Thursday 7 March 2019

मुंगेर की संस्था 'विभावरी' द्वारा पटना में कवि गोष्ठी का आयोजन 4.3.2019 को संपन्न

मुझपर हुजूर की जो मुहब्बत का कर्ज है / किस्तों में सही आप चुकाने तो दीजिए 




यूं तो कुछ कर्ज चुकाए नहीं जाते लेकिन अगर मुहब्बत जैसे हसीन कर्ज को धीरे धीरे चुकाने का मौका मिले तो वह भी एक वरदान ही है. कर्ज, बस चुकता रहे, चुकता रहे लेकिन ख़त्म न हो, चुकाए जाने के लिए हमेशा बचा रहे.

तो एक ओर जहां एक कवि महोदय कर्ज चुकाने में लगे हैं वहीं दूसरी और एक जानी मानी कवयित्री इससे पहले की दुनिया में तीरगी फ़ैल जाए प्यार की रौशनी बांटने में लगी हैं.

कुछ इस तरह के जज्बात के साथ वसंत के आगमन का स्वागत हुआ 'विभावरी' की कवि गोष्ठी में.जिसमें पढ़ी गईं गज़लें और काव्यांश नीचे प्रस्तुत है.

साहित्य,संगीत और कला की गतिविधियों में सतत् कार्यरत मुंगेर की सुचर्चित संस्था " विभावरी" के तत्वावधान में  04.03.2019 को वसंतोत्सव के अन्तर्गत एक सरस काव्य गोष्ठी बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना के सभागार में डा.अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित की गई. गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए आचार्य शिवपूजन सहाय के सुपुत्र और साहित्यकार प्रो.मंगलमूर्ति ने 'विभावरी' की स्थापना के उद्देश्य और 40 वर्षों की गतिविधियों की सविस्तार चर्चा की. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा.शिववंश पाण्डेय ने आंचलिक भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की जयंती पर हिन्दी साहित्य में उनके अवदान पर चर्चा की और महाकवि जयशंकर प्रसाद का स्मरण करते हुए उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किया.

कार्यक्रम के आरंभ में दोनों विभूतियों के चित्रों पर माल्यार्पण किया गया.

इस अवसर पर संस्था के सचिव और संचालक श्री राधेश्याम शुक्ल को पुष्प-गुच्छ एवं शाल देकर सम्मेलन के अध्यक्ष डा.अनिल सुलभ और विजय सरावगी के हाथों से सम्मानित किया गया.

आयोजन का संचालन क्रमशः श्री विमल जैन और राधेश्याम शुक्ल ने किया.

काव्य गोष्ठी में डा.शान्ति जैन, डा.अनिल सुलभ,डा.मधु वर्मा,डा.किरण घई,मेहता डा.नगेन्द्रसिंह,आर.पी.घायल, वीरेन्द्र कुमार यादव,विश्वनाथ प्रसाद वर्मा,योगेन्द्र प्रसाद मिश्र,राधेश्याम शुक्ला,विमल जैन,आराधना प्रसाद, संजू शरण,बबीता जैन,आनन्द किशोर शास्त्री और घनश्याम के अलावा लगभग डेढ़ दर्जन कवियों ने प्रेम, श्रृंगार, हास्य और देशभक्ति की सुमधुर एवं सरस कविताओं से वसंतोत्सव काव्य गोष्ठी को सार्थक किया.

आयोजन के अन्त में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री नृपेन्द्रनाथ गुप्त ने गोष्ठी के आयोजक और उपस्थित साहित्यकारों, कवियों,शायरों और श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया.
................

सबसे नीचे दो पूरी गज़लें दी जा रहीं हैं . पहले पढ़ी गई कविताओं के अंश देखे जाएँ जो इस प्रकार थे-

डॉ. शांति जैन दिल से आँखों का काम लेने को कह रहीं हैं
दिल से आँखों का काम लेना तुम
आहटों से मेरा सलाम लेना तुम.

आर. पी. घायल को बिना देखे भी एक चेहरा लग रहा है कि कहीं देखा है शायद -
बिना देखे भी लगता है कि देखा है  तुझे घायल
कभी फूलों की खुशबू में कभी ठंढी बयारों में

 ऐसे में डॉ. मधु वर्मा अपने ही अंदाज़ में वसंत के आगमन को बयाँ  कर रहीं हैं-
धारा ने थाप दिया, कलियों ने बांधे केश
नियति ने गति का ताल मिलाया
नव वसंत आया.

लेकिन डॉ. किरण घई अभी हाल ही में दी गई देशभक्तों की कुर्बानी को नहीं भूल पा रहीं हैं -
घर आये हैं कुछ बच्चे देकर अपनी कुर्बानी
पढ़ सकते हैं अम्बर में किरणों से लिखी कहानी.

डॉ. अनिल सुलभ को होली के साथ ही पुरानी याद ताजा हो जाती है-
अबकी होली में आयी याद गांवों की अमराई .

लेकिन यह सावन डॉ. वीरेन्द्र कु. यादव के नयनों की बारिश लेकर आया लगता है जो रात भर रुलाता है-
रात भर बारिश होती रही
बूँदें झर झर झरती रही.

राधेश्याम शुक्ल इठलाती हुई चल रही एक गोरी पर मुग्ध लग रहे हैं -
रंग बिरंगी ओढ़नी रंगाय के चली
घेरदार घाघरा घुमाय के चली

शायरा आराधना दो अजनबियों के चाँदनी रात में मिलन का अनोखा दृश्य प्रस्तुत कर रहीं हैं-
चांद से  मिल  रही चांदनी प्यार में
मिल रहे दो यहां अजनबी प्यार में
आओ फैलायें हम प्यार की रोशनी
बढ़ न जाये कहीं तीरगी प्यार में
शह्र भी अजनबी शाम भी अजनबी
चार सू हो रही दिल्लगी प्यार में
बेक़रारी में है हर कली देखिये
हो रही है जवां आशिक़ी प्यार में
 हर गली हर मुहल्ले में चर्चा यही
ख़ूब रुसवा हुई सांवरी प्यार में
देखो छेडो नहीं मेरे जज्बात को
वरना हो जाऊँगी बावरी प्यार में

मुहब्बत के कर्जदार शायर घनश्याम  किसी की जुल्फों की घनी छांव में आकर अपने नयनों की भूख प्यास मिटाना चाहते हैं-
जुल्फों की घनी छाँव में आने तो दीजिए
नयनों को भूख प्यास मिटाने तो दीजिए
रूठे हुए हैं यार मनाने तो दीजिए
बिगड़ी हरेक बात  बनाने तो दीजिए
घूंघट ज़रा सा आप उठाने तो दीजिए
जी भर के चांदनी में नहाने तो दीजिए
सुष्मित सुमन-सामान सुकोमल स्वरूप को
पलकों की चांदनी में बिठाने तो दीजिए
नवनीत से स्निग्ध मुलायम कपोल पर
किंचित हमें गुलाल लगाने तो दीजिए
मुझपर हुजूर की जो मुहब्बत का कर्ज है
किस्तों में सही आप चुकाने तो दीजिए
दुनिया में मुहब्बत से बड़ी चीज कुछ नहीं
ये बात जमाने को बताने तो दीजिए
'घनश्याम' पुजारी है फ़क़त आपका उसे
दो फूल मुहब्बत के चढाने तो दीजिए.
(-घनश्याम)
...

आलेख - घनश्याम
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र सौजन्य - घनश्याम
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट- अन्य कवि/ कवयित्रियाँ अपनी पढ़ी गई पूरी रचना ईमेल से भेजें. सम्मिलित करने की कोशिश की जाएगी.


















1 comment:

  1. विभावरी के आयोजन की विस्तृत और सचित्र रिपोर्टिंग प्रकाशित की गई है.
    धन्यवाद बेजोड़ इंडिया ब्लॉग स्पाट.

    ReplyDelete

Now, anyone can comment here having google account. // Please enter your profile name on blogger.com so that your name can be shown automatically with your comment. Otherwise you should write email ID also with your comment for identification.