हुकूमत जिसकी भी इस बार आए / हुनरमंदों की बस सरकार आए
ये कविगण हैं जो मानते ही नहीं. तमाम प्रचारत्रों के द्वारा मुद्दों से भटकाने के तमाम सामूहिक प्रयासों के बावजूद ये अब भी अंतरात्मा को पकड़ के बैठे हुए हैं. ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि चुनाव का समय बहुत अद्भुत समय होता है जब मुख्य मुद्दों से अलग हट कर अलग तरीके से कुछ अलग सोचने का समय होता है ताकि किसी को सरकार बनाने में कुछ अलग किस्म का लाभ मिल सके. जनता को तो हाशिये पर रहना ही है और वहीँ रहेगी चुनाव के दिन को छोड़कर बाक़ी हर दिन.
अभी जबकि देश में चारों और चुनाव का भूत सर चढ़ के बोल रहा है देश के कविगण इससे कैसे अछूते रह सकते हैं? दिनांक 7.4.2019 को नवी मुंबई (खारघर) स्थित आईटीएम में हर बार की तरह इस बार भी पहले रविवार को एक काव्योत्सव का आयोजन किया गया जिसमें नवी मुंबई के अनेक जाने-माने कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया. यह इस संस्था की 96 वीं कवि गोष्ठी थी.
इस गोष्ठी में पड़ी गई कसविताओं कि कुछ पंक्तियाँ निम्नवत हैं-
अशवनी 'उम्मीद' इस चुनाव के विजेताओं में हुनरमंदों को देख पा रहे हैं दिवास्वप्न की तरह -
हुकूमत जिसकी भी इस बार आए
हुनरमंदों की बस सरकार आए
अना ले लाए मंजिल तक सलामत
यूं रस्ते में कई बाजार आए
पैकर बस्तवी अचंभित हैं कि कल तक तो कोई उन्हें पूछता नहीं था ये आज क्या हो गया है-
गरीबों को मनाया जा रहा है
साथ अपने बिठाया जा रहा है
ये आखिर माजरा क्या है जो इतना
हमें मस्का लगाया जा रहा है
मज़ाहिर जाफरी मानते हैं कि मंदिर और मस्जिद हालांकि महत्वपूर्ण मुद्दा है लेकिन वे तो इंसानों के लिए हैं और हम इंसान ही अब तक कहाँ बन पायें हैं -
हिन्दू और न मुसलमान होना चाहिए
पहले तो हमको इंसान होना चाहिए
बाद में करना फैसला मंदिर व मस्ज़िद का
पहले खुदा की सच्ची संतान होना चाहिए
बिमल तिवारी नेताओं की बातों पर गौर फरमाते हैं-
मालामाल किसानों की कहानी
सुनाते फिरें वो अपनी जुबानी
हकीकत बयाँ हो ही जाती
खिलखिलाते जब छाले उन पांव में
सिराज गौरी को दोस्तों ने मगरूर कह दिया तो इन्होने क्या किया, देखिये-
खड़ा हूँ आ के ऐसे मोड़ पे में
जो है तल्ख़ी गंवारा कर लिया हूँ
कोई मगरूर अब समझे न मुझको
में खुद जो पारा पारा कर लिया हूँ
विश्वम्भर दयाल तिवारी की वाणी में एक ओज है और उनका आत्मविश्वास हिमालय की तरह अडिग है -
धुएँ में सूरज को ढंकना चाहते हैं
रुख हवाओं का बदलना चाहते हैं
मुट्ठी में तो रेत तक रुकती नहीं
वो हिमालय को मसलना चाहते हैं
जहां भारत भूषण शारदा भी हिमालय को मसलने की हर कोशिश को नाकाम करते हुए संवत्सर की बांसुरी बजा रहे हैं-
नई रश्मियाँ, नया सवेरा, में में नई उमंग रे
संवत्सर की बजी बांसुरी, पुलक उठा हर अंग रे
जहां भारत भूषण शारदा भी हिमालय को मसलने की हर कोशिश को नाकाम करते हुए संवत्सर की बांसुरी बजा रहे हैं-
नई रश्मियाँ, नया सवेरा, में में नई उमंग रे
संवत्सर की बजी बांसुरी, पुलक उठा हर अंग रे
वहीं डॉ. सतीश शुक्ल आज के हालात में वृद्धों के हालात से व्यथित हैं-
अपने घर में हम पराए हो गए
ढलती धूप के हम साये हो गए
नजर हयातपुरी की आँखों में जलवा तैर रहा है किसी के नूर का -
हम चले जायेंगे अनजान की सूरत बनकर
खतम यह नगमह हालात तो हो जाने दे
हम बसा लेंगे आंखों में जलवे उनके
यह मयस्सर हमें लम्हात तो हो जाने दे
वंदना श्रीवास्तव स्याह दिलवालों पूरी तरह से परेशान दिख रहीं हैं-
दिल जिनके स्याह हैं वो स्याह रहेंगे
रंगों में पूरा जिस्म भिंगोने के बावजूद
दिल में जो है दिल के दयारों में रहेंगे
आंखों की जद से दूर में होने के बावजूद
डॉ. चंदन अधिकारी को इस दुनिया के छल प्रपंच नहीं भाते और उनके चिंतन में अध्यात्म के दर्शन होते हैं-
मैं जगमाता और वो मेरे सपूत गण
मैं चाहूँ इन सभी का हो जाए पूर्ण प्रण
सारथी बन जाओ इनके ओ मेरे कृष्ण
कर दो इस धारा को तुम पापों से उऋण
हेमन्त दास 'हिम' का दिल रो रहा है पर वो नहीं रोयेंगे क्योंकि -
तेरी ही हिम्मत से हर कोई खड़ा
सरकार या अवाम, जांबाज सैनिकों
दिल रो रहा है मगर रोउँगा नहीं
तूने दी हँस के जान जाँबाज सैनिकों
प्रमिला शर्मा हास्य का संचार करती हैं. उनके दिल के दर्द का राज जानिये-
दिल का मेरे दर्द,
उसकी हर खनक पर बढ़ गया है
वो मेरे कंगन में
जाने क्या डिजाइन गढ़ गया है
इरफान हुनर अब किसी को परदेश भेजने से डरते हैं क्योंकि -
मुद्दतें हो गईं वो लौट के आया ही नहीं
जिसको परदेश में भेजा था कमाने के लिए
हनीफ मुहब्बत हनीफ के मुहब्बत का दीया रात भर जलता रहता है -
मुस्कुराकर जिंदगी की राह में
गर्दिशों में भी हमारा हौसला पलता रहेगा
गो बुझाने की बहुत कोशिशें की तूफानों ने
दीया को जलना था वह रात भर जलता रहेगा
कुलदीप सिंह 'दीप' एक दूकान पर ज्यादा भीड़ दिखी तो वे रुक कर देखते हैं -
झूठ की दुकान पे बहुत भीड़ है
सच को कोई भी लेता नहीं
ये क्या हो गया है आदमी को
छल के बिना वो रहता नहीं
राम स्वरुप साहू 'स्वरूप' पर यह चुनाव का नशा चढ़ गया कि सच्चाई कि उन्हें घर घर में नई सरकार दिख रही है -
तुम्हारे प्यार की दरकार है यारों
घर घर में नई सरकार है यारों
शिकायत अपनों से कराता है ये ऐसे
मानों एक दूजे में प्यार है यारों
विजय भटनागर एक बेटी के पिता की स्थित का चित्रण करते हुए कहते हैं -
मेरी चाहतें हैं इतनी
में और जीना चाहता हूँ
मासूम बिटिया है साथ
साहिल का सफीना चाहता हूँ
विक्रम सिंह अपनी प्रियतमा को बुलाने ध्वज पताका लहरा रहे हैं -
मैं एक ध्वज पताका लेकर दौड़ूंगा
तुम केसरिया दुपट्टा लेकर छत पर आ जाना
मैं दूर से ही तेरा नाम पुकारूँगा
तुम दूर से ही प्रियतम प्रियतम कह दौड़ आना
राम प्रकाश विश्वकर्मा 'विश्व' बताते हैं गीतों की सृष्टि का राज -
यह तन तो नश्वर है लेकिन
आत्मा न कभी भी नष्ट हुई
है वही अनश्वरतर जिससे
संभव गीतों की सृष्टि हुई
एस.पी. श्रीवास्तव नए वर्ष की बधाई देते हैं अपने अंदाज में -
ऐ मित्र तुम्हें शुभकामना है
गुड़ी परवा एवं संवत बीस सौ छिहत्तर की
सुखी रखो और खुशियाँ बांटों
तुम्हें बधाई है बंधु नव वर्ष की
लता तेजेश्वर रेणुका व्यंग्य कर रही हैं गाँव में हावी हो रही शहरी संस्कृति पर -
नंगे पाँव पहुँचते थे शाम को
अब गाड़ियों में पहुंचें आधी रात को
साड़ी के बदले रूप अब हजार हैं
जब से आया है शहर अपने गाँव में
प्रकाश चातुर्वेदी ने एक शराबी को नेता से बेहतर साबित कर दिया-
भूखे रहकर मैंने पी मेहनत की अपनी कमाई
कुछ घंटों के लिए ही सही पिछले यादें तो भुलाई
होश आते ही याद आये पिछले तुम्हारे वादे
रोटी, कपड़ा औ' मकान दिलाने के वे इरादे
अनिल पुरबा ने जनतंत्र की नई परिभाषा दी है जो आधुनिक युग में ज्यादा प्रासंगिक है -
तो साहेबान, मेहरबान, कदरदान
राजा का, राजा द्वारा, राजा के लिए
चुनाव होगा
सभी को चुनाव मुबारक
सेवा सदन प्रसाद दलों का समर्थन और चुनाव में विजय के हथकंडों को उजागर किया-
मैं एक बेरोजगार चराहे पे खड़े हो
चुनावी माहौल में झंडे और डंडे बेचता हूँ
संडे से लेकर मंडे तक हर रोज बेचता हूँ
कोई अगर गाँठ ढीली करे तो चुनावी हथकंडे भी बेचता हूँ
फिर अध्यक्षता कर रहे किशन तिवारी ने पहले पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षित्प्त टिपण्णी की फिर भीतर के अंधेरों को नहीं खोज पाने की कसक को बयाँ किया -
भटका तमाम उम्र खुद की तलाश में
या मैँ नहीं मिला या मेरा घर नहीं मिला
झिलमिलाती रौशनी में रहकर तमाम उम्र
भीतर के अंधेरों का हमें दर नहीं मिला.
अंत में विजय भटनागर ने आये हुए सभी कवि-कवयित्रियों का धन्यवाद ज्ञापन किया और तत्पश्चात अध्यक्ष की अनुमति से सभा विसर्जित की गई.
...
आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
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