Small Bite-5 / लेख्य मंजूषा की कवि गोष्ठी 29.1.2019 को पटना में सम्पन्न

हम इंसान सिर्फ होते / सद्भावना और भाईचारे पर / लिखी हुई सुंदर कविता



दिनांक 29.1.2019 को आइईआई, पटना के सभागार में सक्रिय साहित्यिक संस्था लेख्य मंजूषा द्वारा एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता सुनील कुमार ने की और संचालन प्रेमलता  सिंह  ने किया.

वीणाश्री हैम्ब्रम ने अपनी एक कविता देशभक्ति पर पढ़ी -
जय हिंद जय लोकतंत्र
गणतंत्र यही सिखाता है

फिर उन्होंने प्यार में पर मौन को न समझ पाने पर नाराजगी जताई-
प्यार के मेरे मौन का बहाना बना दिया.

मो. उस्मान जुगनू की रौशनी सी मध्रुर स्मृतियों में सबको ले गए-
एक आवाज़ / जो चिड़ियों की / चहचहाने से आती थी / ज़ेहन में एक सुरीली /
खनक पैदा करती थी
 एक रौशनी  / जो जुगनू / फैलाते थे / रात के अँधेरे में

फिर उन्होंने आँसुओं का  साथ न छुट पाने की व्यथा का सुंदर वर्णन किया-
आँसुओं! इतनी तकल्लुफ़ उठाते क्यूँ हो
तुम्हे आना है बार-बार फिर जाते क्यूँ हो
हर ख़ुशी के बाद एक नई कहानी के साथ
अपनी आहट से हरदम डराते क्यूँ हो.

शफीक अशरफ ने पहले जिंदगी की भागमभाग और व्यस्तता के ऊपर बहुत ही अच्छी कविता पढ़ी. फिर उन्होंने दूसरी कविता राजनीतिक विषय पर पढ़ी जिसमे स्वयं के भी बदलाव की बात की गई.

अमृता सिन्हा ने जिन्दगी की तेज रफ्तार में जिन्दगी के अर्थ के छूट जाने की पीड़ा को कुछ  यूँ बयाँ किया-
तेज भागती दुनिया में बस मकान ही मकान नजर आए
उम्र के रास्ते गुजरते क्या क्या छूटता गया
जिंदगी तमाम हो रही है

संजय सिंह ने अति से क्षति की बात की और कहा कि सिर्फ पैसे के पीछे न भागा जाय. साथ ही उन्होंने अपनी एक रचना में पर्यावरण संरक्षन की आवश्यकता पर भी बल दिया.

प्रेमलता सिंह ने इंसान को कविता में बदल जाने की कल्पना का सुंदर चित्र खींचा-
हम इंसान सिर्फ होते
सद्भावना और भाईचारे पर
लिखी हुई सुंदर कविता

सुनील कुमार ने भरोसे के काबिल प्रेमी को इरादे भी नेक रखने की सलाह दी-
भरोसे के काबिल अगर चाहते हो
इरादे सभी नेक अच्छे भले हों
जरा देखना अपनी  तिरछी नज़र से
खुदाया असर से सहर भी नए हों

संजीव कुमार ने दहेज पर व्यंग्यवाण छोड़ते हुए सबको लोटपोट कर दिया-
दहेज की माँग पर अड़े दुल्हे को
दुल्हन ने खींच कर जब दो चार थप्पड़ मारे
तो आवाज ऐसी गूंजी
जैसे संगीत की धुन पर हो
तबले की आवाज

हेमन्त दास 'हिम' ने जरूरत के अनुसार अपना रूप बदल डाला-
बाढ़ जब आई तो डूबते की नाव बना
अंधा दिखा अगर तो उसकी छड़ी रहा हूँ मैं
बेवजह इस जहाँ में कभी नहीं रहा हूँ  मैं
रोते हुए दिलों को इक मसखरी रहा हूँ मैं.

कवियों द्वारा कविता पाठ के बाद कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुनील कुमार ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी की. लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष विभारानी श्रीवास्तव ने भी उपस्थित सदस्यों को सम्बोधित कर संस्था को और अधिक कारगर बनाने हेतु मार्गदर्शन किया.

कवि गोष्ठी में एक कैलेंडर का लोकार्पण भी किया गया एवं शाइस्ता अंजुम के पिता की मृत्यु के शोक में एक मिनट का मौन भी रखा गया. कार्यक्रम  में  नीतू  कुमारी  भी  उपस्थित  थीं.

यह  काव्य  गोष्ठी भुवनेश्वर  से पधारे और  समस्तीपुर  के  रहनेवाले शफीक  अशरफ  के स्वागतार्थ  रखी  गई  थी जिसमें  उनके अलावे  उनके साथी  मो.  उस्मान  और  मुम्बई  से  आये  हेमन्त  दास  'हिम'  आगन्तुक  अतिथि  थे/

अंत में आए हुए कवियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा प्रभाष  सिंह  के  द्वारा  हुई.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र- बेजोड़ इंडिया
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