कैंसर को अंगूठा दिखाते हुए लहराया सर्जनात्मकता का परचम
(कार्यक्रम के विडियो के लिंक नीचे दिये गए हैं. आनंद लीजिए. विभारानी एक अभिनेत्री होने के साथ साथ मैथिली कवयित्री और लेखिका भी हैं और उनसे मिलनेवालों में रवीन्द्र दास, संजू दास देश के जाने-माने चित्रकार हैं. कंचन कंठ लेखिका हैं जो अपने पति और बैंक अधिकारी अरविंद कंठ के साथ उनके कहानी पाठ के कार्यक्रम "खिस्सा कहे खिसनी" का आनंद लेने जूहू स्थित डा. मंजुला जगत्रमाका के आवास पर गईं. आगे पढ़िए उन्हीं के द्वारा)
जब मुझे विभारानी दी की ओर से उपरोक्त कार्यक्रम मे आने का आमंत्रण मिला तो आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई। एक तो हम मात्र फेसबुक मित्र थे और अपनी कोई साहित्यिक पहचान भी नही। पर फिर भी उनसे मिलने की उत्कट अभिलाषा थी। इच्छा थी कि जरा छू के तो देखूं उस शख्सियत को जो कैंसर को अंगूठा दिखाते हुए, उसे जीभ चिढ़ाते हुए, उस पर कविता लिखी सकती हैं।
इस राक्षस से डर कर, सिसककर, एड़ियां रगड़ कर हारते ही देखा था अब तक। यह पहली मर्तबा था कि इतनी ढीठ, इतनी जिद्दी और खतरनाक बीमारी को दो चपत लगा कर भगा दिया हो जैसे। पर एक तो दूरी, दूसरे मेरे साथ कुछ ऐसा है कि अचानक से कुछ व्यवधान तो लगा ही रहता है तो पानी की समस्या हो गई । पर इरादे नेक हों तो कोई भी रूकावट, कोई भी बाधा नहीं रोक सकती। आखिरकार पहुंच ही गई मैं सपरिवार जुहू स्थित डाॅ मंजुला जगत्रामका जी के घर।
इस राक्षस से डर कर, सिसककर, एड़ियां रगड़ कर हारते ही देखा था अब तक। यह पहली मर्तबा था कि इतनी ढीठ, इतनी जिद्दी और खतरनाक बीमारी को दो चपत लगा कर भगा दिया हो जैसे। पर एक तो दूरी, दूसरे मेरे साथ कुछ ऐसा है कि अचानक से कुछ व्यवधान तो लगा ही रहता है तो पानी की समस्या हो गई । पर इरादे नेक हों तो कोई भी रूकावट, कोई भी बाधा नहीं रोक सकती। आखिरकार पहुंच ही गई मैं सपरिवार जुहू स्थित डाॅ मंजुला जगत्रामका जी के घर।
मंजुला जी से मिल कर,उनके बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। ये अपने विस्तृत अनुभव का लाभ लोगों को दिलाने के लिए वैतरणा संस्था चलाती हैं।
श्री राजेश जौहरी जो ग्राफोलाॅजी यानी हस्तलेखनकला को बढ़ावा देते हैं तो श्री सुबोध पोद्दार जो डांस स्पेस चलाते हैं। उन्होने टैगोर के गाने के बारे में बताया और उनके मैथिली- बांग्ला गाने को गाकर मोह लिया। विभा दी का अवितोको रूमथियेटर! यह तो बिना देखे तो मैं सोच भी नही सकती थी कि ये इतना प्रभावशाली होगा! बच्चों को भी साथ ले गई थी, तो पता नही उन्हे कैसा लगे!
लेकिन आश्चर्य कि उन्हें भी हमारा वहां जाना बहुत अच्छा लगा। विभा दी ने जब अपनी कहानी सुनाने के कार्यक्रम को करना शुरू किया तो किसी दूसरी दुनिया में ले गईं, बचपन की दुनिया,खेतों ,बागों - बगीचों की दुनिया। दादी - नानी की कहानियां और उनमे छिपे जीवन के गूढ़ तथ्य - सब यूं ही सीधे सीधे दिल में उतरता चला गया।
अब हम बिहार से इतने लोग थे तो वहां की दशा -दिशा की चर्चा ना हो -ऐसा तो हो नही सकता। इतनी सारी क्षमताओं के बावजूद वहां की स्थिति ऐसी क्यों- इसके बारे में श्री अरविंद कंठ ने बताया।उनकी बातों से लोग सहमत दिखे। मुंबई तो है ही महानगर तो कुछ अन्य मित्र भी थे जिन्हें बिहार के लोकगीतों ,खानपान और भाषा की समृद्धि जानकर सुखद आश्चर्य हुआ।
और सोने पे सुहागा था दिल्ली से आए हुए चित्रकार दंपति श्री रविन्द्र और श्रीमती संजू दास से मिलना - जो एक सुखद अनुभूति थी। मैं तो अभिभूत हो गई मंजुला जी की सहजता से-कभी दोस्त की तरह , तो कभी बड़ी बहन की तरह। ऊपर से मिथिला के व्यंजन सौजन्य विभा दी और एक प्रेम प्रतीक के रूप में मेरी तरफ से विभा दी के लिए हस्तनिर्मित सिंधी कढाई वाला कुरता। सच में "खिस्सा कहे खिसनी" से जितना सोचा था,उससे अधिक मिला। एक सार्थक माने गागर में सागर जैसा कार्यक्रम रहा हमारे लिए।
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कार्यक्रम (लोकगीत) का वीडियो-1: यहाँ क्लिक कीजिए
कार्यक्रम (लोकगीत) का वीडियो-2: यहाँ क्लिक कीजिए
कार्यक्रम (कहानी) का वीडियो-3: यहाँ क्लिक कीजिए
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कार्यक्रम (लोकगीत) का वीडियो-2: यहाँ क्लिक कीजिए
कार्यक्रम (कहानी) का वीडियो-3: यहाँ क्लिक कीजिए
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आलेख - कंचन कंठ
विडियो सौजन्य - संजू दास
विडियो सौजन्य - संजू दास
छायाचित्र सौजन्य- कंचन कंठ
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