"ठूंठ पेड़ों पर पंक्षियों ने घोंसले बनाए "
स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति, राजेन्द्रनगर टर्मिनल (पूर्व मध्य रेल), के तत्वावधान में आयोजित कवि गोष्ठी के मुख्य अतिथि, राजभाषा अधिकारी ने कहा कि रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष कवि सिद्धेश्वर ने रेलकर्मियों के बीच साहित्यिक रुझान पैदा किया है और इस काम की वजह से अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं।
दिनांक 6.2.2019 को विशेष काव्य पाठ के आयोजन में आमंत्रित कवियों ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को काफी प्रभावित किया । सिद्धेश्वर के संचालन में चली इस गोष्ठी में गीतकार मधुरेश शरण ने एक से बढ़कर एक गीतों का सस्वर पाठ कर महौल को सुरीला बनाकर माधुर्य घोल दिया -
" जिंदगी फिर से मुस्कुराई है
जीने की फिर जो वजह पाई है
कोई पूछा नहीं जिस बगिया को
तितलियाँ फिर से वहां पर आईं हैं !"
दूसरी तरफ गीतों के राजकुमार, राजभाषा अधीक्षक भारत भूषण पांडेय ने जब सधे कंठ से जीवन को एक नई दिशा देनवाले गीतों का पाठ किया, तो महौल में जादू -सा नशा छा गया-
"हरियाले बरगद की झूरमुट को छोड़ आज
ठूंठें पेड़ों पर पंक्षियों ने घोंसले बनाए!"
समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर राजकिशोर राजन ने सकारात्मक सोच की दो लंबी कविताओं का पाठ कर इस काव्य आयोजन को यादगार बना दिया -
"उन सबकी पीठ पर रहूंगा भरसक
जिन्हें उदास मौसम के खिलाफ़
एक फूल खिलाना है। "
संचालन क्रम में, सिद्धेश्वर ने भी समकालीन तेवर की अपनी दो कविताओं का पाठ, निराले अंदाज में किया - " हजारों को कुचलकर
उसके खून में रंगकर
तुम सफेद बन गए
तो फिर सफेदी सच्चाई क्यों?
मुख्य अतिथि के रूप उपस्थित राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने भी अपनी लघु कविताओं की सशक्त प्रस्तुति दी।
"अनजाने इस तस्वीर से न पूछो दर्द
रहने दो धूसरित सच्चाई
डर है, कोई चितेरा
इस रंग को
चुरा न ले!"
यह छोटा- सा आयोजन भी, अपनी सशक्त प्रस्तुति और विशिष्ट रचनाओं के कारण यादगार बन गया जिसका समापन स्वीटी कुमारी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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आलेख - बीना गुप्ता
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
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