बदमिजाजी सियासत की इतनी बढी / आग अपने ही घर को लगाने लगी
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आज की ग़ज़ल सिर्फ महबूबा को रिझाने की चीज नहीं रह गई है बल्कि उसका फलक काफी व्यापक हो गया है. अगर कहा जाय कि हिंदी ग़ज़ल ने शुरू से ही ऐसा तेवर दिखाया है तो शायद अतिशयोक्ति न होगी. अगर कोई ऐसी मज़लिस जमे जिसमें जिसे देखें वह नामी ग़ज़लकार ही दिखे तो क्या कहने! विन्यास की इस गोष्ठी में न सिर्फ इंसानियत और मुहब्बत की बातें हुई बल्कि सियासत, ममता, बालश्रम, गृहबंदी (लॉकडाउन) आदि भी अछूते नहीं रहे. लेकिन जो भी बातें उठी पूरी गम्भीरता और सघनता के साथ. आइये देखते हैं इसमें क्या कुछ हुआ और क्या कुछ पढ़ा गया. (-हेमन्त दास 'हिम')
पटना/दिल्ली/गाज़ियाबाद/जयपुर/मुंगेर/गोड्डा। कोरोना काल में ऑनलाइन साहित्यिक गोष्ठियों के आयोजन देशभर में परवान चढ़ रहा है. इसी क्रम में विन्यास साहित्य मंच ने रविवार 28 जून 2020 को ऑनलाइन ग़ज़ल गोष्ठी का आयोजन किया जिसमे देश कई राज्यों से वरिष्ठ और युवा ग़ज़लकारों ने शिरकत की. गूगल मीट प्लेटफार्म पर आयोजित इस कार्यक्रम में शायरों ने एक से बढ़कर एक गजलों से समां बाँध दिया. वरिष्ठ शायर और "नई धारा" साहित्यिक पत्रिका के संपादक डॉ शिवनारायण की अध्यक्षता में संपन्न इस ग़ज़ल गोष्ठी में जयपुर से निरुपमा चतुर्वेदी, गाज़ियाबाद से ममता लडीवाल, गोड्डा से वरिष्ठ शायर सुशील साहिल, मुजफ्फरपुर से डॉ भावना, मुंगेर से वरिष्ठ शायर राम बहादुर चौधरी ’चन्दन’ और अनिरुद्ध सिन्हा, भागलपुर से पारस कुंज के अलावा पटना से वरिष्ठ शायर घनश्याम, रमेश कँवल, आरपी घायल, आराधना प्रसाद, ज़ीनत शेख़ और युवा शायर कुंदन आनद ने शिरकत की. कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से युवा शायर चैतन्य चन्दन ने . करीब दो घटे तक चले इस कार्यक्रम में गजलों का लुत्फ़ उठाने कई श्रोता अंत तक जुड़े रहे.
ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश से कार्यक्रम में शिरकत कर रहीं शायरा ममता लड़ीवाल ने सुनाया -
वक़्त ने बंदी बना कर रख दिया
सींखचों में क्यों मेरा घर रख दिया
फड़फड़ा कर रह गए हैं हौसले
ख़्वाब पर भी हमने पत्थर रख दिया
जयपुर की चर्चित शायरा निरुपमा चतुर्वेदी ने सुनाया -
इक अजब दर्द जगाती हैं तुम्हारी बातें,
दिल में सैलाब सा लाती हैं तुम्हारी बातें।
दिल के हालात बताने की कशाकश को लिये,
कुछ सलीक़े से छुपाती हैं तुम्हारी बातें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर डॉ शिवनारायण ने सुनाया -
खेत में बारूद की फसलें उगाई जा रहीं
आंगनों में खौफ का दरिया बहाया जा रहा
बदमिजाजी सियासत की इतनी बढी
आग अपने ही घर को लगाने लगी
पटना से ही वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने सुनाया -
किसी के प्यार में सुधबुध कभी जो खो नहीं सकते
यक़ीनन वो जमाने में किसी के हो नहीं सकते
बचाकर चाहिए रखना हमेशा आँख का पानी
नहीं तो दाग़ दामन का कभी हम धो नहीं सकते
पटना की शायरा आराधना प्रसाद ने सुनाया -
हौंसलों को मेरी मंजिल का पता है शायद
अब मेरी राह में कंकड़ नहीं आने वाला
जिसकी हर बात पे सब लोग हँसा करते हैं
आज सर्कस में वो जोकर नहीं आने वाला
बरियारपुर मुंगेर से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर रामबहादुर चौधरी ‘चन्दन’ ने सुनाया -
इस तरह अक्सर हमें काटा गया है
टुकड़े करके फिर उसे साटा गया है
लाश बनकर रह गई जो जिंदगानी
चील-कौओं में उसे बांटा गया है
मुंगेर से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे ग़ज़लकार और आलोचक अनिरुद्ध सिन्हा ने कहा -
जब से है एक चाँद घटा में छुपा हुआ
तब से है जुगनुओं का तमाशा लगा हुआ
हिस्सा था एक भीड़ का कल तक जो आदमी
रहता है अब हरेक से तन्हा कटा हुआ
मुज़फ्फरपुर से जुडीं डॉ भावना ने कहा -
जिसे पढ़ने को जाना है,उसे नौकर बनाती है
हर इक छोटू के बचपन को गरीबी लील जाती है
नदी के द्वार पर जाकर बसेरा मत बना लेना
बचाती है ये जीवन को तो सबकुछ भी डुबाती है
पटना से वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने कहा -
कभी बुलाओ, कभी मेरे घर भी आया करो
यही है रस्मे मुहब्बत इसे निभाया करो
भागलपुर से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर पारस कुंज ने कहा -
आदमी के नाम पर क्यों मर रहा है आदमी
इसलिए कि आदमी से डर रहा है आदमी
गोड्डा से वरिष्ठ शायर सुशील साहिल ने सुनाया :-
मैं रोज मान के बादल कहाँ से लाऊंगा
ख़ुशी उधार के हरपल कहाँ से लाऊंगा
सितारे-चाँद तो क़दमों में हैं मगर ऐ माँ
रफू किया तेरा आँचल कहाँ से लाऊंगा
पटना से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर कवि घनश्याम ने सुनाया
हमें वे खुद वे खुद आगे कभी आने नहीं देते
तरक्की की कोई तरकीब अपनाने नहीं देते
हमारी ज़िन्दगी पर हो गए वो इस कदर काबिज़
हमें अपने मसाइल आप सुलझाने नहीं देते
पटना की चर्चित शायरा ज़ीनत शेख़ ने सुनाया
अब मेरी ग़ज़लें रंग लाई हैं
मैंने कुछ शोहरतें कमाई हैं
कोई बादल यहाँ बरसता नहीं
यूं तो हरसू घटाएँ छाई हैं
पटना से युवा शायर कुंदन आनद ने सुनाया -
हम उजालों में जो आने लग गये
हमको अंधेरे दबाने लग गये
घर की हालत जब नहीं देखी गई
हम शहर जाकर कमाने लग गये
दिल्ली से कार्यक्रम का संचालन कर रहे युवा शायर और विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चन्दन ने सुनाया -
जब भी इंसानियत ने ठानी है
नफरतों ने भी हार मानी है
अश्क आखों से बह रहे हैं या
दिलफरोशी की यह निशानी है.
इस तरह से सौहार्द और प्रेम की भावना के साथ इस कार्यक्रम का समापन हुआ. अंत में धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने किया.
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रपट के लेखक - चैतन्य चंदन
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