Small Bite- 19 / मोहन राकेश कृत "आधे अधूरे" नाटक का सारांश - मंचन मुंबई में 28.4.2019 को हुआ

निम्न मध्यमवर्ग का कठोर यथार्थ 

(View the pictures of the scene with detail review in English-  Click here)



मेरे द्वारा की गई इस नाटक की व्याख्या उस पारंपरिक व्याख्या से भिन्न है जिसमें इसको स्त्री द्वारा एक पूर्ण पुरुष की तलाश बताया जाता रहा है. मैंने इसको अभावग्रस्त परिवार के सदस्यों द्वारा जिंदगी में कोई आनंद पाने की तलाश के रूप में देखा है.  हालांकि इस तलाश में परिवार का लगभग पूर्ण विघटन हो चुका है और आनंद की बजाय यह तनाव, परेशानी और सामाजिक अपमान का सबब बन चूका है.

"आधे  अधूरे"  मोहन राकेश का अति प्रसिद्ध  हिन्दी नाटक है जो 1969 में प्रकाशित हुआ था. इसमें एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की दशा को दिखाया गया  है जो आर्थिक रूप से इतना अभावग्रस्त है की तेरह साल की बच्ची को फटा मौजा पहन कर स्कूल जाना पड़ता है और उसे जब स्कूल में भूख लगती है तो उसके पास कुछ खरीदकर खाने को पैसे नहीं होते. 

महेन्द्रनाथ किसी समय में अच्छे कारोबारी थे किन्तु उनका कारोबार ठप्प हो चूका है और अब वे अपनी पत्नी की कमाई पर घर में रहते हैं इसलिए उनकी घर में कोई इज्जत नहीं है. सावित्री एक सुन्दर महिला है जो ऑफिस में काम करती है. उसके बॉस उसके घर पर आते जाते रहते हैं जिसके लिए मोहल्ले के लोग परीवार पर ताने मारते रहते हैं. पराये पुरुषों का घर पर आना-जाना न तो महेन्द्रनाथ को सुहाता है न बेटा अशोक को. पर चूंकि वे कमाते नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं पाटते. 

सावित्री बॉस से मीठी मीठी बातें करके अपने बच्चो को नौकरी दिलवाना चाहती है. अशोक तो बेरोजगार है ही. बड़ी बेटी बिन्नी भी काम की तलाश में है क्योंकि उसे अपने पति मनोज की इच्छा के विरुद्ध काम करके उसे सताना है. वह कुछ समय पहले घर में बिना बताये मनोज के साथ भागकर  शादी की थी लेकिन मनोज जब उसके मायके के बारे में बुरा भला कहने लगा तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और वह मायके आ गई. बाद में यह उजागर होता है कि मनोज के सम्बन्ध सावित्री से भी रहे थे. 

पूरे नाटक में कहानी जैसा कुछ महत्वपूर्ण नहीं है बस दैनिक परिस्थ्तितियों को दिखाया गया है. सावित्री हमेशा अपने पति महेन्द्रनाथ से लडती रहती है और उसे किसी से कोई लगाव नहीं है बच्चों से भी नहीं. वह बस नए नए पुरुषों से दोस्ती बढ़ने में उत्सुक है. बड़ी बेटी तो भागी ही थी छोटी मात्र तेरह साल की है लेकिन उसकी रुचि अभी से मैगजीन में छपनेवाली नंगी तस्वीरों को देखने में है. बेटा अशोक नौकरी पाने की बजाय गर्लफ्रेंड बनाने में ज्यादा मशगूल है.

एक दृश्य मार्मिक बन उठा है जब पड़ोसन छोटी बेटी किन्नी  को परिवार के बारे में बुरा भला बताकर बेइजत करती है तो किन्नी अपनी दीदी बिन्नी के पास आकर कहती है कि  चलो पड़ोस वाली आंटी से लड़ने के लिए. तो बिन्नी कहती है कि अब वह उसके साथ पड़ोस में लड़ने नहीं जा सकती. उसकी दुविधा है कि  वह विवाहित है और पति के तानों से खफा होकर माँ-बाप के घर में लौट आई है तो किस अधिकार से अपने मायके को लेकर पड़ोसन से लड़ाई करेगी. उसकी इस आतंरिक दुविधा को किन्नी कम उम्र की होने के कारन नहीं समझ पाती है और उसे ही दोष देती है.

जब सावित्री एक और पुरुष जगमोहन को घर पर आने की बात बताती है तो महेन्द्रनाथ से बर्दाश्त नहीं होता और वह लड़ झगड़ कर घर छोड़कर चले जाते हैं. साब्रित्री को कोई फर्क नहीं पड़ता. महेंद्रनाथ अपने मित्र जुनेजा के यहाँ ठहरा है. जुनेजा सावित्री को समझाने आता है तो सावित्री उसको बेइज्जत करती है. वह कहती है कि उसका पति महेंद्रनाथ एक अधूरा आदमी है. जुनेजा कहता है कि तुम हमेशां की हैसियत के पीछे भागती रही हो कभी किसी आदमी से वास्तविक प्रेम नहीं किया.

अंत में जुनेजा कहता है कि तुम महेन्द्रनाथ को छोड़ क्यों नहीं देती. वह क्यों तुम्हारे प्रेम में अब भी पड़ा है? सावित्री कहती है उसने कभी उसे रहने को नहीं कहा है. तभी महेन्द्रनाथ जो उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं घर पर आते हैं लेकिन दरवाजे पर गिर पड़ते हैं. अशोक जाकर उन्हें घर में ले आता है और फिर से वही दिनचर्या चालू हो जाती है पुरानीवाली.  

नाटक का मंचन जेफ्फ गोल्डबर्ग स्टूडियो, खार (मुंबई)  में 28.4.2019 को हुआ जो इस नाटक का 25वाँ मंचन था इस समूह के द्वारा. नाटक के लेखक प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश हैं और निर्देशक अशोक पाण्डेय थे. भाग लेनेवाले कलाकार थे  कोमल छाबरिया, अशोक पाण्डेय, तानिया कालरा, उर्वशी कोतवाल और अर्जुन तरवारप्रस्तुति शानदार रही. 
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
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