Monday 18 February 2019

'जनशब्द' द्वारा बर्तोल्त ब्रेख्त पर केन्द्रित साहित्यिक गोष्ठी और पत्रिका लोकार्पण 17.2.2019 को पटना में संपन्न

ब्रेख्त - पहले से ज्यादा जरूरी एक मशाल 
आगे कूप, पृष्ठ में खाई / कहो प्रिये! किस मग से जाऊं? - डॉ. विजय प्रकाश 
[Small Bite-9 / खगड़िया में सैनिक स्कूल के बच्चों द्वारा कार्यक्रम- 17.2.2019  के लिए - यहाँ क्लिक कीजिए]

(बर्तोल्त ब्रेख्त बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक थे।उनकी किशोरावस्था में ही प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो चुका था और उन्हें अपने गृह क्षेत्र में ही मेडिकल कोर में काम करने का अवसर मिला. युद्ध की विभीषिका के प्रभाव को अपनी आंखो से देखकर उनपर गहरा प्रभाव पड़ा और उनमें रचनाशीलता का प्रखर विकास होता चला गया। आगे चलकर उन्होंने  "एपिक थिएटर" की स्थापना की जो घूम घूम कर अपने नाटकों का प्रदर्शन यूरोप  के विभिन्न भागों में किया करता था। उनके नाटकों पर मार्कवादी विचारधारा का प्रभाव है। नीचे प्रस्तुत है समकालीन कविता के राष्ट्रीय स्तर के जाने माने कवि श्री शहंशाह आलम के द्वारा तैयार की गई ब्रेख्त पर आधारित कार्यक्रम की रपट.)


पटना के महाराजा कॉम्प्लेक्स में स्थित टेक्नो हेराल्ड में साहित्यिक संस्था ‘जनशब्द’ द्वारा जर्मन के प्रसिद्ध कवि बरतोल्ट ब्रेख़्त पर केंद्रित समारोह का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम दो सत्रों में आयोजित था। पहला सत्र ‘आज के समय में ब्रेख़्त’, जबकि दूसरा सत्र ब्रेख़्त को समर्पित कवि-सम्मेलन का था। 

कार्यक्रम का आग़ाज़ कथाकार राणा प्रताप द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘कथांतर’ के ब्रेख़्त अंक के लोकार्पण से हुआ। तत्पश्चात् ब्रेख़्त पर विभिन्न वक्ताओं ने अपने गंभीर विचारों को श्रोताओं से साझा किया।

ब्रेख़्त पर बोलते हुए समता राय ने कहा कि ब्रेख़्त आज के समय में पहले से अधिक प्रासंगिक हैं, क्योंकि आज हमारे सामने फ़ासीवादी शक्तियाँ अधिक सक्रिय हैं। वरिष्ठ कवि श्रीराम तिवारी ने ब्रेख़्त को एक ऐसी मशाल बताया  जो पहले से हमारे लिए अधिक ज़रूरी है।

मुख्य वक़्ता के रूप में बोलते हुए कथाकार राणा प्रताप ने विस्तार से ब्रेख़्त के कवि और नाटककार जीवन पर प्रकाश डाला। इनका कहना था कि ब्रेख़्त सिर्फ़ एक कवि या नाटककार ही नहीं थे अपितु पूरी दुनिया के लिए प्रतिरोधक संस्कृति के संवाहक थे। 

इस अवसर पर वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज, कथाकार शेखर, रंगकर्मी जयप्रकाश, कवयित्री रानी श्रीवास्तव, कवि सुजीत वर्मा आदि ने भी ब्रेख़्त के साहित्यिक जीवन को रेखांकित किया।

दूसरे सत्र में पटना और आसपास से आए चर्चित कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया, जिनमें शिवनारायण, विजय प्रकाश, शहंशाह आलम, राजकिशोर राजन, मुसाफ़िर बैठा, अरविन्द पासवान, सुजीत वर्मा, रोहित ठाकुर, एम के मधु, पूनम सिन्हा श्रेयसी, वीणा बेनीपुरी, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, श्वेता शेखर, अमीर हमज़ा, केशव कौशिक, लता प्रासर, अभिषेक कुमार आदि शामिल रहे।

शहंशाह आलम ने 'रोहू' शीर्षक कविता में क्षणिक लाभ पर आधारित प्रेम-भ्रान्ति का प्रभावकारी चित्र खींचा- 
जाड़े की ठिठुरन वाली रात
मैंने ताज़ा रोहू मछली लाई
और तुमको मुझसे प्यार हो गया
तुमको माछ-भात पसंद जो है
मगर क्या यह एक ज़रूरी बात
इस रोहू को भी मालूम रही होगी
कि प्यार का सफ़र लंबा होता है।

विजय प्रकाश ने आसन्न चुनावी माहौल की ऐसी सटीक व्याख्या की जिसे समझकर सभी नागरिकों को सचेत होने की जरूरत है-
ऐसे प्रश्न उछाले जाते 
मूल बात से जो भटका दे 
रोटी, जल औषधि के बदले 
धनु, त्रिशूल पर नजर टिका दे 
इस मुगालते में मत रहना 
जो विपक्ष में हरिश्चंद्र हैं 
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कहो प्रिये! किस मग से जाऊं?

श्वेता कुमारी ने सूचनाओं के विश्वयुद्ध की ओर इशारा किया जो आज का सबसे बड़ा सवाल है- 
तुम्हारे जाने के दशकों बाद 
आजकल सूचनाओं का 
विश्वयुद्ध चल रहा है 
जहाँ सोलहवें साल में प्रेम की खबरें 
पैदा कर सकती है
बर्लिन से भी उँची दीवार
जिसे तुमने देखा तक नहीं था।

लता प्रासर ने 'वसंत' का स्वागत कुछ यूं किया- 
तन बसंती, मन बसंती, जीवन का हर क्षण बसंती
सुबह की धुंध, फूल के सुगंध हम तुम पर छा जाएंगे।

समारोह की अध्यक्षता प्रभात सरसिज ने, संचालन राजकिशोर राजन ने तथा धन्यवाद शहंशाह आलम ने किया। मुख्य अतिथि ‘नई धारा’ के संपादक शिवनारायण तथा कथाकार शंभु पी सिंह थे।
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मूल आलेख - शहंशाह आलम 
छायाचित्र - जनशब्द
संकलन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

  











 






















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