Small Bite-17 / मुम्बई में ध्वनि विज निर्देशित "भागी हुई लड़कियाँ" का प्रदर्शन

इस दुनिया में अपने लिए जगह तलाशती किशोरियाँ
नाटक समीक्षा हिंदी में
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परिवार और समाज में अपने लिए जगह  और इज्जत की माँग करती लड़कियाँ चाहे किसी घर में हो उनकी सच्चाइयाँ जुदा होते हुए भी एक जैसी हैं. एक किसी लड़के को मित्र बनाने पर उससे बातचीत करने के प्रयास में दुनिया के द्वारा बेवजह अड़चनों का सामना कर रही है तो दूसरी अपने ही भाइयों की तुलना में उपेक्षित और प्रताड़ित हैं. तीसरी किशोरावस्था में होनेवाले शारीरिक परिवर्तनों में और स्वास्थ सम्बंधी समस्याओं में अपने ही परिवार, सम्बंधियों और दोस्तों के बीच पनाह खोजने पर मजबूर है. चौथी को सिर्फ मजहब के आधार पर  सीधे पाकिस्तानी समझा जा रहा है क्योंकि दूर किसी शहर में आतंकवादियों ने कुछ निर्दोष लोगों की हत्या कर दी है. अचानक से 'जान' कह कर पुकारनेवाली उसकी मित्रमंडली उसे जानी दुश्मन समझने लगती है. "भागी हुई लड़कियाँ" निजामुद्दीन बस्ती की चार किशोरियों की अलग-अलग दास्तान है जो चारों मिलकर बयाँ करती हैं. 

ये लड़कियाँ अपने यौवन में कदम रख रहीं हैं और ऊर्जा से परिपूर्ण हैं. उनमें तरह तरह के अरमान कुलांचे मार रहै हैं. लेकिन परिवार, पड़ोस, समाज सारे के सारे बिलकुल विमुख हैं उनकी स्वाभाविक दोषरहित जरूरतों से. हर एक परिवार में अपने भाइयों की तरह अपने हिस्से की दादागिरी चाहती है. वह अपने व्वायप्रेंड को वेलेंटाइंस डे में गुलाब का फूल देना चाहती है,  वह चाहती है कि उसके पेट से जब अजीब अजीब आवाजें आयें तो कोई बाथरुम जैसी जगह हो जहाँ वह अपनी 'प्राइवेसी' पा सके. वह चाहती है कि उसे विदेशों में निर्दोषों की हुई हत्या के विरोध में बोलने पर उसके हिंदुस्तानी होने पर कोई संदेह न किया जाय. 

वह अपनी मर्जी से शहर में घूमना चाहती है और उसके एक-एक दर्शनीय और अन्य ठिकानों को अपनी यादों में संंजो कर रखना चाहती हैं. अपने दोस्त के साथ, अपने भाई के साथ और अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ भी. उनकी इच्छाएँ सहज मानवीय इच्छाएँ हैं जिनमें कुछ भी गलत या बुरा नहीं है लेकिन अपनी सहज इच्छाओं के साथ जीने की कोशिश ही उसे समाज की नजरों में अपराधी बना देता है. इसलिए उन्होंने सोचा है कि इस बार आपके साथ ही घूमेगी शहर के मंदिर मे, मस्जिद में, चौराहों पर, कब्रिस्तान पर, नदी के घाट पर  और मीनार पर भी. जी हाँ, आपके साथ. एक-एक दर्शक के साथ.

मैंने अबतक सैकड़ों नाटक देखे हैं लेकिन अभिनेता और दर्शक के बीच की इस प्रकार की चरम अंत:क्रिया नहीं देखी जहाँ तो एक-एक दर्शक को अभिनेत्रियाँ  मंच पर ले जाती है और उन्हें मंच पर बने शहर के एक-एक दर्शनीय स्थलों पर घुमाती हैं. यह क्रिया एक साथ कई समूहों में समानांतर चल रही होती है.  दर्शकों को अभिनेत्री कुछ उपहार देती है और दर्शक जो कि अब पूर्णत: नाटक का पात्र बन चुका है, भी कुछ न कुछ हर एक दर्शनीय स्थल पर छोड़ता जाता है. (घबरायें नहींं आपको छोड़ने के लिए चीजें  पहले दे दी जाएंगी).

यह शैली अद्भुत है. ये किशोरियाँ शहर के स्थलों को घूमने-घुमाने के बहाने दरअसल जीवन के एक-एक उपादानों का अपनी इच्छानुसार अंवेषण करने का अधिकार माँग रहीं हैं. ये उनकी निर्दोष इच्छाएँ हीं तो हैं जो चमक रही होती है अंतिम दृष्य के अंधकार में सैकड़ों दीपों की तरह मंच रूपी शहर के चप्पे चप्पे में.  अंतिम दृश्य  बहुत ही संजीदा बन पड़ा है. 

ध्वनि विज नाटक की निर्देशक हैं. अभिनेत्रियाँ हैं जास्मिन, नगीना, नगमा और ज़ैकब. नाटक के लेखक के का नाम पूछे जाने पर बताया गया कि नाटक के पात्र ही इसकी लेखिकाएँ भी हैं.नाटक को मेटा 2019 की स्पेशल जूरी सम्मान मिल चुका है.

अभिनेत्रियाँ किशोरावस्था के बावजूद बिल्कुल स्वाभाविक अभिनय करती दिखीं. शायद उनकी अपनी सच्ची कहानी भी इससे मिलती जुलती रही हो इसलिए भी अभिनय में बिल्कुल waisii सजीवता दिखी जैसे कोई लड़की सच में अपने ज़िंदगी को बयाँ कर रही  हो.  लेकिन बिना झिझक के, बिना कहीं रुके कहते चले जाना और निर्धारित मंचीय सामग्रियों का सही ढंग से प्रयोग करते हुए उनकी अभिनयकला की प्रवीणता का प्रमाण है.  निर्देशक  दर्शकों के समानांतर समूहों में भ्रमण कराने की शैली के रूप में अतिसाहसपूर्ण प्रयोग करने हेतु बधाई की पात्र हैं.

यह नाट्य प्रदर्शन 24.4.2019 को फाइव सेंसेज स्ट्डियो थिएटर, आदर्शनगर (अंधेरी प.) मुम्बई में हुआ.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र- बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbejodindia@yahoo.com

2 comments:

  1. वाह ! बहुत अच्छी पेशकश।

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद महोदय.

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