Monday 2 December 2019

आईटीएम काव्योत्सव की गोष्ठी खारघर (नवी मुम्बई) में 1.12.2019 को सम्पन्न

अम्मा! नगरी के इन भक्षक से / अब न मैं ढँक पाऊंग़ी 
राजेंद्र तुझे मानव के मन को पढ़ना आता था / तभी तो तू जनतंत्र भारत का पहला भाग्य विधाता था

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)



प्रियंका रेड्डी को छत्तीसगढ़ में पूर्व योजना बनाकर बलात्कार के बाद चंद वहशियों द्वारा जला डाला गया। उसके शरीर को राख करने के बाद जो आग बुझी है वह अब भभक चुकी है देश के कोने कोने में। इन दरिंदों को जबतक सजा न मिलेगी तबतक करोड़ों के दिल इस आग में जलते रहेंगे। ऐसे कुकृत्य करनेवालों की जाति या धर्म कुछ नहीं होता, वे दरअसल आदम जात के ही नहीं होते। साथ ही देश के प्रथम राष्ट्रपति और विवादरहित, अतुल्य प्रतिभा के धनी राजेन्द्र प्रसाद की स्मृति की हो रही उपेक्षा की चर्चा भी छाई रही दिसंबर की पहली तारीख वाली इस कवि गोष्ठी में। 

दिनांक 1.12.2019   को खारघर (नवी मुम्बई) में देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन शिक्षा संस्थान आईटीएम में आईटीएम काव्योत्सव की 104वीं गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें बड़ी संख्या में नवी मुम्बई और मुम्बई के लगभग 35 कवियों और शायरों ने भाग लिया और साथ में अनेक श्रोतागण भी थे. अध्यक्षता सत्येंद्र नाथ श्रीवास्तव ने की, संयोजन और संचालन विजय भटनागर ने किया. इस बार की गोष्ठी के प्रायोजक थे चित्रगुप्त समाज वेलफेयर एसोसिएशन, नवी मुम्बई. 

पहले सरस्वती वंदना का सस्वर पाठ हुआ वंदना श्रीवास्तव के मधुर कंठ से और फिर भारत भूषण शारदा जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय गान हुआ. इस अवसर पर नवनीत जैपुरियार, अरुण सक्सेना एवं आर.डी. माथुर विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित थे. 

काव्य पाठ का शुभारम्भ विजय कांत त्रिवेदी की देशभक्तिपूर्ण रचना से हुआ जिसका शीर्षक था -"हिमगिरि माथे पर". भारत भूषण शारदा ने एक हास्य रचना सुनाने के पहले एक कविता के माध्यम से देवपूजन का अधिकार माँगते दिखे.

चंदन अधिकारी ने अपने नश्वर शरीर से प्रभु की आराधना हेतु पक्का हठ किया -
प्रभु मैं तेरा कच्चा घट 
कर बैठा हूँ पक्का हठ

हेमन्त दास 'हिम' का दिल आज भी बच्चा है जो बड़ों की बस्ती में भटक गया है -
उसकी फटकार का प्यारा तिलिस्म / हिदायतों की बाँध को मैंने देखा
बड़ों की बस्ती में ढूँढता बच्चा / दिल की कूद-फाँद को मैंने देखा

उमेश श्रीवास्तव ने माँ को अपने छालों पर मरहम जैसा पाया - 
पाँव के छालों पर मरहम सरीखी 
सब के लिए नेह की बौछार है माँ

रजनी साहू और उनके पति छत्रसाल साहू कवि दम्पति हैं. दोनों ने अच्छी रचनाएँ पढ़ीं. छत्रसाल जी आज के हालात से डर कर बेटी को हिदायत देते हैं -
बेटी दहलीज के उस पार / जरूर रखना तुम पाँव
दुनिया क्या है यह समझना / धूप है या छाँव

अनिल पुरबा ने जैसे ही कविता पढ़ने आए कि आरती उतारने लगे और वह भी इंटरनेट की - 
ऊँ जय इंटरनेट देवा
खोल के गूगल, ट्विटर, फेसबुक / सब को भरमाई दियो
इतना उलझाया सब को / सब को बुद्धिविहीन कियो 
ऊँ जय इंटरनेट देवा
विशाल मनोरथ पायो / श्रद्धा ने फ्रेंडशिप दिनी 
चैटिंग सुख भोग्यो प्रभु जी / फिर लॉग-ऑफ किनी
ऊँ जय इंटरनेट देवा

चंद्रिका व्यास ने महिलाओं पर बढ़ रहे बलात्कार और हत्या के जुल्म को देखते हुए एक बेटी की आपबीती सुनाई - 
अम्मा! नगरी के इन भक्षक से / अब न मैं ढँक पाऊंग़ी 
तुझे ऐसा आभास कराती है

आईटीएम काव्योत्सव समूह की अध्यक्षा वयोवृद्ध कवयित्री माधवी कपूर ने देवदास के विरह के महत्व को कुछ यूँ उजागर किया-
देवदास यदि तुम / पारो को मिल जाते तो

अजय श्रीवास्तव ने राजनीति पर कुछ इस तरह कहा -
ये राजनीति का सट्टा बड़ा पुराना है

ललित परेबा ने अपनी माँ को ऐसे याद किया -
तुमने मुझे जिंदगी दी  / मैं तुम्हें दु:ख के सिवा कुछ न दे पाया

शायरी के लिए दर्द चाहिए होता है पर जब दुश्मन भी दुआ ही देने लगें तो परेशानी लाज़मी है. शायर दिलीप ठक्कर फरमाते हैं -
जो दुश्मन था मेरा दुआ दे रहा है / इलाही ये क्या माजरा हो गया है
मेरे दिल तुझे आज क्या हो गया है / मुझी से क्यूँ इतना खफा हो गया है

पी. सी. झा जहाँ जाते हैं वहीं एक सीसीटीवी कैमरा उनको घूरता नजर आता है. परेशान होकर बेचारे कवि कहते हैं -
जीवन में निजता न रही / हम सार्वजनिक हो गए
(पर फिर खुश होकर कहते हैं -)
शेर जैसे नेताओं पर भारी / कैमरे जैसा बंदर है
अब क्या परदे के अंदर है?

सेवा सदन प्रसाद ने आज के जीवन के विपर्यय को यूँ रखा -
यहाँ है डालर का झालर और हीरों का व्यापार
पर गरीब हो जाता है यहाँ मजबूर और लाचार

डॉ. सतीश शुक्ल का स्वर भी तीखा था. कहा -
हनुमान आज / अपनी ही लंका जलाते हैं

दीपाली सक्सेना बड़ी खुश होती थीं कि पति उनकी तस्वीर को फर्श में रख कर निहारते हैं. पर उन्होंने बताया-
काहे डरना है छोटी मोटी परेशानियों से 
जब झेल रहा हूँ इतना बड़ा टेशन जमानों से

वंदना श्रीवास्तव की आँखों में पल रहे ख्वाबों के अलग-अलग रंग दिखे -
ख्वाब आँखों में पल गया होगा / ये जमाने को खल गया होगा
उसकी आँखों में कुच सुकूँ सा है / हादसा फिर से टल गया होगा
फूल थे, रंग थे, बहारें थी / अब तो मौसम बदल गया होगा
डेगची में उबलते पानी से / भूखा बच्चा बहल गया होगा
चुरा के आँख चल दिये हम से / उन का मतलब निकल गया होगा

एम. के. पेसिन ने भी उदास होकर बड़ी शिद्दत से महबूबा को बुलाते दिखे -
वो तबस्सुम का दबाना तो मैंने जान लिया / जरा नजर तो मिलाओ, बहुत उदास हूँ मैं
तेरे लबों पे फिसलती है मेरी जाँ मेरी ग़ज़ल / जरा तरन्नुम में गाओ, बहुत उदास हूँ मैं

जय सिंह के ईद और दिवाली मनाने का ढंग निराला है -
तू ईद को मुझे गले लगा ले / मैं होली में लगा दूँ तुझे रंग
महसूस करो उन गरीबों का दर्द / जो हाथ में लिए कटोरे लड़ रहे जिंदगी की जंग

नजर हयातपुरी को सब के हाथो में खजर दिखने से डर होने लगा -
ये कैसा खौफ का मंजर दिखाई देता है / सब के हाथ में खंजर दिखाई देता है
कली के लब का तबस्सुम गुदाज फूलों का / चमन में खाक के अंदर दिखाई देता है
वो खेत सदियों से जरखेज थी मिट्टी जिसकी / वो इस बहार में बंजर दिखाई देता है
ये हौसले की चमक है कि आज परवाना / चरागे-नूर के हम-सर दिखाई देता है

सगीतज्ञ विवेक ने भी चंद शेर पढ़े जो संगीत के लिहाज से बेहतरीन थे.

अरुण सक्सेना ने कविता को यूँ परिभाषित किया -
दिन भर के मानसिक श्रम को / अन-वाइंड करनेवाली कविता है

भटकर ने प्यार का गणित समझाते हुए कहा -
प्यार करो तुम स्टाइल से 

कुलदीप सिंह 'दीप' ने गुरु तेगबहादुर के बलिदान को याद किया फिर आँखों को आईना बताया -
दिल का आईना होती है ये आँखें

सिराज गौरी ने हाकिम से बगावत को सबसे बड़ा अपराध बताया -
हाकिम से बगावत की है, मौत की सजा सुन लो 
सच्चा है, झूठा है, इस बात से क्या होगा

विजय भटनागर ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति  राजेन्द्र प्रसाद जयंती (3 सिसम्बर) पर कहा - 
बापू का तू दुलारा था / बिहार का था सर्वप्रिय नेता 
मैं विलक्षण बुद्धिवाला हूँ, परीक्षा के अंकों से जतलाता था
(फिर अपनी अतीत की सुनहली यादों में वो खो गए -)
यादें ले जाती हैं, उन गलियों में बार-बार मुझे
जहाँ बचा के नजर सबसे / छज्जे पे की ताका-झाँकी है

नवनीत जयपाल ने चुप रहने के महत्व पर प्रकाश डाला -
कुछ रिश्ते हैं इसलिए हम चुप हैं 
और चुप हैं हम इसलिए कुछ रिश्ते हैं 

अंत में सभा के अध्यक्ष सत्येन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने पढ़ी गई कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी की फिर अपनी कविता पढ़ी -
दूर दूर तक डगर है सूनी / दूर दूर तक दिखे न कोई 
किसको करूँ इशारा / जो राह दिखाए
तुम कहते हो लिखूँ मैं कविता
अवसादों की खुशी मनाऊँ / कैसे सम्भव है?

अंत में सेवा सदन प्रसाद ने आये हुए विशिष्ट अतिथियों, कवि-कवयित्रियों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया फिर सभा की समापति की घोषणा हुई.
.......

रपट के लेखक - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल करें - editorbejodindia@gmail.com
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