Monday 7 October 2019

आईटीएम काव्योत्सव द्वारा गोष्ठी का आयोजन 6.10.2019 को खारघर (नवी मुम्बई) में सम्पन्न

मुझ पे एहसान कर दोस्ती छोड़ दे / या तो दिल साफ कर दुश्मनी छोड़ दे

(Small News (Cultural) - Puja in Bengaluru  / हर 12 घंटों के बाद जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)



कविता तो यूँ ही साहित्य का कोमलतम रूप है और उसमें भी यदि छंद और लय जुड़ जाए तो क्या कहने. हिंदी की उत्तम अभिरूचि वाले कविगण और ऊर्दू की नज़ाकत का जल्वा बिखेरनेवाले उम्दा शायर जहाँ पिछले आठ से भी अधिक वर्षों से इकट्ठे होते आ रहे हैं उसका नाम है आईटीएम काव्योत्सव. विजय भटनागर के संयोजन में चलनेवाली इस मासिक गोष्ठी में नवी मुम्बई और मुम्बई के विभिन्न क्षेत्रों के कविगण जमा होते हैं और बड़ी संख्या में होने के बावजूद भी पूर्णत: व्यवस्थित तरीके से कवि गोष्ठी का संचालन होता है.

खारघर (नवी मुम्बई) स्थित प्रसिद्ध प्रबंधन संस्थान आईटीएम में दिनांक 6.10.2019 को आईटीएम काव्योत्सव का पुन: आयोजन हुआ. इस बार अध्यक्ष प्रसिद्ध ग़ज़लगो डॉ. किशन तिवारी थे और कुशल संचालन किया डॉ.  हरिदत्त गौतम ने. 

पढ़ी गई रचनाओं की झलकी नीचे प्रस्तुत है.

अनिल पुरबा  ने खुशियों की दस्तक से शुभारम्भ किया -
खुशियों की दस्तक हो तो कैसी हो / सूरजमुखी के फूलों जैसी हो
सूरज की उगती किरणों जैसी / इंद्रधनुष के रंगों जैसी हो

विजय भटनागर को दशहरे में पुराने दिन याद आये -
सब के सब ग़म बाँट लेते थे, आपस में लोग
गली मुहल्ले घर घर में, खुशियाँ ही खुशियाँ थीं

हेमन्त दास 'हिम' ने वृद्धों की संतान द्वारा उपेक्षा का चित्र खींचा -
सिनेमाहॉल में उसकी इस बेहूदी सी नींद पर मैं चिढ़ रही थी, ऐ बच्ची!
पर मेरी चिढ़ में भी एक सुकून था
कि वह कम-से-कम तीन घंटे तो सो पाया था

प्रकाश चंद्र झा ने अपने व्यंग्यवाण से सब को बेध डाला -
स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़ाते / कोचिंग में ज्ञान बरसाते हैं
सरकारी डॉक्टर निजी क्लीनिक से / पैसा खूब कमाते हैं

सेवा सदन प्रसाद ने व्यंग्य करने हेतु भाषासास्त्री का वेश धरा -
कंज्यूमर वह जिसका आर्थिक बोझा तले / जिसका निकल जाये कचूमर
और कष्ट से जो मर जाये / वही होता है कस्टमर

दिलीप ठक्कर 'दिलदार' सब की साँसों में बस गए और जुदा होने को तैयार नहीं थे -
अपनी साँसों में मुझको बसा लीजिए / मैं हूँ खुशबू मुझे ना जुदा कीजिए
इश्क में सब गवारा है 'दिलदार' को / चाहे गम हो खुशी हो, अता कीजिए

डॉ. चंदन अधिकारी ने माँ की उंगलियों को अपने सर पर फिरने सा अनुभव किया -
सिर पे सरकती माँ की उंगलियाँ
करती हैं उनके मन की चुगलियाँ

दीपाली सक्सेना ने 150 संदेश पाकर खुद को आइने में क्यों देखा? जानिये-
नाग पंचमी पर 150 संदेश मिले / तो मैंने आइने में जाकर देखा
कि कहीं लोग नाग की जगह / मुझे तो नहीं बधाई दे रहे हैं

भारत भूषण शारदा सब की मुस्कान बने -
हँसता रहूँ सदा फूलों सम
हो जाऊँ सब की मुस्कान

रजनी साहू प्रेम का क्रंदन करती दिखीं -
प्राणों का शिथिल स्पंदन
तुम आ जाओ सुन मेरा क्रंदन

दिलशाद शिद्दीकी का चिराग जलते ही तेज हवाएँ चलने लगती हैं -
रुक रुक के इक जमाने से चलती हैं हवाएँ
जलना भी इन चरागों का आसान तो न था

विश्वम्भर दयाल तिवारी मुग्ध थे देश की सुंदर छवि पर -
कलम तू लिखती जा अविराम
मेरे भारत की छवि अभिराम

विमल तिवारी का प्रीतिपग थमने का नाम नहीं लेता -
कौन कहाता है धरा पर प्रीतिपग थमने लगे
शांत शीतल मन रखें सुविचार पलने लगे

समर ख्वाहिश 'जुगाड' लोगों के साथ होने पर परेशान दिखे -
आम की पेटी चुरा कर मैं जो भागा एक बार
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

नजर हयात का दोस्तों से दोस्ती छोड़ देने का क्यों विनम्र निवेदन था -
मुझपे एहसान कर दोस्ती छोड़ दे / या तो दिल साफ कर दुश्मनी छोड़ दे
खुद अंधेरों में रहता है वो जानेमन / मुझसे कहता है तू रौशनी छोड़ दे

हुनर रसूलपुरी ने पैसे की लाठी से को बहुत ताकतवर बताया -
कोई मुफलिस किस तरह से न्याय पाएगा
जहाँ पैसे की लाठी से अदालत टूट जाती है

त्रिलोचन सिंह अरोड़ा ने एक उधार मांगा, देंगे? -
चले आते हैं गम गमों को आना ही है / एक एक गम को खुशी का उपहार दो
कश्ती को आज सागर में उतार दो / थोड़ा सा प्यार मुझे भी उधार दो

कुलदीप सिंह 'दीप' ने आज के आदमी की फितरत बताई -
क्या हो गया है आज आदमी को?
छल के बिना वो रहता नहीं.

वंदना श्रीवास्तव ने फूलों को माली पर ही शक करते पाया -
सपनों से नयना डरते हैं / माली पर शक है फूलों को
बरगद की उम्र मिली कैसे / नागफनी और बबूलों को

जे. पी. सुल्तानपुरी किसी की अदाओं पर मुग्ध दिखे -
हमें तो हर अदा उनकी अच्छी लगती है
क्या बात हमारी भी कभी भाए कोई

हनीफ मोहम्मद ने दौलत और शोहरत की बात की -
ये दौलत ये शोहरत 'हनीफ' आदमी को
है मिलती मगर पास रहती नहीं है

इरफान हुनर ने दी कुछ नेक सलाहें-
क्या भला कीजिए क्या बुरा कीजिए / बस मुहब्बत से सबसे मिला कीजिए
चाहे जितनी मुसीबत का हो सामना / राहे-हक पर हमेशा चला कीजिए

विक्रम सिंह अपनी माशूका को कभी छोड़नेवाले नहीं थे-
तेरे चेहरे की बनावट बदलने लगी तो
तेरे चेहरे की झुर्रियों में भी तुझे देखा करेंगे

भट्टर ने देश की गौरव गाथा सुनाई -
भारत देश महान
हमको अपने सपनोंं वाला / प्यारा हिन्दुस्तान चाहिए

सिराज गौरी बुरे वकत स गुजरने की बात की-
कौन आएगा बुरे वक्त की तस्वीर हूँ मैं / फिर भी मैं तहज़ीबे-एहसान हुआ जाता हूँ

अभिलाज ढूँढ रहे थे एक जमानतदार को -
हो गई है खत्म मेरी कैद की मुहलतें
छोड़ दो जान मुझे अब जमानत कर दो

ओम प्रकाश पाण्डेय अपने बिखरे पलों को समेटने में लगे थे  -
आओ एक बार फिर से मुहब्बत करते हैं
आओ फिर से वो बिखरे हुए तिनके समेटते हैं

डॉ. हरिदत्त गौतम ने मधुमास का सौंदर्य दिखाया-
प्यास ऐसी है मधुमास में लगाई
गेहूँ सरसों  गले मिलते रहे / रेत में चांदनी खिलखिलाने लगी

अंत में गोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. किशन तिवारी ने समसामयिक ग़ज़ल सुनाई -
जंग में हो गया वही शामिल / कल तक था बचाव में भैया
बेच डाले उसूल हमने भी / आज मंडी के भाव में भैया.

अंत में विजय भटनागर द्वारा धन्यवाद ज्ञापन हुआ. कार्यक्रम के मध्य में मुम्ब्रा और अन्य क्षेत्रों से आये कुछ शायरों ने काव्योत्सव के सदस्यों को स्मृतिपत्र प्रदान कर अपनी बधाइयाँ दी.
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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - जिनकी पंक्तियाँ अधूरी हैं वो पूरी पंक्ति।दे सकते है।











































4 comments:

  1. किया बात है बहुत सुन्दर प्रस्तुति के परस तूती बेजोड़ इंडिया ।।धन्यवाद आदरणीय हिम जी

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    1. धन्यवाद महोदय. blogger.com में login करके यहाँ कमेंट करने से उसके प्रोफाइल वाला फोटो और आपका नाम दोनों दिखेंगे.

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  2. वाहः सुंदर रिपोर्ट।

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    1. टिप्पणी हेतु धन्यवाद, महोदय.

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