Small Bite- 21 / मातृदिवस के अवसर पर लेख्य मंजूषा द्वारा 12.5.2019 को पटना में कवि गोष्ठी संपन्न

माँ का आँचल धरती अंबर लगता है
"मातृ दिवस: हर पल नमन" 




समीर परिमल की झकझोर देनेवाली ग़ज़लों से गुलज़ार, भगवती प्रसाद द्विवेदी, सतीश राज पुष्करना, नीलांशु रंजन जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों की मौजूदगी में सजी यह साहित्यिक महफ़िल अपने-आप में ख़ास थी।

दिनांक 12 मई 2019, दूसरा रविवार और अवसर था मातृ दिवस पर आयोजित साहित्यिक संस्था "लेख्य मंजूषा, पटना" के मासिक कार्यक्रम की “मातृ दिवस: हर पल नमन" से शुरुआत की जिसमें दीप प्रज्वलन के साथ संस्था की त्रैमासिक हिन्दी पत्रिका "साहित्यिक स्पंदन" का लोकार्पण भी किया गया। आने वाले समय में साहित्यिक स्पंदन अपनी एक विशिष्ट स्थान और पहचान बनाएगा यह विश्वास होगा आपको यह अंक पढ़कर जो अंक दर अंक सफल होता जा रहा है।

मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने संस्था की त्रैमासिक पत्रिका "साहित्यक स्पंदन" में प्रकाशित प्रेमचंद की रचना 'ईदगाह' पर रौशनी डालते हुए कहा कि अगर आज हर इंसान खुद को हमीद बना ले तो वृद्धाश्रम की जरूरत नहीं पड़ेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लघुकथाकार डॉ. सतीशराज पुष्करना ने कहा कि आज की सभी रचना माँ को समर्पित थीं और उसे हमें अपने जीवन मे आत्मसात भी करना चाहिए। लेख्य- मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि एक स्त्री जब माँ बनती है तो जीवन भर माँ ही बन कर रह जाती है। संस्था के सभी सदस्य जब मुझे माँ कह कर सम्बोधन करते हैं तो जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। घर के अंदर ही माँ पूरी पाठशाला है उक्त पंक्तियाँ  कृष्णा सिंह जी ने कही। उन्होंने कहा कि माँ के लिए तो पूरा जीवन कम पड़ जाता है और हमारा हर दिन माँ के लिए होता है।

मातृ दिवस पर एक से बढ़कर एक रचनाओं का जो दौर चला तो माहौल कभी भावुक हुआ तो कभी श्रोताओं की आँखें नम भी हुईं।

सुनील कुमार ने बेहतरीन ग़ज़ल कही -
माँ का आँचल धरती अंबर लगता है
रूप सलोना स्नेह सरोवर लगता है
प्रेम शजर उसने ही दिल में है बोया 
दिल उसका परियों सा सुंदर लगता है

मशहूर शायर समीर परिमल ने आज के संबंधों की क्षणभंगुरता को बयाँ करते हुए कहा -
रिश्तों के पल पल यहाँ संसार बदलते हैं
हर रोज कहानी के किरदार बदलते हैं
होठों पे मुहब्बत है, आखों में तिजारत है
इनकार बदलते हैं, इकरार बदलते हैं
हर मोड़ पे नफरत के पत्थर हैं पड़े लेकिन
दिलवाले कहाँ अपनी रफ़्तार बदलते हैं
कमतर न समझ लेना 'परिमल' की फकीरी को
इक वोट के दम पर हम सरकार बदलते हैं.

इस अवसर पर संजय कुमार ने पिता की सच्चाई और मां के संस्कार की रौशनाई युक्त कविता सुनाई कि -
मां, तेरी ममता में सबका हल है..
तेरे त्याग में तप का बल है..
हम निरक्षर, तूने अक्षर सिखाया..
हम अक्षर, तूने वाक्य बनाया..
हम बिखरे, तूने हमें सजाया..
मंजिल पर बढ़ना सिखलाया ओ माँ
बस तेरा नाम काफी है, सुकून पाने के लिए

शायर नसीम अख्तर ने सुनाया कि
अब मैं क़ाबिल हूँ के तेरी ख़िदमतें अंजाम दूँ
तेरी अनथक मेहनतों का शुक्रिया से काम लूं 

अमृता सिन्हा ने सुनाया -
काश तेरे आँचल तले, तमाम उम्र गुज़र जाती
थाम कर ऊँगली, ओ माँ तू बचपन मेरा, फिर ले आती..

कृष्णा सिंह जी ने सुनाया -
माँ के प्यार में गंगा की धार है
माँ तो सौम्य व शुचि संस्कार है
सुर, नर, मुनि की स्तुति का सार है
माँ!  ईश्वर का दिया सर्वोत्तम उपहार है।

सीमा रानी ने सुनाया -
बरसों पहले छोड़ गयीं वो, ढेरों सपने तोड़ गयीं वो
मुख अपना मोड़ गयीं वो, तन्हा मुझको छोड़ गयीं वो

प्रेमलता सिंह ने सुनाया -
माँ ! आज भी  मुझे  वो दिन याद है, जब तू रोया  करती थी
 तकलीफ  मुझे भी होती थी, तेरे रोने की  आवाज  मैंने  भी सूनी थी।

रब्बान अली की प्रस्तुति यूं रही -
दुनिया के सारे रिश्तो से अफजल है मेरी माँ
ये कायनात तेरे दम से है मेरी प्यारी माँ

डॉ. पूनम देवा ने सुनाया -
कैसे  भूल लूँ  माँ  तुम्हारा वो प्यार- दुलार,
तुम्ही ने तो दिया था हम सब को संस्कार,
तुम ही थी,हमारे घर की फूल सदाबहार

शाईसता अंजूम ने सुनाया -
माँ की यादे, माँ तेरे आँचल की छाँव न रही
कौन मेरी खौरियत की दुआ करेगा

श्रुत कीर्ति अग्रवाल की रचना -
जब-जब चोट लगी मेरे तन को,
याद तुम्हीं क्यों आईं माँ?
हर संकट हर दुख में मैंने,
तेरी ही रट क्यों लगाई माँ?

मधुरेश नारायण ने बेहतरीन गीत गाया
ओ ! माँ ! मुझे क्यूँ इतना तू सताती है?
क्यूँ मुझसे इतनी दूर चली जाती है ?
जब तक रही तू,तेरा क़द्र ना किया
जाने के बाद तेरी याद बहुत आती है !

मीरा प्रकाश ने सुनाया -
यह उनका घर है, उन्हीं का घर है
लेकिन फिर भी कभी मां को ये घर 
मायका सा लगने दो। 

राजकांता राज ने प्रस्तुति दी -
मेरी प्यारी माँ तुझे सलाम तूझे सलाम 
मुझे खाना खिलाया छोड़ सब काम 
मेरी न्यारी माँ तूझे सलाम तूझे सलाम 
मुझे ड्रेस पहनाया बिना देखे दाम

सुधांशु कुमार ने कहा -
माँ की ममता, माँ का आँचल
प्यार स्नेह का सागर
माँ का आशीर्वाद, भगवान का प्रसाद
माँ की मीठी बोली, कानों की   लोरी
माँ में ही संसार, माँ में ही जीवनसार

ज्योति मिश्रा की रचना रही -
है एक भाव ममता का बस;  जग समझे इसकी भाषा है 
वह शब्दकोश भी मिला नहीं ,  जिसमें मां की परिभाषा है  

सुबोध कुमार सिन्हा की रचना रही -
गढ़ा है अम्मा तुमने मुझे, नौ माह तक अपने गर्भ में
जैसे गढ़ी होगी, उत्कृष्ट शिल्पकारियाँ, 
बौद्ध भिक्षुओं ने कभी, अजंता-एलोरा की गुफाओं में

मीनाक्षी सिंह ने सुनाया -
सरस शीतल तरल तरंग, माँ के आँचल का हर रंग
जितना सुकून यहां मिलता है, सारे जहां मे कहाँ मिलता हैं

संजय सिंह ने सुनाया -
सांझ की दिय़ा और बाती हो तुम, 
मेरे लिए अनमोल थाती हो तुम 

अणिमा श्रीवास्तव ने प्रस्तुति दी -
बस इसी में सिमटी है, तेरी इबादत
क्या तुझसे बढकर भी हो सकती है कोई नेमत
खुदा ने भी जिसे दुआओं में माँगा, तू वो मन्नत है
यू हीं नहीं कहते तेरे पैंरो तले जन्नत है ।

अस्थानीय सदस्य अर्थात पटना से बाहर के वो सदस्य जो आज उपस्थित नहीं हो सके, उनकी रचनाओं को यहाँ उपस्थित सदस्यों द्वारा पाठ किया गया... जिनमें प्रमुख रहे;

कमला अग्रवाल (इंदिरापुरम-दिल्ली) की रचना -
सृजनता की पहली कड़ी है माँ ,
नौ महीने कोख में रख 
असहय वेदना को सह 
हमें धरती पे लाती है माँ  ।

अंकिता कुलश्रेष्ठ (आगरा)
शुष्क मरुस्थल जैसे उर को शीतल जल है माँ
दुख,दुर्भाग्य,निराशा,आँसू इक 
जग झूठा बस माँ का आँचल सच्चा लगता है।
माँ को तो बूढ़ा बेटा भी बच्चा लगता है।

राजेन्द्र पुरोहित(जोधपुर) की रचना-
तुम सोचते हो
वो सिर्फ नौ महीने सहती है
प्रसव पीड़ा
सिर्फ नौ महीने...
नहीं
कदापि नहीं...

पम्मी सिंह 'तृप्ति' (दिल्ली) की रचना-
बाकी सब जहाँ के रवायतों में सहेज रखा ..
पर, जब भी घिरती हूँ दुविधाओं में 
माँ..सच तेरी, बहुत कमी खलती है

शशि शर्मा 'खुशी' (हनुमामगढ़-राजस्थान)की कविता:
अपने दुख का,
साया भी नहीं पड़ने देती
मगर मेरे हर दुख को
समेट लेती अपने आँचल में

श्वेता सिन्हा (जमशेदपुर)की रचना रही -
गर्व सृजन का पाया, 
बीज प्रेम अंकुराया
कर अस्तित्व अनुभूति 
सुरभित मन मुस्काया

विशाल नारायण (पूना) -
स्वयं धूप बरखा सहकर
बच्चों को सहलाती है
यही है रूप विधाता का
जो माता कहलाती है

मणि बेन द्विवेदी (बनारस) -
स्त्री सर्वदा सहनशील होती है,
हर परिस्थिति में धैर्य धारण करने वाली 
टूट कर भी न बिखरने वाली 
कितने संयम को समेटे अपने वज़ूद में

कल्पना भट्ट (भोपाल) ने  सुनाया -
माँ! तुम हो शक्ति स्वरूपा
न पाया तुमसा कोई दूजा
समय से भी तुमने की लड़ाई
हर बार समय को आँख दिखाई।

कार्यक्रम में रमेश चन्द्र , नीलांशु रंजन, गणेश जी बागी, रेशमा प्रसाद भी उपस्थित होकर अपनी प्रस्तुति दी। मंच संचालन ईशानी सरकार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन रवि श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में अभिलाष दत्त ने भी अपना योगदान किया। इस तरह एक यादगार कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
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आलेख - संजय कुमार 
छायाचित्र सौजन्य -  विभा रानी श्रीवास्तव 
प्रतिक्रया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com




4 comments:

  1. Replies
    1. बहुत धन्यवाद आदरणीया.

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  2. हार्दिक आभार और तहे दिल से शुक्रिया आपका।

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    Replies
    1. सामग्री हेतु आपका धन्यवाद संजय जी.

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