जिसे मिलने तुम आयी हो कोरोना / वो कब का तुम्हें भगा चुका है
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वैसे तो फिल्मी गानों में अक्सर हम पाते हैं कि हीरो मिलने को उतावला नजर आता है लेकिन हिरोइन कहती है कि - "दूरी बहुत जरूरी है" लेकिन आज के हालात में हम जो दूरी कायम रखने को कह रहे हैं उसकी जरूरत सचमुच में बहुत अधिक है. आज देश के हर आदमी को हर दूसरे से दूरी कायम रखने की जरूरत है तभी हम कोरोना रूपी भँवर से बाहर निकल पाएंगे वर्ना इसमें लाखों लोगों को निगलने की क्षमता है. 35 हजार तो मर चुके हैं इससे बस दो-ढाई महीनों के अंतराल में. इतना भयावह है यह!
विश्व भर में आतंक मचाए हुए कोरोना वायरस ने, हमारे देश में भी अपना पांव फैलाने लगा तब लोगों को घर के भीतर ही कैद होने को विवश होना पड़ा । पूरे भारत में सरकार द्वारा जनता कर्फ्यू से भी कड़े प्रावधान के तहत, 21 दिनों के कठोर गृह कारावास को झेल रहा मजबूर आमजन तरह तरह के कामों में खुद को व्यस्त रखने लगे हैं। तब दूसरी तरफ हमारी साहित्यिक बिरादरी के लोग भी अपनी क्रियाशीलता रोक नहीं पाए हैं। और सोशल मीडिया के माध्यम से ही सही अपनी गतिविधियों बनाए हुए हैं।
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संवादहीनता की स्थिति न बनी रहें इसी उद्देश्य कवि सिद्धेश्वर ने "हैलो फेसबुक आभासी कवि-गोष्ठी" का संयोजन करना उचित समझा जिस पर बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के हेमन्त दास 'हिम' ने भी समर्थन दिया. ऐसा निर्णय लिया गया कि फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से ही सही, रचनाकारों की सृजनशीलता बरकरार रहे और उनकी आवाज घर में बंद रहते हुए भी, दूर - दूर तक पहुंचे!
"अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका", भारतीय युवा साहित्यकार परिषद" और बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के तत्वाधान में आयोजित, इस कवि सम्मेलन में दूरदराज बैठे कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं से अपनी संवादहीनता को तोड़ने की कोशिश और पहल की।"
कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि "कवि सम्मेलनों में कविताएं खूब पढ़ी जाती है, किंतु अपने अपने घर में बैठे दूरदराज के कवियों की कविताएं, उनकी ही आवाज में मीडिया के माध्यम से आम पाठकों तक पहुंचाना कई महीने से महत्वपूर्ण और सार्थक भी है। इस तरह उनकी रचनाओं से सिर्फ कवि - साहित्यकार या कलाकार ही नहीं बल्कि मीडिया से जुड़े हुए ढेर सारे लोग और आम जनता भी जुड़ जाते हैं। और ऐसे में आमजन और साहित्यकारों के बीच संवाद की स्थिति बनी रहती है। इस क्रम में, पूरी कवि गोष्ठी की कविताएं तीन भागों में वीडियो रिकॉर्डिंग करने के पश्चात फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया गया। इस कवि सम्मेलन में शामिल कुछ कवियों की कविताओं की झलक आपको दिखाते हैं-
आधुनिक दौर में वैसे भी एक इंसान दूसरे से दूरियाँ बना कर ही रखता है लेकिन प्राय: वह इसका पता नहीं चलने देता. लेकिन इस इंसानी चाल को प्रकृति भाँप गई और कवयित्री ऋचा वर्मा की सुनिये -
"इंसान हुआ इस कदर बेवफा
देखो कुदरत हो गई कितनी खफ़ा!
इंसान की इंसान से दूरियां
बन गई धरा की मजबूरियां
दिलों में बसी थी पहले से ही तन्हाईयां
अब तो बाजार में भी छा गई है वीरानियां।"
प्रजातंत्र में जनता हमेशा पक्ष-विपक्ष के बीच झूलती नजर आती है. लेकिन देश बचेगा और हम जीवित बचेंगे तभी तो पक्ष-विपक्ष की राजनीति में अपनी सहभागिता दिखाएंगे. इसके लिए जरूरी है कि इस महामारी की आपदा में हम सबकुछ भूलकर पूरी तरह से सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में उसका साथ दें. महादेव कुमार मंडल ने अच्छी तरह से इसे दर्शाया है -
मच रहा है सगरो हाहाकर
'कोरोना' का यूँ हुआ पसार
इतनी तेजी से फैले विकार
की पूरी दुनिया बनी लाचार
साफ-सफाई एकांतवास से
इस 'कोरोना' को दूर भगाएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
'लॉकडॉन' ही वह हथियार
जिससे इसका' रुके प्रसार
आह्वान कर रही है सरकार
सब मिलकर के करें साकार।
मधुरेश नारायण एक जानेमाने रंगकर्मी तो हैं ही, एक अच्छे कवि भी हैं. कहते हैं -
"एक तो कोरोना का है क़हर
लाँक डाउन हुआ सारा शहर
तिहाड़ी मज़दूर, ग़रीब-गुरबा
के जीवन में घुल गया जहर ।"
कवयित्री पूनम सिन्हा 'श्रेयसी' पूरी तरह से विफर पड़ी हैं और यूँ कहती हैं -
"पत्तों -सा तू झड़ कोरोना
जा कोने में मर कोरोना।
हम तो हैं भारत के वासी
पावनता से डर कोरोना।।"
दोस्तों, एक बात आपको कहूँ कि कोरोना महामारी चाहे जितनी भी भयावह हो एक दिन इसका अंत होना तो तय है. वह महामारी जिसका कभी अंत नहीं होता वह है आपसी वैमनस्य जिसके तहत हम ऐसी विपदा की घड़ी में भी एक-दूसरे पर दोषारोपण से बाज नहीं आते. राज प्रिया रानी लिखती हैं -
कैसी विपद आन पड़ी?
बिछ रही लाशों की झड़ी।
दर्द बयां कौन किससे करें
हाथ दुआओं की बेबस पड़ी।
भिड़ंत हो रहा दोनों का
अमरीका संग चीन
खोज निकालो कोरोना का
ओ! विश्व गुरु कोई वैक्सीन।
आस लगाए जूझ रहे
संक्रमित अपनी तकलीफ
सुनने वाला कोई नहीं
सब छींटाकशी में लीन ।
अक्सर वह शत्रु ज्यादा खतरनाक निकलता है जिसे आपने पहले कभी देखा ही नहीं, जिसके बारे में आप कुछ जानते ही नहीं. अभिलाषा कुमारी कहती हैं -
जिसे देख नहीं सकते, उस वायरस का कहर देखो
जी रहे सभी डरे-सहमें, जीवन में घुला जहर देखो।
चीन से आयातित है, है घातक बीमारी यह
जान पर बन आयी है,सहमा- सहमा शहर देखो।
कबसे बता रहे सबसे, यह दूरी बहुत जरूरी है।
घर में कैद रहना है, देखो कैसी मजबूरी है।
घर में कैद रहना है, देखो कैसी मजबूरी है।
एक आदमी अगर गम्भीर रूप से बीमार हो जाता है तो उसका परिवार तबाह हो जाता है पर जब पूरा देश ही बीमार हो जाए तो क्या होगा समझ लीजिए. सारा कारोबार, सारे रोजगार चौपट हो जाते हैं. मीना कुमारी परिहार लिखती हैं -
"चले आए कहां इस मुल्क में सरकार -कोरोना
व्यवस्था है तुम्हारे सामने लाचार कोरोना!
इमरजेंसी, कहीं कर्फ्यू, कहीं लॉक डाउन!
है धराशाई हुआ है विश्व का बाजार कोरोना!"
कवि रवि कुमार गुप्ता को बात सीधे-सीधे कहना अच्छा लगता है. जब बीमारी आन ही पड़ी है तो क्यों न सीधे मुद्दे की बात करें -
फैलल बा कईसन देखी चारों ओर जी
हाथ ना मिलाई रही, देहियो से दूर जी।
अपन घर बैठें, ना केहूं के संग जी
तबहीं होई बीमारी हमसे दूर जी।
जब महामारी जैसी आपदा आती है तो आपके सारे पूर्व इंतजामों को चकनाचूर कर के रख देती है और तब एक मजबूत निर्णय और इरादे की जरूरत होती है उससे मुकाबला कनए हेतु इस कवि होष्ठी के संयोजक और संचालक कवि सिद्धेश्वर कहते हैं -
ज्ञान विज्ञान धर्म ग्रंथ कुछ ना काम आवत है
क्रोध में जब प्रकृति अपन विनाशकारी रूप दिखावत है
हैवान बन गईल ई मानव से खतरा हमें जरूर है
ई तो कह भगवान जी, ई में हमरा का कुसूर है? "
बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के सम्पादक हेमन्त दास 'हिम' ने भी अपने अनोखे लहजे में इसे यूँ बयाँ किया -
कोरोना देखते-देखते बढ़ गया है
अब इस से न कोई देश बचा है
बेड के सब मरीज लेटे पड़े हैं
डॉक्टर को मास्क भी नहीं मिला है
वो मेरे सामने बैठा है लेकिन
दिलों में एक मीटर का फासला है
जिसे मिलने तुम आयी हो कोरोना
वो कब का तुम्हें भगा चुका है.
बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के सम्पादक हेमन्त दास 'हिम' ने भी अपने अनोखे लहजे में इसे यूँ बयाँ किया -
कोरोना देखते-देखते बढ़ गया है
अब इस से न कोई देश बचा है
बेड के सब मरीज लेटे पड़े हैं
डॉक्टर को मास्क भी नहीं मिला है
वो मेरे सामने बैठा है लेकिन
दिलों में एक मीटर का फासला है
जिसे मिलने तुम आयी हो कोरोना
वो कब का तुम्हें भगा चुका है.
इस कवि गोष्ठी में गाग लेनेवालों तो इसका आनंद लिया ही. वे अन्य लोग जो इस रपट को पढ़ रहे हैं वे भी कवि गोष्ठी में बैठे रहने जैसा अहसास कर सकते हैं. कुल मिलाकर इस गोष्ठी में अपने मन के अंदर छुपे भय को बाहर निकालकर लोगों ने एक-दूसरे के मनोबल को मजबूत किया और कोरोना महामारी को रोकने के सम्बंध में प्रभावकारी ढंग से जागरूकता फैलाने में सराहनीय रूप से सफल रहै.
इस आभासी कवि गोष्ठी" में शामिल कुछ कवियों की पूरी कविता :-
राज प्रिया रानी :
0"कैसी विपद आन पड़ी,
बिछ रही लाशों की झड़ी।
दर्द बयां कौन किससे करें,
हाथ दुआओं की बेबस पड़ी।
भीड़तं हो रहा दोनों का,
अमरीका संग चीन,
खोज निकालो कोरोना का
ओ! विश्व गुरु कोई वैक्सीन।
आस लगाए जूझ रहे ,
संक्रमित अपनी तकलीफ ,
सुनने वाला कोई नहीं
सब छींटाकशी में लीन ।
जो था एक बचाओ अपना
सोचा, बच जाएगी जान ,
सेनिटाइजर और मास्क "सिर्फ"
प्राथमिकी सुरक्षा की सीख ।
लहसुन, कपूर, तुलसी, अदरख
आजमा रहे सब देशी औषध ,
कोरोना का नहीं ये इलाज ।
भ्रम तोड़ो ना बढ़ाओ दहशत ।
हाथ जोड़ कर करो प्रणाम,
योग साधना से करो रोग विराम ।
संक्रमण को यूं न बढ़ने दो ,
शाकाहारी बन कर करो निदान ।
समृद्ध हिंद का चिर इतिहास,
टिकने न देते विदेशी प्रयास।
कोरोना का फिर क्या मजाल
उल्टी पड़ेगी षडयंत्र की चाल।।00
पूनम सिंहा श्रेयसी
पत्तों -सा तू झड़ कोरोना
जा कोने में मर कोरोना।
हम तो हैं भारत के वासी
पावनता से डर कोरोना।
गरिमामय जीवन है अपना
भारी हम तुमपर कोरोना।
हमने तो दूरी रख ली है
धरती में अब गड़ कोरोना।
कहती है पूनम भी तुमसे
बिन जरिया के सड़ कोरोना।00
ऋचा वर्मा
इंसान हुआ इस कदर बेवफा,
देखो कुदरत हो गई कितनी खफ़ा!
इंसान की इंसान से दूरियां,
बन गई धरा की मजबूरियां।
दिलों में पहले से ही थीं तन्हाईयां,
अब तो बाजारों में भी फैलीं हैं वीरानियां।
कैसी - कैसी आईं हैं ये बीमारियां,
अपनों की नहीं मिलती तीमारदारियां।
पहले ही कम था लोगों का मिलना -मिलाना,
अब दूर रहने का मिल गया वाजिब बहाना।
अलगावों का आया है कैसा यह दौर,
है मनाही मिल बैठने का एक ठौर।
शरीरों में ताप और मौसम सर्द - सर्द सा,
दिलों में भय और पोरों में दर्द - दर्द सा।
इंसानों ने ही इंसानों के लिए खोदा ये कब्र है,
देखकर इसकी हिमाकतें टूटा कुदरत का सब्र है।
कहतें हैं बड़ा आतातायी है यह कोरोना,
देखकर इसकी छवि सारे विश्व को पड़ा है रोना।
पर, जो आया है वह जायेगा यह अटल नियम है,
इस आपदा की घड़ी में हमें रखना संयम है।
खाली हाथ आना है, खाली हाथ जाना है,
फिर क्यूँकर इस दुनिया पर अपना आधिपत्य जमाना है।
महादेव कुमार मंडल.
मच रहा है सगरो हाहाकर
'कोरोना' का यूँ हुआ पसार
इतनी तेजी से फैले विकार
की पूरी दुनिया बनी लाचार
साफ-सफाई एकांतवास से
इस 'कोरोना' को दूर भगाएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
**'लॉकडॉन' ही वह हथियार
जिससे 'इसका' रुके प्रसार
आह्वान कर रही है सरकार
सब मिलकर के करें साकार
22 मार्च आज दिन रविवार
एकांतवास में समय बिताएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
**अपना घर-परिवार त्यागकर
रातों को भी जाग-जागकर
निज खतरों को भी जानकर
सेवा ईलाज में लगे हैं आकर
5 बजे कोरोना सेनानियों का
ताली बजाकर हौसला बढ़ाएं
'जनता कर्फ्यू' सफल बनाएं
**जात-पात से उपड़ उठकर
धर्म और राजनीति छोड़कर
द्वेष-बिरोध के भाव तोड़कर
मानवता की ही ओर मोड़कर
मूल मंत्र है "देव" का यह तो
खुद भी बचें औरों को बचाएं
'जनता कर्फ्यू' को सफल बनाएं। 00
अभिलाषा कुमारी
**जिसे देख नहीं सकते,उस वायरस का कहर देखो
जी रहे सभी डरे-सहमें,जीवन में घुला जहर देखो
चीन से आयातित है, है घातक बीमारी यह
जान पर बन आयी है,सहमा- सहमा शहर देखो।
**कबसे बता रहे सबसे,यह दूरी बहुत जरूरी है
घर में कैद रहना है,देखो कैसी मजबूरी है
जिंदा रहने के लिए,सहना होगा यह संकट भी
जिंदगी है तभी तो यह मेहनत है मजदूरी है।
**नाक मुहँ ढँककर रखें,करें सँभल-सँभल कर बात
रगड़- रगड़ कर साबुन से 20 सेकेंड तक धोएँ हाथ
फैलता ही जा रहा है संक्रमण यह तेजी से
सभा,यात्राएँ त्यागें,चलें नहीं भीड़ के साथ।
**खतरनाक है वायरस,हँसी- मज़ाक नहीं कोरोना
असावधानी हुई अगर तो पड़ेगा फिर कितना रोना
जीतना है,युद्ध है,यह महामारी की शक्ल में
रहना है सतर्क नहीं तो पड़ेगा जीवन भी खोना।
कैसी विपद आन पड़ी,
बिछ रही लाशों की झड़ी।
दर्द बयां कौन किससे करें,
हाथ दुआओं की बेबस पड़ी।
भीडत हो रहा दोनों का,
अमरीका संग चीन,
खोज निकालो कोरोना का
ओ! विश्व गुरु कोई वैक्सीन।
आस लगाए जूझ रहे ,
संक्रमित अपनी तकलीफ ,
सुनने वाला कोई नहीं
सब छींटाकशी में लीन ।
जो था एक बचाओ अपना
सोचा, बच जाएगी जान ,
सेनिटाइजर और मास्क "सिर्फ"
प्राथमिकी सुरक्षा की सीख ।
लहसुन, कपूर, तुलसी, अदरख
आजमा रहे सब देशी औषध ,
कोरोना का नहीं ये इलाज ।
भ्रम तोड़ो ना बढ़ाओ दहशत ।
हांथ जोड़ कर करो प्रणाम,
योग साधना से करो रोग विराम ।
संक्रमण को यूं न बढ़ने दो ,
शाकाहारी बन कर करो निदान ।
समृद्ध हिंद का चिर इतिहास,
टिकने न देते विदेशी प्रयास।
कोरोना का फिर क्या मजाल
उल्टी पड़ेगी षडयंत्र की चाल।। 00
🙏एक तो कोरोना का है क़हर
लाँक डाउन हुआ सारा शहर
तिहाड़ी मज़दूर,ग़रीब-गुरवा
के जीवन में घुल गया ज़हर
काम हो गया बंद,शहर है बंद
यातायात के साधन सब बंद
खाने-रहने को पड़ गये लाले
जीवन हो गया यहाँ खंड-खंड।
साधन नहीं तो पैदल चल रहे
कोई दिया तो खाना खा रहे,
बुढ़े-बच्चे नौजवान नर-नारी
कई मीलो का सफ़र कर रहे।
सब के सब प्रार्थना कर रहे।
इष्ट के आगे हाथ जोड़ रहे।
प्रलय का ये सूचक तो नहीं।
पूरे ब्रह्मांड के लोग डर रहे।
रवि कुमार गुप्ता
फैलल बा कईसन?
देखी चारों ओर जी!
हाथ ना मिलाई रही !
देहियों से दूर जी।
खाई किरीया करम.
कटीस में जंग जी।
अपन-अपन घर बैठीं
ना केहूं के संग जी
तबहीं बीमारी होई
हमनी से तंग जी।
चीन के कोरोनवा।
हमर देश से तंग जी!!"
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मूल आलेख एवं छायाचित्र :- सिद्धेश्वर
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
श्री सिद्धेश्वर का ईमेल - sideshwarpoet.arat@gmail.com