Friday 29 May 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी 24.5.2020 को संपन्न

लघुकथा समय संदर्भित और नैतिक मूल्यों के प्रति निष्ठावान हो!"

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इंटरनेट के मंच पर, देश भर से चुने हुए, एक दर्जन नए पुराने लघुकथाकारों ने अपनी नई लघुकथाओं का पाठ किया। साप्ताहिक साहित्य संगोष्ठी के अंतर्गत 24.5.2020 को हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन का आयोजन भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" पेज पर आयोजित लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए लघुकथा समीक्षक डॉ अनिता राकेश ने कहा कि - "अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका का मंच अपनी  लघुकथा गोष्ठी में देश ही नहीं विदेश से भी  प्रतिभागिता सुनिश्चित करवाने वाला अत्यंत सफल एवं सुव्यवस्थित मंच है| आज की प्रस्तुतियों ने यह सिद्ध कर दिया कि साहित्य समाज का सच्चा दर्पण होता  है"|

लघुकथाओं में वर्तमान कोरोना समस्या से उत्पन्न विविध सामाजिक परिस्थितियों के प्रति रचनाकारों  की संवेदनशीलता स्पष्टत: परिलक्षित हुई |अत्यंत प्रशंसा एवं प्रसन्नता का विषय है कि लघुकथेतर विधाओं के रचनाकारों के अतिरिक्त साहित्येतर व्यक्तियों को भी लघुकथा विधा ने आकृष्ट किया है |कतिपय युवा लेखनियों ने  भी  अपनी उपस्थिति दर्ज करायी |  लघुकथा के संदर्भ में नवलेखन को यही ध्यान रखना है कि वह शीर्षक पर पहला ध्यान केंद्रित करें| क्षण से उपजी हुई भाव धारा को कथ्य में समेट कर भाषा के आवरण में प्रस्तुत करें| शीर्षक एक द्वार होता है जहां से प्रवेश कर लघुकथा अनुभूत होती है तथा समापन इतना सशक्त कि जब पाठक वहां से निकले तो मानो वह एक ऐसे खुले मैदान में है -जहां प्रश्नों और तथ्यों का समूह सोचने समझने को बाध्य करता हो, झकझोरता हो|

मुख्य अतिथि युवा लघुकथा लेखिका पूनम आनंद ने कहा कि -" इच्छा मनुष्य को जिंदगी सुख चैन सब जीने नहीं देता है--और मनुष्य इच्छाएं को मरने नही देता है। किसी भी रचनाकार की सफलता का आधार उसकी सकारात्मक सोच और लगातार प्रयास है। परिपक्वता, धैर्य, पढने की जोश, लेखन क्षमता को बखूबी आगे ले जाने में सहायक होती है। पाठक और लेखक के बीच संवाद-- कि जीवंतता कालजयी लघुकथा को जन्म दे सकती है। कथानक पर पकड़ बनाने के लिए  हमें संवेदना को भी जोड़े रखना जरूरी है। शीर्षक लघुकथा की शीर्ष तक पहुंचने की पायदान है।

संचालन करते हुए कवि कथाकार सिद्धेश्वर ने कहा कि -"लघुकथा समय संदर्भित और नैतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान हो, तभी पाठकों के हृदय में नई संवेदना का संचार कर सकता है।"

लघुकथा सम्मेलन में लघुकथा सम्मेलन में देश-विदेश के एक  दर्जन से अधिक लघुकथाकारों ने भाग लिया पूनम आनंद ने कशिश, अनिता राकेश ने वजूद, पूजा गुप्ता (चुनार) ने रविवार, विभा रानी श्रीवास्तव (अमेरिका) ने 'चीनी कानाफूसी", प्रियंका श्रीवास्तव ने "बदलाव, रंजन वर्मा उन्मुक्त ने "निर्णय", मीना कुमारी परिहार ने "नई दिशा", जयंत ने" समझदार", सिद्धेश्वर ने "आत्महत्या", सुधांशु चक्रवर्ती ने "बंधुआ मजदूर", प्रियंका त्रिवेदी ने, जुनून, डॉ नूतन सिंह (जमुई) ने"बेवफा", अनिता  मिश्रा सिद्धि (नई दिल्ली) ने" भय",  ऋचा वर्मा ने" घोड़ा ", सतीश चंद (दरभंगा) ने"रोटी की कीमत", विनोद प्रसाद ने, ससुराल ", विजयानंद विजय ने "जड़ों तक", ओर मीना कुमारी परिहार ने" नई दिशा" लघुकथा का पाठ किया।

इस तरह से यह कार्यक्रम लघुकथा विधा पर सघन चर्चा के साथ अनेक सार्थक लघुकथाओं के पाठ के साथ संपन्न हुआ 
....

रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर 
पता - अवसर प्रकाशन हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना800026
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.art@gmail.com
इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com












Wednesday 20 May 2020

भा. युवा साहित्यकार परिषद द्वारा 18.5.2020 को "साहित्य प्रभात" के तहत अंतरजालिक (इंटरनेट) कवि गोष्ठी सम्पन्न

सबसे बड़ा विषाणु / सियासत का खेला

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हर दिन साहित्य चर्चा को लेकर भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आयोजित "हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात" के तहत 18.5.2020 को युवा कवियों की कविता पर  केंद्रित कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए  भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि- इस वैश्विक आपदा काल में युवा प्रतिभाओं को अभिप्रेरित कर मंच प्रदान करना और उनकी कविताओं को निखारते हुए  सकारात्मक सोच भरने की कोशिश स्तुत्य है । उनकी बहुआयामी रचनाएँ संभावना जगाती हैं और अपेक्षित मूल्यांकन की मांग करती हैं। वरिष्ठ कवियों के साथ उनकी प्रस्तुति से उनका मनोबल तो बढ़ेगा ही अभिप्रेरणा भी मिलेगी । भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् की यह रचनात्मक पहल स्वागत-योग्य है।"

सिद्धेश्वर के संयोजन में हुए इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अमलेंदु आस्थाना और मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार गोरखनाथ मस्ताना थे। 

कवि गोष्ठी में नए, पुराने एक दर्जन कवियों की आन लाइन हिस्सेदारी रही। कुछ प्रमुख कवियों  के काव्यांश, इस प्रकार है :

गोरखनाथ मस्ताना-
मन के उदास अंगना में
भोर बन के आईं।

अमलेंदु अस्थाना - 
 इरादा चांद पर सूरज को छूने का हौसला रखा हूं।
 मौत आ कर दिखाओ, हमने दरवाजे खुला रखा है!

भगवती प्रसाद द्विवेदी -
नये प्रश्न नित कर रहा
कालचक्र प्रति कूल,
अपनी रचनाशीलता
है उत्तर माकूल ।
**बनजारे
हम विपदा के मारे हैं
बनजारे हैं।
पीढ़ी दर पीढ़ी विषाणुओं को झेला
सबसे बड़ा विषाणु
सियासत का खेला ।
मर-मर जीते
होते वारे-न्यारे हैं।

सिद्धेश्वर -
"मंजिल तो थी मगर रास्ता न था!
जिंदगी को मुझसे कोई वास्ता न था।
 जीने की दुआएं किन से मांगता  मैं
 मेरे लिए तो कोई भी खुदा न था।

कुंदन आनंद-
"क़दम दर क़दम ख़ार देगी ये दुनिया
बचाओ मुझे मार देगी ये दुनिया
फ़रेबी, फ़क़ीरी, थकन , दर्द,ठोकर
हमें और क्या यार देगी ये दुनिया
हमें जीत की रौशनी भी मिलेगी
कि ताउम्र बस हार देगी ये दुनिया
न जीते-जी हमको यहां जो मिलेगा
वो मरने पे बेकार देगी ये दुनिया
यही सोचकर ख़ूब लिखते रहे हम
कभी तो हमें प्यार देगी ये दुनिया "

पूजा गुप्ता ( चुनार) -
 "यह लॉकडाउन भी हमें बहुत कुछ सिखला जाएगा
जाते - जाते यह जीने का सही मतलब बतला जाएगा। "

पुष्प रंजन कुमार -
" प्रेमियों का हश्र हजारों,
छुपा राज बतलाता है!
जिस्म का रिश्ता हुआ शुरू
कि प्यार खत्म हो जाता है। "

महादेव कुमार मंडल -
"बीज महापुरुषों ने सींचा 
 देकर जिसको अपना रक्त
ऋषि मुनि की गौरव गाथा 
जिसमें त्याग तपस्या रत"

रवि कुमार गुप्ता - 
"तू मुझे समझ ले
  ये तेरे वश की बात नहीं।
जो मेरी जज्बे को समझ ले
तुम में वह जज्बात नहीं।

ओमप्रकाश बिन्जवे " राजसागर "
 याद आती हैं
अपने गांव की वो तंग गलियां याद आती है
बचपन की सारी अठखेलियां याद आती है।
आपस में मिल बैठ  गुजारे थे कितने दिन
हल की थी कितनी पहेलियाँ याद आती है।
हरियाली  की  चादर, ऊँचे  पेड  देवदार के
वो जन्नत वो नजारे वो वादियां याद आती है।
रोजगार  के  फेर  में  छोड  आये  अपना  गांव
बाप की लाचारी मां की सिसकियाँ याद आती है।
यहां है रिश्ते  गरज  की चाशनी  में डूबे हुए
वो खुलुश वो प्यार की बस्तियां याद आती है।
कैसे भुलाये वो मेले, रामलीला के शामियाने
वो  रतजगे  वो  कव्वालियां  याद  आती है।
अपने  हाथों  से रौंपे थे  कुछ  पौधे  जमीन में
वो अमराई वो कदंब की डालियाँ याद आती है।

नूतन सिंह -
"गुजर जाती है जिसकी जिंदगी कैद में ही
हुआ न जुर्म साबित
फिर अदालत क्या वो समझे। "

रामनारायण यादव -
"कोरोना तू सच सच बतलाना।
चीन के वुहान शहर से तेरा कैसे हुआ आना?
बस से, ट्रक से, ट्रेन से, पैदल या हवा में?"

ऋचा वर्मा-
"जिंदगी ठहर सी गई है 
सोचा ईश्वर को बुलाऊं
और करूं शिकायत 
दुनिया क्यों ठहर- सी गई है!"

 आरपी घायल-
"हमारे दिल की बस्ती में बसा है जो जमाने से
गैर के फूल खिलते हैं उसी के मुस्कुराने से।
मोहब्बत का दिया जला कर दिल में देखिए घायल
कभी भी बुझा ना पाएगा उसे बुझाने से। "

आस्था दीपाली, नई दिल्ली
अब वक्त आ गया हे मानव, कुछ अपना भी मूल्यांकन कर
जिस अहंकार में चूर है तू , कुछ उसका भी निवारण कर

संगीता -
"फिर लौट आया /  जीवन का वह दौड़ 
जिसमें ना थी  / आवागमन की सुविधा!"

इस कार्यक्रम में हृदय नारायण झा ने भी अपनी कविता का पाठ किया।
.....

प्रस्तुति:- सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का पता - अवसर प्रकाशन सिद्धेश सदन द्वारका पुरी रोड नंबर 2 हनुमान नगर पटना 800026
प्रस्तोता का मोबाइल - 92347 60365
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
नोट - जिन प्रतिभागियों के फोटो या पंक्तियाँ छूट गई हो इसमें, वे ऊपर दिये गए ईमेल आईडी पर कार्यक्रम की तारीख का उल्लेख करते हुए भेजें.












Saturday 16 May 2020

मनु कहिन (28)- प्रवासी मजदूर

सबकुछ खोने के बाद के बाद भी घर के नाम पर चेहरे पर उत्साह
ललित निबंध

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कोरोना वायरस की वजह से वैश्विक संकट के दौर मे आप पैदल चलने को मजबूर मजदूरों को नही भूला सकते , जो मीलों चलकर अपने छोटे छोटे बच्चों और पत्नी के साथ अपने अपने घरों को आ रहे हैं। पैरों मे चप्पलें नहीं है, खाने को पर्याप्त मात्रा मे अन्न नही है! कभी कभी तो पीने को पानी नही मिल पा रहा है! पर, सैल्यूट करने को मन करता है! चेहरे पर मालिन्य नही है।एक उत्साह है, घर आने का! बहुत कुछ छूट गया इनका। लगभग  सब कुछ खो दिया है इन्होंने। पर, कल की चिंता से कोसों दूर चलते चले आ रहे हैं। इस सोच से बिल्कुल बेखबर कि  जाना कितनी दूर है, कब पहुंचेंगे, रात कहां बिताएंगे , गर्मी की इस कड़ी धूप का मुकाबला कैसे करेंगे! 

ये हमेशा उत्साह मे रहते है। जब हम और आप किसी न किसी बहाने, चाहे वो मौसम का बहाना हो या किसी और का, काम को टालते हैं। घरों से बाहर नही निकलने का बहाना ढूंढ़ते हैं पर ये लोग कभी बहाने नही बनाएंगे। हमेशा आप इन्हें उत्साह से लबरेज़ पाएंगे।  यही इनके जीवन जीने का मूल  मंत्र है। ये वही फौज है जो घंटों पंक्तिबद्ध होकर सरकार चुनती है। हम और आप तो  बस आराम से मतदान करने भर से मतलब रखते हैं या फिर ड्राइंगरुम मे बैठकर एक्जिट पोल के जरिए सरकार चुनते हैं। थोड़ा सा मौसम का मिजाज का इधर से उधर होना हमारे मतदान करने पर असर डाल जाता है ! 

अफसोस होता है इन्हें इस हाल मे देखकर। उससे ज्यादा अफसोस तब होता है जब हम इन्हें "माइग्रेंट लेबर" कहते हैं, प्रवासी मजदूर कहते हैं।  क्या अपने ही देश मे ये विदेशी हैं ? नौकरी ! नही* मज़दूरी की तलाश इन्हें अपने घरों से दूर ले जाती है ! अपने ही देश मे प्रवासी कहे जाते हैं! अगर घर मे ही इन्हें पेट भरने लायक काम मिल जाए तो क्यों जाएंगे ये बाहर भला! खानाबदोश की तरह जीवन जीने को! प्रवासी कहलाने !

प्रवासी हैं  ये उन विदेशी पक्षियों की तरह जो एक खास समय के लिए दूर कहीं बहुत दूर से आते हैं और एक निश्चित समय सीमा के बाद वापस लौट जाते हैं।पर वे इसे स्वेच्छा से करते हैं। कोई बाध्यता नही होती है। और यहां, ये तथाकथित प्रवासी मजदूर तो हमेशा किसी न किसी संकट की वजह से विस्थापित होते रहने को बाध्य हैं। माना हालिया संकट अभूतपूर्व है। इसने थोड़ा कम या ज्यादा सभी को अपनी लपेट मे ले रखा है ! पर, जो वर्ग बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है वो यही वर्ग है। हम सभी को इनके बारे मे सोचने की जरूरत है। हम अपने आसपास बार बार इन्हें पाएंगे। कोरोनावायरस रूपी वैश्विक संकट के विभिन्न आयाम मे से एक आयाम यह भी है।

कहा गया है - "चैरीटी शुड विगिन एट होम". अर्थात अच्छे कार्य स्वयं से आरम्भ करना चाहिए. तो आइये, सैकड़ों हजारों किलोमीटर चलकर आए इन प्रवासी मजदूरों का दर्द उनसे सुनते हैं और अपना भी कुछ योगदान सीधे उनके हाथों में करते हैं
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लेखक - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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Wednesday 13 May 2020

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध समालोचक प्रो. नंदकिशोर नवल का जाना

12 मई 2020 को प्रो. नन्दकिशोर नवल ने इस भौतिक लोक का त्याग कर दिया

(नोट - आदरणीय साहित्यकारगण से अनुरोध है कि दिवंगत प्रो. नवल जी पर अपने विचार इसमें शामिल करने के लिए हमें दें या उनकी सामग्री लेने हेतु अनुमति भेजें ईमेल से - editorbejodindia@gmail.com)

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जितेंद्र कुमार (आरा) के उद्गार -

प्रो. नन्दकिशोर नवल नहीं रहे। 

नवल जी का जन्म 2 सितंबर, 1937को वैशाली (बिहार)के चाँदपुरा गाँव में हुआ था।उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से एम. ए.(हिंदी)और पी-एच. डी. किया था।वे पटना विश्वविद्यालय में युनिवर्सिटी प्रोफेसर थे।हिंदी आलोचना में उनका अविस्मरणीय अवदान है।वे प्रभावशाली वक्ता थे।उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियाँ हैं--

1.कविता की मुक्ति 2.हिंदी आलोचना का विकास 3.प्रेमचंद का सौंदर्यशास्त्र, 4.महावीर प्रसाद द्विवेदी, 5.शब्द जहाँ सक्रिय हैं, 6.मुक्तिबोध ज्ञान और संवेदना, 7.समकालीन काव्य यात्रा,8.यथाप्रसंग(निबंध-संग्रह),9.निराला और मुक्तिबोध:चार लम्बी कविताएँ,10.उधेड़बुन(निबंध-संग्रह),11.दृश्यालेख

उन्होंने'निराला रचनावली'का संपादन आठ खंडों में किया है।इसके अतिरिक्त'निराला की असंकलित कविताएँ'और'रुद्र समग्र'का भी उन्होंने संपादन किया।

पाँच वर्षों तक वे त्रैमासिक'आलोचना'के सह-संपादक रहे।बाद में उन्होंने'कसौटी'के15अंकों का संपादन किया।

जब हिंदी साहित्य परिषद्, पटना कॉलेज, रज़ा फाउंडेशन, दिल्ली एवं हिंदी संस्थान, आगरा का संयुक्त आयोजन'नलिन विलोचन शर्मा दो-दिवसीय राष्ट्रीय जन्मशती संगोष्ठी'पटना कॉलेज सभागार में25-26नवंबर,2016सम्पन्न हुआ तो नवल जी से मुलाकात हुई थी।कवि संतोष चतुर्वेदी के साथ उनके नये आवास पर गया था, वे अस्वस्थ थे।

उनके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।
विनम्र श्रद्धांजलि
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हरिनरायण सिंह 'हरि' (मोहनपुर,समस्तीपुर) के उद्गार -
प्रसिद्ध समालोचक नंदकिशोर नवल नहीं रहे।मेरा यह दुर्भाग्य रहा कि मैं उनका दर्शन नहीं कर पाया।किन्तु, उनकी कई कृतियों को अध्ययन-मनन करने का सुयोग मिला।उनका उठ जाना, हिन्दी साहित्य के आलोचना पक्ष के लिए तो अपूरणीय क्षति है ही, वैसे सारे साहित्यकारों के लिए भी अपूरणीय क्षति है,जिनके लेखन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में उनकी कोई-न-कोई भूमिका रही थी ।नवल जी को विनम्र श्रद्धांजलि और उनके परिजनों व चाहनेवालों के लिए इस वियोग-दुख को सहने की शक्ति प्रदान करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना!
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आलेख - जितेन्द्र कुमार और अन्य
इस आलेख के लेखक का ईमेल आईडी -
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हरिनारायण सिंह 'हरि'

Cartoons on Corona lockdown / Artist - Niva Srivastava

Lockdown and Problem of migrant labourers 

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"Thoughts about our nation, province and city always rules the uppermost echelons of our psychic sky. Indianness is as necessary for ua as breathing. Body might be residing thousands miles away in a foreign land but soul consistently live in our home situated in India."

Niva Shrivastava lives in Dubai along with her husband and a 6 years old child. She has finished her BFA from Delhi College of Art. Though she is also a maestro of brushes and has been making thematic paintings and this editor had visited her sole exhibition of paintings at MultiPurpose Cultural Complex, Frazer Road, Patna a few years back, she has lately shifted towards cartoons. This shift of medium can best be explained by her but it is presumed that she wanted to take a dip into the contemporary happenings in the social and political arena. 

Here we are presenting some of her selected cartoons on the lockdown situation in India. Lockdown has not just locked up billions of people across the world but has also given rise to some unforeseen crises. The  problems of migrant labourers some of whom collapsed while travelling  back to their native villages thousands of kms away from the workplaces on foot.is far beyond any description. Now the government has allowed the trains and other means of transport specifically to facilitate their journey but now the transmission of Coronavirus to interior village sites is a real danger. 
Though earlier also the Central and State governments have taken several important steps for  mitigating the problems of migrant labourers, the mammoth size of masses is itself a challenge for any System moreover while most of them are not knowledgeable enough to understand the nuances and  true meaning of social distancing. 

Let us take a leisurely stroll along the cartoons made by Niva depicting these burning issues of today.
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Cartoons by - Niva Srivastva
Email ID of the cartoonist - niva.artist@gmail.com
Presentation of script - Hemant Das 'Him'
Email ID of the blog for responses - editorbejodindia@gmail.com









Monday 11 May 2020

शैलजा नरहरि की ग़ज़लें / डॉ.मनोहर अभय

मरे तो रोज मगर / हम से खुदकशी न हुई
सामाजिक सरोकारों और जनमानस की बेचैनी की अभिव्यक्ति 

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कभी बेगम अख्तर तरन्नुम के साथ गाया करती थीं :
 बुझी हुई शम्मा का धुँआ हूँ 
और अपने मरकज को जा रहा हूँ' |
शमा बुझी सो बुझी, उसका धुँआ भी यहाँ ठहरने का नहीं| उसे अपने मुक़ामे- सदर पहुँचना है| अनित्य जीवन की गहरी दार्शनिकता दर्शाता यह मिसरा मन को हिला कर रख देता है| स्मृति-शेष हिंदी ग़ज़लकार शैलजा नरहरि की एक सौ पाँच चयनित ग़ज़लों का एक मात्र संकलन है "बुझा चराग़ हूँ"|

बुझे हुए चराग़ की क्या जिंदगी ? फिर भी वह शिद्दत के साथ बता सकता है,रोशनी की अहमियत (कोई मुझ से ये पूछे कि रोशनी क्या है)| संकलन की सभी गजलें चमकीले शिलाखंड पर समय के हस्ताक्षर हैं| इनमें आज के आदमी और आदमियत की बात अपने ढंग से, अपने सलीके से कही है -
खुदा भी होगा परीशाँ ख़राब हालों से 
यही वो सोचता होगा ये आदमी क्या है

कोई कितना भी परेशान हो इस आदमी से उसे ख़ाके- सुपुर्द करते समय ये सवाल अवश्य उठता है कि इस मिट्टी  के घरौंदे में अंततः क्या था, जिसे बेशक़ीमती कहा जाय -
बचा है दर्द मेरे पास मेरा सरमाया
मिला के खाक में पूछेंगे कीमती क्या है|

आदमी के चले जाने के बाद ही उसकी कीमत, अहमियत और जरूरत महसूस होती है | गजलकार जीवन की नश्वरता से अनभिज्ञ नहीं| उसे मालूम है कि कांच का घर 'आदतन चटकने वाला' होता है| लेकिन , चटकने से पहले कुछ तो सकूँ दे सके -
जिंदगी चाहे चार पल की हो 
मिसरा- मिसरा सही गजल सी हो|

अर्थात,जीवन का हर पल,हर क्षण मिठास भरा हो |मिठास छोटी- छोटी खुशियों की|  मिठास मानवीय गरिमा के साथ जीवन बिताने की| कहने को कह दिया 'बुझा चराग़' |लेकिन,है ये ऐसा जो आँधियों से लड़ता है -
रात भर आँधियों से लड़ते रहे
अब थी साजिश दिया बुझाने की

साजिशदानों का खेल कहिए|समय इतना बदल गया है कि सही बात कहना अपराध है| अन्यथा -
मीर ग़ालिब जबान वाले थे
फर्श पर आस्मान वाले थे
क्या तसव्वुर में रोशनाई थी
हर्फ़ सारे वयान वाले थे
ब तो 'आस्तीनों में साँप पाले हैं 
दोस्ती के बदन पर छाले हैं

आस्तीनों में साँप पालना तो आम मुहावरा है| 'दोस्ती के बदन पर छाले हैं' की नव्यता अनौखी है| पैरों में छाले-फफोले तो बहुत सुने, पर  ‘दोस्ती के बदन' जैसे वाक्यांश ने गजल की आत्मा को कुरेद कर,जो मार्मिकता प्रदान की है वह अनुपम है |नाजुकी के साथ समय की भयावहता देखिए -
 हर कदम पर फरेब जारी है
हर तरफ मकड़ियों के जाले हैं 
.है सजा भी फ़क़त हमारे लिए
सबके चेहरे नक़ाब वाले हैं'|

सत्यसंकल्पियों की यात्रा अवरोधों के आरण्यों से गुजरती है,हिंस्र- पशुओं या हिंसक मानुषों के कान्तार से| इन मानुषों की आँखों में यदि कोई चुभता है तो सत्यव्रती|दंड मिलेगा तो इसी को|'दो निवाले जुटाना' भी मुश्किल है, इसके लिए| ऐसे परिवेश में सुख- चैन की अपेक्षा करना 'बदनसीबी' है -
 अश्क गालों पे\हाथ रोटी पर 
बदनसीबों की आस थी दुनिया'

बड़बोले लोगों से क्या आशा की जाय-
 'जिनके पैरों तले जमीन नहीं 
बात करते हैं आसमानों की|

दुष्यंत ने कहा -
‘तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीन नहीं
कमाल ये है कि\फिर भी तुम्हें यकीन नहीं’|

आर्थिक- सामाजिक विषमता हो या धार्मिक उन्माद, गजलकार की पैनी दृष्टि से कोई बचा नहीं |संसाधनों का बंदर -बांट खुल कर हो रहा है -
जाम छलके हैं ख़ास लोगों के
खाली प्यालियाँ, खाली की खाली 

कृपापात्र हैं कुबेर की पीढ़ियाँ
 हर तरह से भरे हैं जिनके घर 
उनको ही मालामाल करती हैं

 जो वंचित हैं अथवा अधिकृत हैं वे दस्तावेज लिए कतारों में खड़े हैं -
जिस के हाथों में घर का नक्शा था 
शख़्स वो आज दर-ब -दर क्यूँ है

एक जमात पीर -पैगम्बरों की है जो सामाजिक समता-सद्भाव पैदा करने का दाबा करती है| पर सारे दाबे खोखले| घटने की जगह आदमी की बेचैनियाँ बढ़ती जा रही हैं -
पीर पैग़म्बर रसूलों में रहा जो उम्र भर
रूह तक बेचैनियों से क्यूँ घिरा है आदमी 

सद्भाव और आपसी विश्वास सिमट रहा है
कह सकें तो बात दिल की 
ब नहीं मिलते वो लोग

सारे पोथी- पुरान अर्थवत्ता खो बैठे हैं -
जिंदगी को समझा था मुश्किल 
सब किताबों में सर खपाए थे)

ये तथाकथित मनीषी सीधी- सच्ची बात करते ही नहीं |दुष्यंत ने कहा -
‘गजब है सच को सच कहते नहीं वो 
कुरान-ओ-उपनिषद खोले हुए हैं

 एक संघर्षशील महिला का जीवन जीने वाली शैलजा जी को भीड़ में विस्मृत हो जाना स्वीकार नहीं| नारी अस्मिता का बचाव उनकी सबसे बड़ी चाहत | चिंता और बेचैनी भी| वे निशंक हो कर पूछती हैं -
'सात फेरों ने जिसे झुलसा दिया
कर दिया जिसका हवन\वह कौन है?

उत्तर देने वाला कोई नहीं
 तेरे हँसने पे होगी पाबंदी
सामने खिलखिलाएगी दुनिया

खिलखिलाने या क़हक़हे लगाने वाले हैं| बुलबुल तड़प रही है | बहेलिए मसखरी कर रहे हैं|-
मैं न बोलूँ मुझे हिदायत थी
उम्र भर क़हक़हे जिए तुमने

कर्तव्य परायण और अपनी शर्तों पर जीवन बिताने वाली महिला की पक्षधर गजलकार जानती हैं कि नारी स्वभावतः कोमल हृदया है| ममता की मूर्ति, महिमामयी -
जिसमें पाकीजगी की खुशबू
 अगर है तो माँ का आँचल है
फिर सारी यातनाएं नारी के नाम क्यों हैं?  उसकी आँखों में झाँक कर देखिए -
 एक ठहरी नदी है आँखों में
दिल की गहराइयों में जलथल है 

...ठहरे आँसू हैं, ठहरा काजल'| पहाड़ों को फोड़ कर चट्टानों को झिंझोड़ कर  धरती पर उतरती है, नदी|  निरन्तर आगे बढ़ना उसका धर्म है| स्वभाव है 
|ठहराव उसे गाँव की पोखर बना देगा| 
हो तो क्यों हो ठहराव? 
वह किस लिए भोगे ये सजा
है नहीं नाम जब कहता कोई
बे सबब क्यों मिले सजा कोई?

सज़ा मिलनी ही नियति है, तो पैदा होने दीजिए | सीधा -सादा संदेश है  'सिलसिला तोड़ कर निकल आओ' निकल आने की सामर्थ्य तो जन्मे|  वह हिम्मत और जज़्बा कि झेल सके सज़ा की त्रासदी -
ज़ख्म सारे ढँक लेंगे
पैरहन तो सीने दो
सारी अनकही वेदना को व्यक्त करता है यह मिसरा| 'पैरहन का सीना' संकेत करता है उस हौसले की ओर जो दर्द सहने का साहस दे सके, सारी विसंगतियों के बीच जीती -मरती नारी को| चाहत है कि सारी सुकुमारता और मृदुलता वाली नारी जिए तो अपनी शर्तों पर -
''बहुत कमजोर दिल का पैहरन
 अपनी चाहत से रफू मत कीजिए

वह कठोरतम काम करने को तैयार है| इस लिए कि स्वावलम्बी हो, आत्मनिर्भर -
मुझे मुश्किल सा कोई काम दो?

गजलकार की नारी किसी तरह से कमजोर नहीं है| वह आपदाएँ झेलती है, आत्महंता युद्ध नहीं लड़ती -
मरे तो रोज मगर
हम से खुदकशी न हुई

|यातनाएँ सब भोग रहे है -
पाँव सबके बँधे थे साँकल से
और सबको सफ़र पे जाना था

ताज भोपाली याद आ गए -
पीछे बँधे हैं हाथ
और शर्त है सफ़र 
किस से कहें कि 
पाँव का काँटा निकाल दे

सफ़र इतना लम्बा कि जन्नत तक पहुँच गए -
अपनी जन्नत में कितना तन्हा है
लाख बनता फिरे ख़ुदा कोई

ग़ालिब कहते हैं' -
हमें मालूम है जन्नत का हाल
अकेले टहल रहे थे अल्लाह मियां

इस अकेलेपन के चक्कर में दुष्यंत को जन्नत कभी रास नहीं आई -
रौनके जन्नत जरा भी मुझको रास आई नहीं
मैं जहन्नुम में बहुत खुश था \मेरे परवरदिगार    

कोई कुछ भी कहे बंदिशें तोड़नी हैं-
खूबसूरत गुनाह होने दो \ कुछ तो जीने की राह होने दो 
कैसे करवट बदल के सोए थे \ सलवटों को गवाह होने दो’

डॉ. शांति सुमन का गीत याद आ गया -
 'होने दो \ ओ रे \ मितवा जो जी में है

नैसर्गिक अभीप्साओं की पूर्ति आवश्यक है | इसे वर्जित फल कहना स्वयं में अपराध है | मुद्दत से जिसने सावन नहीं जिया हो वह अपनी अवदमित कुंठाओं के साथ बिता देगा ये खूबसूरत जिंदगी -
करवट बदल- बदल के \ मिरि रात कट गई 
जब रात ढल गई तो जरा सो लिए हुज़ूर
मुद्दत से हमने भीगता सावन नहीं जिया
शबनम से भीगे फूल ज़रा तोलिए हुज़ूर

शिल्प के स्तर सभी गजलें खरी उतरती हैं| उर्दू -फ़ारसी का व्याकरण| हिंदी- उर्दू- अरबी की त्रिधारा में नहाई हैं ये गजलें |अक़ीदत, परस्तिश, मुसल्सल, तशद्दुद आलूद , रायगाँ, जैसे उर्दू- फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग गजलकार के व्यापक ज्ञान का परिचायक है|सम्बोधन में ईश्वर -भगवान की जगह 'खुदा' का प्रयोग महफ़िलों की देन है |इतने पर भी सौंधी देशज सुगंध का आभाव नहीं खटकता| देशज कहावतें, मुहावरे भी कम नहीं ('दाने दाने पे नाम','कोई बनता रहे सिकंदर', आस्तीन के साँप, गंगाजली उठाना) |जहाँ जीवन की कठोर सच्चाइयाँ कठोरतम शब्दों में उकेरीं हैं, वहीं सुकुमार शब्दावलि कवि के सौंदर्यबोध को व्यक्त करती है -
ओस में, चाँदनी में भीगे ख्वाब, 
शबनम से थरथराते होँठ,
चाँदनी का मिजाज चेहरे पर

गहराई में उतर कर देखें तो शैलजा नरहरि की ग़ज़लों में मिलेगा जीवन का स्पंदन है | उन्होंने शायरों -मुशायरों के बीच ग़ज़लें सुना कर वाहवाही ही नहीं लूटी ,ग़ज़लों का अध्ययन- अनुशीलन भी किया| यह ऐसा कार्य था जिसकी ओर सिद् -समालोचकों की दृष्टि गई ही नहीं| सूर्यभानु गुप्त कहूँ या दुष्यंत कुमार ने हिंदी ग़ज़ल को जो व्यापक आकाश प्रदान किया, उसने कुछ उदारमना समालोचकों ने हिंदी ग़ज़ल को मजलिस के शामियानों से बाहर लाकर  साहित्य  की मुख्य- धारा से जोड़ने का अनुपम  कार्य किया| इस क्षेत्र में शैलजा नरहरि ने अग्रगामी भूमिका निभाई| वैसे भी ग़ज़ल उनकी भूख थी| प्यास थी| बैठे- ठाले की ताशमारी नहीं| कहना न होगा कि शैलजा नरहरि की गजलें जीवन के उतराव -चढाव की गजलें हैं, सामाजिक सरोकारों से भरपूर| इनमें जनमानस की बेचैनी है| आदमी का संघर्ष, आदमियत का क्षरण, रिश्तों की टूटन, प्रपंची सियासत की शतरंजी चालों का खुलासा  शिद्दत के साथ हुआ है| कुछ गजलें विचार प्रधान है| कुछ में सहज रूमानियत| लय, ध्वनि, प्रवाह इनकी प्राण- शक्ति है
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प्रकाशक : ग्रन्थ अकादमी,भवन संख्या -१९,पहली मंजिल,२,अंसारी रोड,  नई दिल्ली -110002
पृष्ठ संख्या: एक सौ दस
चयन सम्पादन : दीक्षित दनकौरी
मूल्य :एक सौ पचास  रूपये
प्रकाशन वर्ष :2020
समीक्षक - डॉ. मनोहर अभय
समीक्षक का पता - प्रधान संपादक,  अग्रिमान , आर.एच-111, गोल्डमाइन, 138-145, सेक्टर - 21, नेरुल, नवी मुम्बई - 400706,
समीक्षक का ईमेल आईडी - manohar.abhay03@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

समीक्षक - डॉ. मनोहर अभय

विन्यास साहित्य मंच द्वारा मातृ दिवस पर 10.5.2020 को आभासी कवयित्री सम्मेलन सम्पन्न

थकी आँखें, बुझी सूरत मगर इक हौसला लेकर

हर 12 घंटे पर देखिए - FB+ Bejod / ब्लॉग में शामिल हों- यहाँ क्लिक कीजिए  / यहाँ कमेंट कीजिए )





मां हर व्यक्ति के जीवन में सबसे अहम स्थान रखती हैं. जब पूरी दुनिया में मातृ दिवस पर लोग अलग-अलग प्रकार से मां के संघर्षों के प्रति आभार व्यक्त कर रहे थे, उसी समय साहित्यिक संस्था विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन काव्य संध्या में बिहार की कवयित्रियाँ दुनियाभर की माँओं को काव्य सुमन अर्पित कर रही थीं. रविवार दिनांक 10 मई 2020 को आयोजित इस काव्य संध्या में बिहार के अलग अलग जिलों से कुल 14 वरिष्ठ और युवा कवयित्रियों ने शिरकत की. बिहार की जानी-मानी नृत्यांगना और टेलीविजन एंकर डॉ पल्लवी विश्वास के संचालन और विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चन्दन के संयोजन में करीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में कवयित्रियों ने अपने काव्य रस की ऐसी धारा बहायी कि ऑनलाइन जुड़े श्रोता उसमे डूबते-उतराते रहे. 

आयोजन में पटना से डॉ. नीलम श्रीवास्तव, आराधना प्रसाद, पूनम सिन्हा श्रेयसी, नेहा नारायण सिंह, बीनाश्री हेम्ब्रम, कुमारी स्मृति ‘कुमकुम’ और डॉ. किरण सिंह, वैशाली से रेणु शर्मा, मुजफ्फरपुर से डॉ. भावना, डॉ. आरती कुमारी एवं आस्था दीपाली, जमुई से डॉ. नूतन सिंह ने अपनी कविताएँ सुनें. इस दौरान श्रोता के तौर पर कई वरिष्ठ और युवा कवि उपस्थित थे. गौरतलब है कि कोरोना संकट की इस घड़ी में कवि सम्मेलनों का भौतिक आयोजन संभव नहीं हो पाने की वजह से ऐसे आयोजन ऑनलाइन करवाना ही विकल्प रह गया है. ऐसे में विन्यास साहित्य मंच इस तरह के आयोजन करवा कर देश-दुनिया के युवा और वरिष्ठ साहित्यकारों को एक मंच प्रदान करने का निरंतर प्रयास कर रहा है.

कार्यक्रम में पटना से डॉ. नीलम श्रीवास्तव ने अपनी ज़िन्दगी से शिकायत को ग़ज़ल में पिरोते हुए कहा 
जिन्दगी इतना बता दे ,क्यूँ  मैं ठुकराई गई
बेबसी   के  ख़ार  में सौ बार उलझाई गई 
खेल होता बस सियासी नाम पर मेरे ,यहाँ 
दास्तान-ए- द्रौपदी  हर  बार दुहराई  गई

पटना से युवा कवयित्री नेहा नारायण सिंह ने मां को एक ख़त के जरिये याद करते हुए कहा -
खत  माँ  का..., आज नाम तुम्हारे, 
कुछ दबे एहसास..., मैं  खोल रही, 
चुप्पी  को  आज...,  मैं  तोड़  रही,  
मुस्कुराना छोड़.. हँसना सीख रही|

मुजफ्फरपुर से कवयित्री डॉ. आरती कुमारी ने मां को दया और करुणा की मूरत के तौर पर परिभाषित किया -
प्यार दया औ' करुणा की, मूरत लगती मेरी माँ
सारे दुख सह लेती है, उफ़्फ़ नही करती मेरी माँ
प्रेम सुधा सबको देती है ,गरल पान, करे खुद माँ
उसके कदमों में जन्नत है , रब के जैसी  मेरी माँ

मुजफ्फरपुर से डॉ. भावना ने मुहब्बत की चर्चा चलने पर उनकी याद आने की बात अपने ग़ज़ल के माध्यम से बताई -
चलेगी जब मुहब्बत की कभी चर्चा मेरे पीछे 
तुम्हें भी याद आयेगा मेरा चेहरा मेरे पीछे 
थकी आँखें, बुझी सूरत मगर इक हौसला लेकर
कोई है दूर से चलता हुआ आया मेरे पीछे

पटना से वीणाश्री हेम्ब्रम ने घर से दूर रहने पर मां की ममता को मिस करने की बात करते हुए कहा -
घर से दूर एक घर
तेरे आँचल की छाँव
झरती तुम्हारी ममता
मिलता एक गाँव

पटना से ही अपनी सुरीली आवाज़ के लिए पहचानी जाने वाली कवयित्री आराधन प्रसाद ने मां की तुलना सूरज से करते हुए कहा -
जैसे हो आफ़ताब मेरी माँ
शबनमी माहताब मेरी माँ
प्यार की खुशबुएँ लुटाती है
शोख़ ,चंचल गुलाब मेरी माँ

पटना से कार्यक्रम में शिरकट कर रही कवयित्री कुमारी स्मृति ‘कुमकुम’ ने मां की बेबसी को कुछ इस प्रकार बयां की
ये माँ ही है,जो बच्चों से शरारत कर नहीं सकती,
बुराई भी हज़ारों हों,शिकायत कर नहीं सकती,
तेरा झोला ये खाली है,भले दौलत कमाई है,
रहे भूखी रहे प्यासी ,ख़िलाफ़त कर नहीं सकती।

 कार्यक्रम का संचालन कर रहीं प्रख्यात एंकर डॉ. पल्लवी विश्वास ने अपनी कविता आसन्न-प्रसवा मैं, मेरा काव्य मेरा शिशु सुनाई -

वैशाली से इस काव्य संध्या में शिरकत कर रहीं पेशे से प्राध्यापक रेणु शर्मा ने अपने दोहों से मां को काव्य सुमन अप्र्पित करते हुए कहा -
जिसने अपनी कोख में,करी काया निर्माण,
अपनी सांसों से भरा,मेरे तन में प्राण।
अंतर्मन के भावों से,कोटि जताऊं नेह,
पद पंकज उस जननी के, समर्पित सुमन स्नेह।

पटना से ही वरिष्ठ कवयित्री डॉ. किरण सिंह ने मां के आँचल को संसार में सबसे सुन्दर बताते हुए कहा -
माँ तेरा आँचल लगे, सुंदरतम् संसार। 
तू ही मेरी गुरु प्रथम, तू ही पहला प्यार।। 
माँ सुन्दरतम् शब्द है , उर्जा से भरपूर। 
जिस उच्चारण मात्र से, लगीं बरसने नूर ।। 

पटना से ही इस कार्यक्रम में शिरकत कर रही कवयित्री पूनम सिन्हा श्रेयसी ने मां को याद करते हुए कहा -
माई माई माई री
तू याद बहुत आई री
ढूढ रहे तुझको निशदिन
जाने कहाँ समाई री

जमुई से कार्यक्रम में शिरकत कर रहीं वरिष्ठ कवयित्री डॉ नूतन सिंह ने मां को दुनिया में सर्वेष्ठ जीव बताते हुए कहा -
दुनिया में कोई चीज नहीं माँ से भी बढ़कर
ऊपर खुदा है तो नीचे मां है खुदा से भी बढ़कर

नई दिल्ली से युवा कवयित्री आस्था दीपाली ने स्त्री की तुलना वसंत से करते हुए अपनी कविता सुनाई: 
स्त्री होती है वसंत सी
फूटती रहती है उनमें
नई उम्मीदों के मोजर,
शीत सा मौन सहते हुए भी
देती है हमेशा
अपनी ममता और करुणा की गरमाहट

कार्यक्रम के अंत में विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चन्दन ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया और जल्द ही ऑनलाइन काव्य संध्या का अगला आयोजन करवाने की घोषणा की. 
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रपट की प्रस्तुति - चैतन्य चन्दन 
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - 
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