Friday, 13 March 2020

लेख्य मंजूषा की कवि गोष्ठी 8.3.2020 को पटना में सम्पन्न

उस स्त्री को लिखना चाहता हूं प्रेम पत्र
अस्थानीय सदस्यों की रचना लाइव वीडियो चैट के द्वारा करने की शुरुआत

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पटना की साहित्यिक संस्था "लेख्य मंजूषा" के तत्वावधान में होली काव्योत्सव एवं महिला दिवस खूब धूमधाम से मनाया गया।

"होली का त्योहार रंग राग का महोत्सव है। जो हमें जीवन से जोड़ता है। सामाजिकता व सामूहिकता का भाव लिए यह त्योहार हमें अपनी संस्कृति से जोड़ रहा है। भीड़ में रहते हुए हम अकेले हुए जा रहे हैं। यह होली पर्व उम्र की सीमा तोड़ सबको रंगों में डूबा देती है।"उक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकारश्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने लेख्य - मंजूषा के त्रैमासिक कार्यक्रम “महिला दिवस और होली के पावन अवसर पर” द इंस्टीच्यूशन ऑफ इंजीनियर्स भवन में कहा।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन कर के की गई। तदोपरांत लेख्य - मंजूषा की त्रैमासिक पत्रिका “साहित्यिक स्पंदन” का लोकार्पण किया गया।

लेख्य - मंजूषा की कार्यकारी अध्यक्ष रंजना सिंह ने संस्था के बारे में बताते हुए कहा कि विगत तीन वर्षों से संस्था अनेक उपलब्धियों को हासिल किया है। अभिभावक डॉ. सतीशराज पुष्करणा और अध्य्क्ष विभा रानी श्रीवास्तव के छत्रछाया में संस्था दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है। आज के कार्यक्रम में पहली बार अस्थानीय सदस्यों की रचना लाइव वीडियो चैट कर  रचना का पाठ किया गया।

कार्यक्रम में उपस्थित लघुकथाकार डॉ. ध्रुव कुमार ने महिला दिवस के शुभ अवसर पर अपना चिंतन रखते हुए कही कि-" हर रोज़ हम महिलाओं के प्रति घटनाएं देखते हैं। ऐसा क्यों होता है ? जिस देश में युद्ध लड़ने के भी नियम है, उस देश मे एक महिला पड़ोसी देश में तो अपनी इज्जत बचा लेती है लेकिन अपने ही देश मे उसे अग्नि -परीक्षा से गुजरना पड़ता है।

उन्होंने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि- "संस्कार घर से शुरू होती है और वहीं से भेद भाव शुरू होता है। निर्भया को भी संस्कार देने वाली एक माँ थी तो निर्भया के साथ नृशंस कृत्य करने वाले लोगों को भी संस्कार देने वाली एक माँ ही थी। जब संस्कारो में भेदभाव होगा तब तक देश में इस तरह की घटनाएं सामने आती रहेंगी। अपनी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। आज हम मंच से जो बोलते हैं, उसे खुद के जीवन में जब तक नहीं उतारेंगे, तब तक यह समाज में सुधार बहुत दूर ही नजर आती है।"

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बंगलौर से आए कवि राश दादा राश ने होली के अवसर को देखते हुए कहा कि “आज मैंने थोड़ा सा जाना, पूरा पहचाना,
अब होली के अवसर पर पड़ेगा मुझे गाना”।
महिला दिवस पर अपनी दादी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि गाँव में जब गुंडे घुसने की कोशिश करते तो सबसे पहले वह मेरी दादी को देखा करते, अगर दादी दिख जाती तो वह गुंडे उल्टे पाँव भागते थे। महिलाओं को सशक्तिकरण को हमसे नहीं चाहिए वह खुद शक्ति का स्वरूप हैं। इसलिए मैं महिला दिवस को शक्ति दिवस के तौर पर मानता हूँ।

अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायण जी ने किया। स्वागत में सहयोग करते हुए शिक्षिका संगीता गोविल जी ने सभी अतिथियों को चेहरे पर गुलाल लगा होली की हार्दिक बधाई दिया। कार्यक्रम के अंत में पटना बाढ़ में जिन सदस्यों ने मदद की थी उन सभी को अतिथियों के हाथों प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम में साहित्यकार प्रणय कुमार सिन्हा, कवि राज किशोर रंजन, कवि शहंशाह आलम, कवि घनश्याम, वरिष्ठ साहित्यकार नीलांशु रंजन, कवि सिद्धेश्वर, सुनील कुमार, रश्मि गुप्ता, मो नसीम अख्तर इत्यादि उपस्थित थे तथा उन्होंने भी होली तथा महिला दिवस से संदर्भित अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ कर, गोष्ठी को यादगार बना दिया।मंच संचालन अभिलाषा कुमारी और रश्मि अभय ने मिल कर किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रब्बन अली जी ने किया।

इस कार्यक्रम में लेख्य-मंजूषा के सदस्यों द्वारा भी रचना पाठ किया गया।

 "राजेन्द्र पुरोहित (जोधपुर राजस्थान) की पंक्तियाँ पढीं अभिलाष दत्त ने -
 "*होली की सार्थकता*(पद्य रचना)/ "
कुछ और भी हैं रंग के त्यौहार के मानी/
होली का अर्थ सिर्फ ठिठोली नहीं होता"/

मधुरेश नारायण -
-"हौले-हौले,चुपके-चुपके है यह किसकी आहट
खिड़की से बाहर झाँका तो खड़ी मिली फगुनाहट ।

सरिता दत्त -
"स्त्रियों को संबोधित कविता/अपने कानों की बाली को आओ अपनी कलम बना लें।
अंतस से थोड़ा बात करें, जो सही लगे और साफ दिखे, उसे ही अपना धरम बनालें।.

पूनम (कतरियार)
-"तुम्हारे सपनों की पतंग को प्रेरित कर, उड़ान देती हूं,
जमीं से आसमां तक तुम्हें,नित नये आयाम देती। हूं......... उ
भय-सत्ता में अपनीअहम भागीदारी दर्शाती हूं./

सीमा रानी
-" ऐ होली इस साल तूकौन सा रंग, लेकर आई है/ना/
लाल ना पीला/ना हरा ना गुलाबी:तू तो पूरी/की पूरी/सफेद रंग में/नहाई है।

 अमृता सिन्हा ने-" पीली-पीली सरसों फूलीखिलते हर-सू सुर्ख गुलाब,
/रंग बिरंगी छटा है बिखरी /आया देखो माह ये फाग !"

सुधा पांडे -
"औरत एक/खिलौना थी, /वह माटी की मुर्ति थी

मिनाक्षी कुमारी ने-" अबकी होली ऐसी मनाओ/ भूल भेद भाव को सबको प्यार के रंग लगाओ।

पूनम देवा ने-"आज निर्भया सोई हो / आज निर्भया सोई होगी! "आदि कविताओं का पाठ कर पूरे वातावरण को काव्यरस में डुबो दिया।

रश्मि गुप्ता ने-" बेल नहीं हूं मैं/जिसे किसी सहारे की / जरूरत होती है।"

 सिद्धेश्वर ने-" किस्मत मेरी कि मुकाम तक ना पहुंचे /इश्क किया मगर अंजाम तक ना पहुंचे!
दौलत के तराजू पर तौला गया मेरा दिल/ इस नीलामी के ऊंचे दाम तक ना पहुंचे!"

भगवती प्रसाद द्विवेदी -
"बेटियां इतिहास रचती रचें, कुछ ऐसा करें
खुलेपन की, हिमायत भी/ जकड़बंदी भी वहीं बने हाथी दांत कब तक
रहेंगे शिकवा यही/ खलबली चहुंओर मचती रहे/ कुछ ऐसा करें! "

कवि घनश्याम-" धरती ने धारण किया वासंती परिधान/ गोरी के मुख पर खिली मंद मंद मुस्कान!"

शहंशाह आलम " चाहता हूं /
तुम्हारे लिए, कुछ लिखूं/देखूं तुममें/
प्रेमिका का अक्स! "

नीलांशु रंजन ने" दुनिया की सारी खुशियां दे दूं तुम्हें/ तेरी आंखों के सपनों को पंख लगा दूं!"

सुनील कुमार  -
"जब मिलेंगे वह मुस्कुरा देंगे /कौन जाने कब दगा देंगे
पेड़ पौधे सदा लगाया करो /छांव पाकर सभी दुआ देंगे /! "

नसीम अख्तर -" छोड़िए डरना मरना तो है एक दिन /चैन से करिए बसर जिंदगी/ मरना तो है एक दिन! "

संजय कुमार सिंह -" मिट जाती है सभ्यता संस्कृति / "
मोना राकेश  -" मेले में खोया सांवरिया/ ढूंढू मैं कैसे उसे दिन दुपहरिया! "
भावना ने-" जीवन यही कहानी है हम जीते जाते हैं पल पल और...! "
पूनम देवा ने-" आज निर्भयता /निर्भय होकर सोई होगी /जीत हुई नारी के स्वाभिमान का! "
सुधा पांडे ने -" औरत एक खिलौना की माटी की मूरत नहीं /वह भी एक इंसान है! "
एकता कुमारी ने-" हम सफेद रंग में ही दिखे/ ऐसा रंग दीजिए /हम नंगे ना दिखे! "

अमृता सिंह और शाहिदा अजूंम ने भी नारी चेतना और होली की रंगीन कविताओं का पाठ किया।

सीमा रानी  -
 "ए होली इस साल तू कौन सा रंग लेकर आई है
 ना लाल - पीला/न हरा, तू क्या सफेद रंग लाई है?"

प्रेमलता सिंह -" किसी के सपने /तबाही का मंजर /और आंसुओं का सैलाब.."
रश्मि अभय -"तरस कर रह गया प्यार मेरा!"

मीना श्री -
 "होली ऐसी मनाओ/ भेदभाव दिल से भगाओ
बच्चों को समझाओ/ होलिका दहन का मतलब!"

 शुभचंद्र सिंहा-" वृद्धों का कैसा हो वसंत!" तथा

 राजकिशोर राजन ने -
"पत्थरों के सिल्वटों को आकार देते।/
जवानी को गुजार रही जो सड़क के किनारे
उस लड़की को लिखना चाहता हूं!
सुबह की गाड़ी पकड़ने के लिए
प्लेटफार्म को बिछौना बनाकरगुजारती है रात/
उस स्त्री को लिखना चाहता हूं प्रेम पत्र!"

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आलेख:फोटो - सिद्धेश्वर एवं अभिलाष दत्त
रपट के एक लेखक का ईमेल -sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com









   









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1 comment:

  1. विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'15 March 2020 at 20:18
    हार्दिक आभार आपका
    श्रम साध्य कार्य हेतु साधुवाद

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