Tuesday, 21 February 2023

लेख्य मंजूषा द्वारा ब्लॉगर हेमन्त दास 'हिम' के सम्मान में आकस्मिक गोष्ठी पटना में 19.2.2023 को सम्पन्न

 "क्या आज भी लोग रो लेते है, बिना माईक और कैमरा के? .."
(कवि-गोष्ठी की रपट)


"गजल यह है, हम जिस भाव से यहाँ उपस्थिति हुए हैं बाकी तो जो शे'र अश'आर है सो है" 
ऐसा राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिलब्ध गजलकार संजय कुमार कुंदन ने कहा। रविवार/19 फरवरी 2023 अपराह्न ढ़ाई बजे से साहित्यकार हेमन्त दास 'हिम' के सम्मान में लेख्य-मंजूषा  (साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था) के द्वारा द इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियर्स में अनेक सुधी साहित्यकार एकत्र हुए. इस अवसर पर उनके "बिहारी धमाका" एवं "बेजोड़ इंडिया" ब्लॉग के माध्यम से सभी साहित्यकारों और रंगकर्मियों को उत्साहित रखने के सराहनीय प्रयास की सामूहिक रूप से प्रशंसा की गई. 

इस अवसर पर एक कवि-गोष्ठी का आयोजन भी हुआ. मुंबई से गृहनगर पटना आए हेमंत दास 'हिम' की अध्यक्षता में हुई इस गोष्ठी में उनकी कविताओं जैसे "क्या श्रेष्ठ बाजारवादियों के इस युग में / अब भी उपलब्ध है कोई  फटा रूमाल..." और "क्या आज भी लोग रो लेते है / बिना माइक और कैमरा के..." जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया.

आकस्मिक रखी गई गोष्ठी में राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित शायर संजय कुमार कुंदन के अलावा लेख्य-मंजूषा के उपाध्यक्ष एवं बेहतरीन कवि मधुरेश शरण, उर्दू-हिंदी शायरी में ऊचा मुकाम हासिल कर चुके सुनील कुमार, संवेदनशील कविगण कृष्ण समिद्ध, कमल किशोर वर्मा, डॉ. मीना परिहार एवं डॉ पूनम देवा, नूतन सिन्हा, ऋचा वर्मा, रंजना सिह, पूनम (कतरियार) तथा डॉ. प्रतिभा रानी की सम्मानीय उपस्थिति रही। आगंतुक युवा कवियों में अमृतेश मिश्रा, अनिकेत पाठक एवं  ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। सम्पूर्ण आयोजन में लेख्य-मंजूषा की अध्यक्षा विभारानी श्रीवास्तव की केंद्रीय भूमिका रही.

शायर सुनील कुमार ने अपेन प्रभावकारी संचालन द्वारा सब को बांधे रखा. धन्यवाद ज्ञापन मधुरेश नारायण और संस्था की अध्यक्षा विभारानी श्रीवास्तव ने किया. अल्प सूचना पर आयोजित हुए इस कार्यक्रम में कविताओं तथा गज़लों की अविरल रसधार बही।

अज़ीम शायर संजय कुमार कुंदन ने ख़ूबसूरत शायरी का नुस्खा दिया -
"आरजू गर लहू नहीं होती
शायरी ख़ूबरू नहीं होती
अब न कोई कलाम कोई सुखन
ख़ुद से भी गुफ़्तगू नहीं होती
तीरगी का भी एहतराम करो
रौशनी चार सू नहीं होती
तेरी वहशत में मैं नहीं होता
मेरी ख़्वाहिश में तू नहीं होती
कैसे फेरे में पड़ गया 'कुन्दन'
संग से गुफ़्तगू नहीं होती.."
(ख़ूबरू= सुंदर चेहरे वाला, तीरगी= अंधेरा, एहतराम = सम्मान,  वहशत= उन्माद, संग= पत्थर)

डॉ मीना कुमारी परिहार ने अपने मधुर कंठ से स्वरचित रचना का लयबद्ध गायन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. उनकी पंक्तियों में बढ़ रही संवेदनहीनता पर कड़ा प्रहार भी था -
"गले भी लगाएं वो और प्यार भी करें
ये आदमी नहीं है इक जात है नई
अक्सर ही लोग जाते हैं छोड़ कर मुझे
तुम भी चले जाओगे, क्या बात है नई.."

डॉ. प्रतिभा रानी ने लोगों के हारते मन में हौसला भरा -
"हे मन, क्यों घबराता है
क्या कोई किसी के काम आता है?
जीत वहीं होती है
जहाँ प्रयास होता है.."

भावप्रवण कवि मधुरेश नारायण ने अपनी पंक्तियों से प्रेम की बरसात कर दी -
"चुपके से कोई मेरे जीवन में 
प्यार के रंग घोल दे
कोई आकर मेरे कानों में 
प्यार के दो बोल, बोल दे.."

लोकप्रिय शायर सुनील कुमार आसमान नापते दिखे -
"चर्चा अब क्यूँ थकान पर करिए
हौसले से उड़ान है प्यारे
हम परिंदे हैं, नाप लेते हैं
मुट्ठी में आसमान है प्यारे.."
उन्होंने कार्यालय के अनुभव पर भी एक सुंदर रचना पढ़ी जो कुछ यूँ थी- 
"तमाम लोग जो अक्सर इधर उधर में रहे
वो सारी जद्दोजहद करके भी अधर में रहे.."

अमृतेश कुमार मिश्रा ने अपनी ग़ज़ल से सब का दिल जीत लिया - 
"हमारी ज़िंदगी में तुम नहीं हो
हमारे दिल में अब धड़कन नहीं है
मेरी पेशानी को चूमा है जबसे
मेरी दुश्मन से भी अनबन नहीं है
घुटन की बात पर इतना कहूँगा
मुहब्बत योग है  बंधन नहीं है
किसी के ताज पे सोना मढ़ा है
किसी के जिस्म पे कतरन नहीं है.."

कवयित्री ऋचा वर्मा ने भोग- विलास में लीन, सीमा पर जान की बाजी लगा रहे और आतंकवाद की ओर उन्मुख हो रहे तीनों प्रकार के पुत्रों को उनकी माता की याद दिलाते हुए सच्ची वीरता और देशभक्ति को अपनाने की सीख दी - 
क्या आएगा उसका पूत ?
जीवन की रंगीनियों को तज कर, 
सरहद पर दुश्मनों को मात देकर, 
या, अपनी मातृभूमि को लहुलुहान करने के इरादे को तिलांजलि देकर
शायद . हां, नहीं, जरुर आएगा
क्योंकि 'मां' की दुआएं कभी खाली नहीं जाती.."

पूनम कतरियार ने स्त्री के अस्तित्व पर कहा - 
"अमृत-प्रवाह हूं,
बहने दो मुझे.
ऊंचाई ने दिया आवेग,
प्रस्तर-खंडो ने संघर्ष दिया.
टेढ़े-मेढ़े राह-बाट में,
खर-पतवार भी,खूब  मिलें.
भूख -प्यास से बेहाल,
बांझिन-रेत मिलीं,
तरसती-धरा का क्षोभ दिखा..."

कुछ वीर-रस के कवि भी क्रोध का औचित्यीकरण प्रस्तुत करते हुए साहित्यिक गुणों से परिपूर्ण वीर-रस पर अपनी रचनाएँ पढीं - 
अनिकेत पाठक ने परशुराम जी के क्रोध को दर्शाते हुए कविताएँ पढीं - 
"यदि न्याय न दिला पाए 
तो किस काम का तेरा बल?.."
कवि कमल किशोर ने भी क्रोध को उचित ठहराया - 
"संंधि-प्रस्ताव जब निरस्त हुआ 
कब तक अन्याय सहा जाए?
क्यों नहीं क्रोध किया जाए?.."
इन कवियों की रचनाएँ काफी प्रभावकारी थीं, यहाँ यह कह देना प्रासंगिक होगा कि आधुनिक काल में क्रोध के व्यक्तिकरण का स्वरूप बदल गया है. अन्याय और अत्याचार का कठोर दमन होना ही चाहिए किंतु आधुनिक समय में यह काम सर्वसाधारण जनता का नहीं अपितु सैन्य-बल और पुलिस बल का है. जनता का काम अन्याय और अत्याचार के दमन में उनका सहयोग करना है स्वयं कानून अपने हाथ में लेना नहीं. 

कवि कृष्ण समिद्ध ने कविता नहीं पढ़ी. उन्होंने कहा कि हेमंत जी को मैं ने पहली बार "दूसरा शनिवार" की काव्य गोष्ठी में देखा था. किस गंभीरता से आप पटना कविता और नाटक जगत में आप रहते थे और अपनी कलम से अपने नोट बुक पर हर घटने वाली घटना और पंक्ति को दर्ज किया करता थे.

नूतन सिन्हा ने प्रकृति-प्रेम को चित्रित किया -
"रात्रि के प्यार में 
दिवा रहता है दीवाना.."

अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हेमन्त दास 'हिम' ने अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि कविता में बुराइयों का विरोध होता है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह किसी खास राजनीतिक या सामाजिक समूह के खिलाफ है. दर-असल बुराइयाँ हर जगह, हर समूह और हर व्यक्ति में है,  स्वयं उस रचना को लिखनेवाले में भी. अत: कविता सब के साथ-साथ स्वयं उसकी रचना करनेवाले कवि के भी खिलाफ होती है. स्पष्ट है कि कविता में विरोध की अभिव्यक्ति का कभी बुरा नहीं माना जाना चाहिए. उनकी कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं - 
"क्या श्रेष्ठ बाजारवादियों के इस युग में
अब भी उपलब्ध है कोई फटा रुमाल
उन गीली आंखों को
जिन्हें पोछने वाला कोई भी नहीं? "

 प्रख्यात शायर संजय कुमार कुंदन जी के बारे में हेमन्त 'हिम' ने कहा कि उनके समक्ष किसी और का सम्मान बेमानी है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह सत्य है कि उनके पटना छोड़ने के कारण वे स्वयं और पटना के साहित्यिक मित्र एक-दूसरे की कमी को महसूस कर रहे हैं और एकत्र होने के लिए यह बहाना अच्छा था. उन्होंने मौजूद कवि-कवयित्रियों के साथ वर्ष 2019 ई. तक (जब तक पटना में रहे) के संस्मरणों को याद करते हुए लोगों की बातों में हामी भरी कि किस तरह उनके द्वारा रात-रात भर जग कर पटना की लगभग हर गोष्ठी की रपट वर्षों तक प्रकाशित होती रही. उन्होंने मक़बूल शायर सुनील कुमार और उत्तम कवि मधुरेश शरण, कृष्ण समिद्ध समेत, भावप्रवण कवयित्रियों पूनम कटरियार, ऋचा वर्मा, मीना परिहार से अपने ऑनलाइन संवादों को याद किया और आज आमने-सामने होने पर खुशी व्यक्त की. 

कार्यक्रम में संस्था द्वारा पुरस्कृत कवयित्री ऋचा वर्मा को पुरस्कार स्वरूप अनिरुद्ध प्रसाद 'विमल' लिखित प्रबंध काव्य 'कृष्ण' को हेमन्त दास 'हिम', संजय कु. कुंदन और मधुरेश शरण के हाथों प्रदान किया गया.
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रपट - पूनम (कतरियार)/ बेजोड़ इंडिया संचालक मंडल
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12 comments:

  1. श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
    आपसे भेंट कर बेहद खुशी होती है

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    1. दीदी, मुझे भी आपकी सुहृदयता से काफी राहत होती है. अपना आशीर्वाद बनाए रखें.

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  2. आपसे मिलना बहुत सुखद रहा

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  3. महफ़िल जम गई आपके आने से

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    1. जी, लेख्य मंजूषा की महिला सदस्यों का विशेष आभार जो अल्प सूचना पर भी एकत्र हो पाईं. आप सब इस अतिसक्रिय सांस्कृतिक संस्था की रीढ़ हैं.

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  4. एक सफल आयोजन था और सबसे बड़ी बात थी आपसे इतने दिनों के बाद मिलना और आपकी रचनाएँ सुनना.

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    1. सफलता का सारा श्रेय आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी को जाता है. मुझे आपसे मिलने की काफी इच्छा थी जो आपकी कृपालुता से पूरी हुई.

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  5. आपसे मिलने का सुखद संयोग हुआ, आते रहें

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    1. जी, पहले तो सिर्फ ऑनलाइन साहित्यिक संवाद ही हो पाया था. मिल कर काफी खुशी हुई.

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  6. एक लंबे अरसे के बाद आपसे मिलना सुखकारी था। कार्यक्रम तो मात्र बहाना था और वह भी एक वाजिब मुकाम हासिल कर अपनी सफलता के परचम लहरा गया।

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    1. जी सही है. इतने कम समय में भी हमने आत्मीय पल साझा किए. सारा श्रेय आदरणीया विभा दीदी को है.

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