Wednesday, 4 December 2019

"कराह उठता है" और अन्य कविताएँ / कवि -प्रभात सरसिज ("He groans" and other poems by Prabhat Sarsij with translation in English)

प्रभात सरसिज की कुछ नवीनतम कविताएँ / Some Latest Poems by Prabhat Sarsij
These poems have been composed by this veteran poet in 2019

 कराह उठता है /He groans

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+ Today Bejod India)




कविता सदियों तक कवि की मुंहलगी मीत बन नहीं रहती
उसके शब्दों को बस बोल देते हैं कवि और
बादलों की जूतियां पहन चल देते हैं शब्द
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शब्दों के इशारे पर ही किसी महाद्वीप के जलागारों को
धेनु बनाकर दूह लेता है सूरज और
शब्दों के संकेत पर ही काले बादल
दूसरे महाद्वीप की वादियों पर जल-समूहों को
उलीच देते हैं
शब्दों के मुंह ताकते रह जाते हैं तानाशाह

शब्द जब जोर से बोले जाते हैं तो
सदियां झनझना उठती हैं
कवियों को भी निस्संग छोड़ कविताएं
ग्रहों का चक्कर लगाती हैं
सप्तर्षि को पतंग बना नचाती हैं
कभी मन हुआ तो पृथ्वी के अतल में पहुंच
सोने-चांदी के डबरों के किनारे ठुमके लगाती हैं

कवि की स्मृतियां तो बस
किसी पहाड़ी चट्टान की छाया में विश्राम करती हैं और
भावक नृत्य करते हैं सहस्त्राब्दियों तक

कविता के शब्दों के बोल जब गुस्सा में होते हैं तो
बिजलियां गिरती हैं तब
तानाशाह जोड़-जोड़ के भीषण दर्द से
कराह उठता है।

Poetry does not remain a henchman 
Of a poet for centuries
Poets simply speak it's words and
Words just fly off like a cloud.

Only at the behest of words
The sun milks the water reservoirs of a continent
Making them a milch cow
It's only at the prompt of the words 
That the dark clouds pours down the water mass 
On the valleys of some other continent
Dictators keep staring at words
Awestruck and helplessly.

When Words somehow speak out loudly
It shivers for many centuries
And just leaving alone the poets 
The poems revolve around planets
They fly kite treating 'Big Dipper' as the same
It they feel like so, reaching the bottom of the earth
They bang on the sides of gold and silver reserves.

The poet's memories 
Just take rest in the shadow of a hill's rock and
Dance for millennia on a favourite tune

When the words of the poem are in anger
The lightnings fall
A tyrant groans under an unbearable pain
Of its own manipulations.
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 आज का दिवस / This Day

पलकों से गृहस्थ प्रेयसी की
नाक की नोक को गुदगुदाया
होठों से गृहस्थ प्रेयसी के
कानों की ज़िल्द को सहलाया

गृहस्थ प्रेयसी की आंखों के गोलकों में गौर से
पृथ्वी को नाचते देखा
फिर उसके हाथों से
तुलसी और काली मिर्च के
काढ़े का कटोरा लेकर
होठों से लगाया

साझा मन ने संकेत में कहा कि
आज का दिवस भी
श्रम के आनन्द से सराबोर होगा ।

With my eyelashes
I tickled the nose tip of the beloved house
Of my beloved housemaker 
From my lips 
I titillated the covers of her ears

I saw a revolving earth 
In the eyeballs of the beloved homemaker lady
Then taking the bowl of decoction 
Of basil and pepper
From her hands
And touched it with my lips

The shared minds indicated to each other
That even this day
Will be flooded with joy of labor.
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सदियों को हराकर/ Beating the centuries

गृहस्थ प्रेयसी को आज
चूल्हे से राख नहीं मिली
आधे बरतन भी साफ नहीं हुए
उसने सदियों को टटोल कर देखा
राख नदारत थी
वहां भी कई जूठे कड़ाह रखे थे

उसके गालों पर उदासी की परतें
देखी जा सकती थीं
आंखों में समन्दर का स्वाद वाला
पानी डबडबाया था

उसने कुदाल पर आंटा गूंथा
अपने सीने में उंगलियां डालकर
आग निकाली

कुदाल का काठ निकालकर चूल्हा सुलगा लिया
एक रोटी बनी और
सामने पत्तल पर नमक-प्याज रखकर
भोजन परस दिया


गृहस्थ प्रेयसी का मुखमण्डल
चमक रहा था
सदियों को हराकर
आनन्द से भर गया था उसका चेहरा।

Today, the beloved homemaker
Could not find ashes from the stove
Not even half the dishes could be cleaned
She explored many centuries
The ashes were missing
Large number of utensils were lying there too

Layers of sadness on her cheeks
Were quite visible
The eyes were overflowing 
With the water of a sea.

She kneaded flour on a hoe
Putting fingers in her chest
Set fire

Taking out the wood from the hoe
She lighted the stove
And cooked a bread
Placing it before me 
With salt and onion on a leaf-plate
Served food

The whole face of the beloved homemaker
was shining
Beating the centuries
Her face was filled with joy.
...........


 हवाबाज

हवा को कन्धे नहीं होता
उसकी अनिश्चित दिशा होती है गमन की
उसकी छांह भी नहीं होती

कहां तक जाएंगे आप पतंग बनकर
बीच में ही कट सकता है धागा
ज्यादा उड़ेंगे आप बिना बांह वाली हवा की अफवाह में
तो ताड़ में लटक कर रह जायंगे

हवाबाजों की फ़ितरत के वश में भी नहीं है हवा
एक गोल कंघीनुमा सुअरबाड़े में
जमा होते हैं हवाबाज
हवाबाज गुब्बारों की तरह उछलते हैं बिना
एक-दूसरे को चोट पहुंचाते हुए

इस साॅफ्ट वातावरण में
कभी धक्कामुक्की भी होती है
काॅलर पकड़ते हैं
एक-दो बटन टूटते है
पर किसी के दांत नहीं टूटते
वहां से निकलते हैं तो पतंग हो जाते हैं छोटे हवाबाज
कड़ा मंझा वाले धागे की छोर
थामे रहते हैं कोई न कोई खलनायक-हवाबाज ।
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सुलग रही हैं बीड़ियां


सूर्य की रश्मियां धीमी होती हुईं
गायब हो गयी हैं
फिलहाल सूरज नहीं उगेगा
सुबह की तरफ़दारी में
केवल कलमकार होंगे

सात घोड़ों को
राहू हांक रहा है

धुप्प अंधेरे से लड़ने के लिए
कलमकारों के पास
मुक्तिबोध की दी हुईं फ़कत
बीड़ियां सुलग रही हैं ।

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उसकी कमीज में बटन नहीं थे
(महान कवि नागार्जुन का प्रत्यक्षदर्शी वर्णन)


वह रह-रहकर
राजधानी चला आता था खंजड़ी लेकर बेधड़क
खंजड़ी पीटता था बे-ताल
खंजड़ी पर बेसुर गाता था
छन्दों को उछालता था ऐसी धुन पर जैसे
राजा का ताज उछाल रहा हो

इस छोटी राजधानी की एक मिठाई दुकान के कोने पर
उसकी खंजड़ी की धपर-धपर आवाज के छोर
आज भी तैर रहे हैं हवा में
आंधी-तूफान को ठेंगा दिखाते हुए

उसकी कमीज में एक भी बटन नहीं थे लेकिन
बद्-मिजाज सत्ता के दिमागी बटन को
बार-बार दबा देता था

समय रुक जाता था
खुर्दबीन लगाकर जब
बांचता था कोई युवा-कविता

घड़ीसाज से पता लेकर उसने खरीदी थी खुर्दबीन
उसे घड़ी की जरूरत कभी नहीं पड़ी ।
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मूल हिन्दी कवि (Original poem in Hindi) - प्रभात सरसिज (Prabhat Sarsij)
अंग्रेजी में अनुवाद (Translated into English by) - हेमन्त दास 'हिम' (Hemant Das 'Him')
मूल कवि का मोबाइल नं.(Mobile Number of the original poet) --8709296755
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल (Email ID for feedback)- editorbejodindia@gmail.com
Introduction of the poet- Sri Prabhat Sarsij is a veteran poet in Hindi who is not only contemporary but also has been in friedly terrms with the icons of Hindi literature like Alok Dhanawa. Since his early years he devoted his life for the poetry though did publish his first collection of poems in Hindi in title "Lok-raag' just a few years back. 'Gaja-vyaghra' is his second and latest collection of poem that is published in 2017. He is a revolutionary poet and his mettle is resistance. He has deep understanding of the politics and keeping a vigil on the day-to-day development he writes a poem fearlessly upholding the cause of social harmony. The technique and crafts though keep varying he can invariably be called a freestyle poet with a big repertory of beautiful Sanskrit words. 







 
 















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