देख तेवर शेर का मैयार देख / जॉन की सूरत नहीं अशआर देख
(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है (जॉन एलिया)
उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं (जॉन एलिया)
कैसा है तुम्हारी कलम से लगाव इस जमीन को
कि समूचा सीमान्त गायब हो जाता है
बीच के लोहे के कांटेदार बाड़ की गांठों पर
फूल उग आते हैं (प्रभात सरसिज- जॉन एलिया के बारे में)
शायर चाहे कहीं भी रहे वह इंसानियत की आवाज को बुलन्द करता है। यह उसका स्वभाब होता है। इंसान है तो इश्क है और इश्क से ही दुनिया है। मुहब्बत, इश्क और माशूका के लफ्ज़ों का इस्तेमाल कर दर-असल वह इंसानी ज़िंदगी की तमाम समस्याओं का जिक्र ही नहीं करता बल्कि उसकी गहराई में भी जाता है एक दार्शनिक के भाव से। अपनी ज़िंदगी की नाकामयाबी को वह सोच के ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर एक नई दृष्टि और समझ पैदा करता है जो ज़िंदगी के जंग में आदमी को और कारगर बनाता है।
बेमिसाल शायर जॉन एलिया पर केद्रित कार्यक्रम का आयोजन हुआ पटना में गम्भीर साहित्य के लिए मशहूर समूह 'जनशब्द' द्वारा। इस अवसर पर इसके अध्यक्ष प्रभात सरसिज, संयोजक शहंशाह आलम और मुख्य स्तम्भ राजकिशोर राजन सहित अनेक गणमान्य कवि और शायर मौजूद थे। प्रस्तुत है मुक्तछंद शैली में हिन्दी में देश के प्रमुख कवि शहंशाह आलम के शब्दों में कार्यक्रम की रपट -
...................
दि. 8.12.2019 को क महाराजा काम्प्लेक्स, पटना स्थित टेक्नो हेराल्ड में जनशब्द, पटना द्वारा मशहूर शायर जॉन एलिया के ऊपर काव्यपाठ का आयोजन किया गया। इसमें कवियों ने जॉन एलिया के ऊपर लिखी कविताओं का पाठ किया। ग़ौरतलब है कि जॉन एलिया का जन्म उत्तरप्रदेश अमरोहा में हुआ था लेकिन बाद में पाकिस्तान चले गए। उल्लेखनीय है कि 14 दिसंबर को उनका जन्मदिन भी आनेवाला है। उनका विवाह जाहिदा हीना से हुआ पर उनका वैवाहिक जीवन सफल न हुआ। वे एक साथ शायर तो थे ही, साथ में एक दार्शनिक भी थे।
इस कवि-संगत के अवसर पर वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज ने जॉन पर अपनी कविता सुनाई :
"तुम्हारे तबाह होने का कारण
तुम ही हो जॉन एलिया
जैसे कच्ची खुबानियों पर पेड़ की डाल गिरे।"
श्री सरसिज ने आगे कहा -
"कैसा है तुम्हारी कलम से लगाव इस जमीन को
कि समूचा सीमान्त गायब हो जाता है
बीच के लोहे के कांटेदार बाड़ की
गांठों पर फूल उग आते हैं"
श्री सरसिज ने आगे कहा -
"कैसा है तुम्हारी कलम से लगाव इस जमीन को
कि समूचा सीमान्त गायब हो जाता है
बीच के लोहे के कांटेदार बाड़ की
गांठों पर फूल उग आते हैं"
शायर शक़ील सासरामी की पंक्तियां थीं :
"देख तेवर शेर का मैयार देख
जॉन की सूरत नहीं अशआर देख
देखना है एलिया का फ़न अगर
इलिया की शायरी की धार देख
शाइरी तो हम भी करते हैं मगर
इलिया का तर्ज़े-खुश-इज़हार देख
देखना है एलिया का फन अगर
इलिया की शायरी की धार देख
शाइरों की भीड़ में अब भी शकील
इलिया को सूरते-मीनार देख।"
शाइरी तो हम भी करते हैं मगर
इलिया का तर्ज़े-खुश-इज़हार देख
देखना है एलिया का फन अगर
इलिया की शायरी की धार देख
शाइरों की भीड़ में अब भी शकील
इलिया को सूरते-मीनार देख।"
कवि शहंशाह आलम ने जॉन एलिया पर सुनाया :
"अगर मैं चला जाऊं तुम्हारे शहर
तो मार गिराया जाऊंगा तुम्हारे हाथों
लेकिन जॉन एलिया
तुम्हारे हाथ तो शायर के हाथ ठहरे
वे हाथ मुझे किस तरह मार सकेंगे।"
कवि राजकिशोर राजन ने अपनी कविता सुनाई जिसका शीर्षक था 'एक शाम जॉन एलिया के नाम' :
"वह जाड़े की एक शाम थी
और उसने कहा
चलो आज कुछ नया सुनते हैं
अब वहां सब कुछ नया था
ऊंचे मकान,गाड़ियां,कपड़े,लोग
और वह शहर तो वैसे भी नया नया था।"
इस अवसर पर शायर कुमार पंकजेश ने अपनी नज़्म सुनाई -
"मैं ये नहीं जानता
कि तुमनें जब अपनी सरज़मीं छोड़ी
तो तुम्हारी जेहनियत क्या रही होगी
आज़ादी के बाद
क्या तुम अमरोहा से डरने लगे थे।"
सुंदर आयोजन।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका महोदय।
Deleteआभार बेजोड़ इंडिया।
ReplyDelete