Monday, 15 July 2019

लेख्य मंजूषा द्वारा पटना में 14.7.2019 को वृक्षारोपण एवं काव्यपाठ सम्पन्न

कत्ल जब जब शजर का होता है / दिल जमीं-आसमां का रोता है

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आज 21वीं सदी में समूचे विश्व के सामने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या अनेकानेक विकराल रूपों में सामने आ रही है। तत्काल लाभ के चक्कर में हमने स्वयं अपने भविष्य को दीर्घकालिक संकट में डाल दिया है और इसका समाधान भी अब हमें ही करना है। यूँ तो अपनी सशक्त साहित्यिक चेतना के जरिये साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से, पर्यावरण संरक्षक़ण के प्रति समाज को जागृत करते रहे हैं परंतु 14.7.2019 को लेख्य मंजूषा पटना, बिहार से जुड़े साहित्यकारों ने वास्तविकता के धरातल पर भी उतर कर वृक्षारोपण का पुनीत कार्य सम्पन्न करके पर्यावरण के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन किया और समाज को एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की। 

लेख्य मंजूषा पटना पर्यावरण संरक्षण के प्रति शुरू ही से जागरूक रही है। इस संस्था ने इस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स भवन आर ब्लॉक पटना के परिसर में तीन वर्ष पूर्व भी कुछ वृक्ष लगाए थे जो आज बड़े हो गए हैं और पर्यावरण प्रदूषण से लड़ रहे हैं। ये वृक्ष अपने इको सिस्टम के प्रति साहित्यकारों की चेतना के साक्षी बने परिसर में अब भी मौजूद हैं।

कार्यक्रम का दूसरा सत्र था कथाकार कवि प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' की पुस्तक “श्रद्धांजलि से तर्पण तक” के लोकार्पण और काव्यपाठ का। इस सत्र में मंचासीन अतिथियों में प्रमुख थे सुदूर पूर्वोत्तर राज्य आसाम (सिलचर) से पधारे कथाकार कवि चितरंजन भारती, पटना दूरदर्शन की पूर्व निदेशिका रत्ना पुरकायस्थ, शायर  प्रेमकिरण एवं घनश्याम, डॉ प्रो अनिता राकेश, ई. कवि शुभचंद्र सिन्हा एवं मधुरेश शरण। मंच का संचालन शायर सुनील कुमार ने किया।

गोष्ठी में पढ़ी गई कुछ रचनाओं की पंक्तियाँ उनके रचनाकारों के नाम के साथ कुछ इस प्रकार हैं :

घनश्याम ने पर्यावरण पर अपनी एक मार्मिक ग़ज़ल सुनाई -
"कत्ल जब जब शजर का होता है
दिल जमीं-आसमां का रोता है 
चिमनियों का धुआं हवाओं में 
मौत के बीज रोज बोता है
जल के बदले यहाँ हरेक दरिया
रोज कचड़ों का बोझ  ढोता है
बांध कर हाथ-पांव नदियों के
कौन यहांं निढाल सोता है
जब भी जंगल-पहाड़ कटते हैं
विश्व अपना वजूद खोता है।"

सुबोध कुमार सिन्हा-
"सिद्धार्थ से बुद्ध ... या ...
गौतम बुद्ध तक का सफ़र तय करके
तुम्हारे महानिर्वाण के वर्षों बाद
दिया गया था ज़हर सुकरात को "

लेख्य मंजूषा की अस्थानीय सदस्य श्वेता सिन्हा की रचना का पाठ सुबोध सिन्हा ने किया -
"नियति के क्रूर हाथों ने
ला पटका खुशियों से दूर,
बहे नयन से अश्रु अविरल
पलकें भींगने को मजबूर "

सुनील कुमार ने एक ग़ज़ल पढ़कर अपने दर्द को कुछ इस तरह बयाँ किया -
"देर नाहक़ ही फैसलों में हुई
कोई कायर था आपके दिल में
एक इंसान को सताने को
सख़्त पत्थर था आपके दिल में।"

प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' -
जन्म से पूर्व जिसे मारने की करते हैं साजिश,
हम हैं वो बेटियाँ
प्यार बिना ही जो बड़ी हो जाती
सबका ख्याल रख प्यारी बन जाती 
हम हैं वो बेटियाँ
      
अस्थानीय सदस्य राजेन्द्र पुरोहित की रचना का पाठ रंजना सिंह ने किया -
"राहत की रिश्वत दे दे कर, ठगा गया ये मध्यम वर्ग
झूठी सी हिम्मत दे दे कर, ठगा गया ये मध्यम वर्ग
नियम, कायदे, विधि की बातें, उच्च वर्ग कब सुनता है?
रोटी की कीमत दे दे कर, ठगा गया ये मध्यम वर्ग।"

नूतन सिन्हा -
"अपनी कहानी / लोगों की जुबानी 
पता चला नहीं कि आखिर कैसी है ये जिन्दगानी
 कभी 'हाँ ' तो कभी 'ना' "

 मधुरेश नारायण -
"बेटे तो बेटे है,पर बिटिया उनसे कहाँ कम है
जिस घर में बिटिया रहती है,फिर काहे का ग़म है।"

 श्रुत कीर्ति अग्रवाल -
"तेज धूप हो झुलसता हो तन,
शीतल छाँव बन जाती है वो
सूना दिन हो सूनी रातें
कान में कुछ कह जाती है वो।"

प्रभास' ने पढ़ा -
 "बचाने की जरूरत है, प्रकृति को शोषण से,
 पर्यावरण को दोहन से, वरना....."

अभिलाषा कुमारी, शिक्षिका, महादेव उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय खुसरूपुर, पटना -
"आओ न प्रिय पीड़ किसको सुनाएँ,
तुम बिन न ये घन,
 हमको सुहाए।"

 वीणाश्री हेम्ब्रम, शिक्षिका, व्यवसाय प्रबंधन, शिक्षा व जीवविज्ञान में स्नातकोत्तर -
"मैं अक्सर भूल जाती हूँ
चीजों और तारीखों को
पर याद रखती हूं
लम्हों की बारीकियों को"

ज्योति मिश्रा -
"जलती मैं दिन रात हूँ ,  नाम करूँ चरितार्थ
किरणों की क़ीमत वहाँ,  जहाँ तिमिर हो साथ।
जहाँ तिमिर हो साथ , लिए  आते हैं सब तम
ऊपर जलती ज्योति ,  भरा अंदर तक है ग़म ।"

सुधांशु कुमार, कार्यक्रम अधिशासी, आकाशवाणी, दरभंगा -
"मै पथ विचलित नहीं,
अग्निपथ पर चलता हूं,
निगाहें लक्ष्य की ओर रखता हूं,
आरम्भ से अंत की दूरी तय करता हूं,
 मै पथ विचलित नहीं... "  
        
ई० शुभचन्द्र सिन्हा -     
"अपने सहन मे चाँद का अरमान रात भर
लिखता रहा ज़मीं पर आसमान रात भर
हाथ की लकीरें पढ़ने  मे मसरूफ रह कर
लिखी तक़दीर भी रही  पशेमान रात भर।"
       
कविता  -
"रिमझिम बरसे कारी रात
सजनवा  आ जाओ
आँखों से बहा कजरा बिन बात
सजनवा आ जाओ।"

संगीता गोविल , विद्यालय संचालक -
"घण्टे ने ग्यारह बजाए, बाबू अभी तक नजर नहीं आए
लंबी कतार में इंतजार है, बाबू की कुर्सी खाली बेजार है ।"

 पूनम (कतरियार) - 
"अमावस की रात को,
सूक्ष्म निरीक्षण करती हैं
कि, गर्भ में उसके
कोई चिन्ह तो होगा शेष
पूनम के आने का.
हाँ, बहुत पीड़ा है
               
अनीता मिश्रा सिद्धि -
"तुम्हारे नाम का काजल
मेरी आँखों में बसता है 
तेरी यादों के जंगल में 
मेरा दिल रोज भटकता है।"

पम्मी सिंह'तृप्ति' दिल्ली की रचना अन्य के द्वारा पढ़ी गई -
एहतियात जरूरी है घर को बचाने के लिए
पेड़-पौधे ज़रूरी है ज़मीन को संवारने के लिए।
कर दिया ख़ाली ,जो ताल था कभी भरा ।
 मौन धरा पूछ रही, किसने ये सुख हरा।

सीमा रानी -
देख प्रकृति की त्रासदी
ह्रदय रुआंसा हो गया
जल संरक्षण का आगाज करें
वर्षा जल से तालाब भरें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे असम सिलचर से आएं वरिष्ठ कवि चितरंजन भारती ने लेख्य-मंजूषा का हार्दिक अभिनंदन करते हुए पर्यावरण पर अपने विचार रखे।

अपने उद्बोधन में डॉ. रत्ना पुरकायस्था जी ने आज के पर्यावरण समस्याओं का जिक्र करते हुए उन्होंने अपने चेन्नई में बिताए अनुभव का संस्मरण सुनाया। प्रियंका श्रीवास्तव की किताब पर रोशनी डालते हुए उन्होंने कहा कि अपनी सासु माँ को पुस्तक समर्पित करने वाली  लेखिका में अपार संभावनाएं दिखती है। यह बड़े लेखको की जिम्मेदारी हैं कि वह नव लेखकों को सींचने का कार्य करे। और, इस कार्य को लेख्य-मंजूषा  बखूबी निभा रहा है।

वरिष्ठ कवि घनश्याम ने किताब की मंचीय समीक्षा करते हुए कहा कि जल्दी ही वह पुस्तक की लिखित समीक्षा भी कवयित्री प्रियंका को सौपेंगे।

पुस्तक पर अपनी राय रखते हुए जेपी यूनिवर्सिटी की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अनीता राकेश ने कहा कि साहित्यक गोष्ठियों, संगोष्ठियों का यह एक सकारात्मक पहलू है कि नए लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण संस्था करवा रही है। प्रत्येक रचनाकार को अपने अनुभवों की अभिव्यक्ति करनी चाहिए, वरना मन में रखे भाव इंसान को कुंठित बना देते हैं। पर्यावरण पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा पर मात्र चिंताएँ व्यक्त करने से अधिक इसके संरक्षण की जरूरत है।

इस कार्यक्रम में प्रेमलता, हरेन्द्र सिन्हा, प्रभात कुमार धवन आदि भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में सुबोध कुमार सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन कर समस्त आगत अतिथियों, सदस्य साथियों व श्रोताओं का आभार प्रकट किया।

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आलेख - सुनील कुमार
लेखक का ईमेल आईडी - sunil21011964@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल  आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट- जो कार्यक्रम में उपस्थित थे पर जिनका नाम इस रपट में छूट गया है कृपया उक्त ईमेल पर सूचित करें. जोड़ा जाएगा.

































5 comments:

  1. लेख्य-मंजूषा की ओर से वृक्षारोपण के कार्यक्रम से साहित्यिक आयोजन का शुभारंभ किया जाना पूरे समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता का सकारात्मक संदेश देता है.
    कवि गोष्ठी में भी पर्यावरण विषयक कतिपय रचनाओं का पाठ किया गया और वक्ताओं ने इस पर अपने विचार व्यक्त किए.
    आयोजन के विवरण को विस्तृत रूप से प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत बधाई।

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    1. हार्दिक धन्यवाद। सचमुच पर्यावरण के प्रति साहित्यकारों की जागरूकता श्लाघनीय है।

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  2. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
    कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन श्री सुबोध कुमार सिन्हा जी ने किया जो कि महत्त्वपूर्ण था

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    1. जी धन्यवाद। यथोचित अंश जोड़ दिया गया है।

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  3. वसुन्धरा पाण्डेय15 July 2019 at 21:23

    लेख्य मंजूषा का कार्यक्रम हमेशा लुभाता है और बढ़िया कार्यक्रम आयोजित होता रहता है। लेख्य मंजूषा फले फुले,दुआएं।बढ़िया रिपोर्ट के लिए आपको बधाई हेमन्त जी

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