चलो ढूंढते हैं मुहब्बत की दुनिया / Let's find the Love World
प्रेम किरण आज के दौर के गंभीर कवि हैं जिन्हें देश भर के लोगों ने सराहा है। उनकी ग़ज़लों में मुहब्बत तो अठखेलियां करती ही है, लेकिन वे समाज और देश की समस्याओं से भी उतने ही जुड़े हैं। भाषाई क्लिष्टता और अर्थ की दुरूहता से बचते हुए उनकी संवाद-अदायगी ऐसी है कि पाठक के ज़ेहन पर सीधा असर करती है। उम्र के इस पड़ाव पर उसके पास अनुभवों का अथाह भंडार है, जिसको वे अपनी समझ की धार से व्याख्यायित करते हैं। निश्चय ही आज और आने वाले युग में उनकी शायरी की प्रासंगिकता दिनों-दिन बढ़ती ही जाएगी जिससे उनकी ख्याति देश-दुनिया में और भी अधिक फैलेगी। उनके प्रकाशित ग़ज़ल-संग्रह "आग चख कर लीजिए", 'पिनकुशन' और 'ज़ेह्राब' हैं। उनकी बेशुमार रचनाएँ लंबे समय से विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं और आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भी उनके कार्यक्रमों का प्रसारण किया है। ग़ज़लों के अलावा उन्होंने कहानी, लेख, समीक्षा आदि अन्य विधाओं में भी हाथ आज़माया है। पाठकों की सुविधा के लिए उनकी कुछ नवीनतम ग़ज़लें प्रस्तुत हैं जो स्वयं उनका परिचय देंगी। प्रेम किरण को दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान, बिहार उर्दू अकादमी द्वारा सम्मान और अन्य कई महत्वपूर्ण सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। हेमंत 'हिम' द्वारा उनकी एक ग़ज़ल का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रस्तुत है।
(-संपादक, बेजोड इंडिया ब्लॉग)
Prem Kiran is a serious poet of today's era who has been appreciated by people across the country. In his ghazals, love plays pranks, but he is equally connected with the problems of the society and the country. Avoiding linguistic intricacy and difficulty of meaning, his dialogue delivery is such that it directly affects the mind of the reader. At this stage of age, he has an immense store of experiences, which he interprets with the edge of his understanding. Certainly today and in the coming era, the relevance of his poetry will increase day by day, due to which his fame will spread even more in the country and the world. His published anthologies are "Aag Chakh Kar Lijiye", 'Pincushion' and 'Zehrab'. His innumerable works have been published in various newspapers and magazines for a long time and All India Radio and Doordarshan have also broadcast his programs. Apart from ghazals, he has also tried his hand in other genres like story, article, review etc. For the convenience of the readers, some of his latest ghazals are presented which will themselves tell about himself. Prem Kiran has been awarded Dushyant Kumar Shikhar Samman, Honor by Bihar Urdu Academy and many other important honors. English translation of one of his ghazals is also presented by Hemant 'Him'.
(-Editor, Bejod India Blog)
ग़ज़ल -1 / Poem-1
रात है और क्या ग़ज़ब की ख़ूबसूरत रात है
तश्ना-लब है, जाम है, तुम पास हो, बरसात है
Oh this is night, the wonders of night not waning
Thirsty lips with a glass, you'r here and it's raining
तश्ना-लब है, जाम है, तुम पास हो, बरसात है
Oh this is night, the wonders of night not waning
Thirsty lips with a glass, you'r here and it's raining
क्या पता किस मोड़ पर ये ज़िंदगी हो बेवफ़ा
आओ जी लेंं,इश्क़ कर लें, जितने पल का साथ है
Who knows the moment when the life may ditch him
Let us make love and live all moments yet remaining
हुश्न पर इतना गुरूर अच्छा नहीं ऐ महज़बीं
चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात है
Hey gorgeous! Don't be so arrogant about your beauty
Just few moonlit nights and then murk would be gaining
धूल से उसने बनाया हर कली हर फूल को
ये जो हर सू मोजिज़ा है, उसके बस की बात है
He produced every bud and flower from the dust
The miracles all around only through God may be attaining
इश्क़ पैहम इश्क़ करना जानता हूँ मैं किरन
इश्क़ है माबूद मेरा इश्क़ मेरी ज़ात है
I am 'Kiran' and know only to make love incessantly
Love is my God and the abode from I am hailing
ग़ज़ल -2
रंगीन है तुम्हारी कहानी भी कम नहीं
लेकिन हमारी शोख़ बयानी भी कम नहीं
दरिया में बादबां को संभालूं कि नाव को
सरकश है गर हवा तो रवानी भी कम नहीं
बैठे हैं धूप में भी घनी छांव के तले
पुरखों की दी हुई ये निशानी भी कम नहीं
इसका वजूद सदियाँ मिटाये नहीं मिटा
है इश्क़ की ये प्यास पुरानी भी कम नहीं
बाजार में लगी हुई है आग हर तरफ
लेकिन बुझाना चाहें तो पानी भी कम नहीं
कुछ अपनी आदतों से भी मजबूर हूं किरन
कुछ दोस्तों की तल्ख़बयानी भी कम नहीं
(बादबां = नाव में लागाया जानेवाला पर्दा, सरकश = बाग़ी, रवानी = प्रवाह)
ग़ज़ल -3
नसीमे-सहर क्या ग़ज़ब ढा रही है
कली के चटकने की बू आ रही है
अजूबा सदी है हमारी सदी भी
हर इक दिन ख़बर कोई चौंका रही है
न जाने कहां खो गयी आदमीयत
न जाने ये दुनिया कहां जा रही है
चलो ढूंढते हैं मुहब्बत की दुनिया
ये नफ़रत की दुनिया सितम ढा रही है
ज़माने में सबसे ख़ुशी बांटता हूं
तलब ज़िंदगी की हमेशा रही है
किताबों में ढूंढा शिलाओं में ढूंढा
किरन कोई शै है जो भटका रही है
(नसीमे-सहर = सुबह की हवा)
ग़ज़ल -4
ठोकरें खा कर भी हमने की हिफ़ाज़त आपकी
कुछ तो है पासे-रवायत कुछ हिदायत आपकी
सर कटाया हमने मिट्टी की हिफ़ाज़त के लिए
है रक़म तारीख़ में लेकिन शहादत आपकी
छोटी छोटी बस्तियां हमने बसायीं है मगर
फिर इन्हें वीरान कर देंगी सियासत आपकी
न्याय अंधा, लोग भूखे और ये बिखरा समाज
देख ली सरकार हमने ये रियासत आपकी
लोग हैरां हो रहे हैं ये तमाशा देख कर
मेरे दरपन में नज़र आती है सूरत आपकी
अपने हाथों ख़ुद उठायी हैं उसूलों की फ़सील
वरना हमको रास आई कब क़यादत आपकी
(पासे-रवायत = परम्परा का लिहाज़, फ़सील = दीवार, क़यादत = नेतृत्व)
ग़ज़ल -5
जो परीशान फ़सीलों के उधर है कोई
तो कहां चैन से इस ओर बशर है कोई
कौन खुशियों के निवालों को उड़ा लेता है
साफ़ दिखता तो नहीं चेहरा मगर है कोई
ज़ख़्म की एक सी तहरीर रक़म है दिल पर
पढ़ने वाला न इधर है न उधर है कोई
शह्र वीरान हुआ कैसे ये ख़ामोशी क्यों
लोग गूंगे हैं कि मुर्दों का नगर है कोई
हम सफ़ीने को किनारे से लगायें कैसे
तेज़ तूफान है दरिया में भंवर है कोई
चाहते हैं कि मुहब्बत से मिलें हम लेकिन
अपनी परवाज़ में थोड़ी सी कसर है कोई
छू के गुजरी हैं अभी ठंढी हवायें मुझको
इसका मतलब कहीं सरसब्ज़ शजर है कोई
(तहरीर रक़म है = लिखावट लिखी है, सरसब्ज़ = हरा-भरा)
.....
ग़ज़लकार - प्रेम किरण
ग़ज़लकार का ईमेल आईडी - premkiran2010@gmail.com
ग़ज़लकार का पता - गुलजारबाग, पटना (बिहार)
अंग्रेजी छंदानुवाद (English translation) - हेमन्त दास 'हिम' (Hemant Das 'Him')
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbejodindia@gmail.com / hemantdas2001@gmail.com
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