Monday, 22 April 2019

"शब्द लिखेंगे इतिहास" का लोकार्पण खारघर चौपाल और साहित्य सफर द्वारा खारघर (नवी मुम्बई) में 21.4.2019 को सम्पन्न

बुलबुल मरे नहीं बस तड़पती रहे
"अभिव्यक्ति के बाद का मौन बहुत कुछ कहता है"
(नाटक "भागी हुई लड़कियाँ" की हिंदी समीक्षा  पढ़िए- यहाँ क्लिक कीजिए)



शेर ने बकरी से कहा - मांस खाएगी?
बकरी - मेरा बच जाए वही बहुत है.
सिर्फ दो पंक्तियों में बहुत कुछ कहनेवाली यह एक लघुकथा है जो किसी बड़े साहित्यकार ने लिखी है.

सिर्फ कथा के लघु होने से लघुकथा निर्मित नहीं होती. लघुकथा के कुछ अपने विशिष्ट गुण होते हैं. इसमें कथानक तो होता है किन्तु भूमिका और ताना-बाना बिल्कुल नहीं. सीधे-सीधे दो-चार पंक्तियों में अपनी बात यूँ कहते हुए चले जाना कि पाठक ताउम्र तड़पता रह जाय. यह तड़पाने की प्रक्रिया कोई परपीड़ा का आनंद लेने के लिए बल्कि हृदय के जागरण और परिशोधन के लिए होती है.

आर.के पब्लीकेशन, मुम्बई से प्रकाशित "शब्द लिखेंगे इतिहास" का लोकार्पण 21.4.2019 को रामसेठ पब्लिक स्कूल, खारघर (नवी मुम्बई) में अनेक विद्वान और प्रसिद्ध साहित्यकारों द्वारा किया गया. यह  एक नवीन लघुकथा संग्रह है जिसमें भारत के छब्बीस प्रतिबद्ध लघुकथाकारों ने अपनी रचनाएँ दी हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता की डॉ. सतीश शुक्ल ने और  मुख्य अतिथि थे महाराष्ट्र राज्य अकादमी से पुरस्कृत साहित्यकार डॉ रमेश यादव. कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ अनंत श्रीमाली ने किया. डॉ मनोहर अभय, समाज सेविका एवं लेखिका अलका पांडे, विजय भटनागर, अरविंद राही, डिंपल गौड़ 'अनन्या' विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे. नवी मुम्बई के इतिहास में साझा लघुकथा संकलन का यह पहला प्रयास है. लोकार्पित पुस्तक के सम्पादक सेवा सदन प्रसद और उप-सम्पादक डिम्पल गौड़ 'अनन्या' हैं.

 वक्ताओं में  में चंद्रिका व्यास, विजय भटनागर, रामप्रकाश विश्वकर्मा , डिंपल गौड़ , अलका पांडेय, नागपुर से पधारी कवयित्री हेमलता मानवी , विश्वम्भर दयाल तिवारी , अश्विनी मल्होत्रा 'उम्मीद' , प्रकाशक राम कुमार थे. नवी मुम्बई, मुम्बई के अलावे अन्य अनेक शहरों के साहित्यकारों ने इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज की. इस अवसर पर अनेक साहित्यकारों को उनके साहित्यिक कार्यों हेतु सम्मानित भी किया गया जिनमें एक बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के हेमन्त दास 'हिम' भी थे..

आरम्भ में अशवनी 'उम्मीद' ने आये हुए अतिथियों का स्वागत किया. फिर विश्वम्भर दयाल पाण्डेय ने एक-एक कर कुछ विशिष्ट साहित्यकारों को मंच पर बुलाया. तत्पश्चात नन्ही नर्तकी कशिश का राधा-कृष्ण प्रसंग पर नृत्य हुआ.  फिर आगे की कार्यवाही हेतु संचालन का दायित्व संभाला व्यंग्यकार अनंत श्रीमाली ने.

"बजाय सीने के आँखों में दिल धड़कता है
ये इंतजार के लम्हे अजीब होते हैं"
अशवनी 'उम्मीद' ने यह शेर पढ़ते हुए लघुकथा संकलन प्रकाशन के इस सफल प्रयास को भगीरथ प्रयास बताया. आज के युग में जब एक लेखक को खुद अपनी ही पुस्तक को प्रकाशित करवाने में अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है वहाँ 26 लघुकथाकारोंं से रचनओं को प्राप्त कर संकलन निकालना कितना कठिन हुआ होगा सहज कल्पना की जा सकती है. लेकिन यदि संकल्प शक्ति हो तो कुछ भी संभव है.

अलका पाण्डेय ने लघुकथा को 'लघु' और 'कथा' से इतर जो इन दोनों शब्दों के बीच में स्थान है वह वस्तु कहा. अर्थात जो बहुत थोड़ा कह कर बहुत कुछ सोचने को छोड़ जाय वह लघुकथा है. इसमें अभिव्यक्ति के बाद का मौन बहुत कुछ कहता है.

नागपुर से आई हेमलता मानवी ने लघुकथा को समस्त भाव, विभाव और संभाव का समुच्चय बताया.  मन के भीतर के मंदिर और मन के भीतर के श्मशान का अंतर्द्वंद्व है लघुकथा.  वेद, वेदना और संवेदना तीनों मिलकर इस विधा में जनहित का संवाहक बन जाती है. 

युवा महिला लघुकथाकार नूर शब्बा साइनी ने कहा कि उन्हें इस संग्रह में लिखने का मौका मिला और अब उनमें यह आत्मविश्वास जागृत हो गया है कि वो  बहुत कुछ गद्य भी लिख सकती हैं.

बाहर से आईं डिम्पल गौड़ 'अनन्या' जो इस संग्रह की उप-सम्पादक भी हैं, ने सम्पादक को उन पर भरोसा करने हेतु धन्यवाद दिया और कहा कि पूरे जतन से उन्होंने अपना काम किया है. अब यह पाठकों पर हैं कि वे संग्रह को पढ़ कर अपना फैसला दें.  अपनी पुत्री अक्षरा के बनाये चित्रर को कवर चित्र बनाने हेतु उन्होंने प्रकाशक के प्रति आभार व्यक्त किया.

राम प्रकाश विश्वकर्मा ने अकबर-बीरबल के दृष्टांत को सुनाया कि एक बार जब बीरबल को दरबार में आने में देर हो गई तो अकबर उस पर बहुत बिगड़ा. शहंशाह ने पूछा कि देर क्यों हुई? बीरबल ने कहा- जहाँपनाह, मैं आपके साम्राज्य चलाने के काम से भी बड़े काम में लगा था. अकबर ने कहा- कौन सा काम? बीरबल ने कहा- अपने बच्चे को संभाल रहा था. अकबर - क्या मजाक करते हो? बीरबल- एक दिन के लिए आप बीरबल बन जाइये और मैं बन जाता हूँ बच्चा. अकबर इस रोल-प्ले (चरित्र का अभिनय) के लिए तैयार हुआ तो बीरबल ने बच्चे के किरदार में अकबर को इतना परेशान किया कि अकबर ने बच्चे को सम्भालने के काम से तौबा कर ली. बीरबल- देखा महाराज, आप इतने बड़े साम्राज्य को तो संभाल सकते हैं पर एक बच्चे को नहीं संभाल सकते.

अर्थात जो लघु होता है उसे बरतना बड़ों के बरतने की तुलना में कहीं ज्यादा कठिन होता है. वही बात लघुकथा के साथ भी है. इसके लिए यह उचित रहेगा कि -"देखन में छोटन लगे पर घाव करे गम्भीर".

विश्वम्भर दयाल पाण्डेय ने इस लघुकथा संग्रह में लघुकथा लिखने का  अपना पहला प्रयास बताया. लेकिन इसमें छ्प जाने के बाद उनका मन अब और ढेर सारी लघुकथा लिखने को मचलने लगा है.

बीच-बीच में संचालक अनंत श्रीमाली अपनी संगत और धारदार चुटकियाँ भी लेते जा रहे थे. उन्होंने कहा कि लघुकथाकार  'लघु' नहीं होता. वह अत्यंत प्रबुद्ध साहित्यकार होता है और आनेवाले समय में उसकी सत्ता को और भी सम्मान मिलेगा. लघुकथा फिल्मों के बीच एक माइक्रोफिल्म की तरह होती है और काव्य संसार की हाइकू शैली की तरह. लघुकथा को अर्जुन नहीं कर्ण होना चाहिए. अर्जुन को नाच रही मछली की आँख को बेधने में सफल रहा था पर कर्ण एक ही समय में दो दिशाओं में तीर छोड़कर एक ही लक्ष्य पर चोट करता था..

विजय भटनागर ने कहा कि लघुकथा विष्णु के वामन अवतार की तरह है जिसने तीन कदमों में पूरी धरती को माप लिया था. हालाँकि मैं पहले सिर्फ शायरी करता था पर इस संग्रह हेतु लघुकथा लिखने के बाद अब तक 86 लघुकथाएँ लिख चुका हूँ.  सेवा सदन जी को मैंने ही लघुकथा सम्राट कहना शुरू किया जैसे मनोहर अभय जी को दोहा सम्राट कहने की शुरुआत मैंने ही की थी.

डॉ. मनोहर अभय ने कहा कि पहले लघुकथा को बोधकथा कहते थे. सतीश दूबे इंदौर में रहनेवाले थे और लघुकथा के बहुत बड़े पारखी हुआ करते थे. उन्होंने मेरी लघुकथाओं की उस दौर में काफी तारीफ की थी. लघुकथा लेखक को ऐसा व्याध बनना चाहिए जिसका तीर सीधे बुलबुल यानी पाठक को जाकर लगे कुछ इस तरह कि वह मरे नहीं पर छटपटाता रहे.  इतिहास गवाह रहा है कि वंचक चाहता है कि वंचित बना रहे लेकिन एक लघुकथा लेखक चाहता है कि वंचित वंचक को समाप्त कर दे. 

उन्होंने एक दोहा भी पढ़ा -
"दुखिया थी, मिलने गई जनसेवक के पास 
आँख फेरकर चल दिए करने जन-उद्धार"
लघुकथा को भी इसी तरह पाठक को सोच में डाल देनेवाला गुण होना चाहिए.

अरबिंद राही ने कहा कि लघुकथा को आप काव्य के मुक्तक सा कह सकते हैं जो दो पंक्तियों में सारी बात कह जाते हैं. नवी मुम्बई में साहित्य उन खराबियों का प्रवेश नहीं हुआ है जिनका दिल्ली में हो चुका है. आशा करता हूँ कि नवी मुम्बई कभी दिल्ली नहीं बनेगा.

रमेश यादव ने कहा कि यह सही है कि लघुकथा को आज भी पुरस्कार हेतु अलग विधा के रूप में मान्यता नहीं मिली है. लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. लघुकथा अपने अनन्य गुणों के कारण एक अलग विधा है और रहेगी. महाराष्ट्र सरकार में इसे विधा के रूप में मान्यता देने की कोशिश की जानी चाहिए.

उन्होंने एक लघुकथा भी सुनाई-
स्कूल  में दोपहर का समय. बाहर कुत्ते लार टपकाते बैठे हैं. 
एक ग्रामीण एक शिक्षक से - मास्टर जी, आहार योजना कैसी चल रही है?
शिक्षक- जब से योजना शुरु हुई है तब से अनेक कुत्तों ने लार टपकाना शुरु कर दिया है.
यह सुनकर बाहर में जो कुत्ते बैठे थे उठकर चल दिए.

फिर आर. के. पब्लीकेशन के राम कुमार जो पुस्तक के प्रकाशक भी हैं, ने अपना वक्तव्य रखा. उन्होंने कहा कि वे मूलत: एक पाठक हैं जो प्रकाशक बन गए हैं. करीब करीब सारी पत्रिकाएँ उनके पास आती हैं और उनमें कुछ और पढें या नहीं पढें वे उनकी लघुकथाओं को अवश्य पढ़ते हैं. लघुकथाओं को अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस संग्रह की कुछ लघुकथाएँ और छोटी रखी जा सकती थीं. छोटी भी लघुकथा हो तो एक पृष्ठ का स्थान उसे मिलना चाहिए क्योंकि वह अपने आप में सम्पूर्ण होती है. मंटो की कहानियों के अंतिम पैरा को यदि आप पढेंगे तो उनमें आपको पूरी कहानी का सार दिख जाएगा और मेरी दृष्टि में उनका अंतिम पैरा अपने आप में एक लघुकथा होता है.

पुस्तक के सम्पादक सेवा सदन प्रसाद ने कहा कि इस पुस्तक में उन्होंने कुछ नहीं किया क्योंकि सारा काम तो उप-सम्पादक, प्रकाशक और रचनाकारों ने किया.सब की सहायता से इसे प्रकाशित करवाकर मैंने सिर्फ अपना जुनून पूरा किया.

उनके बाद चंद्रिका व्यास का वक्तव्य हुआ. उन्होंने पुस्तक और लघुकथा विधा पर अपने विचार व्यक्त किए और कुछ ऐसी बातें बताईं जो अन्य वक्ताओं ने अब तक नहीं कही थी.

फिर समारोह के अध्यक्ष डॉ सतीश शुक्ल का भाषण हुआ जिसमें उन्होंने पूर्व वक्ताओं के कथनों पर संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए लघुकथा और पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला.

इस कार्यक्रम में साहित्यकार सत्य प्रकाश श्रीवास्तव भी उपस्थित थे.

अंत में अध्यक्ष की अनुमति से सभा विसर्जित की गई. इस तरह नवी मुम्बई के इतिहास में लघुकथा के इतिहास में प्रथम साझा संकलन के लोकार्पण को लेकर यह दिवस सदैव के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया. 
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आलेख-  हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
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