Wednesday 13 March 2019

नवी मुम्बई में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सखी बहिनपा समूह का कार्यक्रम 8.3.2019 को संपन्न

परम्परा-अपरम्परा को ध्वस्त करती नारी  / आज आगे बढ़ रही है.




विगत आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सखी बहिना ग्रुप ने इसे "ओपन माइक सेलिब्रेशन" (खुला माइक उत्सव) के रूप मे मनाने का निर्णय किया। स्थान तय हुआ अनुकूल होटल, शिल्प चौक, खारघर , नवी मुंबई का इस  का उद्देश्य  था घरेलु महिलाओ को एक मंच देना जहां वो अपनी इच्छा से जो भी वो सृजनात्मक करना चाहें करें। महिला हैं ,तो संवेदनशील भी हैं ,जागरूक हैं ,तो देश, काल ,परिस्थितियों  पर नजर रखती हैं। कार्यक्रम का समय सुबह ग्यारह बजे से अपराह्न दो बजे तक रखा गया।

ये सुबह का समय तो अति व्यस्त होता है महिलाओं के लिए। किसी के बच्चों की परीक्षाएं हैं, तो किसी की बाई छुट्टी मार गई तो कहीं शाम में मेहमान आ रहे। फिर भी सारे विघ्न, बाधाओं को पार कर नियत समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ।

संध्या सखी ने "ओपन माइक सेशन" का मतलब बताया कि इसका मतलब सबमें मंच पर आने के भय को दूर करना अर्थात "स्टेज फोबिक" से "स्टेज फ्रेंडली" बनाना है। यूं तो सभी बोलते-गाते हैं , परंतु माइक पर अच्छे अच्छों की बोलती बंद हो जाती है, फिर ये ठहरीं गृहिणी तो बोल पाना - एक नई बात थी।

कार्यक्रम की शुरुआत भगवती गीत से हुई जिसे पम्मी आनंद, रोशनी रॉय, संध्या  मिश्रा पाठक और प्रियंका मिश्रा ने की। फिर संध्या सखी ने आप्रवासी मैथिलों की कसक और अपने गांव घर से उनके जुड़ाव को स्वरचित कविता "बाजइ मुदा मैथिली छी हम" से व्यक्त किया। 

फिर महिला दिवस को संबोधित करते हुए संध्या पाठक ने डॉ शेफालिका वर्मा की मैथिली रचना "नारी" पढ़ी जिसकी कुछ पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद कुछ यूं है -
घर बाहर को जगमगाती
आकाश छूने की परिकल्पना से
नव निर्माण के विस्तार में
नवल सूर्योदय भरती
परम्परा-अपरम्परा को ध्वस्त करती नारी
आज आगे बढ़ रही है........

फिर उन्होंने  विनीती ठाकुर जी की कविता "नारी के अस्तित्व" सुनाया। बहुगुणी  प्रियंका मिश्रा ने स्वरचित "धिया" का काव्य-पाठ किया। उसके बाद  कंचन कंठ ने तनुजा दत्त रचित "नारी अहां पर कि लिखू" कविता से सबको आंदोलित कर दिया।

माहौल में अचानक बदलाव लाते हुए नीलम लाल ने स्व हरिमोहन झा रचित "खट्टर काका के तरंग" से एक पद्यांश "हरि हरि जनम किया देल,रोहू माछक मुड़ा जखन पैट नहि भेल" सुनाकर हंसी के फव्वारे में भिगो दिया। फिर तो चुटीले चुटकुलों का दौर भी शुरू हो गया। जिसकी कमान संभाली सुलेखा दास और प्रियंका मिश्रा ने । 

संध्या मिश्रा ने आप्रवासी मैथिलों के स्वार्थ ,उनके परिजनों  की विवशता और समाज का उन वृद्धों के प्रति नजरिये का अत्यंत मार्मिक चित्रण "लाल काकी के श्राद्ध" कहानी के माध्यम से किया। फिर सुषमा मिश्रा ने ननद भाभी की प्यारी नोंक-झोंक को "सोहर" के माध्यम से सुनाया।

मैथिलों का जमघट हो ,गीत संगीत का माहौल हो और बाबा विद्यापति के गीत न हो-यह तो होने से रहा। कार्यक्रम में  सुलेखा दास और  मधु प्रकाश  ने भी अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया। उनकी बहुचर्चित बटगबनी "पिया मोर बालक" को जिस ठहराव भरे लहजे में आशा पाठक सखी ने गाया-दिल लूट ले गईं। प्रियंका मिश्रा ने एक लोकगीत "छोड़ूं छोड़ू छोड़ू ने सैंया देर भ गेलै "सुनाकर झूमने पर मजबूर कर दिया।

अरे ,अरे ,अरे रजनी रंजन सखी जो दूर रहने के कारण कुछ देर से आ पाईं-उन्हें कैसे भूल गई ‌। उन्होंने नचारी से मन मोह लिया। फिर  हमारे सैनिकों के जीवन में कर्त्तव्य और हमारे मन में उनके लिए सम्मान को दर्शाती कर्नल अजीत दत्त, जो कंचन कंठ के पड़ोसी थे -से जुड़े एक संस्मरण को कंचन कंठ ने सुनाया,जिससे अपने आर्मफोर्स के प्रति अनायास ही सम्मान जागृत हो उठा।

फिर नीलम लाल सखी हमें स्व केदारनाथ अग्रवाल की कविता " हवा हूं हवा मैं" सुना कर बचपने, बेफिक्री और अल्हड़पने के खुबसूरत दौर में उड़ा ले गईं। इतने रंगारंग कार्यक्रम में पता ही न चला कि घड़ी कब खिसक कर दो से चार पर आ पहुंची और हमें मस्ती के सुनहले दौर से कठोर धरातल पर ला पटका।

चूंकि प्रियंका मिश्रा अधिवक्ता हैं तो उन्होंने महिलाओं के मौलिक और कार्यक्षेत्र में अधिकारों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने डॉ नित्यानंद लाल दास एवं भैरब लाल दास द्वारा अनुदित संविधान की मैथिली प्रति "भारतक संविधान" की चर्चा की और उसकी कुछ खूबियों को बताया।

मिथिलानियां जन्मजात प्रतिभावती  होती हैं। गायन वादन , कविता ,कहानी ,हास परिहास के तो  क्या कहने! प्रत्युतपन्नमतित्व में तो इनसे गणपति भी कुछ सीखना चाहें। एक बार भी यह एहसास नहीं हुआ कि यह कार्यक्रम मात्र शौकिया कलाकारों का है। 

सञ्चालन, गायन, कविता - कहानी वाचन, हास्यप्रसंग सभी सधे हुए और परिस्थिति के अनुरूप  थे। नीलम लाल के संग संग कंचन कंठ एवं प्रियंका मिश्रा ने कीबोर्ड पर "वंदेमातरम्" सब सखियों संग गाकर समाप्ति की। सबसे बुजुर्ग एवं सम्माननिया सखी आशा पाठक ने आशीर्वचनों से  ऐसे ही अर्थपूर्ण कार्यक्रम भविष्य में करने और मिलजुलकर रहने का संदेश दिया। 
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आलेख -कंचन कंठ 
छायाचित्र सौजन्य - कंचन कंठ 
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1 comment:

  1. धन्यवाद,बहुत बहुत धन्यवाद 💐। लेकिन डॉ शेफालिका वर्मा की कविता मैथिली में थी। चूंकि मैथिली बोलना आवश्यक है, इस ग्रुप में।

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