Monday, 10 June 2019

विनय कुमार की पुस्तक 'यक्षिणी' पर पाठ एवं संवाद, सहार (मुम्बई) में 9.6.2019 को सम्पन्न

सौंदर्य को न्याय दिलाने हेतु प्रतिबद्ध कवि




कवि सिर्फ योद्धा ही नहीं होता वह बहुरूपिया भी होता है. वह जब शब्दों को हथियार बनाना नहीं चाहता तो सौंदर्य का चरम उपासक हो जाता है परंतु उपासना करते करते ही वह तमाम बातें कह ही देता है. वह अतिक्षीण कटि और उद्दम उरोजों वाली, अप्रतिम आभा से दीप्त यक्षिणी के सौंदर्यवाण से मूर्छित तो है लेकिन साथ ही इस बात को लेकर बेचैन भी है कि ऐसी विलक्षण मूर्ति के निर्माता शिल्पी को अपमानित और निर्वासित क्यों किया गया?  वह यक्षी को समाज में पूरे-पूरे सम्मान के साथ अपना पूरा-पूरा जीवन जीती हुई देखना चाहता है एक चँवर डुलानेवाली अनुचरी और अपने गुणों को पददलित होते देखनेवाली के रूप में नहीं.

कवि की कृति 'यक्षिणी' को प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के इतिहास के कालरेख पर एक स्वच्छंद यात्रा के तौर पर देखा जा सकता है. कवि तुरंत मौर्यकाल के गह्वर में निकलकर विभिन्न कालखण्डों से गुजरते हुए आधुनिक युग में और इस युग से पुन: वैसे ही मार्यकाल में अपने मनमुताबिक आता जाता दिखता है.

मुम्बई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के पास सहार में स्थित जे डब्लू मैरिअट होटल में दिनांक 9.6.2019 को डॉ. विनय कुमार रचित और राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह 'यक्षिणी' के पाठ एवं उस पर संवाद का कार्यक्रम घंटों तक गहन साहित्यिक विमर्श के साथ किन्तु एक अनौपचारिक माहौल में चला. पेशे से मनोचिकित्सक किन्तु अपनी कविताकर्म के लिए उतने ही प्रसिद्ध डॉ. विनय कुमार की पुस्तक पर विमर्श करने हेतु मुम्बई की कुछ जानी-मानी हस्तियों के अलावे अनेक सुधी साहित्यकारगण उपस्थित थे. "अनारकली ऑफ आरा" फिल्म के निर्देशक अविनाश दास, विविध भारती के रेडियो जॉकी मो. युनूस खान,  लेखक बोधिसत्व के साथ-साथ शेष नाथ पांडेय, शिवेंद्र सिंह, बिनोद सिंह, पंकज कौरब, आभा बोधिसत्व, राम कुमार सिंह, हेमन्त दास 'हिम', मीनू मंजरी, अनुराधा, कंचन, अस्मिता आदि ने भी इस अवसर पर सक्रिय सहभागित दर्शायी.

विनय कुमार ने 'यक्षिणी' की कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया. पाठ किये गए कुछ काव्यांश नीचे प्रस्तुत हैं- 

1
वह नहीं चाहता 
कि सरोवर का जल सूख जाए 
और मिट्टी और धूल का पहरुआ रहे

यह भी नहीं 
कि सरोवर में जल भरा रहे और 
उल्टे -सीधे सवाल पूछकर लोगों को प्यासा मार दे

और एसा भी नहीं कि 
उसे अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं पता 

लेकिन 
पानी को पहचनना
और पानी माँगना भी तो आना चाहिए न भले लोगों.

2
देश और काल और लोक के पार
ले जानेवाले पंख झड़ रहे हैं
क्षितिज के स्वरों को शब्द देती भाषा छीज रही है
और रक्त को भाषा तक लाती हुई उष्मा मन्द पड़ रही है

सिहरन बढ़ती जा रही है 
घना होता जा रहा है मौन
फुहियाँ जम-सी गयी हैं
चेतना के अनन्त में हीले-हौले होता हुआ हिमपात
तुझे ओझल करता जा रहा है
तुम कहाँ हो यक्षिणी ? 

3
मैं एक साधारण मनुष्य हूँ
श्रमिक, कुशल श्रमिक भी कह सकते हैं
मेरी कोई कथा नहीं
कुछ घटनाएँ हैं जो मेरे स्वेद से भींगी हैं
और एक शूल जो मेरे रक्त से 
एक स्पर्श जो मेरे अंतस का वैभव है
एक स्मृति जो मेरी साँस
और एक अनुपस्थिति जो उच्छवास 
मेरी कथा सगुण मिट्टी
और निर्गुण वायु के बीच की है.

कविता पाठ और संवाद दोनो साथ-साथ चल रहे थे. एक कविता के पाठ के खत्म होते ही उसपर संवाद होने लगते थे ताकि सहज प्रतिक्रिया कि उष्मा बची रहे. विशेष रूप से बोधिसत्व, मीनू मंजरी आदि अपने विचार रखते दिखे किंतु चर्चा में लगभग सभी शामिल हुए. 

जो चर्चा हुई उसकी एक झलक भी नीचे प्रस्तुत है-

यक्षणियों पर इतिहास में बहुत अत्याचार हुए हैं ऐसा कवि ने कहा. एक महिला श्रोता ने पूछे कि क्या अत्याचार हुए हैं स्पष्ट कीजिए? इस पर बोधिसत्व ने अपने उत्तर को सुंदर शब्दचित्र में निरूपित करते हुए कहा कि यूँ समझ लीजिए कि कला के चरम विंदु पर अधिष्ठित यक्षिणी के हाथ से त्रिशूल हँटाकर 'चंवर' थमा दिया गया है. चंवर डुलाना यानी पंखा झेलना अर्थात उसका महत्व जो देवी पार्वती के समाम पूज्या का हो सकता था  वह बस पंखा झेलनेवाली दासी के रूप में सिमट कर रह गई. कवि विनय कुमार ने कहा कि  सदियों से यक्षिणी को मात्र कामुकता जाग्रत करनेवाली भोग्या का प्रतीक माना गया जबकि वह कला और आत्मिक सौंदर्य की पराकाष्ठा है.

सभी श्रोताओं ने कवि विनय कुमार के कवितापाठ की शैली को अत्यंत प्रभावकारी बताया.

बताया गया कि दीदारगंज (पटना) से प्राप्त यक्षिणी की यह पाषाण मूर्ति पहले पटना संग्रहालय की मुख्य चीजों में से थीं जिसे 2017 ई. में नवनिर्मित बिहार संग्रहालय में स्थानांतरित किया गया. मानसिक स्तर पर गहरे सम्बंध बना चुकी इस अद्भुत कलाकृति को वहाँ से स्थानांतरित होते देखना एक बहुत ही भावुक क्षण था. यद्यपि वह पहले मात्र द्वारपाल की तरह खड़ी रहती थी जिसे अब नये बिहार संग्रहालय में पूरे सम्मान और राजसी ठाठ के साथ रखा गया है. लेकिन यही एक तरह से उसका समाज के यथार्थ से कट जाना भी है. जनसामान्य के लिए उपलब्ध होने की अवस्था से एक अभिजात्यता में प्रवेश भी है जो अत्यंत दुखद है.

यक्ष जाति को वस्तुत: भय और कामना की संतान बताया गया है जबकि मौर्य काल में इसकी पूजा भी होती थी. 

और भी बहुत सारी बातें उठीं. कवि ने कबूल किया कि वे इस यक्षिणी के सौंदर्य से बुरी तरह से मोहित रहे हैं और मुड़ मुड़ कर देखने को आतुर रहे हैं. इस यक्षी को देखना अपने आप में एक उत्सव है.

अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम के समापन की घोषणा हुई.
......

प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com






















2 comments:

  1. अत्यंत रोचक रिपोर्ट। साधुवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद महोदय.

      Delete

Now, anyone can comment here having google account. // Please enter your profile name on blogger.com so that your name can be shown automatically with your comment. Otherwise you should write email ID also with your comment for identification.