Small Bite- 31 / यात्री द्वारा "चिंता छोड़ चिंतामणि" नाटक 13.7.2019 को माटुंगा (मुम्बई) में मंचन हुआ

"चिंता छोड़ चिंतामणि" - पीढ़ीगत मूल्यों का द्वंद्व

(Read the original review in English with scenes of the play - Click here /
 हर 12 घंटे पर देखते रहिए - FB+ Watch Bejod India)



यह दो पीढ़ियों का टकराव है जिस पर "चिंता छोड़ चिंतामणि" नाटक लिखा गया है। पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सदियों पुरानी परंपरा को अपनाते हुए संस्कृति की राह पर आगे बढ़ें और बच्चे दो सदी आगे की ज़िंदगी का आनंद उठा रहे हैं। बड़े बेटे बंटी एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं, जो अलग-अलग अवसरों पर सुंदर लड़कियों के अलग-अलग समूहों के साथ समय बिताने को अपना अधिकार समझता है। छोटा भी कम नहीं है जो बॉलीवुड हीरो बनने के अपने सपनों के साथ अपने पिता के लिए नई परेशानियाँ पैदा करता है। बेटी ने अपने आप में एक विचित्र रास्ता अपनाया है। वह एक पाखंडी की शिष्या है जो कॉलेज जाने वाले छात्रों खासकर लड़कियों के बीच भगवान जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त किये हुए है। और सभी बच्चों की हरकतों वाली गतिविधियों में फंसकर पड़ा हुआ बेबस पिता चिंतामणि है। वह भावनात्मक रूप से अपने ही घर में बेसहारा है।

दिलचस्प बात यह है कि दादा-दादी का प्रवेश उन बच्चों के लिए वरदान है, जिनके (अपने कर्यों में) अनुमोदन की भावना दादा द्वारा प्रबलित है। पहले माँ सभी गर्लफ्रेंड के फोन कॉल और क्रिकेट मैच के लाइव टेलीकास्ट की तरह सभी बकवास को मंजूरी देती थी।

चिंतामणि, एक बैंक अधिकारी ने झुकना नहीं सीखा है। वह केवल सिर से सिर की टक्कर जानता है। घर के अंदर की स्थिति अनिश्चित होती है, जहाँ हर कोई दूसरों के बारे में कुछ भी परवाह नहीं करता है। चिंतामणि को न तो अपनी पत्नी का समर्थन मिलता है, न ही अपने माता-पिता से। सभी उन बच्चों के साथ जुड़े होते हैं, जो अपनी शरारतों को  (सहनशक्ति की) सीमा तक और उससे भी अधिक तक खींचने में कसर नहीं छोड़ते हैं।

प्रिया क्रिकेटर बंटी की सच्ची प्रेमिका हैं और अपने संजीदा संवादों के जरिए प्रतिबद्ध रिश्ते का झंडा बुलंद करती हैं।

हैरानी की बात यह है कि जब ढोंगी संत, चिंतामणि के घर पर आता है तो चिंतामणि भी बाबा से सम्मोहित हो जाता है, मात्र बाबा के द्वारा उनके बैंक में धोखाधड़ी के उल्लेख से। वह एक ऐसा अंधाभक्त हो जाता है जो ढोंगी बाबा को दान देने के लिए अपने भविष्य निधि से 5 लाख रुपये का ऋण लेने जा रहा है और खुशी-खुशी अपनी बेटी को अपने अमेरिकी दौरे पर बाबा के साथ जाने की अनुमति दे रहा है। अब मां और भाई परिवार के मुखिया के इस नासमझ फैसले के खिलाफ आवाज उठाते हैं।

दादाजी एक मसखरा हैं, हालांकि उनकी वही (मसखरेपन वाली) तरकीब घर की जवान बेटी को ढोंगी बाबा के चंगुल से मुक्त करती है। वह कौन तरकीब है? इसे शो के दर्शकों के लिए एक रहस्य बना रहने दें।

हर कोई "पाखंडी बाबा" की गलत नीयत को समझ जाता है, जवान बेटी अपने "धोखेबाज गुरु" से विमुख हो जाती है और परिवार की प्रतिष्ठा बच जाती है।

हर एक कलाकार ने अपने-अपने कॉमेडी किरदार को बखूबी निभाया है। प्रिया (बेटी) ने गम्भीर रोमांटिक समरूपता का एक स्तर प्रदान किया  जो नाटक के समग्र हास्य को बढ़ाने में सहायक हुआ । पीढ़ीगत पदानुक्रम का रूपसज्जाकार द्वारा पालन नहीं किया गया। और  दर्शकों को यह  तय करने में समय लगा कि चिंतामणि और उसके पिता में वास्तव में कौन किसका पिता है? यह केवल नाटक के अंत के पास था जब चिंतामणि के पिता ने अपनी काली टोपी उठा ली और उनकी गंजापन उनकी श्रेष्ठ पीढ़ी को उजागर कर दिया। इसके अलावा यह केवल एक कॉमेडी में संभव है जहां एक नौकर अपने शिष्टाचार और वेशभूषा के माध्यम से अपने मालिक के भाई से कम नहीं लगता है।

वसंत केतेकर की पटकथा इतनी सशक्त है कि आपको मंच के खुलने से लेकर पर्दे के गिरने तक ध्यानमग्न रहना पड़ता है। अभिनेता थे ओम कटारे, जया ओझा, अशोक शर्मा, केया गुप्ता, मुकेश यादव, शैली गायकवाड़, वंदना गुप्ता, रोहिन जोशी, पुनीत मल्लू, प्रशांत उपाध्याय, मुकुंद भट्ट और मुकेश लोनकर। सभी ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है और निश्चित रूप से चिंतामणि, उनके पिता, बेटी और छोटे बेटे को अपनी क्षमता दिखाने का अधिक अवसर मिला है।

ओम कटारे का निर्देशन निपुण और सशक्त है और यह शो की मुख्य ताकत रही है। यह विशेष रूप से सच साबित होता है  जब "उलुलुलुलुलुलु" ध्वनि के जोर से उन्मादी उत्सर्जन के साथ  चिंतामणि की बेटी और अन्य महिलाएं ढोंगी 'बाबा' से मिलते और विदा लेती हैं। उन्होंने चिंतामणि की पत्नी और बड़े बेटे और मां से भी अच्छे काम लिए हैं। नाटक में पुराने फिल्मी गीतों का अच्छा प्रयोग हुआ है।

यह नाटक यथार्थवादी हास्य का अद्भुत प्रदर्शन है। हर चरित्र की काल्पनिकता एक निराशा के साथ समाप्त होती है, ताकि आप यह समझ सकें कि बकवास कल्पनाओं के साथ भटकना ठीक नहीं है।

यह नाटक इंडियन ऑयल द्वारा प्रस्तुत था और माटुंगा (मुम्बई) के मैसूर एशोसिएशन सभागार में 13.7.2019 को मंचित हुआ।
.....

समीक्षा - हेमंत दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
समीक्षक का ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
अपनी प्रतिक्रिया भेजें - editorbejodindia@yahoo.com


No comments:

Post a Comment

Now, anyone can comment here having google account. // Please enter your profile name on blogger.com so that your name can be shown automatically with your comment. Otherwise you should write email ID also with your comment for identification.