"वहीं पाना चाहता हूँ / मैं अपने सवालों का जवाब / जहाँ लोग वर्षों से चुप हैं"
प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, और जन संस्कृति मंच के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक 30.8.2024 को माध्यमिक शिक्षक संघ भवन, जमाल रोड, पटना में हिन्दी के प्रसिद्ध कवि बोधिसत्व का काव्य पाठ सम्पन्न हुआ. उन्होंने इस अवसर पर अपने नए कविता-संग्रह "अयोध्या में कालपूरुष" और अन्य संग्रहों से अनेक कविताओं का पाठ किया जिनमें से कुछ के विषय इस प्रकार थे - "चाहता हूँ", "तमाशा", "उनकी खातिर", "पागल दास", "छोटा आदमी", "शान्ता", "मगध डूब रहा है", "हे राम", "गिरना", "विनय पत्रिका वृक्षों की", "ताजिया", "नदी पानी कथा", "सुख सूचक शिलालेख" आदि.
कविता पाठ के बाद डॉ. विनय कुमार, अरुण कमल, आलोक धन्वा जैसे वरिष्ठ कवियों ने उनकी कविताओं पर अपने विचार प्रकट किए. कार्यक्रम का कुशल संचालन चंद्रबिंद सिंह ने किया. इस अवसर पर राजेश कमल, अनीश अंकुर, शहंशाह आलम, पुनीत, संजय कु. कुंदन, अरविंद श्रीवास्तव, कृष्ण समिद्ध, अंचित, हेमन्त दास 'हिम', मो. नसीम अख्तर, रवि किशन आदि भी उपस्थित थे.
पढी गई कविताओं की एक झलकी प्रस्तुत है-
"बड़ी अजीब बात है
जहाँ नहीं होता
मैं वहीं सब कुछ पाना चाहता हूँ,
वहीं पाना चाहता हूँ
मैं अपने सवालों का जवाब
जहाँ लोग वर्षों से चुप हैं"
"शान्ता जब तक रही
राह देखती रही भाइयों की
आएँगे राम-लखन
आएँगे भरत-शत्रुघ्न"
--
"बिना बुलाए आने को
राजी नहीं थी शान्ता...
सती की कथा सुन चुकी थी बचपन में,
दशरथ से..."
"मैं तो सिर्फ बताना चाहता था लोगों को,
कि इस 'वजह' से अयोध्या में बसकर भी,
उदास रहते थे पागलदास"
"सूचित किया जाता है कि राज्य में
दुख का समूल नाश कर दिया गया है
अब केवल जै-जैकार बचा है
सूचित किया जाता है कि धिक्कार अब व्यभिचार है
एक दण्डनीय अपराध है क्षोभ"
"एक छोटी सी गाली
एक ज़रा सी घात
काफ़ी है मुझे मिटाने के लिए,
--
मैं बहुत कम तेल वाला दीया हूँ
हलकी हवा भी बहुत है
मुझे बुझाने के लिए"
"मदारी साँप को
दूध पिला रहा हैं
हम ताली बजा रहे हैं
--
मदारी हमारा लिंग बदल रहा है
हम ताली बजा रहे हैं"
"मटमैले वितान के नीचे
इस छोर से उस छोर तक नाच रही थी माँ
पैरों में बिवाइयाँ थीं गहरे तक फटी
टूट चुके थे घुटने कई बार
झुक चली थी कमर
पर जैसे भँवर घूमता है
जैसे बवंडर नाचता है वैसे
नाच रही थी माँ"
वैसे तो कवि की सारी पढ़ी गई कविताओं को श्रोताओं ने ध्यान से सुना और पसंद किया पर "पागलदास" और "संदिग्ध समय में कवि" पर ज्यादा गहमागहमी दिखी.
कविता पाठ के बाद चुनिंदा वरिष्ठ कवियों ने कविता-पाठ पर अपने विचार प्रकट किए. डॉ. विनय कुमार ने अनेक मिथकीय संदर्भों का हवाला देते हूए कहा कि बोधिसत्व भारतीय परम्परा के उम्दा कवि हैं.
अरुण कमल ने कहा कि बोधिसत्व सबसे अलग कवि हैं. ये इतिहास के विद्यार्थी रहे हैं इसलिए इनकी कविताओं में उसका प्रभाव झलकता है. कभी-कभी बहुत कुछ साहसिक भी लिख जाते हैं.
आलोक धन्वा ने कहा कि कविता से ज्यादा संश्लिष्ट विधा कुछ भी नहीं है. बोधिसत्व की कविताओं के अनेक आयाम हैं. 'ढाका' वाली कविता पर भी इन्होंने विशेष चर्चा की. एक विषय पर उन्होंने कुछ सुधार प्रस्तुत किए जिस पर बोधिसत्व ने अपने स्पष्टीकरण दिए.
कार्यक्रम से संचालक चंद्रबिंद सिंह ने बोधिसत्व की रचना प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट किए. उन्होंने यह भी कहा कि संग्रह को पढ़ना और कवि को सुनना दोनों में काफी अंतर होता है. कवि को सुनना एक विशिष्ट प्रकार का अनुभव होता है जिसमें कविता और अधिक समझ पाना सम्भव होता है.
अंत में जसम (जन संस्कृति मंच) के पुनीत ने आए हुए कविगण और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया.
....
रपट के लेखक- हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- hemantdas2001@gmail.com / editorbejodindia@gmail.com
No comments:
Post a Comment
Now, anyone can comment here having google account. // Please enter your profile name on blogger.com so that your name can be shown automatically with your comment. Otherwise you should write email ID also with your comment for identification.