Friday 19 July 2019

महान गीतकार 'नीरज' के साथ संस्मरण / मंजू गुप्ता

यादों में नीरज
"नहीं हमारे बीच में, गोपाल 'नीरज' का शरीर
साहित्य के साक्ष्य हैं, जैसे मीर कबीर।"

(हर 12 घंटे पर देखते रहिए कि कहीं फेसबुक पर यह तो नहीं छूट गया - FB+ Watch Bejod India)



विश्व साहित्याकाश के  देदीप्यमान  नक्षत्र  मा. नीरज जी को  हमारी और देश और विश्व साहित्य जगत  की  ओर से हार्दिक विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।

मैं अपनी किताबों को प्रकाशित कराने के लिए मुम्बई से अलीगढ़ गयी थी और नीरज जी से मिलने की अभिलाषा मन में भी थी। तभी देवसंयोग से मेरी किताब "प्रांत पर्व पयोधि" उन्हें मिली और उसमें मेरा  टेलीफोन नम्बर भी था।  उन्होंने  मुझे  फोन कर अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया । उनसे अपनत्वपूर्ण संवाद करके ऐसा लगा कि ईश का देवदूत बन धरा  पर आएँ हैं  और मेरे मन की बात जैसे उन्होंने सुन ली हो।

मैं उत्सुकता के साथ  उनसे मिलने अपने हमसफ़र के साथ शाम को उनके घर पँहुची। साफ-सुथरा सुंदर सुसज्जित उनका बड़ा सा हॉल  था जहाँ वे  दो दोस्तों के साथ ताश खेल रहे थे।  खेल जो तनावों से मुक्त रख के दिमागी कसरत है और अपने आप को व्यस्त रख के मनोरंजन का भी साधन  है। तभी मन में ख्याल आया उनका विश्व विख्यात  गीत  - कारवां गुजर गया 
 "स्वप्न झरे फूल से
 मीत चुभे शूल से।"
जैसे गीतों के रचयिता  किस तरह अपना  समय  खेल के साथ लेखन को समर्पित  कर रखा था।

उनकी रचनाओं में जीवन दर्शन, प्रेम, श्रृंगार, विरह, दर्द, देशप्रेम, मानवता का पैगाम मिलता है । नीरज जी आजादी से पहले  दिल्ली में  सरकारी  कार्यालय में कार्यरत थे जहाँ उन्हें ब्रिटेनिया सरकार की झूठी प्रशंसा, खूबियों के बारे में लिखना होता था। जब  कोलकत्ता में गए तो ब्रिटेन की सरकार के विरोध में नज्म लिख दी। तब सरकार इनको पकड़ने के लिए  पीछे पड़ गयी ।  तब  अपने को बचाने  के लिए छिपते-छिपाते कानपुर में आ गए। यहीं पर  कार्यरत हो गए।

फिर एक दिन उनके मित्र चंद्रा जी मुंबई नगरी ले आए। एक कार्यक्रम में देवानन्द ने उनकी नज्म सुनी तो नीरज जी की कलम की तारीफ की। उन्होंने संगीतकार आर. डी. बर्मन से मिलवाया तो उन्होंने नीरज को रंगीला शब्द पर गीत लिखने को दिया।

तब उन्होंने "रंगीला रे तेरे रंग  में ......"खूब बड़ा गीत लिख दिया। बर्मन को खूब पसंद आया। इस तरह से फिल्मों में गानों को लिखना सिलसिला चल निकला। गीतों ने कामयाबियाँ, बुलन्दी, यश तो दिया लेकिन नीरज का मुम्बई में मन  नहीं लगा। खुशियां तलाशने अलीगढ़ आ गए। तब से यहीं परिवार के साथ आकर बस गए। यहाँ उनकी तबीयत खराब रहने लगी। तब भी वे लेखन से जुड़े रहे, कवि सम्मेलनों, हिंदी कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे थे। 

आज वे 93 साल के हो चुके हैं। हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अपनी कृतियों साहित्य सेवाओं से हमारे साथ हैं। गीता, ओशो  के विचारों को मानने वाले नीरज ने देह त्यागी है ।  आत्मा यहीं भारत में बसी है।

मैं उनके खूबसूरत, हँसमुख सरल, सहज  विद्वता, आत्मीयता से पूर्ण व्यक्तित्व  से बहुत प्रभावित हुई।अनौपचारिक परिवेश में चाय पीकर मेरा परिचय उनसे हुआ। "प्रांत पर्व पयोधि"  को देख कर मुस्कुराते हुए बोले - बिटिया,  देशप्रेम जिस की रगों में बहता है, तन-मन से जो समर्पित हो वही देशभक्ति मानवीयता का पुजारी होता है।" 

मेरी कृतियों  के बारे में, मेरी पांडुलिपि दीपक, सृष्टि, अल्बम आदि के बारे में संवाद चला और मेरी उन पांडुलिपियों की समीक्षा भी करके मुझे अपनी उदारता, निस्वार्थता, सहज, हितैषी व्यक्तित्व का परिचय  दिया। इतने महान साहित्यकार होते हुए भी वो अहम से कोसों दूर थे ।

उन्होंने पांडुलिपियों की समीक्षा कर मुझे आशीर्वाद दिया था। जो आज फल-फूल रहा है। आज वे फोटो के संग अमर पल उनके सानिध्य का स्मरण कर के उनकी आत्मा को शांति मिले  ईश से हम सब  प्रार्थना करते हैं।
.....

आलेख -  मंजु गुप्ता
लेखिका का ईमेल आईडी - writermanju@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

इस लेख की लेखिका - मंजू गुप्ता 

''नीरज' का चित्र एक अन्य कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय के साथ  /  वसुंधरा जी कहती हैं - दादा को मैं अपनी पुस्तक भेंट करके आयी थी तो 3 दिन बाद उनका फोन आया,20 मिनट बात किये,मेरी नौ कविताएं वे मुझे मेरी पुस्तक से सुनाए।असज भी उनकी आवाज कानो में गूंजती है दिल को तसल्ली होती है की पुस्तक सार्थक हुई


2 comments:

  1. धन्यवाद हेमन्त जी ।
    संस्मरण पढ़कर बहुत अच्छा लगा। दादा के साथ मेरी तस्वीर लगाने के लिए आभार।
    आपको पता है दादा को मैं अपनी पुस्तक भेंट करके आयी थी तो 3 दिन बाद उनका फोन आया,20 मिनट बात किये,मेरी नौ कविताएं वे मुझे मेरी पुस्तक से सुनाए।असज भी उनकी आवाज कानो में गूंजती है दिल को तसल्ली होती है की पुस्तक सार्थक हुई

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    Replies
    1. सच में अद्भुत अनुभव रहे होंगे वे जब श्री नीरज आपको फोन पर आपंकी नौ कविताएँ सुना रहे होंगे. आपकी टिप्पणी का अंश फोटो के साथ जोड़ दिया गया है.

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