Thursday, 17 October 2019

"अप-डाउन में फँसी ज़िंदगी" के कवि दिलीप कुमार के पटना में 12.10.2019 को हुए एकल काव्य पाठ की साहित्यिक रपट

इस्पाती चौखट पर संवेदनाओं की दस्तक

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अधिकारी को कवि होना पसंद है या फिर कवि को अधिकारी होना?"- यह सवाल तब खड़ा हो उठता है जब रेलअधिकारी कवि दिलीप कुमार अपनी नई काव्य पुस्तक" अप-डाउन में फंसी जिंदगी" में बतौर कवि लिखते हैं कि - 
इस्पाती चौखट और कविता के बीच के इस द्वन्द्व में 
अधिकारी इस्पाती चौखट 
और कवि
कविता के पक्ष में खड़ा है।
अब अधिकारी और कवि में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है, इसका फैसला आप पर छोड़ता हूं।"

सच भी यही है कि कविता अपने नैतिक मूल्यों के तहत ही समय-सापेक्ष होती है। कवि कुछ देर के लिए दिग्भ्रमित भी हो सकता है किंतु कविता फिर भी तटस्थ होती है।

कवि की कविताएं उनके भीतर की संवेदनाओं को  अभिव्यक्त करने में पूरी तरह सक्षम दिख रही थी। उनकी कविताओं से रू-बरू होने का पटना के अनेक साहित्यकारों का पहला अवसर था। मौका था पटना जंक्शन के सभागार में पूर्व मध्य रेल, राजभाषा विभाग की ओर से आयोजित रेलवे अधिकारी व कवि  श्री दिलीप कुमार के एकल काव्य पाठ का।

अत्यंत आत्मीय महौल में संगोष्ठी का आरंभ स्टेशन निदेशक डां निवेश कुमार के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने दिलीप कुमार के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए  कहा  कि - "एक रेलवे अधिकारी के साथ एक कवि भी होना बड़ी बात है। उनकी कविताओं में रेलकर्मियों की जीती-जागती तस्वीर देखी जा सकती है।"

संगोष्ठी का संचालन करते हुए रेल राजभाषा विभाग से ही जुड़े हुए चर्चित कवि राजकिशोर राजन ने कहा कि-"जीवन की उन पटरियों पर चलती हैं दिलीप जी की कविताएँ, जो हमारे इस्पाती चौखट पर दस्तक दे रही होती हैं। सच यह भी है कि कवि धूमिल के अनुसार "शब्दों में आदमी होने की तमीज और कटघरे में खड़े किसी निर्दोष आदमी का हलफनामा है कविता।" 

कवि दिलीप कुमार ने अपने काव्य संग्रह "अप-डाउन में फंसी जिंदगी" से जुड़ी हुई चालीस से अधिक कविताओं का पाठ बड़ी ही तन्मयता के साथ किया ।

 कविताओं में विविध रंग देखने को मिले। रेलकर्मियों की त्रासदी भरे जीवन से लेकर सामाजिक विसंगतियों तक का सजीव चित्रण। बल्कि यूँ कह सकते हैं कि उससे भी अधिक संदर्भों को उकेरने का प्रयास किया 

अपनी एक कविता के माध्यम से जब वे पटना में हुए जल जमाव पर तीखा टिप्पणी करते हुए कहते हैं -
"आंखों में पानी भरा कैसे? 
शहर में पानी भरा कैसे? नाले को पाट दिया 
यह किसका बयान है? 
चौराहे पर कब्जा 
किसने खोली दुकान है ?
कागज पर करे उगाही 
वह किसी बाबू का स्साला है!! 
इधर मंत्री जी परेशान 
भैय्या यह कैसा घोटाला है? 

पूरी कविता श्रोताओं की भरपूर तालियां बटोरती रही। रचना समय के संदर्भ से जुड़ी होने के कारण प्रासंगिक बन गई जब दिलीप कुमार ने पटना के जल- जमाव को  देखते हुए एक साथ कई कविताओं का पाठ किया।-
"कभी आंखों में था भरा पानी! 
तभी आज शहर में है भरा पानी! 
यह सच है 
शहर है, पानी -पानी!,"

कवि दिलीप कुमार ने इस्पाती चौखट की कविताओं से भी मनमुग्ध कर दिया, जब उन्होंने रेल ड्राइवर पर कहा-"हमने देखा, जब भी देखा, लोहा देखा, 
लोहा जैसे जलते देखा, गलते देखा 
समय की रेस लगाते देखा 
दूसरे को मंजिल तक पहुंचाते देखा। 
अपनी मंजिल की खैर नहीं 
सबको मंजिल पर पहुंचाते देखा !"

रेल के गैंगमैन पर, पढीं गई उनकी कविता का पैनापन देखिए -
"भरी दुपहरी में/ दहकता हुआ सूरज समा गया है रेल की पटरियों में! 
 पैरों में पड़ गए हैं छाले/ चौंधिया गई हैं आंखें/  फिर भी - 
पटरियों की देखरेख का क्रम जारी है  
उसका समर्पण / सूरज की तपिश पर भारी है !"

उन्होंने, श्रोताओं की मांग पर, अपनी कुछ प्रेम कविताओं का भी पाठ किया -
"जरूरी नहीं कि /जिससे हम प्यार करें 
लगातार उसका इजहार करें /  संवेदनाओं के तार झंकृत कर 
हम सुन सकते हैं, जीवन संगीत! "

कवि दिलीप कुमार ने बिहार के लोक जीवन को भी अपनी कविताओं में समेटने का, सफल प्रयास किया -
"दीपावली के दिन /अपने घर- आंगन में दीप जलाया/ धरती से आसमान तक 
अंधेरे को मार भगाया / फिर अपने मन में एक दीप क्यों नहीं जलाते? 
/ मन के अंधेरे को / दूर क्यों नहीं भगाते?"

रावण के बहाने, अमानुषिक प्रवृत्ति वाले लोगों पर व्यंग्य तीर चलाते हुए कवि दिलीप कुमार ने कविता सुनाई-
 धू - धू कर /जल गया रावण का पुतला 
शहर के बीच मैदान में /लोगों ने देखा तमाशा /बजाई तालियां 
और लौट गए अपने-अपने घर को! 
मन की बुराई, मन में ही समेटे! "

 उन्होंने राजनीति के तमाशा को भी अपनी कविता का विषय बनाया -
"अम्मा बताती है /यह सड़क, दिल्ली को जाती है 
दिल्ली जाने वाली सड़क पर हम कहां हैं? 
हमारा गांव कहां है.? 
दिल्ली जाने वाली सड़क पर पड़ी 
किस बोरी के /किस फाइल में 
वे दबे पड़े हैं ? /बता नहीं पाती हैं 
अम्मा खामोश रह जाती हैं !"      

कवि दिलीप कुमार ने नारी की भावनाओं को भी अपनी कविताओं से अछूता नहीं रखा। इसलिए ऐसी कविताओं को महिला श्रोताओं ने खूब पसंद किया - 
"औरत / जो दिन भर खाना पकाती है  
 और रात में, सबसे अंत में खाती है! / वही औरत जो /अधूरेपन में जीती है 
लेकिन पूर्णता में देती है / सभी औरतों की
एक जैसी थाती है /नाम दीप का होता है  
 पर जलती तो बाती है.!"

इस एकल काव्य पाठ में कवि दिलीप कुमार द्वारा पढ़ी गई कविताओं पर अपना विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ कवयित्री भावना शेखर ने कहा कि -"दिलीप जी की कविताएँ दिल तक उतर जाने में कामयाब है। साहित्य चातुर्य नहीं होता। उनकी कविताओं में सादगी और सच्चाई है। जंजीरों में जकड़े हुए समाजिक व्यवस्था पर चोट करती है  दिलीप जी की कविताएँ।"

कवि मुकेश प्रत्यक्ष ने विस्तार से उनकी कविताओं पर व्याख्या करते हुए कहा कि - "कविता सुनना और उस पर त्वरित समीक्षा करना आसान काम नहीं है। फिर भी इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि इस्पाती चौखट में रहने के बावजूद उनकी कविताओं में मानवीय संवेदना है।"

जबकि वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार ध्रुव कुमार ने कहा कि - "दिलीप जी  की कविताओं में विविधता है जो हमें बोर नहीं होने देती। लेकिन, आयोजकों से इतना जरूर कहूंगा कि पटना जंक्शन के इस सभागार में सिर्फ अधिकारी ही नहीं रेलकर्मी साहित्यकारों को भी जगह मिलनी चाहिए।"

वरिष्ठ शायर कासिम खुर्शीद ने कहा कि- "रुढियों का विरोध करने और नए सामाजिक रीतियों का समर्थन करने वाली दिलीप जी की कविताएँ स्वागत योग्य है।

इनके अतिरिक्त समीर परिमल, वीरेंद्र यादव, प्रणय प्रियंवद, कुमार रजत, मधुरेश नारायण आदि साहित्यकारों की भी दमदार उपस्थिति रही। बड़ी संख्या में रेलकर्मियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की।

संगोष्ठी  के अंत में सभी अतिथियों, साहित्यकारों और श्रोताओं को धन्यवाद देने के क्रम में सिद्धेश्वर कवि दिलीप कुमार की कविताओं पर टिप्पणी देते हुए कहा कि - "मुक्तछंद कविता लिखना छंद में लिखी  जा रही कविताओं से आसान काम नहीं है। कविता को आसान लेखन समझने वाले कवियों ने ही कविता को पाठकों से दूर कर रखा है। कविता के नाम पर गद्यांश परोसने  वाले रचनाकारों ने समकालीन कविता का बहुत अहित किया है। कविता में छंद भले हो न हो, कम से कम उसमें काव्य बिंब तो होना ही चाहिए। काव्यात्मकता का अहसास होना ही जीवंत कविता होने की पहचान है। 

इस रपट का लेखक अचंभित है कि दिलीप कुमार ने अपने पहली काव्य पुस्तक में ही ढेर सारी सार्थक कविताओं का समावेश किया है। अपनी कविताओं की प्रखर अभिव्यक्ति ने दिलीप कुमार को एक नंई पहचान दी है। कविता के खतरे से वे वाकिफ दिखता है इनका कवि। उनकी कविताओं में जीवंतता भी है।

यह कार्यक्रम पूर्व मध्य रेल के राजभाषा विभाग द्वारा पटना जंक्शन परिसर में स्थित रेल सभागार में 12.10.2019 को आयोजित हुआ
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रपट प्रस्तुति -  सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

















3 comments:

  1. विस्तृत व सुंदर रिपोर्ट! 🌹

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    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय.

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