विवाह और मर्यादा के बीच प्रेम की तलाश
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मन के क्षितिज में उमड़ती - घुमड़ती भावनाओं की बदरी हमेशा ही बरसने को आतुर रहतीं हैं और बरस कर वहाँ के जनमानस को तो तृप्त करतीं ही हैं साथ ही उन्हें स्वयं भी तृप्ति का आभास होता है। कुछ ऐसी ही तृप्ति का आभास कथा संग्रह अस्मिता पर्व के लेखक विनोद कुमार सिंह को भी निश्चित ही हुआ होगा जब उन्होंने पुस्तक के नाम के अनुरूप ही खूबसूरत आवरण में सुसज्जित अपने इस कथा संग्रह स्मिता पर्व को अपने हाथों में लिया होगा। फिर भी एक लेखक की आत्मा तब तक पूर्ण तृप्त नहीं होती जब तक कि उसके लेखन को पाठको के द्वारा स्वीकारी और सराही न जाये। और जब संग्रह प्रथम हो तो उद्विग्नता और भी बढ़ जाती है।
पुस्तक की पहली कहानी "अस्मिता पर्व" एक स्त्री की डायरी है जिसमें उसके जन्म से लेकर विवाह के उन्नीस साल तक के सफर का बहुत ही सूक्ष्मता से विस्तृत वर्णन किया गया है। इस कहानी में एक मजबूर पिता अपनी पुत्री लावण्या का विवाह एक अकर्मण्य शराबी से कर देता है जो अपनी पत्नी की प्रतिभा और सुन्दरता की दास्तान अपने इष्ट मित्रों तथा सगे सम्बन्धियों से सुनकर कुण्ठा से ग्रस्त हो जाता है। परिणाम स्वरूप वह अपनी पत्नी लावण्या के साथ मनमानी करता है और उसे शारीरिक तथा मानसिक यातना देता रहता है फिर भी स्त्री आम भारतीय महिलाओं की ही तरह अपना पत्नी धर्म निभाते हुए इस यातना को अपनी नियति मानकर झेलती रहती है ताकि रिश्ता बचा रह सके। जब घर में आर्थिक तंगी होती है तो वह मेहनत और प्रतिभा के बल पर आगे की पढ़ाई कर नवोदय विद्यालय में प्रवक्ता के पद पर पदस्थापित हो जाती है लेकिन उसके पति का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
किन्तु जब उसके पति का अत्याचार अब उसकी पुत्री पर भी बढ़ने लगता है तो वह पति से अलग होने का निर्णय लेती है और मनाती है अस्मिता पर्व।
कथा संग्रह की दूसरी कहानी "गोधूलि वेला" एक खूबसूरत और पाक प्रेम कहानी है जिसमें नायक और नायिका को किशोरावस्था में ही प्रेम हो जाता है लेकिन जाति-बंधन उनके विवाह में आड़े आता है। फलस्वरूप नायक का विवाह किसी और से हो जाता है लेकिन नायिका अविवाहित रहने का फैसला लेती है। फिर भी दोनों का मिलना - जुलना कायम है पर कभी उनमें शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं होता है। लेकिन समाज को तो यह भी मंजूर नहीं होता और जीवन के गोधूलि वेला में वे अलग हो जाते हैं।
संग्रह की तीसरी कहानी परछाइयाँ "अपराधबोध" की एक पिता की ऐसी संतान की कहानी है जो बीमार पिता के इलाज के लिए एक अन्जान व्यक्ति जिससे एक अपनापन सा महसूस होता है से सहायता मांगती है लेकिन वह सरकारी काम में व्यस्तता के चलते उसकी मदद नहीं कर पाता है । पिता की मृत्यु के पश्चात हताश होकर पुत्री भी प्राण त्याग देती है और वर्षों बाद उस व्यक्ति को ये बात पता चलती है तो वह अपराधबोध से ग्रसित हो जाता है।
और चौथी कहानी "पश्चाताप" में उस रात को हिन्दू मुस्लिम समुदाय के बीच पनपते अविश्वास के कारण रातभर मानसिक यातना झेलने पर विवश होने की उहापोह को बहुत ही बारीकी से वर्णन किया गया है।
इस तरह संग्रह की पाँचवी कहानी "वह बेवफा नहीं थी", छठी "बेबसी", सातवीं "मैं अभियुक्त हूँ" तथा आठवीं "नई सुबह" सभी प्रेम कहानियाँ हैं।
इन कहानियों की विशेषता यह है कि नायक नायिका के मध्य प्रथम प्रेम पुष्प की महक ताउम्र रहती है भले ही कितनी भी दूरियाँ और मजबूरियाँ क्यों न हों। हाँ, उन्होंने कभी भी अपनी मर्यादा का लक्ष्मण रेखा लांघने का प्रयास नहीं किया है।
संग्रह की अंतिम और नवीं कहानी "कतरा-कतरा जिंदगी" में त्रिया चरित्र के वीभत्स रूप को दिखाया गया है जिसमें एक स्त्री अपने से कम उम्र के युवक की मजबूरियों का फायदा उठाकर अपनी शारीरिक पिपासा को शान्त करती है और जब वह युवक इस पाप कर्म से मुक्त होना चाहता है तो उसे बदनाम कर देती है।
इस प्रकार इस संग्रह की लगभग सभी कहानियाँ स्त्री को केन्द्र में रखकर लिखी गई है। अतः रोचक, प्रेरक, तथा कौतूहल पूर्ण हैं। हाँ, यदि पहली कहानी अस्मिता पर्व का कथानक बहुत सशक्त है। यदि इसे लघु उपन्यास का रूप न देकर कहानी ही रहने दिया जाता तो मेरे ख्याल से और भी रोचक और सुन्दर होता।
संग्रह में कुल नौ कहानियाँ हैं जो एक सौ निन्यानवे पृष्ठों में समाई हैं। कहानियों में प्रवाह है तथा भाषा सरल है अतः पाठकों के मन मस्तिष्क पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता है। कहानियाँ जहाँ पहले प्यार की खूबसूरती, पवित्रता तथा विवशता का सजीव चित्रण करते हुए पुरानी पीढ़ी को अपने अतीत में ले जाती है वहीं नई युवा पीढ़ी को आश्चर्य में डाल देने वाली हैं कि प्रेम का स्वरूप ऐसा भी होता था। क्योंकि आज की युवा पीढ़ी के लिए तो 'लव' और 'ब्रेकअप' आम बात हो गई है।
पुस्तक की छपाई तो स्पष्ट है लेकिन कहीं-कहीं शब्दों की अशुद्धियाँ देखने को मिलती हैं जिसके लिए प्रकाशक दोषी है।
हम कह सकते हैं कि यह पुस्तक पठनीय तथा संग्रहणीय है। पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। मूल्य भी कम ही है।
इस खूबसूरत संग्रह के लिए हम इस पुस्तक के लेखक विनोद कुमार सिंह बधाई के पात्र हैं और हम आशा करते हैं कि आगे भी हम उनके लेखन का रसास्वादन करते रहेंगे।
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अस्मिता पर्व - कथा संग्रह
लेखक - विनोद कुमार सिंह
प्रकाशक - साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, पृष्ठ - 199 , मूल्य - 250 रुपये
समीक्षक- (श्रीमती) किरण सिंह
समीक्षक का ईमेल आईडी - kiransinghrina@gmail.com
समीक्षक का मोबाइल नं- 9430890704
समीक्षक का ईमेल आईडी - kiransinghrina@gmail.com
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प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
समीक्षक - किरण सिंह |
कथाकार श्री विनोद कुमार सिंह के प्रथम कहानी संग्रह पर सुपरिचित लेखिका किरण सिंह जी की क्रमबद्ध समीक्षा से कहानी के प्रति न केवल जिज्ञासा उत्पन्न होती है अपितु उनकी समीक्षकीय कौशल का भी बोध होता है. ऐसी सार्थक और गहन समीक्षा पाठकों के मन में कौतूहल और लेखक के मन में संतोष पैदा करती है.
ReplyDeleteकहानीकार और समीक्षा लेखिका को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए कहानीकार और समीक्षक की ओर से हार्दिक आभार।
Deleteहार्दिक आभार।
Deleteहार्दिक आभार।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको
ReplyDeleteblogger.com मे गूगल के पासवर्ड से login करके यहाँ टिप्पणी करने पर आपका नाम भी दिखना चाहिए.
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