिति की तरह ही
कि वो क्यों बन जाए माधुरी की तरह"
संजय कुमार कुंदन देश के नामचीन शायर हैं और इनकी लगभग सात पुस्तकें प्रकाशित और चर्चित हो चुकीं हैं. उन्हीं के आवास पर कार्यक्रम चल रहा था. उन्होंने एक नज़्म और एक ग़ज़ल सुनाई जिससे सभी वाह-वाह कर उठे -
"इस दुनिया को देख के हम को
ख़ाक समझ कुछ आया
हम तो अहसास के मालिक
मालो-ज़र क्यों जोड़ें"
संजय कुमार कुंदन जी द्वारा पढ़ी गई ग़ज़ल का एक शेर कुछ यूं था-
"एक सफ़र था यारों जिस पर हर पल चलते जाना
मंजिल की कुछ सोचना क्या है, हर पल चलते जाना"
साथ में युवा गज़लकार और गायक रवि किशन भी उपस्थित थे जिन्होंने न सिर्फ अपनी ग़ज़ल सुनाई बल्कि एक मधुर गीत सुरीले स्वर में गा कर समां बाँध दिया. उनकी ग़ज़ल कुछ यूं थी -
लबों पे जब क ख़ामोशी का कोई एहसान होता है
निगाहों से बयां दिल का हरेक अरमां होता है
दूसरी ग़ज़ल का एक शे'र यूं था-
"सदाकत का सफ़र है, पाँव ज़रा थम -थम के रखना
शराफ़त के मुखौटे में यहाँ शैतान होता है"
विभारानी श्रीवास्तव जितनी शांत दिखती हैं उतनी ही ज्यादा सक्रिय हैं. पटना के साहित्यिक गलियारों में एक बेहद जानी-पहचानी नाम हैं और लघुकथा लेखन में राष्ट्रीय स्तर पर इनका दखल है. अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं में इनकी केंदीय भूमिका रहती है. वैसे तो ये लघुकथा लेखिका के नाम से विख्यात हैं पर इस गोष्ठी में इन्होने अपनी एक कविता पढ़ी जिसका शीर्षक था 'वक़्त" -
"कवि को कल्पना के पहले
गृहिणियों को थकान के बाद
सृजकों को बीच बीच में
मुझे कभी नहीं चाहिए चाय.."
पत्रकार डॉ. सायद शहबाज की भी भागीदारी रही और उन्होंने एक प्रसिद्ध शायर का एक शे'र पढ़ा.
इस तरह एक अनौपचारिक रूप से चली कवि-गोष्ठी का बिना औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के अंत हुआ. वैसे संजय कुमार कुंदन जी ने सबके जुटने पर अपनी खुशी का इज़हार अपनी मित्रतापूर्ण मुस्कान से किया और प्रतिभागियों ने फिर अवसर तलाश कर जुटने का वादा एक-दूसरे से किया.
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रपट के लेखक - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रया हेतु ईमेल - hemantdas2001@gmail.com / editorbejodindia@gmail.com