Monday 25 November 2019

जॉन एलिया की शायरी पर अंजुमन-ए-पासबान-ए-अदब की ओर से साहित्यिक गोष्ठी वाशी (नवी मुंबई) में 24.11.2019 को संपन्न

"तुम सोचती बहुत हो तो फिर ये भी सोचना / मेरी शिकस्त अस्ल में किसकी शिकस्त हैं"

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)



"अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है
हाल उस सैद का सुनाईए क्या
जिसका सैयाद ख़ुद क़फ़स में है"
कहा जाता है एक शायर इश्क और फिक्र में जितना बेचैन होता है लोगों को उसकी शायरी सुनकर उतना ही चैन मिलता है सुकून और राहत मिलाती है और जॉन एलिया इसकी एक बेहतरीन मिसाल हैं. शायर अशवनी 'उम्मीद' ने कुछ यूं परिचय दिया उस मकबूल शायर का जिनकी खिराज-ए-अकीदत में यह नशिस्त मुनक्किद की गई थी.

दिनांक 24.11.2019 को वाशी (नवी मुंबई) के सेक्टर -10 स्थित अंजुमन-ए-इस्लाम स्कूल में महान शायर जॉन एलिया की शायरी पर एक साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें बड़ी संख्या में उर्दू और हिंदी के शायरों और कवियों ने भाग लिया. एलिया की रचनाओं का विभिन्न शायरों द्वारा पाठ हुआ और उनकी शायरी पर इजहारे-ख्याल भी. आयोजकों में ईकबाल कंवारें और डॉ. दिलावर टोंकवाला  प्रमुख थे.
मुस्तकिल बोलता ही रहता हूँ 
कितना खामोश हूँ मैं अन्दर से (जॉन एलिया)

एक प्रमुख वक्ता थे शायर  अशवनी 'उम्मीद' जिन्होंने जॉन एलिया की शायरी की बारीकियों पर अपने विचार रखे. जॉन एलिया एक ऐसे बेहतरीन शायर थे कि उन्होंने जो भी लिखा बहुत तरतीब से लिखा. उन्होंने ऐसे शब्दों का प्रयोग भी खूब किया जो आमतौर पर व्यवहार नहीं होते. जैसे- चांदनी का तो व्यवहार हम देखते ही हैं पर उन्होंने 'चांदना' शब्द का भी व्यवहार किया. 

अशवनी 'उम्मीद' ने अपनी एक  ग़ज़ल का मतला और शेर भी पढ़ा - 
यही है मर्तबा ए सुखन में उस्ताद हो जाना
ग़ज़ल के शौक में पूरी तरह बर्बाद हो जाना
नहीं रूकना किसी लहजे का तुम फरियाद होने तक
किसी के मांगने से पेश्तर इमदाद हो जाना

नवी मुंबई की एक मशहूर शायरा वंदना श्रीवास्तव ने जॉन एलिया की एज ग़ज़ल और एक नज़्म सुनाई -
क्यूँ हमें कर दिया गया मजबूर
ख़ुद ही बे-इख़्तियार थे हम तो
तुम ने कैसे भुला दिया हम को
तुम से ही मुस्तआ'र थे हम तो
सह भी लेते हमारे ता'नों को
जान-ए-मन जाँ-निसार थे हम तो
ख़ुद को दौरान-ए-हाल में अपने
बे-तरह नागवार थे हम तो
तुम ने हम को भी कर दिया बरबाद
नादिर-ए-रोज़गार थे हम तो (जॉन एलिया)

जॉन एकिया की नज़्म-
मैं भी बहुत अजीब हूं, इतना अजीब हूं कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
मैं भी बहुत अजीब हूं इतना अजीब हूं कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं।

एक  अन्य मोहतरमा ने अपनी एक ग़ज़ल सुनाई -
अब मौसमे-बहार में जाना है जरूरी 
महबूब तेरे ख्वाब में आना  है जरूरी 
अच्छाई और बुराई हरेक दौर में है
अब खुद को बुराई से बचाना है जरूरी 
मौजे-बह्रां से कश्ती निकल आई है संभलकर
इक मां की दुआ काम में आना है जरूरी 

हर बार तुझसे मिलते वक़्त 
तुझसे मिलने की आरजू की है
तेरे जाने के बाद भी मैंने 
तेरी खुशबू से गुफ्तगू की है (जॉन एलिया)

एक उम्दा कवि कृष्णा गौतम ने अपनी एक बेहतरीन रचना तरन्नुम में सुनाई- 
ओ पीपल के पत्तों बजना बंद करो 
सन्नाटों को सन्नाटों से बातें करने दो
बात गमों की खामोशी से भी हो सकती है
सांय सांय यूं हवा का चलना मुझे अखरता है 

जहांगीर शेख 'मस्त' ने भी अपनी ग़ज़ल सामाईन के आगे पेश की.

उर्दू दैनिक रोजाना हिंदुस्तान के जुबैर फितरत ने कहा कि इस मज़लिस में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों की बराबर की तादाद है जो यह साबित करता कि उर्दू जुबाँ किसी मजबब से बंधी नहीं है वह सब की है. लोगों को उर्दू से प्यार है. उर्दू लोगों को जोड़नेवाली जुबां है. गंगा-जमुनी तहजीब की नुमाइंदगी उर्दू करती है.

कार्यक्रम में बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के हेमन्त दास 'हिम' भी मौजूद थे जिन्होंने जनाब ईक़बाल कंवारे और इस कार्यक्रम के अन्य आयोजको को कार्यक्रम की शानदार सफलता की बधाई दी।

इस कार्यक्रम में जो जुबां इस्तेमाल की जा रही थी उसमें ये फर्क करना मुश्किल था कि ये उर्दू है या हिंदी. दर-अस्ल दोनो जुबां इतनी घुली-मिली है कि फर्क करना आसान भी नहीं. बस थोड़ा अरबी-फारसी को हिंदी में बढ़ा दीजिए तो वह उर्दू हो जाती है और उर्दू में कुछ संस्कृत के शब्दों को मिला दीजिए तो वह हिंदी हो जाती है. दोनों में कोई बड़ा बुनियादी फर्क नहीं है.

इस तरह से यह कार्यक्रम बहुत ही सौहार्दपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ और एक मीठी याद के तौर पर लोगों के जेहन में समा गया.
.....

प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
फोटोग्राफ - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल कीजिए - editorbejodindia@gmail.com
नोट- यह रपट बिल्कुल अधूरी है. आयोजकगण और अन्य शामिल शायरों से यह गुजारिश है कि कृपया ऊपर दिये गए ईमेल पर अपनी पढ़ी गई लाइनें,  नाम और फोटो (अगर हो) जल्दी भेजिए. इस रिपोर्ट में जोड़ दिये जाएंगे. हम किसी का नाम या फोटो छोड़ना नहीं चाहते हैं.



































1 comment:

  1. वाहः पटना के साहित्यकारों की सेवा के बाद अब मुम्बई के अदबी शख्सियतों की ख़िदमत अपनी कलम से। साहित्य संस्कृति जगत आपको युगों तक याद करेगा हेमन्त "हिम" जी, बहुत सुंदर रिपोर्ट। 💐

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