"मैं आम से खास न बन सकी.../ क्योंकि साहित्य को पढ़ा, मखनविधा नहीं पढ़ी"
कविता के माध्यम से आमजन तक पहुंचना उसके इर्द-गिर्द के संदर्भों को शब्दों के माध्यम से उकेरना, किसी भी कवि के लिए एक चुनौती होता है। इस चुनौती को समकालीन कवियों ने पूरी शिद्दत के साथ स्वीकार किया
वरिष्ठ नागरिक मंच एवं साहित्य परिक्रमा के संयुक्त तत्वावधान में एक काव्य संध्या का आयोजन , पटना के आशियानानगर में किया गया , जिसका संचालन करते हुए कवि सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया।
दिनांक 08.02.2020 को वरिष्ठ गीतकार हरेंद्र सिन्हा के मौर्य पथ (जगदेव पथ के निकट), पटना स्थित आवास पर एक लघु काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध गीतकार, कवि एवं कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की तथा संचालन सुपरिचित चित्रकार, कवि एवं लघु कथाकार सिद्धेश्वर ने किया। इस अवसर पर घनश्याम के अलावा भगवती प्रसाद द्विवेदी, मधुरेश नारायण, सिद्धेश्वर, हरेंद्र सिन्हा, सुनील कुमार, सतीश कुमार सिन्हा, कवयित्री पुष्पा जमुआर आदि ने समसामयिक विषयों पर आधारित सार्थक रचनाओं का पाठ किया।
कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भगवती प्रसाद द्विवेदी नेकहा कि" कवि अपनी अपनी संवेदनाओं के साथ जीता है और जीवन के दूर फलक तक अपनी दृष्टि रखता है। उन्होंने कहा कि "कविता को पूरी गंभीरता के साथ आत्मसात करने के लिए बड़ी-बड़ी कवि सम्मेलनों की नहीं बल्कि इस तरह की छोटी- छोटी कवि गोष्ठियों की जरूरत है। आज के नए कवि इस जरूरत को बखूबी महसूस कर रहे हैं।"
इस सारस्वत समारोह के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ साहित्यकार सतीश प्रसाद सिन्हा।
कवि गोष्ठी के आरंभ में शायर सुनील कुमार ने अपने अनोखे अंदाज में गजल की पेशगी की-"
उसे भूलना मत तुम्हें जो सँभाले
इबादत बड़ी है ऐ बंदे निभाले
दिखाती है तक़दीर हर खेल अपने
नहीं कुछ भी टलता किसी के भी टाले
छुपाने की कुछ मेरी आदत नहीं है
जो दिल में है वो ही लबों ने निकाले
कोई तो मिले हुस्न वालों में ऐसा
चुरा कर मुझे मुझसे अपना बना ले
मचल मैं उठा ख़्वाहिशों की डगर पे
यूँ दिल को किया मैंने तेरे हवाले
ये है खुशनसीबी मिला साथ तेरा
भले ही जमाना ये कीचड़ उछाले।
वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने सेवानिवृत्त की अंतः स्थिति को अपनी कविताओं में व्यक्त किया-
"मगर अब स्वयं सेवानिवृत्त होकर / वे जब कभी आते हैं दफ्तर
तो अपने लोग भी बिचकाते हैं मुंह / कसते हैं फब्तियां
अब तक जिंदा है आप ?
कब मरोगे मेरे बाप ?"
कवि सिद्धेश्वर ने आज की साहित्यधर्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा-
"जहां कला साहित्य और संस्कृति बाजार में उतर आए /करने को व्यापार/
वहां सड़क से संसद तक / कहां दिख पड़ता है शब्दों का चमत्कार?
कहां बन पाती है कविता एक हथियार ?"
वरिष्ठ शायर घनश्याम ने एक श्रृंगारिक ग़ज़ल का पाठ किया-
"ज़ुल्फ़ों की घनी छांव में आने तो दीजिए
नयनों की भूख-प्यास मिटाने तो दीजिए
रूठे हुए हैं यार मनाने तो दीजिए
बिगड़ी हरेक बात बनाने तो दीजिए
घूंघट ज़रा-सा आप उठाने तो दीजिए
जी भरके चांदनी में नहाने तो दीजिए
सुस्मित, सुमन-समान सुकोमल स्वरूप को
पलकों की पालकी में बिठाने तो दीजिए ।"
कवयित्री पुष्पा जमुआर ने आज की साहित्यिक माहौल और काव्य मंच पर तीखा प्रहार करते हुए कहा-
"एक शक्ल एक अक्ल , सब खास किस्म के लेखक हैं
शॉल और प्रतीक चिन्हों से सम्मानित होते हैं
मैं तो आम लेखिका हूं / पढ़ना -लिखना मेरा निजी धंधा है
....मैं आम से खास न बन सकी/वे खासमखास हो गए /
क्योंकि, मैंने साहित्य की हरेक विधा को पढ़ा है/
किंतु मखनविधा नहीं पढ़ी/
चुनांचे मैं आम लेखिका हीं रही,खास विशिष्ट ना बन सकी ।"
कवि मधुरेशशरण ने अपनी कविताओं की अभिव्यक्ति इस प्रकार से दिया -
"माना दुनिया में अकेले आए थे/
माना कि दुनिया से अकेले जाएंगे !
जब तक है धरा पर ,साथ निभा जाओ
तन्हा दिन कटता नहीं, अब तो आ जा!"
कवि हरेन्द्र सिंह ने भोजपुरी में अपनी एक कविता का पाठ किया-
"केकर बात सुनाईं ए भैया जी,/केकर बात सुनाईं
गांव में देहात में जन्म भईल मोर/
अनपढ़ रहली मोर माई,/बाबू जी रहले सीधा साधा ,
मुंशी जी उहां के कहांईं !"
"दहशत पलाश गाल लाल लाल बा" जैसी भोजपुरी गीतों का पाठ किया महामाया विनोद कुमार ने।
कवि गोष्ठी का समापन रागिनी सिंहा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर / घनश्याम
छायाचित्र सौजन्य - घनश्याम
रपट प्रस्तोता का पता - बॉक्स नंबर 205, करबिगहिया /पटना 800001 (बिहार)
रपट प्रस्तोता का मोबाइल - 92347 60365
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
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