Sunday 17 November 2019

बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी का मुशायरा पटना के सीआरडी पुस्तक मेले में दि. 16.11.2019 को संपन्न

मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)




चाहे इजहार करें न करें जवाँ होते ही लग जाता है इश्क का रोग जो शख्स के वजूद को पूरी तरह अपने आगोश में ले लेता है और फिर ताउम्र सारी बलाएँ एक तरफ और इश्क का खुमार एक तरफ | और जनाब अपनी महबूबा से इश्क कोई जुबाँ की मुहताज नहीं होती - उसके लिए चाहिए होता है मिजाज़!

उर्दू का स्पर्श ही आपकी जुबान को दिलकश बना देता है | पुस्तक मेला में गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश करते हुए उर्दू – हिंदी के शाइरों-कवियों को एक मंच पर इकठ्ठा करने के लिए बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना के चेयरपर्सन और मशहूर शाइर रमेश कँवल के प्रति हार्दिक आभार और तहे – दिल से शुक्रिया अदा किया दिया |

25 वें पटना पुस्तक मेला में 16 नवम्बर  का दिन शे’रो-शाइरी से शौक़ रखने वाले लोगों के लिए बेहद ख़ास रहा | बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना द्वारा आयोजित मुशायरे का उदघाटन जनाब इम्तियाज़ अहमद करीमी, निदेशक ,राजभाषा उर्दू ,बिहार सरकार ने शाइराना अंदाज़ में किया | उन्होंने कहा शरद का स्वागत अगर देश के नामी गरामी शाइरों की मौजदगी में उर्दू हिंदी की बेहतरीन शाइरी सुनने - सुनाने से हो तो उसकी यादें बहुत दिनों तक ज़हनों-दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती रहेंगी | उन्होंने पुस्तक मेला के 25 वें आयोजन (सिल्वर जुबली) को पटना के साहित्य अनुरागियों के पुस्तक प्रेम का उत्कृष्ट प्रमाण बताया | उन्होंने पुस्तक ख़रीद कर पढने का आह्वान किया और कहा कि उर्दू और हिंदी सगी बहनें हैं | 

मशहूर शाइर जनाब नाशाद औरंगाबादी, मुख्य अतिथि और अपनी मखमली आवाज़ के लिए मशहूर ग़ज़ल गायक डा. शंकर सागर ,उपाध्यक्ष बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन, विशिष्ट अतिथि ने प्यारी प्यारी ग़ज़लें पेश कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया |

शकील सहसरामी ने मुशायरे की निज़ामत की | उन्होंने मंच सञ्चालन का  आगाज़ कुछ इस अंदाज़ में  किया :
हथेलियां भी बङी खुश अदाएं होती हैं
जुड़ें तो पूजा खुलें तो दुआएं होती हैं 

मुशायरे का आगाज़ अरुण कुमार आर्य के हम्द : हुस्नो-जमाल बख्शीसो-ने’मत ख़ुदा की है और आराधना प्रसाद के स्वर में निराला की सरस्वती वंदना “ वर दे वीणा वादिनी वर दे” से हुआ |

घनश्याम को किसी की आँखों की नादानी से परेशानी तो हुई पर जीना आसान हो गया  -
तेरी आंखों की नादानी न होती
मुझे इतनी परेशानी न होती
हमारी ज़िन्दगी में तुम न होते
तो जीने में भी आसानी न होती

समीर परिमल ने आँखों में पानी नहीं बचाने से हो रही तबाही का मंज़र रखा -
जो न करना था कर गया पानी
देखो हद से गुज़र गया पानी
जब जगह मिल सकी न आँखों में
हर गली घर में भर गया पानी

बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी ,पटना के चेयरपर्सन रमेश कँवल रूमानगी से लबरेज एक सदाबहार शायर हैं जो माशूका के दिए सारे ग़मों को दिल से 'डिलीट' कर चुके हैं-  
मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ
हिना की रोशन हथेलियों से नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ
डिलीट कर दूंगा उसके ग़म को मैं दिल के अब लैप टॉप से ही
ख़ुशी के जितने मिले हैं 'डाटा' उन्हें मैं दिलबर के नाम लिख दूँ

मुशायरे में ख़ातून शाइरात की शिरकत भी चर्चित रही | उनकी मीठी आवाज में बयाँ शायरी की नज़ाक़त से  सामईन प्रभावित होते दिखे |

पूनम सिन्हा श्रेयसी ने क़ुबूल किया कि किन्हीं की मर्मस्पर्शी बातों से वो पिघल चुकी हैं   -
मेरी मुझ से ही ठनने लगी
बात बिगड़ी थी बनने लगी
तेरे शब्दों ने मन को छुआ
और मैं भी पिघलने लगी 

शाज़िया नाज़ को किसी के बदलते तेवर नहीं समझ में आ रहे -
क्या हुआ क्या कहा कि ख़फ़ा हो गया
सोचती हूं तुझे आज क्या हो गया 

वहीं तलत परवीन हैं जो सारे सितम को सहती जाती हैं -
तेरे ज़ुल्म ओ सितम का हर चेहरा
आंसुओं ने मचल के देखा है 

आराधना प्रसाद को इश्क एक मीठा खंजर सा लग रहा है -
दिल के रग रग में उतरता हुआ खंजर देखूं
जो किसी ने भी न देखा है वो मंज़र देखूं 

डा.शमा नास्मीन ने तमाम तकलीफों में भी अपने मनोबल के बने रहने का राज आज खोल दिया -
जीती हूँ सर उठा के हज़ारों के बीच में
अहले कलम की कम कभी इज्ज़त नहीं होती 

डॉ आरती कुमारी वो शायरा हैं कभी खौफज़दा नहीं होतीं -
इन अंधेरों से कोई खौफ़ नहीं है मुझको
मैं समझती हूँ यहाँ नूर की बारिश होगी 

डा.अर्चना त्रिपाठी अपने संकोच को नहीं तोड़ पा रही  हैं -
हर्फ़े-इक़रार तो आए थे मेरे होंठों तक
लब सिले ऐसे न कुछ कहने दिया 

किसी की याद है जो डा.प्रो सुधा सिन्हा के जिगर में समा गई  है -
जिगर और दिल में समाने लगे हैं 
मुझे इतना क्यों याद आने लगे हैं

शाइरों ने भी एक से बढ़ कर एक उम्दा कलाम सुनाये | निम्न लिखित शाइरों के अशआर बहुत पसंद किये गए |-

अरुण कुमार आर्य अपने दोस्तों से बहुत चौकन्ने हैं -
मौत से नहीं मैं तो ज़िन्दगी से डरता हूं
दुश‌्मनी से क्या डरना दोस्ती से डरता हूं 

प्रेम किरण लोगों को असली-नकली का फर्क समझा रहे हैं -
‘किरन’ बाज़ार में खोटी खरी हर चीज़ बिकती है
ख़रीदारों में शामिल है तो पैदा कर नज़र पहले

नाशाद औरंगाबादी हतप्रभ है कि भाई ये जबरदस्ती की अनबन कौन से तहजीब है जरा समझें -
ये किस समाज की तहज़ीब है कि आपस में
जो राम राम न हो और दुआ सलाम न हो 

हर जगह आजादी अच्छी नहीं होती। समझा रहे हैं असर फ़रीदी -
दायरे में सुकून मिलता है
इस से बाहर नहीं हुआ करते 

आर.पी.घायल ने बताया की कोई सीख कर शाइरी नहीं कर सकता -
जहाँ जिस पर भी होती है ख़ुदा के नूर की बारिश
वही शाइर भी होता है वही फनकार होता है 

सदाबहार शख्सीयत डॉक्टर शँकर प्रसाद के रास्तों में खार भरा हुआ  है एक जमाने से -
हालात ने दिलो को समंदर बना दिया।
पुरखार रास्तो को मुकद्दर बना दिया 

कलीम अख्तर रोक रहे हैं किसी अजीज़ को अपने पास -
अभी तो शाम हुई है, जरा ठहर जाओ
तमाम रात पड़ी है, जरा ठहर जाओ 

युवा शाइर चैतन्य उषाकिरण चंदन की ज़िन्दगी अब दर्द का तराना बन चुकी है -
सुर्ख़ आँखों में फ़साना दर्द का
ज़िंदगी है इक तराना दर्द का

नईम सबा ने दिखाया कि गम कितने जरूरी हैं जिंदगी के वास्ते  -
कुछ लुत्फ़ और आता मेरी हंसी ख़ुशी में
थोडा सा गम जो मिलता थोड़ी सी ज़िन्दगी में 
सिद्धेश्वर ने दुश्मनी की आग को भड़कते देख बेचैन दिखे -
हाय! कब तक दुश्मनी की आग में
बेकफन जिंदा जलाए जाएंगें 

मुशायरे की निज़ामत जनाब शकील सहसरामी ने बड़े ही रोचक अंदाज़ में किया | रमेश ‘कँवल’,चेयरपर्सन,बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना ने मुशायरे में शिरकत करने वाले सभी शाइरों-शाइरात और श्रोताओं का स्वागत – अभिनन्दन किया और पुस्तक मेला के आयोजकों विशेषकर रत्नेश्वर एवं विनीत  को मुशायरे के लिए पुस्तक मेला का आम सभागार उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार प्रकट किया |
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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
मूल आलेख और संकलन  : रमेश ‘कँवल’
छायाचित्र साभार - अनेक कविगण
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट: इस मुशायरे में भाग लेनेवाले शाइर अपनी तस्वीर भेज सकते हैं रपट में शामिल होने के लिए, ऊपर दिए गए ईमेल पर. 














1 comment:

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