Monday 16 March 2020

करोना विशेषांक - बेजोड़ इंडिया दिनांक 16.3.2020

अब किसको कौन समझाए? 
जिसको थोड़ी भी समझ है वह तो खुद खौफजदा है

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वो मेरे सामने बैठा है लेकिन
दिलों के बीच कितना फासला है!
बचपन में गुलाम अली की ग़ज़ल सुनता था जिसका एक शेर था यह. तीन दशकों के बाद अब जाकर कोरोना युग में  समझ में आया कि सामने बैठे व्यक्ति से एक मीटर का फासला होता है.

टीवी के हर चैनल पर बताया जा रहा है कि मास्क से मुँह ढँकने की जरूरत मरीज, स्वास्थकर्मी और मरीज की देखभाल करनेवालों के अलावा किसी को नहीं है. लेकिन देश की अतिसतर्क और जरूरत से ज्यादा आज्ञाकारी जनता भला कहाँ मानने वाली हैं? लगातार सरकार की अपील हो रही है कि "हर कोई कुछ अंतराल पर बार-बार साबुन से हाथ धोते रहें या सैनिटाइअजर को हथेलियों पर मलते रहें, अपनी उंगलियों से मुँह, आँख या नाक को न छूएँ"- वह तो कोई मान नहीं रहा लेकिन मास्क हर कोई पहने नजर आ रहा है. कुछ लोगों को ये हाथ धोने से ज्यादा आरामदायक और फैशनेबल लगता है तो कुछ छुपे रुस्तम टीनएजर्स भी हैं जो मास्क लगाकर अपने पसंद के लड़के या लड़की के साथ घूमने का अच्छा मौका मिल गया है. इन लोगों को कोरोना का कहर भी वरदान के समान लगता है. अब किसको कौन समझाए? जिसको थोड़ी भी समझ है वह तो खुद खौफजदा है.

एक सच्चा वाक़या पढ़ने को मिला प्रसिद्ध चिकित्सक-कवि विनय कुमार का जिसमें उन्होंने हवाई यात्रा के अपने सहयात्री को कोरोना के चलते नहीं बल्कि इसलिए मास्क लगाते देखा कि बगल वाले के सामने हर समय शराब पिये रहने की उसकी आदत दिखाड़ न हो जाए.

दोस्तों, जीने के लिए रोना भी ऐसे होता है कि आप हँस रहे हों. तो आइये कोरोना वायरस के बारे में कुछ चुनिन्दा रचनाकारों की बातें सुनते हैं कुछ हलके अंदाज में लेकिन विषय पर कायम रहते हुए.

बिहार के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक में काम करनेवाले और विगत कुछ वर्षों पहले तक अत्यंत गंभीर मुद्रा रखनेवाले किन्तु अब रूमानी ग़ज़लों का पर्याय बन चुके अधिकारी सुनील कुमार (पटना) कहते हैं सार छंद में -
ऐसा लगे चीन ने जमकर, किया है जादू टोना।
तभी तो सारी दुनिया बोले, कोरोना कोरोना।।
नॉन वेज चौ'मीन बना औ’र चमगादड़ का सूप।
कोरोना बीमारी निकली, धरे ये घातक रूप।।
चा'ऊ चा'ऊ ताऊ जी ने, जब ना काबू पाया।
जानबूझ कर बीमारी को, दुनिया में फैलाया।।
फ़्रांस, रूस, जर्मनी, इटली में,  इसका रूप भयंकर।
लांछन देते चीन अमरिका, एक दूजे के ऊपर।।
सब देशों से होता अब यह, भारत भू पर आया।
हर शहर, हर शख़्स के मन में, कैसा खौफ़ है छाया।।
भीड़ भाड़ से बचना होगा, दूर दूर है रहना।
घड़ी घड़ी अब साबुन लेकर, हाथ पड़ेगा मलना।।
शेक हैंड परिपाटी त्यागो, हँस कर कहो नमस्ते।
हाथ जोड़ अभिवादन करते, ट्रंम्प भी हँसते हँसते।।

अंकलेश्वर (गुजरात)  को समय-समय पर अपना अस्थायी ठिकाना बनाकर अपने शहर जौनापुर (मोहनपुर, बिहार) लौटनेवाले छंदविद्या के सिद्धस्त और समय की गम्भीरता को सचमुच समझनेवाले जमीन से जुड़े कवि हरिनारायण सिंह 'हरि' की छंदभाषा समय समय पर बदलती रहती है. इस बार वे कुंडलिया में बात कर रहे हैं-
 1.             
कोरोना आतंक है, डटकर करिए जंग।
जो सचेत हो जाओगे, नहीं करेगा तंग ।
नहीं करेगा तंग, सफाई से है रहना ।
रोग-ग्रसित से दूर, सदा अपने को रखना ।
करें सभी सहयोग, नहीं ज्यादा है रोना ।
है सरकार सतर्क, कि भागेगा कोरोना ।
                 
2.
कोरोना का डर बड़ा, गतिविधियाँ सब मंद ।
विद्यालय-कालेज औ पार्क हुए सब बंद ।
पार्क हुए सब बंद, कि घर में बंद हुए सब ।
दहशत में सब लोग, घेर ले पता नहीं कब ।
धरा भयंकर रूप, कि बिगड़ा रूप सलोना।
डगमग है संसार, अधिक फैला कोरोना।

कुछ लोग युगपुरुष होते हैं जो हमेशा अपने युग की चाभी अपने पास रखते हैं- जब चाहें जिधर मोड़ दें. ऐसे ही प्रभावशाली साहित्यकारों में से और प्रतिष्ठित पत्रिका 'कौशिकी' के सम्पादक कैलाश झा किंकर (सहरसा, बिहार)  भी छंद के परमज्ञानी और हरफनमौला कवि हैैं. पेशे से शिक्षक श्री झा बाल-कविता में भी सब को मात करने का दम रखते हैं -
*कोरोना ने छुट्टी कर दी
  विद्यालय सब बंद हुए।
  छुट्टी की खुशियों से बच्चे
  फूल-फूल गुलकंद हुए।
*लेकिन पापा दुख है हमको
  रुकी परीक्षाएँ सारी।
  अगली कक्षा में जाने की
  धरी रही सब तैयारी।
  *कोरोना क्या है पापाजी
  जरा हमें भी बतलाओ।
  पापा बोले-छोड़ो ये सब
  घर में ही खेलो खाओ

नवी मुंबई (महाराष्ट्र)  में अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु प्रतिबद्ध कंचन कंठ कहती हैं -
कोरोना का रोना
           मचा चहुं ओर
जाएं हम किधर
          कहीं सूझे नहीं ठौर
असमय फैला हाय
          रे          वायरस
सबका  कर  गया
           हाल    बेहाल
सरकारें    लगीं   हुईं
           जनता परेशान
नेता   अभिनेता  भी
          दे     रहे      ज्ञान
सर्दी ज़ुकाम को
            दूर        भगाएं
हैंडरब ना मिले तो
          ना         घबराएं
आफ्टर शेव और
       पानी मिलाकर
आसानी से हैंडरब बनाएं
      अपनी   संस्कृति     पर
नाज करें और प्रणाम
        नमस्ते की   रीत  अपनाएं
रखें  साफ  सफाई
              चहुं           और
व्यर्थ ना मचाएं
            करोना का शोर।

स्वीट्जरलैंड में काम करके अ‍ब पुन: कर्नाटक के बंगलूरू में सॉफ्टवेयर की धूम मचानेवाले विजय बाबू लिखते हैं -
*सुना देखा अग्नि वायू आकाश
   विद्य सदा तो जीवंत है संसार,
   भगौलिक परिधि अलग अलग
   दुनियाँ पूर्व से पश्चिम एक द्वार ।
*आया अब करोना करने विनाश
   माने अपनी बुद्धि अपना उपचार
   मलिये हाथ या जान से हाथ
   धोना न पड़े, करोना - इस बार ।
*रहा न कोई अनुमान व कयास
   वाइरस करोना का अबकी बार,
   दूरी रखें हर से, स्वच्छ रहे सबसे
   दुनियाँ पूर्व से पश्चिम एक सार ।
*अपनाया संस्कृति देश पचास
   देखा जब भारतीय का संस्कार,
   पहचाना सबने उत्कृष्ट सभ्यता
  पूर्व पश्चिम सबों का नमस्कार ।
                 
 पेशे से शिक्षिका और सोशल मीडिया में कुछेक सेलेब्रीटीज को छोड़कर सबसे ज्यादा फैन-फॉलोविंग रखनेवाली साहित्यकार लता प्रासर (पटना) कोरोना के भय को दूर करने का प्रयास कुछ यूँ कर रहीं हैं -
नन्हकी बोली अपनी मां काम धाम अब छोड़ो ना
छुट्टी हो गई हर तरफ बौरा गया है कोरोना
मम्मी बोली धत्त पगली बातें फिजूल की मत करना
भूख प्यासे मर जाएंगे भय इतना दिखलाओ ना!

कवि मनोज कुमार अम्बष्ट भी कहते हैं -
बन्द हो गई हर गतिविधि,
प्रभावित हो रहा हर शहर,
भ्रमित होकर रह रहे सब,
कोरोना का है इतना असर

पूनम आनंद (पटना) एक सक्रिय महिला साहित्यकार हैं जो महिला बिषयक विषयों पर अक्सर लिखा करती हैं। पटना के तमाम अखबारों में और अनेक पत्रिकासों में खूब छपती हैं और आकाशवाणी-दूरदर्शन को भी ये  बहुुुत प्रिय हैं।इन्होंने कोरोना विषय पर एक सटीक लघुकथा भेजी है -

वायरस--- चारो तरफ कोरोना के डर से बंद की खबरे आने लगी।जहा तक हो सकता था सभी क्रार्यक्रम को स्थगित करने की घोषणा हो चुकी थी।कुछ स्कुल के लिए नियमानुसार शिक्षक को आने के आदेश दिए गए थे ।शिप्रा को भी स्कूल मैनेजमेंट ने आने के आदेश दिए थे ।अपने शिक्षण शौक को पूरा करने के लिए शिप्रा ने स्कुल को ज्वॉइन किया था।लेकिन, मैनेजमेंट को इस सब से क्या वो तो बस आदेश कर दिया ।शिप्रा बुझे मन से स्कूल गई और अपनी छुट्टी के आवेदन पर स्वीकृति लेने।तभी मैनेजमेंट ने उसे अपने पास बुला कर कुछ समझाने की कोशिश की और साथ ही कुछ मजाक उड़ाया ।शिप्रा ने झट से रूमाल निकाल कर छिकना शुरू कर दिया ।मैनेजमेंट दौड़ कर बाथरूम के अंदर चला गया और शिप्रा मुँह ताकती रहे गई ।बाहर से चपरासी ने आकर कहा की आप घर जा सकती है ।आपके छुट्टी मंजूरी की खबर मेल पर दे दी जाएगी "।शिप्रा मुँह ढककर वहाँ से तेजी से निकल गई

विभा रानी श्रीवास्तव एक व्यक्ति न होकर अपनेआप में एक संस्था हैं. इनकी खासियत यह है कि समाज के उस तबके में भी ये साहित्यि का अलख जगा रहीं हैं जिन्हें लोग चुल्हा-चौका, सेवा-सुश्रूसा और अब बाहर नौकरी भी करने के सिवा किसी और योग्य नहीं समझते. इस मिथक को अपनी प्रचण्ड सक्रियता और अद्भुत संयोजन क्षमता से दूर करती  हुईं  ये गृहिणियों को लेख्य मंजूषा नामक मंच पर पुरुषों की बराबरी में रखती हुई एक बड़ा काम कर रही हैं. घर में भी ये कम नहीं हैं और एक अलग प्रकार की धुन के कारण पहले तो मजाक का पात्र भी बना दी जाती थीं लेकिन अब नहीं. क्यों- देखिए इनकी लघुकथा-
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"हाथ ठीक से धो लो माया..., जब खाने की चीज उठाओ..," लैपटॉप-मोबाइल खाने के मेज पर रखकर work at home करती माया जब नाश्ते के लिए फल उठा रही तो मैंने उसे टोका.. केला खाकर उसी हाथ से स्प्रिंग रोल का डिब्बा खोलने लगी तो फिर टोक दिया।

"माँ! आप साफ-सफाई कैसे करें, स्वच्छता कितना जरूरी है ? जो आप वर्षों से करती रहीं.. सबको कहती रहीं। आज सभी मान रहे हैं। इसका वीडियो बनाकर डालिये न... वायरल होगा.. । सालों से सब आपको साइको कहते थे...। आज पूरा विश्व साइको है क्या...!"

महबूब कहते थे,- "माँ सबको कितना हड़का के रखती है.. जब देखो सबपर चिल्लाते रहते रहती है.. सब डरे-सहमे रहते हैं..,"

आप कहती थीं कि –"तुम तो कभी नहीं डरते सबसे ज्यादा तो तुम्हें ही मेरा सामना करना होता है?"

फिर वो कहते थे, –"वो क्या है न शेरनी के बच्चों को शेरनी से डरते नहीं पाया जाता!" और
"हँसते-हँसते हम सब मज़ाक में बात हवा में उड़ा देते थे..!"
"कोई बात नहीं आओ तुम्हें एक बिहारी कहावत सुनाती हूँ , कूड़े के दिन भी बहुरते हैं...!"
"सच कहा, कभी नाव पे गाड़ी कभी गाड़ी पे नाव।"
......................

संकलन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

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