Monday, 3 June 2019

आई टी एम नवी मुंबई द्वारा मासिक काव्योत्सव खारघर (नवी मुंबई) में 02.6.2019 को संपन्न

हम भारतवासी सजते हैं, संवरते हैं विभिन्नताओं से

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दिनांक 02.6.2019 को आईटीएम नवी मुम्बई द्वारा काव्योत्सव का आयोजन हुआ. इसमें बड़ी संख्या में कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया. इसकी अध्यक्षता डॉ. चंदन अधिकारी ने की और संचालन किया भारत भूषण शारदा ने. पढ़ी गई रचनाओं  की एक झलक नीचे प्रस्तुत है -

डॉ. मनोहर अभय दोहों के बेताज बादशाह हैं. इन्होंने अपने दोहों में अनेक लोगों के मंसूबे के बिखरने की बात की-
पत्ते बिखरे ताश के, बेगम कहीं गुलाम
एक चिड़ी के मारने कीनी नींद हराम
फिर उन्होंने द्रौपदी-युधिस्थिर संवाद पर एक कविता पढ़ी जिसमें द्रौपदी युद्धविमुख युधिस्थिर को युद्ध के लिए प्रेरित करती है.

अशोक प्रतिमानी  ने ऐसी फतह पाने से इनकार कर दिया जो मौकापरस्ती पर आधारित हो -
फलसफे फतह के न सिखाओ यारों
हम में वो मौकापरस्ती न रही
कभी कम तो कभी बहुत हुई बारिश
कभी कागज की लेकिन कश्ती न रही

हेमन्त दास ‘हिम’ की बात कोई सुनने को तैयार नहीं क्योंकि वे मुल्क में चैन-ओ-अमन के साथ खुशहाली चाहते हैं -
ज़मीर के खिलाफ होनेवाली जो हस्ती नहीं
राह उसकी दश्त है, बस दश्त है बस्ती नहीं
चैन-ओ-अमन के साथ मुल्क ये खुशहाल हो
इतनी भली सी बात पर उनको है जंचती नहीं

लता तेजेश्वर 'रेणुका' ने आ रहे सावन का स्वागत कुछ यूँ किया-
न जा न जा तू छोड़ गाँव मेरे मीत रे / देखो आया है सावन मेरे प्रीत रे
उमड़े बादल औ' फूल बतलाए रे / तुझे वापस बुलाए तेरे प्रीत रे
सूखे कंकड़ हो जमीं मांगे पानी रे / न जा न जा तू छोड़ गाँव मीत रे

कुलदीप सिंह 'दीप' की धड़कनें मेहनतकश लोगों की तकलीफों से जुड़ी हैं-
मेहनत से रखता वो नाता / फरेब से दूर वो रहता है
दुनिया भर की हर तकलीफ / चुपके चुपके वो सहता है
न दिखाओ दिल गरीब का / दिल मेरा जख्मी होता है
वो तो रोएगा बाद में / दिल मेरा पहले रोता है

त्रिलोचन सिंह अरोड़ा ने रोजा और उपवास से भी ज्यादा सटीक मार्ग बताया -
किसी ने रोजा रक्खा किसी ने रखा उपवास
होगी उसी की कबूल जिसने माँ बाप को रखा पास

रामप्रवेश विश्वकर्मा ने अग्निकांडों पर एक भेदनेवाली व्यंगयात्मक रचना पढ़ी-
एक आदर्श नगर की आदर्श आग / केवल सौ झोपड़ें ही  जला  पाई

इरफान हुनर ने आदमी के मुरौवत में रहने तक ही विनम्रता का पात्र बताया–
चांद तारों से भी यारी कीजिए
फिर खलाओं में सवारी कीजिए
आदमी जब तक मुरौवत में रहे
उस हद तक इंकसारी कीजिए

विमल तिवारी तरुवर को अपने फल को स्वयँ न भखने की सलाह दी-
सागर भी डरता दिखता अब उन्माद भरी सरिताओं से
तरुवर भी कंपन करते दिखे अब बलखाती उन लतिकाओं से
घृणा, रोष का समय अब रहा नहीं / श्रद्धा, प्रेम एवं अनुराग रखो
तुमसे उत्पन्न फल औरों के / उसे स्वयं ही तुम न भखो
हम भारतवासी सजते हैं, संवरते हैं विभिन्नताओं से

विजय भटनागर  ने शायरी के गुणों की विवेचना अपने ढंग से की -
शायरी वो होती है जिसे सुन के / दिल से 'आह' या मुँह से 'वाह' निकले
चाहे कैसी भी हो डगर / ग़ज़ब के मिसरे से जीवन की राह निकले
मिला हूँ ख्वाबों में ‘गालिब’ / मीर तकी ‘मीर’ और ‘फिराक’से
दौलतमंद नहीं थे वो पर / दिल के बड़े शहंशाह थे

सेवा सदन प्रसाद ने आरक्षण का लाभ के बाद भी अपमान झेल रहे लोगों की दशा को रखा -
नौकरी के लिए गया तो / आरक्षण कोटे से मिली नौकरी और पदोन्नति
पर एक लम्बे अरसे तक / नहीं मिला मान और सम्मान
हर पल सहता रहा अपमान
कभी लगा मौत को गले लगा लूँ लूँ / फिर मन को दिया दिलासा
लोकतंत्र में सफल होने की अभिलाषा

विश्वम्भर दयाल तिवारी  ने बिगड़ते रिश्तों के कारण घर को ही पुलिस थाना बन जाने का दृश्य रखा -
लोग रिश्तों से नाराज हैं इस कदर / उन्हें अपने ही घर पुलिस थाना दिखे
दुराचारी का कहीं बोलबाला दिखे / भ्रष्टाचारी का मुँह भी न काला दिखे
काले धन के जमाखोर हैं यह चाहते / किसी निर्धन के घर न उजाला दिखे

नीता श्रीवास्तव खुले गगन में उड़ती नारी की उड़ान को बांधने की स्थितियों को रखा -
खुले गगन में उड़ती आई / हदों को भी अब सीख रही हूँ
पंख कटे और सीमाएँ वो / मैंं भी उड़ना सीख रही हूँ
मैं भी जीना सीख रहा हूँ

चंद्रिका व्यास ने भविष्य की सबसे बड़ी समस्या जलसंकट और जल की पहरेदारी की बात की -
भौतिक सुख की लोलुपता में / सरोवर को ही हमने पाट दिया
सपनों का महल बना / जंगल को हमने साफ किया
रुपयों से जल न मिलेगा / होगी जल की पहरेदारी
चुल्लू भर पानी में डूबी / मतलब की सब रिश्तेदारी

माधवी कपूर ने दीप के जलने पर भी उजाले न होने की बात पर संताप प्रकट किया-
कौन कितना चले कहाँ जायें / लक्ष्य की बात ही अधूरी है
फूल पूजा में चढ़ाने के लिए / गंध पावन रहे जरूरी है
दीप मन्दिर में जले या घर में / अब उजाले की बात मत करिए

सत्येंद्र प्र. श्रीवास्तव ने अपने वर्तमान पर शत प्रतिशत विश्वास प्रकट करते हुए उसे अलादीन का चिराग मान लिया -
है विश्वास सभी का तुझ पर
जैसे तुम हो अलादीन का चिराग
पर आशा है पार लगेगी
सबकी नैया उस पार

विजयकांत द्विवेदी ने मादक यौवन  का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया -
खंजन से अंजन, हँसी माँग फूल की
अधरों पर मादक, है किरणों की लाली
कोकिल की कूक में / अंतर की हूक भर
पीऊ पीऊ चातक की / चाह बन पुकारती.

सभी पूर्व कवियों द्वारा पाठ किये जाने के बाद इस साहित्यिक सभा के अध्यक्ष डॉ. चंदन अधिकारी ने अपने संक्षिप्त विचार प्रकट करने के पश्चात अपनी कविता के माध्यम से सकारात्मक सोच अपनाने का बहुमूल्य संदेश दिया -
हर शख्स के सिर्फ गुणधर्म देखो
हर वनस्पति के औषधधर्म देखो
दोषों को भूल, गुणों को निहारो
जीवन अपना खुशियों से सजाओ

अंत में आए हुए कवियों और श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई.
.......

आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
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