सर्वोत्तम योद्धा का सबसे बड़ा दुख
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नाटक शुरु से अंत तक महाभारत के कर्ण को केंद्रभूमि में रखता है. जब कर्ण का जन्म हुआ तभी से उसकी वंचना, अभाव और अपमान भरा जीवन शुरू हुआ जो उसके मरने तक जारी रहा. जबकि उसने अपने विशाल शौर्य पर कभी घमंड नहीं किया और जीवनपर्यंत अपने वादों पर कायम रहा. उसने अपने लिए नहीं दूसरों की भलाई के लिए अनेक वादे किये और एक-एक को पूरा किया अपनी जान की आहुति देकर. ज़िंदगी भर उसकी आत्मा एक मासूम सी इच्छा के लिए तडपती रही जो उसे मिली तो जरूर लेकिन उसकी मौत के बाद.
कर्ण का जब जन्म हुआ तो उसकी माँ कुंती ने उसे एक बक्से में बंद कर नदी में बहा दिया. उसका पालन पोषण एक रथचालक ने किया इसलिए उसकी जाति भी छोटी मानी जानी लगी जबकि दरअसल वह एक राजघराने में पैदा हुआ बच्चा था जिसके अन्य भाई पांडव के नाम से जाने गए. द्रोणाचार्य ने उसे शिक्षा देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह नीच जाति का माना गया. जब वह परशुराम के पास गया तो उन्होंने शिक्षा तो दी मगर एक ब्राहमण समझकर. बाद में जैसे ही पता चला कि वह ब्राहमण नहीं क्षत्रिय है तो उसे शाप दे दिया कि उसने शिक्षा तो प्राप्त कर ली है पर जब उसे सबसे अधिक जरूरत होगी तभी उसकी शिक्षा काम नहीं आएगी.
इंद्र ने उससे कवच और कुंडल दान में मांग़ लिए ताकि वह महाभारत में अजेय न रह सके और उसके पुत्र अर्जुन द्वारा मारा जा सके. ध्यान देने योग्य है कि पांडु के पाँचो पुत्र वास्तव में उसके दत्तक पुत्र थे जो पांडव कहलाये. उन सभी को पांडु की पत्नी कुंती ने जन्म दिया था लेकिन उनके पिता अलग-अलग थे.
कर्ण जब द्रोपदी के स्वयम्वर में गया तो उसमें क्षमता थी कि वह स्वयम्ववर में जीत सकता था लेकिन द्रौपदी ने नीच कुल का कह कर उसका अपमान कर दिया. वह वास्तव में हस्तिनापुर का असली उत्तराधिकारी हो सकता था क्योंकि सबसे बड़ा पुत्र वही था राजकुमारों में लेकिन उसे एक सेनापति के पद पर रखा गया जिसे उसने खुशी खुशी स्वीकार किया अन्तिम दम तक अपनी वफादारी निभाई.
लेकिन वही कर्ण जिसको उसकी माँ कुंती ने बेटा नहीं माना और समाज ने भी खूब दुत्कारा महाभारत युद्ध की घोषणा होने पर बहुत महत्वपूर्ण हो गया क्योंकि उसके समान कोई योद्धा नहीं था. पहले कृष्ण आते हैं उसे समझाने कि वह कौरवों का साथ छोड़ दे लेकिन कर्ण अपने आश्रयदाताओं से गद्दारी को बिलकुल तैयार नहीं हुआ. तब कुंती आई यह याद दिलाने कि वह उसकी माता है. कर्ण अपनी माता पर अत्यंत रोष के बावजूद उनसे अच्छे से वर्ताव करता है और कहता है कि इतने दिनों तक उसने क्यों अपना बच्चा नहीं स्वीकारा? कुंती कहती है कि चूंकि उसका जन्म उसके विवाह के पहले हुआ था इसलिए बहुत दुखी मन से उसका त्याग किया और बेटा मान लेने से समाज में लोग उसे चरित्रहीन कहकर बदनाम कर देते. कर्ण कहता है कि समाज जो भी कहता उसे उसको अपना बेटा मानना चाहिए था क्योंकि ऐसा नहीं होने के कारण उसे ज़िंदगी में बहुत अपमान सहने पड़े. कर्ण ने कहा कि युद्ध तो उसे लड़ना ही होगा लेकिन पांडवों में से अंर्जुन को छोड़कर वह किसी अन्य की हत्या का प्रयास नहीं करेगा.
महाभारत युद्ध होता है और कर्ण का चक्का कीचड़ में फंस जाता है. अर्जुन हिचकता है लेकिन कृष्ण उसे समझाते हैं कि अभी वाण चलाओ. कर्ण मारा जाता है. उसके मरने पर कुंती विलाप करते हुए कहती है -हाय, आज विश्व का सबसे महान योद्धा बेटा कर्ण मारा गया. इस तरह से समाज के बीच अपनी माँ द्वारा खुद को अपना बेटा स्वीकारे जाते देख कर कर्ण की आत्मा संतुष्ट होती है. अंतिम दृश्य में कर्ण मर जाने के बाद भी कृष्ण से संवाद करता दिखता है. यह दृश्य बहुत भावुक बन पड़ा है.
पूरे नाटक में कर्ण की व्यथा दिखती है और उसके प्रति संवेदना जगती है. कुंती, कर्ण, दुर्योधन आदि की भूमिका निभानेवालों ने प्रभावकारी अभिनय किया. अन्य कलाकारों ने भी काफी अच्छा प्रदर्शन किया. अमूल सागर ने कलाकारों से तो अच्छा काम लिया ही अंत के पहलेवाले दृश्य की संरचना बहुत अच्छे तरीके से की जिसमें कर्ण मंच के दायें भाग में रथ का पहिया निकालने का प्रयास कर रहा है और बाँये भाग में अर्जुन को कृष्ण तीर चलाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं. ये दोनों दरअसल एक ही समय चलनेवाले एक ही दृश्य के दो भाग हैं.
पूरे नाटक में कर्ण की व्यथा दिखती है और उसके प्रति संवेदना जगती है. कुंती, कर्ण, दुर्योधन आदि की भूमिका निभानेवालों ने प्रभावकारी अभिनय किया. अन्य कलाकारों ने भी काफी अच्छा प्रदर्शन किया. अमूल सागर ने कलाकारों से तो अच्छा काम लिया ही अंत के पहलेवाले दृश्य की संरचना बहुत अच्छे तरीके से की जिसमें कर्ण मंच के दायें भाग में रथ का पहिया निकालने का प्रयास कर रहा है और बाँये भाग में अर्जुन को कृष्ण तीर चलाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं. ये दोनों दरअसल एक ही समय चलनेवाले एक ही दृश्य के दो भाग हैं.
अमूल सागर निर्देशित नाटक का मंचन कामयाब रहा. लोग कलाकारों की अदाकारी और कुल प्रदर्शन से काफी प्रभावित दिखे. संगीत और बाह्य ध्वनि का भी अच्छा समावेश था.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
(विस्तृत समीक्षा और नाटक के दृश्यों के चित्रों के लिए अंग्रेजी आलेख देखिए.)
बहुत सुन्दर प्रसंग
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद। blogger.com में login करके कमेन्ट करने से आपके ब्लॉगर प्रोफाइल वाला नाम और फोटो यहां दिखेगा।
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