Monday 4 March 2019

आईटीएम काव्योत्सव, खारघर की 94वीं गोष्ठी 3.3.2019 को नवी मुम्बई में संपन्न

हमारे घर पैदा शहीद होते हैं / दुश्मन भी हमारे मुरीद होते हैं



अन्याय का प्रतिकार युद्ध कहलाता है और यह जीवनबोध के प्रारम्भ से ही अनेक स्तरों पर विभिन्न स्वरूपों में चलता रहता है. चाहे वह घर के अन्दर का भेदभाव हो, मोहल्ले समाज की बात हो अथवा राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य हो. युद्ध अनिवार्यता है लेकिन किस मकसद के साथ और कैसे लड़ी जाय इसपर गंभीर विमर्श की जरूरत पड़ती है. पडोसी देश की नापाक हरकतों को जहां हम बर्दाश्त नहीं कर सकते और उस हेतु बिना सामान्य नागरिकों को हानि पहुचाये आतंकवादियों के ठिकानों पर हमले करना हेमें जारी रखना चाहिए  वहीं बयान देते समय हमें संयम भी दिखाना होता है. युद्ध के महिमामंडन से भी बचने की जरूरत है. युद्ध अपने हकों को पाने हेतु हमारी मजबूरी है न कि कोई आनंद या विलास की चीज. 

दिनांक 3.3.2019 को देश की प्रतिष्ठित प्रबंधन शिक्षण संस्थान आईटीएम, नवी मुंबई के कमरे में 'काव्योदय' द्वारा एक मासिक कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें मुंबई के कई युवा एवं वरीय कवियों ने भाग लिया. पुलवामा हमला और अभिनन्दन वापसी के मुद्दे कविताओं में दिखते रहे मगर जो ख़ास बात थी वह यह कि करीब करीब सारे के सारे कवि युद्ध और शान्ति के शाश्वत प्रश्न पर गंभीर विमर्श करते दिखे. गोष्ठी की अध्यक्षता प्रकाश चतुर्वेदी थे और संचालन विमल तिवारी ने किया. इस बार के प्रायोजक थे प्रकाश चन्द्र झा.

पढ़ी गई कवितायेँ देशभक्ति के साथ -साथ अन्य विषयों पर भी थी.  उनकी एक झलक नीचे प्रस्तुत है- 

सिराज गौरी -
ऐ जालिम तू जो हरकत कर रहा है
ज़माना तुझ से नफ़रत कर रहा है
माफी का सबक सीखा है फिर भी 
तू बदले की जिहालत कर रहा है

प्रकाश झा -
भारत पर हो रहे हैं हमले / जाने कितनी चोटें खाईं है
फिर भी शान्ति का रहा पुजारी / सोची सबकी भलाई है
मगर पडोसी उन्मत होकर / जब जब करी लड़ाई है 
हुई हार हर बार जंग में भारत ने धूल चटाई है

अश्विनी उम्मीद - 
मैं अपनी मर्जी से कब हिन्दू मुसलमान हुआ
जहां पैदा हुआ बस वो मेरा ईमान हुआ 

पूनम खत्री -
हमारे घर पैदा शहीद होते हैं 
दुश्मन भी हमारे मुरीद होते हैं
इंसानियत की पहली पहचान हैं हम
हमसे नहीं उलझना हिन्दुस्तान हैं हम

सेवा सदन प्रसाद -
ये दुनिया डरती है न हिन्दुस्तान से न पाकिस्तान से 
ये दुनिया डरती है तो सिर्फ एक एकीस्तान से 
जिस दिन हम तुम मिल गए तो ये संसार दहल जाएगा
अमेरिका और चीन भी सहम जाएगा 

अनिल पुरबा - 
तुम दो मारोगे हम चार मारेंगे 
ऐसी बेवकूफियां हम कब तक करते रहेंगे 
अच्छा होगा हम शान्ति से रहें 
आनेवाली नस्लें हमें याद करें 

हेमन्त दास 'हिम'-
दिल की आवाज को कोई उसे सुनाये 
बचपने के साथ वो फिर से वापस आये 
रिश्तों का अर्थ सुनो आज मैं बताता हूँ 
कोई याद आये और कोई तुम्हें रुलाये 

जज़र हयात्पुरी -
न शिकवा है कोई न कोई गिला है 
ये आंसू भी किस्मत से मुझको मिला है
ये आंसू मेरे हाल का तर्जुमा है 
जो आँखों से मेरी गिरा धीरे धीरे 
मुहब्बत में सबकुछ लुटा धीरे धीरे 

वंदना श्रीवास्तव -
केसर की क्यारी में जो बादल बारदी उड़ते हैं 
सेबों की बगिया में भी   शाखों से बम ज्यों लटके हैं 
इन आतंकी पागलों को उत्तर दो इनके सवालों का

भारत भूषण शारदा - 
मिल कर रहना इस धरती ने दुनिया को सिखलाया है
उंच नीच का भेद मिटाकर सबको गले लगाया है

विश्वम्भर दयाल विवारी-
उगल रहे विष सर्प राह पर वातावरण हुआ व्याकुल
पीनेवाले जहर रात दिन सैन्य सुरक्षाबल आकुल 

सत्य प्रकाश श्रीवास्तव -
युद्धबंदी होते हुए भी तुमने / भारत के राज न खोले 
तुम टूटे नहीं कठिन समय में / इस हेतु भी आज तेरा अभिनन्दन है

शोभना ठक्कर -
क्योंकि हम अच्छे दोस्त हैं

कुलदीप सिंह दीप - 
देख हैरान हो गए फिरंगी / कैसे हैं ये बन्दे 
चूम चूम कर गले में डाले / ये फांसी के फंदे
हँसते हुए फिर चढ़ गए फांसी / किया देश से प्यार 

विजय भटनागर -
आजकल मतलब के दोस्त बनते हैं / मिलते रहते हैं कदम कदम पर
दुश्मनों से दोस्ती के गुर सीखों / दोस्त भी दुश्मन भी साथ चलेंगे 

माधवी कपूर -
देवदास यदि तुम पारो को मिल जाते तो 
इतनी विरह भरी यह गाथा / कहीं दुबक कर सो जाती 
मिलन राग ले बजी बांसुरी / कहीं बेसुरी हो जाती 

दिलीप ठक्कर -
जो दुश्मन था मेरा दुआ दे रहा है
इलाही ये क्या माजरा हो रहा है
रहेंगे कभी न कभी हम तो मिल के
मुकद्दर का ये फैसला हो गया है 

डॉ. मनोहर अभय -
कुलदेवी चंडिका, विजयश्री आराध्य 
मृत्युंजय की साधना, कराती साध्य असाध्य 
सर ऊंचा हो देश का, गरिमा औ' सम्मान 
ये सेनानी मर मिटे, ऊंचा किये निशान

विमल तिवारी -
सरस सलिल धरा पर अपने / सपने कोई तोड़ गया 
माँ की ममता से सजा वो आँचल / बालक मुख पे ओढ़ गया 

डॉ. सतीश शुक्ला -
जंग चाहे कितना भी सुखद हो 
अंत दुखद होता है

पैकर बस्तवी -
मुहब्बत का ठिकाना है दिल है फिर भी 
मुहब्बत दिल दुखाती है मगर क्यूं 

अशोक वशिष्ट - 
बहुत सह लिया अब न सहेंगे / दुश्मन को जतलाया है 
शान्ति पुजारी थे हम अब तक / तुमने बहुत सताया है.

अशोक प्रीतमानी -
क्या सुनाऊँ मैं तुम्हें कहानी अपनी 
गहरे में चोट है दिखती नहीं.

गोष्ठी में शहीद सैनिकों के साथ-साथ प्रख्यात हिंदी के प्रख्यात समालोचक डॉ. नामवर सिंह और प्रसिद्ध कवि उदयभानु की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए कवियों ने एक मिनट का मौन रखा. 

अंत में कवि गोष्ठी के अध्यक्ष प्रकाश चन्द्र चतुर्वेदी ने पढ़ी गई कविताओं पर अपनी संक्षित्प्त टिप्पणी दी फिर अपनी कविता पढ़ी.

अंत में भारत भूषण शारदा ने आये हुए सभी कवि / कवयित्रियों का धन्यवाद् ज्ञापन किया.  फिर सबने जलपान ग्रहण किया और अध्यक्ष की अनुमति से सभा विसर्जित की गई. 
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग 
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