सबके चेहरे पर लग गयी मास्क रूपी एक खोली / कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
सांस्कृतिक संस्था "मेरा सफर" के तत्वावधान में कुमारी स्मृति कुमकुम की नवीनतम काव्य कृति "मेरा चांद किधर है" का लोकार्पण संस्कारशाला सह पुस्तकालय के सभाकक्ष में संपन्न हुआ।लोकार्पण करने वाले अतिथि साहित्यकारों में प्रमुख थे - शायर प्रेमकिरण, सिद्धेश्वर, डॉ. विजय प्रकाश, वीणाश्री हेंब्रम, सीमा रानी. संजीव कुमार, महादेव कुमार मंडल और संजय कुमार संज!
इस भव्य समारोह में लोकार्पण के पश्चात "मेरा चांद किधर है" पुस्तक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रेम किरण ने कहा कि-" प्रेम में रची- बसी कविताओं के सृजन में कुमारी स्मृति बहुत खूब दिखी है। उनकी कविताओं में कुछ ऐसी ही बात उभर कर आई है-
"कौन सुने दुःख दर्द किसी का, किसको फुर्सत जो बैठे पास
सबकी अपनी अपनी दुनिया / सब का अपना-अपना चांद" (हलाकि लोकार्पित पुस्तक और उसमें प्रकाशित कविताओं पर चर्चा की जाती, तो बात कुछ और होती।)
"कौन सुने दुःख दर्द किसी का, किसको फुर्सत जो बैठे पास
सबकी अपनी अपनी दुनिया / सब का अपना-अपना चांद" (हलाकि लोकार्पित पुस्तक और उसमें प्रकाशित कविताओं पर चर्चा की जाती, तो बात कुछ और होती।)
लोकार्पित पुस्तक की रचनाओं पर दो-तीन रचनाकार ही सार्थक व्याख्यान दे सके और वही चर्चा का विषय भी रहा और समारोह का केंद्र बिंदु भी। कुमारी स्मृति की कविताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कवि मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा कि-" सामाजिक विसंगतियों के प्रति कवयित्री गंभीर दिख पड़ती हैं।.
प्रियतम के प्रति नोंक- झोंक को भी उनकी कविताओं में देखी जा सकती है। एक तरफा प्यार के बावजूद वह आशावादी दिख पड़ती हैं, अपनी कविताओं में शोषण और अत्याचार से देश का दम घुट रहा है। सच्चाई मिमिया रही है। इन संदर्भों को भी उन्होंने अपनी कविताओं का विषय बनाया है। कुमारी स्मृति की कविताओं के संदर्भ में मुकेश ने आगे कहा कि-"कविता में जहां दर्द है, वहीं देश प्रेम, त्याग, प्यार और कटाक्ष भी है। ये सारी बातें स्मृति की कविताओं में देखने को मिलता है।"
डॉ सीमा रानी ने कहा कि - "कल तक जहां चांद शायरों व कवियों के लिए प्रेम का प्रतीक था उसे इस संग्रह के माध्यम से और विस्तार दिया गया है। कविताओं में सहजता और सरसता है जो स्मृति की कविताओं को पठनीय बनाती है।"
मुख्य वक्ता कवि सिद्धेश्वर ने लोकार्पित पुस्तक" मेरा चांद किधर है" पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कुमारी स्मृति की कविताओं पर लंबा व्याख्यान दे डाला। उन्होंने कहा कि - "नारी विमर्श को एक नए अंदाज में प्रस्तुत करता है। इस संग्रह की कविताएं नारी जीवन के अस्तित्व को एक नई पहचान दिलाता है यह संग्रह।
कवयित्री स्मृति की कुछ कविताएं समाज को एक नई दिशा देती है, तो कुछ सामाजिक - आर्थिक, राजनीतिक व शोषण के खिलाफ आवाज उठाती दिखाई पड़ती है। मनुष्यता को बचाए रखने और उम्मीदों को जीवंत रखने का जीवंत प्रमाण है स्मृति की कविताएं। सिद्धेश्वर ने स्मृति के इस संग्रह की कई कविताओं का उदाहरण देते हुए कहा कि - "समाज के संकीर्ण नजरियों के प्रति भी कवयित्री सचेत और गंभीर दिख पड़ती हैं। अपने दम-खम पर अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी अलग पहचान बनाने को बेचैन दिख रही है युवा कवयित्री कुमारी स्मृति -
"लिखावटों-सी सिमट गई हूं मैं /अधूरी ख्वाहिश बनकर
और उनकी ये पंक्तियाँ भी सराहनीय है कि-
और उनकी ये पंक्तियाँ भी सराहनीय है कि-
क्या पता था आज तुम्हें / कि यही मेरा अकेलापन / मेरा अभिशाप नजर आएगा
और तुम मेरी मुहब्बत को/ किसी कोने में/ सजी वस्तु की तरह सजा कर/
अपने दोस्तों की दुनिया सजाना चाहोगे!"
यहां पर सवाल यह है कि आखिर इस जमाने से शिकायत क्यों है कवयित्री को? मुहब्बत खुद की तलाश ही तो है। सच्चाई से जब हमारा सामना होता है और उससे खुद को हम अलग-थलग पाते हैं, तब हमारे भीतर की अंतस वेदना से टीस का उठना ही कविता है जो स्मृति की कविताओं में परिलक्षित होता है!
और तुम मेरी मुहब्बत को/ किसी कोने में/ सजी वस्तु की तरह सजा कर/
अपने दोस्तों की दुनिया सजाना चाहोगे!"
यहां पर सवाल यह है कि आखिर इस जमाने से शिकायत क्यों है कवयित्री को? मुहब्बत खुद की तलाश ही तो है। सच्चाई से जब हमारा सामना होता है और उससे खुद को हम अलग-थलग पाते हैं, तब हमारे भीतर की अंतस वेदना से टीस का उठना ही कविता है जो स्मृति की कविताओं में परिलक्षित होता है!
कविताओं पर समीक्षात्मक दृष्टि डालते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि - "मेरा चांद किधर है" काव्य कृति में स्मृति की अधिकांश कविताएं शाश्वत प्रेम की कविताएं हैं। और यह एक नारी हृदय की उपज है। और इस अंकुरित जीवन मूल्य, जोश-ए-जुनून, अंतर्दृष्टि, श्रृंगारिक लयात्मकता, भाव प्रवीणता के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों पर तीखे प्रहार, उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति को एक नया आयाम देती प्रतीत होती है।"
इस समारोह में, काव्य संग्रह के प्रकाशक नए पल्लव के राजीव मणि और शशि शेखर ने कवयित्री कुमारी स्मृति कुमकुम को हिंदी भाषा एवं साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने के लिए महादेवी वर्मा सम्मान से सम्मानित किया। सभी उपस्थित साहित्यकारों को भी प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया, जिसका आधार और औचित्य मेरे समझ में नहीं आया। शायद उनकी उपस्थिति मानक रहा हो, जिसके अभाव में कोई भी समारोह सफल नहीं होता।
पहले सत्र के अंत में कुमारी स्मृति कुमकुम ने अपनी दर्जनों कविताओं का पाठ किया-"
मुझे ढूंढोगे एक दिन /किताबों में/ आज जिंदा हूं!
ढूंढ लो हमदम मुझे /तुम आज अपने दिल की राहों में /
उम्र भर मेरी निगाहों में /तुम्हारा इंतजार होगा! उम्र भर मेरी राहों में /
मुझे ढूंढोगे एक दिन /किताबों में/ आज जिंदा हूं!
ढूंढ लो हमदम मुझे /तुम आज अपने दिल की राहों में /
उम्र भर मेरी निगाहों में /तुम्हारा इंतजार होगा! उम्र भर मेरी राहों में /
-" तेरे मेरे बीच एक नदी है /सीने की विश्वास की
जो बाकी है /कभी शांत सी/ कभी तूफान से
तुम्हारी याद के कुछ पन्ने/ /उम्र भर लोग जाने क्या क्या कहते हैं ?"
जो बाकी है /कभी शांत सी/ कभी तूफान से
तुम्हारी याद के कुछ पन्ने/ /उम्र भर लोग जाने क्या क्या कहते हैं ?"
"जज्बातों का सिलसिला /देश परदेश आसमां से जमीं तक/ घर से बाहर तक /. -" -
"वो खुशबू में /लिपटी हुई चांदनी वो आसमानों की
/दुआओं सी/वो समंदर की सतह पर/मचलती हुई कश्तियां। "
"वो खुशबू में /लिपटी हुई चांदनी वो आसमानों की
/दुआओं सी/वो समंदर की सतह पर/मचलती हुई कश्तियां। "
" चांद तुम फिर आना /मेरे छत पर /चांदनी लेकर /
तेरे रश्मि राज की ओज से मैं पूछूंगी एक सवाल/ मेरा चांद किधर है? "
तेरे रश्मि राज की ओज से मैं पूछूंगी एक सवाल/ मेरा चांद किधर है? "
-जैसी उन्होंने ढेर सारी कविताओं का पाठ कर, श्रोताओंका मन मोह लिया।
अल्पाहार के उपरांत कवि गोष्ठी में, एक दर्जन से अधिक कवियों ने अपनी काव्य प्रस्तुति दी। कुछ कवियों की काव्य पंक्तियाँ इस प्रकार है -
डॉ. विजय प्रकाश -
मृगशावक है आरण्य, कुलांचे भरता है;
प्रिय, प्रेमपत्र लिखने को फिर मन करता है।
*सूनी-सूनी-सी आँखों में फिर अनायास,
सुन्दर-सुन्दर स्वप्निल सरोज मुसकाते हैं,
जाने कैसी इक अबुझ प्रेरणा-सी पाकर
कुछ मंत्र सरीखा प्राण पुनः दुहराते हैं;
पावक-सरिता को पार डूबकर करने के
अनुभव से गुजरने को फिर-फिर मन करता है।
डॉ. विजय प्रकाश -
मृगशावक है आरण्य, कुलांचे भरता है;
प्रिय, प्रेमपत्र लिखने को फिर मन करता है।
*सूनी-सूनी-सी आँखों में फिर अनायास,
सुन्दर-सुन्दर स्वप्निल सरोज मुसकाते हैं,
जाने कैसी इक अबुझ प्रेरणा-सी पाकर
कुछ मंत्र सरीखा प्राण पुनः दुहराते हैं;
पावक-सरिता को पार डूबकर करने के
अनुभव से गुजरने को फिर-फिर मन करता है।
संजय कुमार संज -
"दुनिया कुछ भी नहीं है चाहत के सिवा/
यह इश्क कुछ भी नहीं है चाहत के सिवा!!
- मुझे फर्क नहीं पड़ता /कि कौन क्या कहता है? "
"दुनिया कुछ भी नहीं है चाहत के सिवा/
यह इश्क कुछ भी नहीं है चाहत के सिवा!!
- मुझे फर्क नहीं पड़ता /कि कौन क्या कहता है? "
प्रभात कुमार धवन -"आकाश तुम छाए हो सारे जहां पर /एक छत की तरह"
* नूतन सिंहा -
"इतनी खासियत है /चांद तुम्हारी चांदनी में
चांदनी बिखरती जाती हो पर चांद तुम किधर हो?"
"इतनी खासियत है /चांद तुम्हारी चांदनी में
चांदनी बिखरती जाती हो पर चांद तुम किधर हो?"
*चौधरी संजय-
"क्या बताऊं चांद किधर है/ उनके अरमानों को /समझ नहीं पाती चांदनी! "
"क्या बताऊं चांद किधर है/ उनके अरमानों को /समझ नहीं पाती चांदनी! "
-" होती है उसके मुस्कानों में नशा /बना जीवन का जुनून! /क्या दिल्ली क्या देहरादून!
नशा किसी को गाने में /नशा किसी को दिल लगाने में/ कोई पीकर चूर/ कोई मांगे कोहिनूर /
नशा किसी को गाने में /नशा किसी को दिल लगाने में/ कोई पीकर चूर/ कोई मांगे कोहिनूर /
संजीव कुमार -"चिड़िया जब मिलना उनसे/ मर कर भी जिंदा है /
*अभिमन्यु-" लिखो तो ऐसा/ जैसे सुबह की सूर्य किरण /संध्या का सूर्यास देखकर लिखता है! "
*अविनाश -"सुनो समय का पदचाप चुपचाप/ तुमको देखे युग बीते/ मन के सारे कागज रीते! और -"यह वक्त बड़ा बेवफा है/ कभी मेरा हुआ करता था /आज ये साजिशें रचा करता है /
यह रात यह चांद सितारे /ये सब मेरे थे/नहीं अब एक टुकड़ा जमीं
/आज कल देर रात तक भी घर नहीं जाता हूं/ ना ममता का आंचल पाता हूं....!"
यह रात यह चांद सितारे /ये सब मेरे थे/नहीं अब एक टुकड़ा जमीं
/आज कल देर रात तक भी घर नहीं जाता हूं/ ना ममता का आंचल पाता हूं....!"
महादेव कुमार मंडल-"
दिखते हैं मुझको यहाँ सारे/काव्य जगत के तारे-सितारे/संस्कारशाला प्रांगण में,
जिसको ढूँढे मेरी नजर है !/बोलो "मेरा चाँद किधर है" !!
स्मृति में जो बसा है मेरे, /ढूँढू उसको ही शाम-सवेरे,/जिसके ना होने से मुझको,
मुश्किल लगता 'मेरा सफर' है/बोलो "मेरा चाँद किधर है"।
और -
और -
"कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
कहीँ नजर ना आई मुझको दिवानों की टोली
सब पर दिये दिखाई 'कोरोना' का ही साया
पागल होकर पीछे पड़ गया घातक चीनी छाया
सबके चेहरे पर लग गयी मास्क रूपी एक खोली
कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
कहीँ नजर ना आई मुझको दिवानों की टोली
हाथ मिलाने से भी डर रहे लोग यहाँ
घर से भी नही निकलते जाएं कोई कहाँ
चाहे ना कोई लगा दे रंग-गुलाल या रोली
कैसे बताऊँ कैसी बीती अबकी होली
कहीँ नजर ना आई मुझको दिवानों की टोली।। "
इसके अतिरिक्त इंदु उपाध्याय, अविनाश सूर्या, राणा वीरेंद्र सिंह, नूतन, पूनम, सीमा जी,मनीष अख्तर और नसीम अख्तर ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया है। इस पुस्तक के प्रकाशक शशि शेखर ने कहा कि हिंदी भाषा साहित्य को लोग भूलते जा रहे हैं। नुक्कड़ पर पहले पत्रिकाएं मिल जाया करती थी। आज लोग हिंदी पत्रिकाओं और पुस्तकों से लोग दूर भाग रहे हैं। ऐसे में संस्कारशाला सह पुस्तकालय की स्थापना पटना का गौरव बढ़ाया है।
यह कार्यक्रम "मेरा सफर"संस्था द्वारा संस्कारशील पुस्तकालय, गर्दनीबग, पटना में हुआ. संतोष चंद्रा( लक्ष्मी स्टूडियो द्वारा मंच की अभूतपूर्व सजावट की गई था। इस पूरे समारोह का सफल संचालन किया युवा शायर नवनीत कृष्णा ने और धन्यवाद ज्ञापन किया संजीव कुमार।
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आलेख और छायाचित्र - सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल -siddheshwarpoet.art@gmail.com
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Sanjay Kumar Sanj22 March 2020 at 01:05
ReplyDeleteबहुत अच्छी रिपोर्टिंग । हालांकि एक वक्ता के रूप में मैंने भी अपने विचार कवयित्री और उनकी पुस्तक के बारे में व्यक्त किए थे। मैंने कहा था कि कैसे एक नारी अपने सभी दायित्वों का निर्वहन करके भी समाज के प्रति अपने नजरिए को पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करती है और यह भी नारी सशक्तीकरण और विमर्श की एक पहचान है। इनकी कविताओं में प्रेम की महक, चाहत की उत्कंठा, सामाजिक कुरीतियों के प्रति गंभीर आवाज, फूलों की महक और बादलों से भी ऊपर उड़ने की झलक दिखाई देती है। और इसीलिए मैंने पूर्व नियोजित एक हास्य कविता की जगह नारियों को समर्पित एक प्रगतिवादी कविता पढ़ी थी। धन्यवाद