Thursday 28 November 2019

Marathi play "Hyān̄caṁ karāyacaṁ kāyaṁ" (I need to do this) staged in Mumbai on 22.11.2019

A house haunted by history
A Drama Review of  ह्यांचं करायचं काय 

(View it after every 12 hrs - FB+ Today Bejod India)




A staff of some don type builder come to an old bungalow. As the people think this old building is haunted one so the owner old couple is facing difficulties in selling this property who also want to go abroad to their child. 

As the boss i.e. the builders don has threatened his agent of killing him if he returns without concluding the deal with the owners of the bungalow, the poor young man bears all the tantrums, idiosyncrasies of the old couple. The story is flexible enough to let various pieces of bizarre drama be shown in different episodes. In  one instance the house lady becomes Jhansi Ki Rani but forgets the dialogues and somehow establishes herself as the Rani of Vashi. In another there is an Akabar and Anarkali in full rage. The comedy reaches its peak when the property mafia's male henchman is treated as 'Salim' to whom the male house owner (Anarkali) wants to marry and of course the owner's wife is a spoiler in this quaint love though not as a wife but in garb of Akabar who is trying to rein in his prince "Salim'

The audience was rolling in the aisles almost invariably after every couple of dialogues. It was only in the last 5  seconds when the play runs at a serious note. 

Undoubtedly the script of Vishal Kadam is the height of witticism, one grievance remains. After all, why he has to take a character of non-Marathi for the only villain. 

The comedy has been created by doctored historic mismatches and calculated misfits of characters. Like the role of Akabar is played by woman (the wife in the owner couple) and Salim is actually a man who is no one than the builder's agent. The house owner husband is almost forced to play Anarkali. This scene is so funny that the viewers were seen struggling with their own sober identity. The laughter was irresistible. It was not suppressible chuckles, it was simply a humour frenzy. 

Paddy Kamble, Vishakha Subhedar and Samir Chaughule were the only three actors who created uproarious scenes of extreme comedy. If we assess them it is undoubtedly Vishakha who not only have extra ponds on her body but also have unmatched talent to make every viewer blissful with uproarious laugh. Though the body movement and the punctuated stress in dialogue delivery she puts her own yardstick ahead each time. Though all the three actors were acting with a natural flow which is quite challenging in a comedy show. befitting to seasoned ones her facially expressions were speaking themselves more than the dialogues uttered. 

Music by Ajit Parab added value and was enchanting but the costumes by  Mangal Kenkare was really vital in the success of this historic comedy. The writer is Vishal Kadam who has not merely experimented  with comedy of errors but moulded successfully the political and social rhetoric of past into the present.
                                                                                    
Rajesh Deshpande as a director has ensured among other matters that the fast tempo of the play is maintained from the  the very beginning till the end.

The play was staged at Shivaji Madir, Dadar (Mumbai) on 22.11.2019.
(The reviewer has just started learning Marathi and does not know this language so there might be error in story part of the review)
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Review by - Hemant Das 'Him'
Send your feedback to - editorbejodindia@gmail.com
Note- Members of the drama group are requested to send the pictures of the drama on the above email ID. 



Tuesday 26 November 2019

देवरिया (उo प्रo) में स्थानीय साहित्यकारों और विचारकों द्वारा दिनांक 24.11.2019 को विचार गोष्ठी व कवि सम्मेलन सम्पन्न

"रहेंगे दोनों साथ"

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)



साहित्य और विचार कोई महानगरों के एकाधिकार वाली धरोहर नहीं है। देश के कोने-कोने में रहनेवाला इससे वास्ता रखता है। सच पूछिए तो आज जो जितना बड़ा शहर है वह विचारों के स्तर पर उतना ही अनम्य और दृष्टिबाधित है। जो दिन को रात और रात को दिन साबित कर देनेवाली मीडिया की आंधी से जितना बचा हुआ है आज उसी के पास विचारों की रीढ़ बची हुई है।  दुनिया में साफ नीयत और प्रेम और मुहब्बत से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं होता।


सरकारें भी अपने स्तर पर भाईचारा और सौहार्द स्थापित करने के नेक काम में अपने स्तर पर लगी है लेकिन जनता विशेष रूप से दूर-दराज क्षेत्रों में रहनेवालों को खुद भी इसमें लगना पड़ेगा ताकि उन्हें धर्म -अधर्म के वास्तविक अंतर को समझकर देशहित हेतु स्वयं को उन्मुख कर सकें।

बिखरते समाज को जोड़ने और तमाम विसंगतियों से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता बनाये रखने उद्देश्य से दिनांक 24 नवम्बर, 2019 को बुद्ध पब्लिक विद्यालय, हरेराम चौराहा, प्रतापपुर, देवरिया (उo प्रo) में भाईचारा विषयक गोष्ठी व कवि सम्मेलन का आयोजित किया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता गोंड महासभा के अध्यक्ष रामविलास आर्य ने किया । मुख्य अतिथि के रूप में कविवर रामेंद्र प्रकाश मिश्र उपस्थित थे। संचालन कवि पत्रकार मकसूद  किया। कार्यक्रम के संयोजक, समाज सेवी  जटा शंकर थे। 

कार्यक्रम का शुभारंभ कवि मधुसूदन द्विवेदी के द्वारा मंगलाचरण से किया गया । 

वयोवृद्ध कवि गिरधर तरण  अपनी रचना"आइए हमारी गली" सुनाकर सबका मन मोह लिया । 

वरिष्ठ कवि रविंद्र प्रकाश मिश्र ने अपनी रचना के माध्यम से आज की राजनीतिक सफलता के पीछे की कटु सच्चाई को जनता के सम्मुख रखा ।

शायर अब्बास अली ने अपनी रचना "करे लगले आपन काम भगत सिंह "सुना कर लोगों का मन मोह लिया । 

कवि वेद प्रकाश तिवारी ने  अपनी रचना चाँद का मजहब सुनाकर  खूब वाहवाही लूटी -  
जबकि आदमी का अभिमान
उसका कोरा ज्ञान
बाँट रहा है
गीता और कुरान
मैं होकर बेचैन
पूछता हूँ अक्सर चाँद से--
ऐ चाँद
कभी ईद पे तेरा दीदार
कभी कड़वा चौथ पे
तेरा इंतज़ार
अब तू ही बता
तेरा मजहब क्या है ?

कवि मक़सूद ने अपनी रचना "हिंदू यहीं के मुसलमान यहीं के रहेंगे दोनों साथ " हिंदू मुस्लिम एकता पर बनी सुंदर रचना प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी । 

इस कार्यक्रम में कवि टुनटुन सिंह, रामभरोसा, बाबूलाल कुशवाहा ,डॉ वारसी आदि ने भी अपनी रचनाएं पढ़ी। डॉ रंगीला ने भोजपुरी में अपनी रचना पीड़िया महारानी सुनाकर लोगों का मन मोह लिया।  

कार्यक्रम के संयोजक  जटाशंकर सिंह के द्वारा साहित्यकारों को और पत्रकार बंधुओं को सम्मानित किया गया।
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प्रस्तुति - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
रपट के मूल लेखक - वेद प्रकाश तिवारी
छायाचित्र सौजन्य - वेद प्रकाश तिवारी
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com







Monday 25 November 2019

जॉन एलिया की शायरी पर अंजुमन-ए-पासबान-ए-अदब की ओर से साहित्यिक गोष्ठी वाशी (नवी मुंबई) में 24.11.2019 को संपन्न

"तुम सोचती बहुत हो तो फिर ये भी सोचना / मेरी शिकस्त अस्ल में किसकी शिकस्त हैं"

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)



"अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है
हाल उस सैद का सुनाईए क्या
जिसका सैयाद ख़ुद क़फ़स में है"
कहा जाता है एक शायर इश्क और फिक्र में जितना बेचैन होता है लोगों को उसकी शायरी सुनकर उतना ही चैन मिलता है सुकून और राहत मिलाती है और जॉन एलिया इसकी एक बेहतरीन मिसाल हैं. शायर अशवनी 'उम्मीद' ने कुछ यूं परिचय दिया उस मकबूल शायर का जिनकी खिराज-ए-अकीदत में यह नशिस्त मुनक्किद की गई थी.

दिनांक 24.11.2019 को वाशी (नवी मुंबई) के सेक्टर -10 स्थित अंजुमन-ए-इस्लाम स्कूल में महान शायर जॉन एलिया की शायरी पर एक साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें बड़ी संख्या में उर्दू और हिंदी के शायरों और कवियों ने भाग लिया. एलिया की रचनाओं का विभिन्न शायरों द्वारा पाठ हुआ और उनकी शायरी पर इजहारे-ख्याल भी. आयोजकों में ईकबाल कंवारें और डॉ. दिलावर टोंकवाला  प्रमुख थे.
मुस्तकिल बोलता ही रहता हूँ 
कितना खामोश हूँ मैं अन्दर से (जॉन एलिया)

एक प्रमुख वक्ता थे शायर  अशवनी 'उम्मीद' जिन्होंने जॉन एलिया की शायरी की बारीकियों पर अपने विचार रखे. जॉन एलिया एक ऐसे बेहतरीन शायर थे कि उन्होंने जो भी लिखा बहुत तरतीब से लिखा. उन्होंने ऐसे शब्दों का प्रयोग भी खूब किया जो आमतौर पर व्यवहार नहीं होते. जैसे- चांदनी का तो व्यवहार हम देखते ही हैं पर उन्होंने 'चांदना' शब्द का भी व्यवहार किया. 

अशवनी 'उम्मीद' ने अपनी एक  ग़ज़ल का मतला और शेर भी पढ़ा - 
यही है मर्तबा ए सुखन में उस्ताद हो जाना
ग़ज़ल के शौक में पूरी तरह बर्बाद हो जाना
नहीं रूकना किसी लहजे का तुम फरियाद होने तक
किसी के मांगने से पेश्तर इमदाद हो जाना

नवी मुंबई की एक मशहूर शायरा वंदना श्रीवास्तव ने जॉन एलिया की एज ग़ज़ल और एक नज़्म सुनाई -
क्यूँ हमें कर दिया गया मजबूर
ख़ुद ही बे-इख़्तियार थे हम तो
तुम ने कैसे भुला दिया हम को
तुम से ही मुस्तआ'र थे हम तो
सह भी लेते हमारे ता'नों को
जान-ए-मन जाँ-निसार थे हम तो
ख़ुद को दौरान-ए-हाल में अपने
बे-तरह नागवार थे हम तो
तुम ने हम को भी कर दिया बरबाद
नादिर-ए-रोज़गार थे हम तो (जॉन एलिया)

जॉन एकिया की नज़्म-
मैं भी बहुत अजीब हूं, इतना अजीब हूं कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
मैं भी बहुत अजीब हूं इतना अजीब हूं कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं।

एक  अन्य मोहतरमा ने अपनी एक ग़ज़ल सुनाई -
अब मौसमे-बहार में जाना है जरूरी 
महबूब तेरे ख्वाब में आना  है जरूरी 
अच्छाई और बुराई हरेक दौर में है
अब खुद को बुराई से बचाना है जरूरी 
मौजे-बह्रां से कश्ती निकल आई है संभलकर
इक मां की दुआ काम में आना है जरूरी 

हर बार तुझसे मिलते वक़्त 
तुझसे मिलने की आरजू की है
तेरे जाने के बाद भी मैंने 
तेरी खुशबू से गुफ्तगू की है (जॉन एलिया)

एक उम्दा कवि कृष्णा गौतम ने अपनी एक बेहतरीन रचना तरन्नुम में सुनाई- 
ओ पीपल के पत्तों बजना बंद करो 
सन्नाटों को सन्नाटों से बातें करने दो
बात गमों की खामोशी से भी हो सकती है
सांय सांय यूं हवा का चलना मुझे अखरता है 

जहांगीर शेख 'मस्त' ने भी अपनी ग़ज़ल सामाईन के आगे पेश की.

उर्दू दैनिक रोजाना हिंदुस्तान के जुबैर फितरत ने कहा कि इस मज़लिस में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों की बराबर की तादाद है जो यह साबित करता कि उर्दू जुबाँ किसी मजबब से बंधी नहीं है वह सब की है. लोगों को उर्दू से प्यार है. उर्दू लोगों को जोड़नेवाली जुबां है. गंगा-जमुनी तहजीब की नुमाइंदगी उर्दू करती है.

कार्यक्रम में बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के हेमन्त दास 'हिम' भी मौजूद थे जिन्होंने जनाब ईक़बाल कंवारे और इस कार्यक्रम के अन्य आयोजको को कार्यक्रम की शानदार सफलता की बधाई दी।

इस कार्यक्रम में जो जुबां इस्तेमाल की जा रही थी उसमें ये फर्क करना मुश्किल था कि ये उर्दू है या हिंदी. दर-अस्ल दोनो जुबां इतनी घुली-मिली है कि फर्क करना आसान भी नहीं. बस थोड़ा अरबी-फारसी को हिंदी में बढ़ा दीजिए तो वह उर्दू हो जाती है और उर्दू में कुछ संस्कृत के शब्दों को मिला दीजिए तो वह हिंदी हो जाती है. दोनों में कोई बड़ा बुनियादी फर्क नहीं है.

इस तरह से यह कार्यक्रम बहुत ही सौहार्दपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ और एक मीठी याद के तौर पर लोगों के जेहन में समा गया.
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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
फोटोग्राफ - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल कीजिए - editorbejodindia@gmail.com
नोट- यह रपट बिल्कुल अधूरी है. आयोजकगण और अन्य शामिल शायरों से यह गुजारिश है कि कृपया ऊपर दिये गए ईमेल पर अपनी पढ़ी गई लाइनें,  नाम और फोटो (अगर हो) जल्दी भेजिए. इस रिपोर्ट में जोड़ दिये जाएंगे. हम किसी का नाम या फोटो छोड़ना नहीं चाहते हैं.



































Saturday 23 November 2019

"महात्मा गांधी का जीवन दर्शन और बिहार" पर एकल व्याख्यान और महिला विषयक पुस्तक का लोकार्पण पटना में 21.11.2019 को संपन्न

गांधी जी हर समस्या को नैतिक परिप्रेक्ष्य में देखते थे

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)



गाँधी जी विचारों से नहीं बल्कि मनुष्यों से प्रेम करते थे। वे हर समस्या को नैतिक परिप्रेक्ष्य में देखते थे। प्रो. सत्यकाम ने ये बातें कहते हुए यह भी जोड़ा कि गांधी जी के जीवन दर्शन के निर्माण में चंपारण आन्दोलन का बड़ा योगदान रहा । 

उन्होने आनंदी कुमार की लोकार्पित पुस्तक के बारे में बोलते हुए कहा की बिहार ही नहीं बल्कि देश और दुनिया की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर यह एक प्रामाणिक पुस्तक है जिसे हर लोकतंत्र प्रेमी को पढना चाहिए।

गांधी जी के 150वें जयंती-वर्ष पर "महात्मा गांधी का जीवन-दर्शन और बिहार" विषयक एकल व्याख्यान का आयोजन 21.11.2019 को  श्रीअरविंद महिला कालेज (पटना) में हुआ। बतौर मुख्य अतिथि व्याख्यान दिया इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू, दिल्ली) के समकुलपति प्रो.सत्यकाम ने।समारोह की अध्यक्षता पूर्व आइएएस एवं वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आई सी कुमार ने की,जबकि संचालन डॉ. शिवनारायण ने किया। समारोह में डॉ. आनन्दी कुमार की पुस्तक 'बिहार की राजनीति और महिलाएं' का लोकार्पण भी हुआ जिस पर डॉ. साधना ठाकुर, डॉ. सपना बरुआ, डॉ. शशिभूषण सिंह, डॉ. राधाकृष्ण सिंह आदि ने अपने-अपने विचार रखे। 

मुख्य वक्ता के तौर पर बोलती हुई डॉ. साधना ठाकुर ने कहा कि देश-विदेश के विधान मंडलों में महिलाओं का गौरवगान प्रस्तुत करती है।

सञ्चालन कर रहे कवि-समालोचक डॉ. शिव नारायण ने कहा कि लेखक स्त्री स्वायत्तता का पक्षधर है और उन्होंने पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की त्रासद स्थिति हेतु सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवरोधों को जिम्मेवार ठहराया।

लेखक डॉ. आनंदी कुमार ने कहा कि इस पुस्तक में मैंने महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढाने की वकालत की है ताकि एक समरस समाज का निर्माण हो सके।

सभा के अध्यक्ष के तौर पर बोलते हुए डॉ. आई. सी कुमार ने कहा कि यह पुस्तक महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढाने की मांग करती है जो सही है। उन्होंने कहा की गांधी जी के विचार आज अधिक प्रासंगिक हैं और उन्हीं के रास्ते पर चलाकर भारत फिर से विश्वगुरु बन सकता है।

विभिन्न वक्ताओं द्वारा अपने वक्तव्य में धर्म के महत्व पर भी बल दिया गया।

सभा में अपने विचार रखनेवालों में शंभू पी. सिंह, चितरंजन भारती, डॉ. प्रेमी कुमार, डॉ. सरिता कुमारी, डॉ. शशि सरोजनी बाला, डॉ. प्रभा मिश्र, डॉ. बिम्मी सिंह, डॉ. रीना सहाय भी शामिल थे। आरम्भ सर्वांगीण कालेज की प्राचार्या प्रो.मीरा कुमारी ने किया।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. बलिराजी मौर्या ने। समारोह में कथाकार चित्तरंजन भारती, पंकज प्रियम, डॉ. नीलू अग्रवाल, डॉ. आशा कुमारी, सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।
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प्रस्तुति  - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र सौजन्य - डॉ. शिवनारायण 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com














Sunday 17 November 2019

बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी का मुशायरा पटना के सीआरडी पुस्तक मेले में दि. 16.11.2019 को संपन्न

मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)




चाहे इजहार करें न करें जवाँ होते ही लग जाता है इश्क का रोग जो शख्स के वजूद को पूरी तरह अपने आगोश में ले लेता है और फिर ताउम्र सारी बलाएँ एक तरफ और इश्क का खुमार एक तरफ | और जनाब अपनी महबूबा से इश्क कोई जुबाँ की मुहताज नहीं होती - उसके लिए चाहिए होता है मिजाज़!

उर्दू का स्पर्श ही आपकी जुबान को दिलकश बना देता है | पुस्तक मेला में गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश करते हुए उर्दू – हिंदी के शाइरों-कवियों को एक मंच पर इकठ्ठा करने के लिए बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना के चेयरपर्सन और मशहूर शाइर रमेश कँवल के प्रति हार्दिक आभार और तहे – दिल से शुक्रिया अदा किया दिया |

25 वें पटना पुस्तक मेला में 16 नवम्बर  का दिन शे’रो-शाइरी से शौक़ रखने वाले लोगों के लिए बेहद ख़ास रहा | बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना द्वारा आयोजित मुशायरे का उदघाटन जनाब इम्तियाज़ अहमद करीमी, निदेशक ,राजभाषा उर्दू ,बिहार सरकार ने शाइराना अंदाज़ में किया | उन्होंने कहा शरद का स्वागत अगर देश के नामी गरामी शाइरों की मौजदगी में उर्दू हिंदी की बेहतरीन शाइरी सुनने - सुनाने से हो तो उसकी यादें बहुत दिनों तक ज़हनों-दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती रहेंगी | उन्होंने पुस्तक मेला के 25 वें आयोजन (सिल्वर जुबली) को पटना के साहित्य अनुरागियों के पुस्तक प्रेम का उत्कृष्ट प्रमाण बताया | उन्होंने पुस्तक ख़रीद कर पढने का आह्वान किया और कहा कि उर्दू और हिंदी सगी बहनें हैं | 

मशहूर शाइर जनाब नाशाद औरंगाबादी, मुख्य अतिथि और अपनी मखमली आवाज़ के लिए मशहूर ग़ज़ल गायक डा. शंकर सागर ,उपाध्यक्ष बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन, विशिष्ट अतिथि ने प्यारी प्यारी ग़ज़लें पेश कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया |

शकील सहसरामी ने मुशायरे की निज़ामत की | उन्होंने मंच सञ्चालन का  आगाज़ कुछ इस अंदाज़ में  किया :
हथेलियां भी बङी खुश अदाएं होती हैं
जुड़ें तो पूजा खुलें तो दुआएं होती हैं 

मुशायरे का आगाज़ अरुण कुमार आर्य के हम्द : हुस्नो-जमाल बख्शीसो-ने’मत ख़ुदा की है और आराधना प्रसाद के स्वर में निराला की सरस्वती वंदना “ वर दे वीणा वादिनी वर दे” से हुआ |

घनश्याम को किसी की आँखों की नादानी से परेशानी तो हुई पर जीना आसान हो गया  -
तेरी आंखों की नादानी न होती
मुझे इतनी परेशानी न होती
हमारी ज़िन्दगी में तुम न होते
तो जीने में भी आसानी न होती

समीर परिमल ने आँखों में पानी नहीं बचाने से हो रही तबाही का मंज़र रखा -
जो न करना था कर गया पानी
देखो हद से गुज़र गया पानी
जब जगह मिल सकी न आँखों में
हर गली घर में भर गया पानी

बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी ,पटना के चेयरपर्सन रमेश कँवल रूमानगी से लबरेज एक सदाबहार शायर हैं जो माशूका के दिए सारे ग़मों को दिल से 'डिलीट' कर चुके हैं-  
मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ
हिना की रोशन हथेलियों से नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ
डिलीट कर दूंगा उसके ग़म को मैं दिल के अब लैप टॉप से ही
ख़ुशी के जितने मिले हैं 'डाटा' उन्हें मैं दिलबर के नाम लिख दूँ

मुशायरे में ख़ातून शाइरात की शिरकत भी चर्चित रही | उनकी मीठी आवाज में बयाँ शायरी की नज़ाक़त से  सामईन प्रभावित होते दिखे |

पूनम सिन्हा श्रेयसी ने क़ुबूल किया कि किन्हीं की मर्मस्पर्शी बातों से वो पिघल चुकी हैं   -
मेरी मुझ से ही ठनने लगी
बात बिगड़ी थी बनने लगी
तेरे शब्दों ने मन को छुआ
और मैं भी पिघलने लगी 

शाज़िया नाज़ को किसी के बदलते तेवर नहीं समझ में आ रहे -
क्या हुआ क्या कहा कि ख़फ़ा हो गया
सोचती हूं तुझे आज क्या हो गया 

वहीं तलत परवीन हैं जो सारे सितम को सहती जाती हैं -
तेरे ज़ुल्म ओ सितम का हर चेहरा
आंसुओं ने मचल के देखा है 

आराधना प्रसाद को इश्क एक मीठा खंजर सा लग रहा है -
दिल के रग रग में उतरता हुआ खंजर देखूं
जो किसी ने भी न देखा है वो मंज़र देखूं 

डा.शमा नास्मीन ने तमाम तकलीफों में भी अपने मनोबल के बने रहने का राज आज खोल दिया -
जीती हूँ सर उठा के हज़ारों के बीच में
अहले कलम की कम कभी इज्ज़त नहीं होती 

डॉ आरती कुमारी वो शायरा हैं कभी खौफज़दा नहीं होतीं -
इन अंधेरों से कोई खौफ़ नहीं है मुझको
मैं समझती हूँ यहाँ नूर की बारिश होगी 

डा.अर्चना त्रिपाठी अपने संकोच को नहीं तोड़ पा रही  हैं -
हर्फ़े-इक़रार तो आए थे मेरे होंठों तक
लब सिले ऐसे न कुछ कहने दिया 

किसी की याद है जो डा.प्रो सुधा सिन्हा के जिगर में समा गई  है -
जिगर और दिल में समाने लगे हैं 
मुझे इतना क्यों याद आने लगे हैं

शाइरों ने भी एक से बढ़ कर एक उम्दा कलाम सुनाये | निम्न लिखित शाइरों के अशआर बहुत पसंद किये गए |-

अरुण कुमार आर्य अपने दोस्तों से बहुत चौकन्ने हैं -
मौत से नहीं मैं तो ज़िन्दगी से डरता हूं
दुश‌्मनी से क्या डरना दोस्ती से डरता हूं 

प्रेम किरण लोगों को असली-नकली का फर्क समझा रहे हैं -
‘किरन’ बाज़ार में खोटी खरी हर चीज़ बिकती है
ख़रीदारों में शामिल है तो पैदा कर नज़र पहले

नाशाद औरंगाबादी हतप्रभ है कि भाई ये जबरदस्ती की अनबन कौन से तहजीब है जरा समझें -
ये किस समाज की तहज़ीब है कि आपस में
जो राम राम न हो और दुआ सलाम न हो 

हर जगह आजादी अच्छी नहीं होती। समझा रहे हैं असर फ़रीदी -
दायरे में सुकून मिलता है
इस से बाहर नहीं हुआ करते 

आर.पी.घायल ने बताया की कोई सीख कर शाइरी नहीं कर सकता -
जहाँ जिस पर भी होती है ख़ुदा के नूर की बारिश
वही शाइर भी होता है वही फनकार होता है 

सदाबहार शख्सीयत डॉक्टर शँकर प्रसाद के रास्तों में खार भरा हुआ  है एक जमाने से -
हालात ने दिलो को समंदर बना दिया।
पुरखार रास्तो को मुकद्दर बना दिया 

कलीम अख्तर रोक रहे हैं किसी अजीज़ को अपने पास -
अभी तो शाम हुई है, जरा ठहर जाओ
तमाम रात पड़ी है, जरा ठहर जाओ 

युवा शाइर चैतन्य उषाकिरण चंदन की ज़िन्दगी अब दर्द का तराना बन चुकी है -
सुर्ख़ आँखों में फ़साना दर्द का
ज़िंदगी है इक तराना दर्द का

नईम सबा ने दिखाया कि गम कितने जरूरी हैं जिंदगी के वास्ते  -
कुछ लुत्फ़ और आता मेरी हंसी ख़ुशी में
थोडा सा गम जो मिलता थोड़ी सी ज़िन्दगी में 
सिद्धेश्वर ने दुश्मनी की आग को भड़कते देख बेचैन दिखे -
हाय! कब तक दुश्मनी की आग में
बेकफन जिंदा जलाए जाएंगें 

मुशायरे की निज़ामत जनाब शकील सहसरामी ने बड़े ही रोचक अंदाज़ में किया | रमेश ‘कँवल’,चेयरपर्सन,बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना ने मुशायरे में शिरकत करने वाले सभी शाइरों-शाइरात और श्रोताओं का स्वागत – अभिनन्दन किया और पुस्तक मेला के आयोजकों विशेषकर रत्नेश्वर एवं विनीत  को मुशायरे के लिए पुस्तक मेला का आम सभागार उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार प्रकट किया |
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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
मूल आलेख और संकलन  : रमेश ‘कँवल’
छायाचित्र साभार - अनेक कविगण
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट: इस मुशायरे में भाग लेनेवाले शाइर अपनी तस्वीर भेज सकते हैं रपट में शामिल होने के लिए, ऊपर दिए गए ईमेल पर.