Monday 29 July 2019

"दूसरा शनिवार" समूह की साहित्यिक गोष्ठी 27.7.2019 को पटना में सम्पन्न

दुनिया की हलचलों से जुड़ी मनुष्यकेंद्रित कविताएँ

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बारिश होने की सारी संभावनाओं के बीच "दूसरा शनिवार" के आमंत्रण पर अनेक साहित्यप्रेमी दिनांक 27 जुलाई 2019 शनिवार संध्या 5:00 बजे श्रीधर करुणानिधि की कविताओं को सुनने के लिए पटना गाँधी मैदान की गाँधी मूर्ति के पास उपस्थित हुए। प्रत्यूष चंद्र मिश्रा, डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, कौशलेंद्र कुमार, राकेश शर्मा, विद्या भूषण, ओसामा खान, अरुण नारायण, नरेन्द्र कुमार, मुकेश प्रत्यूष, अरविन्द पासवान, चन्दन सिंह एवं आशीष मिश्र गोष्ठी में सम्मिलित हुए।

प्रत्यूष चंद्र मिश्र ने कवि को पाठ के लिए आमंत्रित किया। श्रीधर करुणानिधि अपनी रौ में थे। उन्होंने खोना, मँझधार, अपने-अपने हिंडोले में, चाँद से रिश्ता, डर, चाँद चिड़िया और भूख, तेरे हिस्से का पहाड़ अब उनका, थोड़ा और अँधेरा दे दो, देवताओं की उम्र नहीं पूछी गई, वसंत के पार, हँसोर आदमी की आदत, शोर उस शहर, हमारे हिस्से में, उनका पानी, 30 जनवरी, कभी की बारिश, नादानी, फेंकना, पहरा देने की जिद एवं आराम करने की जगह अच्छी है शीर्षक से कविताएं सुनाई। समकालीन यथार्थ उनकी कविताओं में प्रतिध्वनित हो रहा था। मानवीय सरोकारों से युक्त कविताएँ श्रोताओं तक अपने प्रवाह में सहजता से पहुँच रही थी।

पढ़ी गयी कविताओं पर चर्चा की शुरुआत करते हुए विद्या भूषण ने कहा कि उनका कवि के साथ लंबे समय से साथ रहा है तथा लगातार सुनते रहने का सुख मिला है। उनकी कविताएँ मानवीय सरोकारों की है, मनुष्यता को बचाने की बात कहती हैं। उनकी रचनाओं में जीवन के विविध भाव एवं आयाम सौंदर्य बोध के साथ उपस्थित है। उन्होंने बाजारवाद एवं भूमंडलीकरण के बाद के तानेबाने को समझा है तथा अपनी कविताओं में स्पष्टता से रखा है। कविताओं में प्राकृतिक दृश्यों की भरमार है तथा पर्यावरणविद की तरह वे इनकी चिंता करते हैं… संसाधनों के लूट की बात करते हैं। उनकी भाषा ताजगी लिए हुए है। कविताएँ बिंब गढ़ने वाली हैं तथा व्यंग्य के माध्यम से जटिल यथार्थ को अभिव्यक्त करती हैं।

मुकेश प्रत्यूष चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि "थोड़ा और अँधेरा दे दो" में अँधेरे के अलग-अलग शेड्स हैं। कविताओं में गहराई दिखती है। उन्होंने शास्त्रों का संदर्भ देते हुए बताया कि देवताओं की उम्र भी पूरी हुई है। हनुमान अभी तक जिंदा माने जाते हैं, जो सेवक हैं तथा शिव को अनश्वर माना जाता है विशेषतः शिवलिंग। गाँधी युग नायक थे और उन्हें लाखों लोग सुनते थे। करुणानिधि की कविताएँ अच्छी है, प्रेरक हैं तथा उनकी भाषा अपनी है।

राकेश शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कवि की कविताओं के मूल में प्रेम है। प्रेम को विचार से और विचार को प्रेम से नहीं काटते हैं। कविताएँ संवेदनापूर्ण हैं। 

अरविन्द पासवान कहते हैं कि समकालीन कविताओं को सुनते हुए लगा कि कविताएँ नई एवं ताजी नहीं है, पहले भी ये बातें कही गई हैं, पर कहने का ढंग प्रमुख है। कवि मौसम की बात करते हैं, पेड़-पौधे उनकी अभिव्यक्तियों में आते हैं। वे मानव मूल्य की बात करते हैं।

अरुण नारायण ने कहा कि श्रीधर करुणानिधि की कविताएँ सुनते हुए सुखद आश्वस्ति महसूस हुआ। यह विचारहीनता का दौर है, लेखकीय संगठन कमजोर पड़ते चले गये हैं। आग्रह तो यह है कि आदमी को मजहब की तरह सोचना है। कवि उसी कोशी अंचल से आते हैं जहाँ से रेणु, अनूप लाल मंडल, सुरेन्द्र स्निग्ध आदि की सुदीर्घ परंपरा रही है। 

कौशलेंद्र कुमार कहते हैं कि कविताओं में चाँद भी लगातार बढ़ रहा है, खूबसूरती है, उम्मीदें हैं।

पटना के एक कार्यक्रम में शामिल होने वर्द्धा से आये कविता के गहरे आलोचक हमारे मित्र आशीष मिश्रा सीधे होटल न जाकर गाँधी मैदान "दूसरा शनिवार" की गोष्ठी में शामिल होने गाँधी मैदान आये, दूसरा शनिवार उनका आभार व्यक्त करता है। उनके पास कवि की कुछ कविताएँ हमने पहले भेज रखी थीं। उन्होंने कहा कि कविताओं को पढ़ते हुए लगा कि कवि दुनिया में होने वाले परिवर्तनों, हलचलों से जुड़ा हुआ है। नई शक्तियां उभर रही है, कवि केवल इसकी पहचान ही नहीं करते बल्कि उससे लड़नेवालों की भी पहचान करते हैं। "30 जनवरी" कविता जब दादी की कोमल याद से जुड़ जाती है तो महत्वपूर्ण हो जाती है। यह मनुष्यकेन्द्रीयता ही अच्छी कविता की पहचान है। मनुष्य को उसके दुख-दर्द, शोषण, संघर्ष से अलग कर नहीं देख सकते। हम बिना संदर्भ के लड़ नहीं पाएंगे।

चन्दन सिंह ने कहा कि आलोचक दरवाजे खोलता है। कविता किसी भी क्षण में प्रकट हो सकती है। उन्होंने नेरुदा को संदर्भित करते हुए कहा कि राजनीतिक कविताओं को प्रेम कविताओं की तरह लिखा जाना चाहिए। श्रीधर करुणानिधि की कविताएँ वायवीय नहीं हैं, वे मिट्टी से जुड़ी हुई हैं। आखिरी कविता "30 जनवरी" उन्हें अच्छी लगी।

नरेन्द्र कुमार ने कहा कि कवि अपनी कविता ‘खोना’ में भूख के साथ हँसी की बात करते हैं। उभरती शक्तियां ‘हँसी’ तो ले जाती हैं, पर ‘भूख’ को छोड़ देती है, इसे अभिव्यक्त करना कवि की प्राथमिकता में है। दूसरी कविता ‘मँझधार’ में वे शहर और गाँव की चर्चा करते हुए उन्हें मिलाने वाले पुल की बात करते हैं जहाँ दोनों जगहों के लोग अपना दुख-दर्द कहते हैं। उनकी चर्चाओं में शहर का विकास और गाँव का नोस्टाल्जिया नहीं है, बल्कि त्रासद स्थिति है। कवि की यही सार्थकता है।

डॉ बी एन विश्वकर्मा ने कहा कि "थोड़ा और अँधेरा दे दो" कविता उन्हें अच्छी लगी। सभी कविताएँ संवेदनापूर्ण लगीं। कवि समस्याओं से जुड़ते हैं।

प्रत्यूष चंद्र मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कवि वैचारिक कविता को रचते हुए जमीन पकड़े रहते हैं। पूर्णिया एवं पटना की स्थानिकता उनकी कविताओं में आयी हैं तथा वे परिवेश को बहुत ही खूबसूरती से रचते हैं।

अंत में नरेन्द्र कुमार द्वारा धन्यवाद-ज्ञापन किया गया।
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आलेख - नरेन्द्र कुमार
लेखक का लिंक - http://aksharchhaya.blogspot.com/
छायाचित्र - दूसरा शनिवार
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Sunday 28 July 2019

खारघर चौपाल द्वारा मासिक साहित्यिक गोष्ठी 27.7.2019 को नवी मुम्बई में सम्पन्न

हम कठपुतलियाँ हैं, हमें उंगलियाँ नहीं होती / हमारे हाथ में कभी हमारी डोरियाँ नहीं होती

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जब दिल में जज़्बा होता है तो घनघोर बारिश के बीच भी निर्धारित स्थान के परिवर्तित होने पर भी बिना व्यक्तिगत आमंत्रण के सात समंदर के पार से एक साहित्यकार गोष्ठी में उपस्थित होकर सम्मिलित हो ही जाता है. ऐसा ही कुछ देखने को मिला दिनांक 27.7.2019 को खारघर चौपाल की साहित्यिक गोष्ठी में.

इस बार साहित्यिक गोष्ठी अपने पूर्व-निर्धारित स्थान पर न होकर खारघर, नवी मुम्बई के सेक्टर-6 स्थित साई साक्षात अपार्टमेंट स्थित सुपरिचित साहित्यकार विजय भटनागर के आवास पर आयोजित हुई। इस गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. गौतम और संचालन सेवा सदन प्रसाद ने किया. भाग लेनेवालों में चंद्रिका व्यास, अशोक प्रीतमानी, डॉ. सतीश शुक्ल, सत्य प्रकाश श्रीवास्तव,  विश्वम्भर दयाल तिवारी, हेमन्त दास 'हिम', राम प्रकाश विश्वकर्मा के साथ-साथ विदेश में कार्यरत डॉ. प्रशान्त दास भी उपस्थित थे.

सबसे पहले डॉ. सतीश शुक्ल ने अपनी दो लघुकथाएँ पढीं. "खिसियानी हँसी" में उन्होंने अनिवासी संतानों के संदर्भ में आजकल सचमुच चल पड़ी प्रथा को दिखाया जिसमें बेटे या बेटियाँ अपने माँ-बाप और सास-ससुर को बारी-बारी से विदेश में स्थित अपने निवास पर छ:-छ: माह के लिए बुलाते हैं ताकि उनके बच्चों की देखभाल वो कर सकें और खुद दोनो प्राणी नौकरी करने बाहर जाते हैं. दूसरी लघुकथा में एक विधुर बाप को अपनी सम्पन्न आर्थिक स्थित के बावजूद अपनी पुरानी कार का इस्तेमाल करते दिखाया गया है क्योंकि वह अपनी पत्नी की वह मुस्कान नहीं भूल पाता है जो इस कार के खरीदने पर उसे दिखी थी.

विजय भटनागर ने अपनी दो लघुकथाएँ पढी. एक में मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति दादा और पोते के सम्बंध के रूप में उजागर हुई तो दूसरी में अध्यात्म और यथार्थ का अनोखा संगम दिखा.

विश्वम्भर दयाल तिवारी ने 'उलझन' शीर्षक की एक लघुकथा सुनाई जिसमें घर के लेनदेन में भी गिनती करके करने का महत्वपूर्ण संदेश दिया गया. उनकी दूसरी लघुकथा का शीर्षक 'अहसास' था.


चंद्रिका व्यास ने "प्रेम की परख" लघुकथा में एक प्रौढ़ व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति से सच्चे प्रेम के भ्रम में बलात्कार की शिकार बन चुकी एक युवती को सहर्ष अपनी बहू के रूप में स्वीकार करते हुए दिखाया गया.

राम प्रकाश विश्वकर्मा ने एक युवा युगल के प्रेम सम्बंध के विशेष स्वरूप को दिखाती एक लघुकथा पढ़ी जिसमें नायक कहता है," हमने अपने जीवन का सबसे सुंदर सत्य कभी नहीं कहा". इस मार्मिक और सधे शिल्प से निर्मित लघुकथा में उन्होंने अंत में एक अति मधुर फिल्मी गाने की पंक्ति लिखी थी जिसके लघुकथा में शामिल किये जाने के बिंदु पर कुछ वाद-विवाद-सा चला.

प्रशान्त दास ने अपनी एक लथुकथा "बाबा का ढाबा" पढ़ी. इसमें एक बूढ़े व्यक्ति द्वारा भीड़ भाड़ वाली रेलगाड़ी का दरवाजा मुश्किल से खुलवाकर प्रवेश पानेवाले का खुद दूसरों के लिए दरवाजा बंद करते दिखाया गया है. यह कथा बड़ी ही सहजता के साथ आज के समाज की सुविधाभोगी और स्वार्थपूर्ण मानसिकता की संरचना को उजागर करती है.

फिर "शब्द बनेंगे इतिहास" नामक चर्चित लघुकथा-संग्रह के सम्पादक और दशकों से इस विधा में अपनी पहचान रखनेवाले सेवा सदन प्रसाद ने "रिश्ते तार-तार" शीर्षक लघुकथा पढ़ी जिसमें एक ऊंचे ओहदे पर विराजमान व्यक्ति को एक वृद्धाश्रम के कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के तौर पर उस वृद्धाश्रम में रहनेवाले सबसे वृद्ध के रूप में अपने ही बाप के हाथों माला पहनते दिखाया गया. इस दृश्य की कल्पना कर अनेक की आँखें नम हो गईं.  

उनकी दूसरी लघुकथा में एक बिधायक शराब की बोतलों के साथ जश्न मना रहा होता है. तभी शबाब के रूप में खिड़की के शीशे से एक सुंदर नवयुवती दिखाई देती है जो उससे अकेले में मिलना चाहती है. बिधायक की बाँछें खिल जाती हैं. किंतु तभी उनका अनुचर या स्पष्ट करता है कि वह अकेले में रंगरेली मनाने नहीं बल्कि इस बात की शिकायत करने बुला रही है कि उसके बेटे ने उसका बलात्कार किया है.

फिर कविता-पाठ का दौर आरम्भ हुआ हेमन्त दास 'हिम' के काव्य पाठ से. वे अपनी ही रूह की निगहवान बने नजर आये-
अपनी ही रूह का निगहवान हूँ मैं
यारों, सच कहता हूँ, परेशान हूँ मैं
ठीक निशाने पर भी छूटने के बाद 
जो लक्ष्य बदल जाये वही वाण हूँ मैं.

सत्य प्रकाश श्रीवास्तव ने बड़ी नजाकत से बताया कि मृत्यु क्यों सामने से वार नहीं करती -
ज़िंदगी मौत से 
हारी नहीं है आज तक
मृत्यु कभी वार करती नहीं / सामने से
क्योंकि सामने आप हैं.

अशोक प्रीतमानी एक राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध गीतकार हैं. बड़ी पैनी नजर से उन्होंने खुद को देखा तो बस एक कठपुतली पाया - 
हम कठपुतलियाँ हैं, हमें उंगलियाँ नहीं होती
हमारे हाथ में कभी हमारी डोरियाँ नहीं होती (1)
जब तुम न रहे तो रौनक न रही
फिर हमें जरूरते-ऐनक न रही (2) 
हमारे पास है विकल्प नहीं 
देखते वही जो दिखाया जाता है.(3)

विजय भटनागर ने बेखौफ जीने का तरीका अपनाया -
ज़िंदगी का लालच नहीं तो मौत से डरे क्यों
मौत आने से पहले, बेमौत मरे क्यों?
औरों की 'विजय' की खातिर, हम सबसे लड़े क्यों?

अंत में सभा के अध्यक्ष डॉ. गौतम ने कारगिल युद्ध पर विजय पानेवाले और उस दौरान शहीद होनेवाले पाँच सौ से अधिक वीर सैनिकों को नमन करते हुए कहा -
देश पर बलि हुए सभी नरों को नमन
जानकी हित कटे जटायू परों को नमन.
फिर अध्यक्ष महोदय ने पाकिस्तान की दुर्दशा का वर्णन करते हुए एक कविता पढ़ी.

अंत में डॉ सतीश शुक्ल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस साहित्यिक गोष्ठी का समापन हुआ और नवी मुम्बई की रिमझिम बारिश के बीच आयोजित यह कार्यक्रम सार्थक हुआ.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - eitorbejodindia@yahoo.com







 




Tuesday 23 July 2019

'हरि' के "हिन्दी गीत संग्रह- हुआ कठिन अब सच-सच लिखना" एवं बज्जिका "प्रबंधकाव्य- कर्ण" का लोकार्पण समस्तीपुर में 22.7.2019 को सम्पन्न

समाज में फैली विसंगति पर गहरी चोट

(बज्जिका संवाद युक्त रपट पढ़िये - यहाँ क्लिक कीजिए / हर 12 घंटों पर एक बार जरूर देख लें- FB+ Watch Bejod India)



बज्जिका के विकास से हिन्दी के विकास में कोई बाधा नहीं पड़ेगी बल्कि वह और समृद्ध होगी।" उक्त विचार हिन्दी और बज्जिका के ख्यात साहित्यकार डा ब्रह्मदेव प्रसाद कार्यी ने प्रकट किया। उन्होंने कहा," हरिनारायण सिंह 'हरि' हिन्दी और बज्जिका के समर्थ साहित्यकार हैं। उन्होंने  अपने महाकाव्य 'कर्ण' के माध्यम से समाज में फैली विसंगति पर करारा चोट किया है। 

कविता कोश के उपनिदेशक और हिन्दी तथा अंगिका के सशक्त और समर्थ युवा साहित्यकार राहुल शिवाय ने कहा कि "कर्ण के प्रकाशन से बज्जिका साहित्य समृद्ध हुआ है। उन्होंने कहा कि "हरि एक साथ हिन्दी और बज्जिका में अनवरत लिख रहे हैं और अभी तक हिन्दी के अनेक कविता और गीत संकलन के साथ-साथ दोनों भाषा में एक-एक महाकाव्य के भी सृजन कर चुके हैं।"

मैथिली के प्रसिद्ध कथाकर सॉ. रवीन्द्र राकेश ने कवि हरि के  हिन्दी गीत संग्रह "हुआ कठिन अब सच-सच लिखना" की और बज्जिका के वरिष्ठ कवि और समीक्षक ज्वाला सांध्यपुष्प-'कर्ण' की लिखित समीक्षा प्रस्तुत की। बेगूसराय से पधारे कबीर और नागार्जुन की परम्परा के कवि  जनकवि दीनानाथ सुमित्र ने कहा हरि के गीतों का मैं फैन हो गया हूं। 

हिन्दी और बज्जिका की सभी विधाओं के सशक्त  और युवा साहित्यकार अश्विनी कुमार आलोक ने हरि के लेखन व उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं का विश्लेषण करते उनके अन्तःसंबंधों की व्याख्या की । ये सभी साहित्यकार सोमवार की देर शाम बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद् के स्थापना दिवस पर संस्कारम् एकेडमी बिनगामा (समस्तीपुर) व परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। 

शिक्षाविद जनक किशोर कापर की अध्यक्षता व साहित्यकार मृदुल के संचालन व पूर्व सैनिक नरेन्द्र कुमार राय के संयोजन में आयोजित  इस कार्यक्रम का आगाज नरेन्द्र कुमार राय लिखित स्वागत गीत को गाकर रूचि रानी, सुरुचि सुमन व खुशी प्रिया ने किया। बच्चियों ने हरि लिखित पटोरी गीत के ऑडियो पर भावनृत्य भी किया।

दीप -प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन के बाद आकाशवाणी-कलाकार राम सिंगार सिंह ने राग भोपाली में "वर दे वीणा वादिनी वर दे" गाकर सबको  मंत्रमुग्ध कर दिया। राजनेता मनोज कुमार सिंह व एक उच्च अधिकारी मनीष कुमार ने अंगवस्त्र से हरिनारायण सिंह 'हरि' को सम्मानित किया । राजनेता राजकपूर सिंह, प्राचार्य डॉ. घनश्याम राय, डॉ. रामागार प्रसाद, पर्यावरणसेवी सुजीत भगत, डॉ. सुरेन्द्र कुमार राय,  संतोष पोद्दार, विश्वनाथ राय, शरदेन्दु शरद, इंतखाब आलम, सकलदीप कुमार राय, अरविन्द सिंह, शैलेन्द्र सिंह आदि ने भी लोकार्पित पुस्तकों  व बज्जिका भाषा के उत्थान पर चर्चा की।

इस अवसर पर कृतिकार हरि तथा हरिनारायाण 'हरि' ने भी अपने विचारों को प्रकट किया अंत में नरेन्द्र कुमार राय ने धन्यवाद ज्ञापित किया । संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन बज्जिका के साहित्यकार मृदुल ने किया। 
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आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र - 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com







Monday 22 July 2019

महाराष्ट्र, राजस्थान, म.प्र., उ.प्र.,झारखण्ड, बिहार आदि के कुछ साहित्यकार सम्मानित होंगे, हिंदी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया द्वारा -21.7.2019 को खगड़िया में बैठक सम्पन्न

जानकी वल्लभशास्त्री स्मृति पर्व- 24-25 अगस्त 2019 की तैयारी 
 चयन समिति की बैठक में देश भर से आई हुई प्रविष्टियों पर सम्यक विचार-विमर्श

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हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया की कार्यकारिणी समिति, स्वागत समिति एवम् संरक्षक सदस्यों की संयुक्त बैठक गायत्री शक्ति पीठ, खगड़िया में 21.7.2019 को आयोजित हुई जिसकी अध्यक्षता रामदेव पंडित राजा ने की। जानकी वल्लभशास्त्री स्मृति पर्व- 24-25 अगस्त 2019 की तैयारी के लिए आयोजित इस बैठक में अवधेश्वर प्रसाद सिंह, सूर्यकुमार पासवान, रामदेव प्रसाद शर्मा, डॉ0 विभा माधवी, अवधेश कुमार आशुतोष, प्रशान्त कुमार बच्चन, शिव कुमार सुमन, सुनील कुमार मिश्र, ब्रह्मा नन्द ओझा, कैलाश झा किंकर, चन्द्रिका प्रसाद सिंह विभाकर, अशोक कुमार चौधरी, डॉ0 कविता परवाना, चम्पा राय, अणिमा रानी आदि उपस्थित थे। 

पिछली बैठक के महत्वपूर्ण निर्णय से अवगत कराते हुए महासचिव कैलाश झा किंकर ने कहा कि चयन समिति की बैठक में देश भर से आई हुई प्रविष्टियों पर सम्यक विचार-विमर्श हुआ और स्वर्ण-पत्र/रजत पत्र सम्मान के लिए निम्नांकित साहित्यकारों की कृतियों का चयन किया गया -

1. अशोक मिजाज़ की चुनिंदा ग़ज़लें- अशोक मिजाज़ (सागर, म.प्र.)- रामवली परवाना स्वर्ण स्मृति सम्मान
2. दिन कटे हैं धूप चुनते- अवनीश त्रिपाठी (सुलतानपुर, उ. प्र.)- हरिवंश राय बच्चन रजत स्मृति सम्मान 
3. चुप्पियों के बीच- डॉ भावना (मुजफ्फरपुर, बिहार)- दुष्यंत कुमार रजत स्मृति सम्मान 
4. जीवन की हर बात- डॉ हरि फ़ैज़ाबादी (लखनऊ, उ.प्र.)- कवि रहीम रजत स्मृति सम्मान 
5. महात्मा गांधी का शैक्षणिक चिंतन- डॉ अर्चना पाठ्या (वर्धा, महाराष्ट्र)- लषण शर्मा रजत स्मृति सम्मान 
6. और कब तक- ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' (शाहजहांपुर, उ. प्र.)- रमन रजत स्मृति सम्मान 
7. रेगमाही- ज्योत्सना सक्सेना (जयपुर, राजस्थान)- फणीश्वर नाथ रेणु रजत स्मृति सम्मान 
8. जाने अनजाने न देख- बाबा बैद्यनाथ झा (पूर्णिया, बिहार)- कृष्णदेव चौधरी रजत स्मृति सम्मान 
9. अन्तर्मन की गूँज- माधवी चौधरी (भागलपुर, बिहार)- महादेवी वर्मा रजत स्मृति सम्मान 
10. हुआ कठिन अब सच-सच लिखना- हरिनारायण सिंह 'हरि' (समस्तीपुर, बिहार)- रामधारी सिंह दिनकर रजत स्मृति सम्मान 

11. हास्य व्यंग्य की भेलपुरी- विनोद कुमार विक्की (महेशखूंट, बिहार)- नागार्जुन रजत स्मृति सम्मान 
12. समय की पुकार हूँ मैं- रथेन्द्र विष्णु 'नन्हें' (भागलपुर, बिहार)- आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति सम्मान 
13. दुनिया का खेल निराला है- सूर्य कुमार पासवान (मुंगेर, बिहार)- कमलाकांत प्रसाद सिंह कमल रजत स्मृति सम्मान 
14. बूंद-बूंद में सागर- नीरज कुमार सिन्हा (गोड्डा, झारखंड)- रामविलास रजत स्मृति सम्मान 
15. ठिठके यादों का मौसम- अनिल कुमार झा (देवघर, झारखंड)- जितेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान 
16. एम्बीशन- कविता परवाना (खगड़िया, बिहार)- उपेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान 
17. हारिल की लकड़ी- दीनानाथ सुमित्र (बेगूसराय, बिहार)- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रजत स्मृति सम्मान 
18. घूंघट- डॉ रेहाना बेगम (जोधपुर, राजस्थान)- विधान चंद्र राय रजत स्मृति सम्मान 
19. मन मंदिर कान्हा बसे- अवधेश कुमार आशुतोष (खगड़िया, बिहार)- विश्वानंद रजत स्मृति सम्मान 
20. शब्दों का गुलदस्ता लाया हूँ- अवधेश्वर प्रसाद सिंह (रोसड़ा, बिहार)- महताब अली रजत स्मृति सम्मान 

सर्वसम्मति से तय हुआ कि उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष रामदेव पंडित राजा और मुख्य अतिथि डॉ0 संजय पंकज होंगे। कविसम्मेलन सत्र के अध्यक्ष प्रो0 चन्द्रिका प्रसाद सिंह विभाकर और मुख्य अतिथि ईश्वर करुण होंगे। कवयित्री सम्मेलन की अध्यक्ष डॉ0 कविता परवाना और मुख्य अतिथि मंजुला उपाध्याय होंगी। लघुकथा सत्र के अध्यक्ष डॉ0 रामदेव प्रसाद शर्मा और मुख्य अतिथि कथाकार रंजन होंगे। अभिनय सत्र के अध्यक्ष सूर्यकुमार पासवान और मुख्य अतिथि अभिनेता अमिय कश्यप होंगे। सम्मान सत्र के अध्यक्ष अवधेश्वर प्रसाद सिंह और मुख्य अतिथि अनिरुद्ध सिन्हा होंगे। और, सांस्कृतिक सत्र के अध्यक्ष अशोक कुमार चौधरी और मुख्य अतिथि गणेशपाल होंगे।

अगली बैठक 3 अगस्त 2019 की संध्या 04.00 बजे चन्द्रावती राजा पुस्तकालय चन्द्रनगर, खगड़िया में होगी ।
.....

आलेख - कैलाश झा किंकर, हिंदी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया 
छायाचित्र - हि.भा.सा.प., खगड़िया
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Sunday 21 July 2019

पेट का रिश्ता - सिद्धेश्वर की हिंदी कविता अंग्रेजी काव्यानुवाद के साथ / The Stomach - Hindi poem by Sidheshwar with it's poetic translation into English

मुक्तछंद कविता / Free verse poem

हर 12 घंटों पर जरूर देखें- FB+ Watch Bejod India)



पेट का रिश्ता 
रोटी से है

पेट को चाहिए रोटी
चाहे छोटी हो या मोटी
असली हो या खोटी
पेट को चाहिए रोटी

रोटी के लिए चाहिए
...रुपया-पैसा!

चोरी से या सीनाजोरी से
जेब से या तिजोरी से
ईमानदारी से या बईमानी से
भीख से या शैतानी से 
चाहे रूप बदलना पड़े जैसा..
रोटी के लिए चाहिए 
..रुपया-पैसा !

और, 
रुपया-पैसा
शोषकों के हाथों की रखैल है
जिसने 
बिगाड़ दिया है इंसानों का चरित्र
और-
 शोषकों की बदचलनी, बेईमानी को
लिख दिया है 
इंसानियत के बही खाते में.
.....

The stomach
Is related to bread.

The stomach needs bread
Either small or spread
Through money earned genuinely 
Or falsely made
The stomach needs bread

For breads 
Money is required 

Somehow or the  other
Earned as a thief or a robber
Being an honest or devilish one
Through means, good or improper
Playing any role they said
The stomach needs bread

And, 
the money and wealth
Are just the concubines of the exploiters
Who 
Have spoiled the character of human beings
And-
have entered 

Dissoluteness, dishonesty 
In the books of Honesty.
.....

मूल हिन्दी कवि/  Original poet in Hindi - सिद्धेश्वर / Sidheshwar
अंग्रेजी में काव्यानुवाद/ Poetic translation into English - हेमन्त दास 'हिम' / Hemant Das 'Him'
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Friday 19 July 2019

महान गीतकार 'नीरज' के साथ संस्मरण / मंजू गुप्ता

यादों में नीरज
"नहीं हमारे बीच में, गोपाल 'नीरज' का शरीर
साहित्य के साक्ष्य हैं, जैसे मीर कबीर।"

(हर 12 घंटे पर देखते रहिए कि कहीं फेसबुक पर यह तो नहीं छूट गया - FB+ Watch Bejod India)



विश्व साहित्याकाश के  देदीप्यमान  नक्षत्र  मा. नीरज जी को  हमारी और देश और विश्व साहित्य जगत  की  ओर से हार्दिक विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।

मैं अपनी किताबों को प्रकाशित कराने के लिए मुम्बई से अलीगढ़ गयी थी और नीरज जी से मिलने की अभिलाषा मन में भी थी। तभी देवसंयोग से मेरी किताब "प्रांत पर्व पयोधि" उन्हें मिली और उसमें मेरा  टेलीफोन नम्बर भी था।  उन्होंने  मुझे  फोन कर अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया । उनसे अपनत्वपूर्ण संवाद करके ऐसा लगा कि ईश का देवदूत बन धरा  पर आएँ हैं  और मेरे मन की बात जैसे उन्होंने सुन ली हो।

मैं उत्सुकता के साथ  उनसे मिलने अपने हमसफ़र के साथ शाम को उनके घर पँहुची। साफ-सुथरा सुंदर सुसज्जित उनका बड़ा सा हॉल  था जहाँ वे  दो दोस्तों के साथ ताश खेल रहे थे।  खेल जो तनावों से मुक्त रख के दिमागी कसरत है और अपने आप को व्यस्त रख के मनोरंजन का भी साधन  है। तभी मन में ख्याल आया उनका विश्व विख्यात  गीत  - कारवां गुजर गया 
 "स्वप्न झरे फूल से
 मीत चुभे शूल से।"
जैसे गीतों के रचयिता  किस तरह अपना  समय  खेल के साथ लेखन को समर्पित  कर रखा था।

उनकी रचनाओं में जीवन दर्शन, प्रेम, श्रृंगार, विरह, दर्द, देशप्रेम, मानवता का पैगाम मिलता है । नीरज जी आजादी से पहले  दिल्ली में  सरकारी  कार्यालय में कार्यरत थे जहाँ उन्हें ब्रिटेनिया सरकार की झूठी प्रशंसा, खूबियों के बारे में लिखना होता था। जब  कोलकत्ता में गए तो ब्रिटेन की सरकार के विरोध में नज्म लिख दी। तब सरकार इनको पकड़ने के लिए  पीछे पड़ गयी ।  तब  अपने को बचाने  के लिए छिपते-छिपाते कानपुर में आ गए। यहीं पर  कार्यरत हो गए।

फिर एक दिन उनके मित्र चंद्रा जी मुंबई नगरी ले आए। एक कार्यक्रम में देवानन्द ने उनकी नज्म सुनी तो नीरज जी की कलम की तारीफ की। उन्होंने संगीतकार आर. डी. बर्मन से मिलवाया तो उन्होंने नीरज को रंगीला शब्द पर गीत लिखने को दिया।

तब उन्होंने "रंगीला रे तेरे रंग  में ......"खूब बड़ा गीत लिख दिया। बर्मन को खूब पसंद आया। इस तरह से फिल्मों में गानों को लिखना सिलसिला चल निकला। गीतों ने कामयाबियाँ, बुलन्दी, यश तो दिया लेकिन नीरज का मुम्बई में मन  नहीं लगा। खुशियां तलाशने अलीगढ़ आ गए। तब से यहीं परिवार के साथ आकर बस गए। यहाँ उनकी तबीयत खराब रहने लगी। तब भी वे लेखन से जुड़े रहे, कवि सम्मेलनों, हिंदी कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे थे। 

आज वे 93 साल के हो चुके हैं। हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अपनी कृतियों साहित्य सेवाओं से हमारे साथ हैं। गीता, ओशो  के विचारों को मानने वाले नीरज ने देह त्यागी है ।  आत्मा यहीं भारत में बसी है।

मैं उनके खूबसूरत, हँसमुख सरल, सहज  विद्वता, आत्मीयता से पूर्ण व्यक्तित्व  से बहुत प्रभावित हुई।अनौपचारिक परिवेश में चाय पीकर मेरा परिचय उनसे हुआ। "प्रांत पर्व पयोधि"  को देख कर मुस्कुराते हुए बोले - बिटिया,  देशप्रेम जिस की रगों में बहता है, तन-मन से जो समर्पित हो वही देशभक्ति मानवीयता का पुजारी होता है।" 

मेरी कृतियों  के बारे में, मेरी पांडुलिपि दीपक, सृष्टि, अल्बम आदि के बारे में संवाद चला और मेरी उन पांडुलिपियों की समीक्षा भी करके मुझे अपनी उदारता, निस्वार्थता, सहज, हितैषी व्यक्तित्व का परिचय  दिया। इतने महान साहित्यकार होते हुए भी वो अहम से कोसों दूर थे ।

उन्होंने पांडुलिपियों की समीक्षा कर मुझे आशीर्वाद दिया था। जो आज फल-फूल रहा है। आज वे फोटो के संग अमर पल उनके सानिध्य का स्मरण कर के उनकी आत्मा को शांति मिले  ईश से हम सब  प्रार्थना करते हैं।
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आलेख -  मंजु गुप्ता
लेखिका का ईमेल आईडी - writermanju@gmail.com
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इस लेख की लेखिका - मंजू गुप्ता 

''नीरज' का चित्र एक अन्य कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय के साथ  /  वसुंधरा जी कहती हैं - दादा को मैं अपनी पुस्तक भेंट करके आयी थी तो 3 दिन बाद उनका फोन आया,20 मिनट बात किये,मेरी नौ कविताएं वे मुझे मेरी पुस्तक से सुनाए।असज भी उनकी आवाज कानो में गूंजती है दिल को तसल्ली होती है की पुस्तक सार्थक हुई


Thursday 18 July 2019

किस्मत मेरी रही कि मुकाम तक न पहुँचे - Hindi poem by Sidheshwar with rhythmic English translation / सिद्धेश्वर की हिन्दी कविता छंदानुवाद के सथ

किस्मत मेरी रही कि मुकाम तक न पहुँचे / I kept on moving but never reached a halt

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किस्मत मेरी रही कि मुकाम तक न पहुँचे
इश्क किया मगर हम अंजाम तक न पहुँच
I kept on moving but never reached a halt
I too fell in love though without any result

हम भी मुहब्बत के मयखाने तो गए
हाथ बढ़ाया मगर जाम तक न पहुँचे
I too entered in pub of love-making
Still, for hands, reaching goblet was difficult

दो दिलों के ऊपर ये कैसी बंदिशें
कि सीता भी अपने राम तक न पहुँचे
Even a Sita cannot reach to her Rama
Many were the constraints with a couple adult

दौलत के तराजू पर तुल गया ये दिल
पर नीलामी के ऊँचे दाम तक न पहुँचे
The heart was there weighed with mammon
It was beyond my reach, pricing was occult

कहीं पहुँचने को ही दिन भर चले क्दम
अपनी मंजिल तक पर शाम तक न पहुँचे.
To achieve a feat I took a lakh steps
Nothing got till nightfall sans the insult.

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मूल हिन्दी कवि - सिद्धेश्वर
Original poems in HIndi- Sidheshwar
Rhythmical translation into English - Hemant Das 'Him'
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