आवै काल विनासै बुद्धि
घाघ को मालूम था कि उनकी मृत्यु तालाब मे नहाते समय होगी
साभार - महाकवि घाघ स्मृति संघ |
'घाघ ' शब्द सुनते ही पता नही कानों को क्या हो जाता है। बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव डालता है यह शब्द। यह एक ऐसा शब्द है जिसे कोई भी अपने नाम के साथ सुनना पसंद नही करेगा। बस यही हमारी कमजोरी है। कान के बड़े कच्चे हैं हम। सुनी सुनाई बातों पर ज्यादा यकीन है हमें। कभी कुछ सुन लिया तो यकीन कर बैठे । तह में जाना उचित नही समझा। हम अधकचरे ज्ञान के साथ आगे बढ़ रहें हैं। उसी ज्ञान का ढोल पीट रहे हैं। इधर उधर शेयर भी कर रहे हैं। खुद गुमराह तो हैं ही साथ ही साथ दूसरों को भी सच्चाई से अवगत नही कराना चाह रहे हैं।
वस्तुत: मुगलकाल मे 'घाघ' नाम का एक व्यक्ति हुआ करता था। उस व्यक्ति की खासियत थी। वह व्यक्ति समस्याओं का हल यूं चुटकी बजाते हुए कहावतों के माध्यम से कर दिया करता था। वह व्यक्ति इतना अनुभवी था, अपने अंदर इतना ज्ञान समेटे हुए था कि हमारे लिए उसे शब्दों मे समेटना बड़ा ही मुश्किल है।
हिंदी के लोक कवियों मे 'घाघ' का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है। वे लोक जीवन मे अपनी कहावतों के लिए प्रसिद्ध थे। जिस प्रकार ग्रामीण समाज मे ' इसुरी ' अपनी ' फाग ' के लिए, ' विसयक ' अपने ' विरहों : के लिए प्रसिद्ध है, उसी प्रकार , 'घाघ' अपनी कहावतों के लिए विख्यात हैं। खेती- बारी , ऋतु - काल तथा लग्न मुहूर्त के संदर्भ मे इनकी विलक्षण उक्तियां जन मानस खासकर किसानों के बीच बड़ा ही प्रचलित है।
घाघ का जन्मकाल विवादों से ग्रस्त है। घाघ उनका मूल नाम था या उपनाम इसका भी पता नही चलता है। इनकी जाति भी विवादों से परे नही है। कुछ विद्वानों ने इन्हें ग्वाला समुदाय का माना है। परंतु कुछ जगहों पर इन्हें ब्राह्मण ( देवकली दूबे ) भी माना गया है। कहा जाता है कि ये कन्नौज के चौधरी सराय के निवासी थे। कहीं कहीं पर यह भी उल्लेख मिलता है कि इनका संबंध मुग़ल बादशाह हुमायूं और बाद मे अकबर से भी रहा। इनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें प्रचुर धनराशि और कन्नौज के पास की भूमि दान मे दी जिसपर उन्होंने एक गांव बसाया था जिसका नाम रखा ' अकबराबाद सराय घाघ ' । सरकारी दस्तावेजों मे आज भी उस गांव का नाम ' सराय घाघ ' है। अकबर ने घाघ को चौधरी की भी उपाधि से नवाजा था। अतएव , इनके कुटुंबी अपने को चौधरी कहते हैं।
प्राचीन काल के महापुरुषों की तरह घाघ के संबंध मे भी अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं। कहा गया है कि घाघ बचपन से ही ' कृषि विषयक ' समस्याओं के समाधान मे दक्ष थे। वे मूलत: आशुकवि थे, शायद इसीलिए उनकी कहावतों की कोई पुरानी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध नही है। स्थान भेद से उनकी कहावतों के विभिन्न प्रचलित रूप देखने को मिलते हैं। उनकी कहावतों को पढ़ने से पता चलता है कि घाघ ने अपने कहावतों के माध्यम से जनमानस को जो संदेश दिया एवं भविष्यवाणियां की थी वो आज भी प्रासंगिक है।
आद्रा बरसै पुनर्वास जाय ।
दीन अन्न कोऊ नहिं खाय ।।
इसका तात्पर्य यह है कि यदि आद्रा नक्षत्र में बरसता पानी पुनर्वास तक बरसता रहे तो ऐसे अनाज को यदि कोई मुफ्त मे भी दे तो नही खाना चाहिए क्योंकि वह अनाज विषैला हो जाता है।
अगहन मे सखा भर, फिर करवा भर ।
अगहन माह मे यदि फसल को कुल्हड़ भर भी पानी मिल जाए तो वह अन्य समय के एक घड़े पानी के बराबर लाभदायक होता है।
आगे मघा पीछे भान।
बरषा होवै ओस समान।।
यदि मघा नक्षत्र हो और पीछे सूर्य हो तो वर्षा नगण्य होगी।
मैदे गेहूं ढेले चना।
गेहूं के खेत की मिट्टी मैदे की तरह बारीक होनी चाहिए एवं चने के खेत मे ढेले हों तभी पैदावार अच्छी होगी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि 'घाघ ' ने कितनी सरल भाषा मे बड़ी ही आसानी से जिंदगी के गुढ प्रश्नों को कितना सरल बना दिया है। हो सकता है, और यह शायद संभव भी हो कि आज के इस वैज्ञानिक युग मे हम और आप इसकी महत्ता को नजरंदाज कर दें परन्तु, क्या इसे सिरे से नकारा जा सकता है। बिल्कुल नही। भारत जैसे देश मे जहां कृषि की प्रधानता है हमे ' घाघ ' को पढ़ने समझने और इसे लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है।
'घाघ ' को अपने ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मालूम था कि उनकी मृत्यु तालाब मे नहाते समय होगी। इसलिए वे कभी भी नदी या सरोवर मे स्नान करने नही जाते थे। वाकई उनकी मृत्यु तालाब मे ही नहाने के दौरान हुई थी। मरते समय उन्होंने कहा था --
जानत रहा घाघ निर्बुद्धी।
आवै काल विनासै बुद्धि।।
.......
लेखक - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
अपनी प्रतिक्रिया यहाँ भी दे सकते हैं- यहाँ कमेंट कीजिए )
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